
6 जुलाई 2020, दिन सोमवार भारत के इतिहास में एक ख़ास पड़ाव। भारत-चीन के मौजूदा सामरिक सम्बन्धों के लिहाज से एक ख़ास दिन। इसी दिन दो महीने से अधिक समय से पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में डेरा डालने वाली चीन की सेना ने वापसी की। यह वापसी अचानक नहीं हुई इसके लिए कोशिशें तो बहुत समय पहले से चल रहीं थीं लेकिन जब चीन को लगा कि भारत कूटनीतिक युद्ध में उससे कहीं आगे है और पूरा विश्व समुदाय इस मामले में भारत के साथ है तो चीन को अपने कदम वापस लेने ही पड़े। चीन की सेना की गलवान घाटी से वापसी को भारत की एक बड़ी कूटनीतिक जीत भी माना जा रहा है।
इतिहास गवाह है कि चीन लद्दाख के इस सीमा क्षेत्र से दूसरी बार वापस हुआ है। इससे पहले इसी गलवान घाटी से चीन की सेना 1962 की मध्य जुलाई में वापस हुई थी। भारत के अग्रणी अंग्रेजी दैनिक, टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने 16 जुलाई 1962 को पहले पन्ने पर प्रमुखता से एक समाचार प्रकाशित किया था जिसमें इस बात का जिक्र किया गया था कि भारतीय सेना के जवानों ने शौर्य और पराक्रम का परिचय देते हुए चीनी सैनिकों को भारतीय सीमा से पीछे हटने को मजबूर कर दिया था।
भारतीय सेना के जवानों ने 58 साल के बाद एक बार फिर अपने उसी शौर्य और पराक्रम का परिचय देते हुए चीनी सैनिकों को उसी गलवान घाटी से पीछे हटाया है लेकिन अब समाचारों की सुर्ख़ियों में सैनिक नहीं होते सुर्ख़ियों में होते हैं राजनीति और देश की सुरक्षा से जुड़े हुए वो नेता और सलाहकार जो सीमा पर नहीं बल्कि सीमा से हजारों किलोमीटर दूर रह कर समर का नेतृत्व करते हैं। इस 6 जुलाई को गलवान घाटी में चीनी सैनिकों की वापसी की जो घटना हुई उसका आधार तो पिछले महीने 30 जून को सम्पन्न दोनों देशों के कोर कमांडरों की बैठक में ही तय कर लिया गया था लेकिन बैठक के करीब एक सप्ताह बाद 5 जुलाई को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने चीन के विदेश मंत्री यांग यी के साथ इस पूरे मामले पर फ़ोन से चर्चा की थी।
आज 58 साल के बाद गलवान घाटी में जो कुछ भी हुआ है वो ठीक वैसा ही है जैसा 1962 में हुआ था। तब भी जून के महीने में ही सीमा के इसी स्थान पर चीनी सैनिकों से झड़प हुई थी और जुलाई के दूसरे हफ्ते में चीन की सेना वापस चली गई थी। इस बार भी 15-16 जून की रात को झड़प हुई और 6 जुलाई को चीन ने अपने सैनिक सीमा से वापस बुला लिए थे। 1962 के भारत चीन युद्ध में भले ही भारत को भारी नुकसान हुआ हो लेकिन गलवान पोस्ट पर भारतीय सैनिकों ने अदम्य साहस का परिचय दिया था। चीनी सेना को गलवान पोस्ट से पीछे हटना पड़ा था।
सीमा पर तनाव कम करने को लेकर दोनों पक्षों के बीच हुई इस महत्वपूर्ण बातचीत का ही नतीजा है कि चीन ने अपने कदम वापस ले लिए। अब भारतीय पक्ष इस मामले की जमीनी पड़ताल करेगा और भारतीय सेना भी तदनुसार कार्रवाई करेगी। सामरिक विशेषज्ञों की माने तो चीन ने आज अपनी सेनायें वापस जरूर बुला लीं लेकिन उस पर भरोसा किसी भी कीमत पर नहीं किया जा सकता। विशेषज्ञों की राय में समझौता करना और बाद में न केवल उससे मुकर जाना बल्कि समझौते के तहत बने मित्र की पीठ में छुरा भौंकना चीन की पुरानी आदत है और वो आज भी अपनी इस आदत से बाज नहीं आया है। इसलिए हमको हर कदम पर चौकस रहने की जरूरत होगी।
1962 में उस समय तो चीन सीमा से पीछे हट गया था लेकिन इतिहास गवाह है कि उसके कुछ समय बाद ही चीन ने भारत को धोखा दे दिया था। चीन ने उस दौरान अपनी सेना को पीछे कर लिया लेकिन भारतीय सीमा में उसकी दखलअंदाजी निरंतर बढ़ती ही गई भारतीय सेना के कुछ पूर्व सैनिकों का भी मानना है कि इस बार भी गलवान घाटी से अपने सैनिकों को हटाने की जो कार्रवाई चीन ने की है उसमें और 62 की कार्रवाई में ज्यादा फर्क नहीं है। चीन अपनी विस्तार वादी नीति के चलते पहले भारत की सीमा में दस कदम अन्दर तक आने का दुस्साहस करता है और उसके बाद जब चारों तरफ से दबाब पड़ता है तब अपने कदम दो पीछे कर लेता है। इस बार भी यही हुआ है।
चीन अपनी दो कदम आगे और एक कदम पीछे की नीति के तहत लगातार आगे बढ़ता गया। इसी का नतीजा है कि भारत को एक बार फिर गलवान घाटी में हिंसक झड़प का सामना करना पड़ा है। चीन लगातार एलएसी पर इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करता गया। हम जान कर भी अंजान बने रहे। यह काम कई दशक से किया जा रहा है लेकिन हमने इस पर विशेष ध्यान नहीं दिया भारतीय सेना ने सरकार को लगातार इसके बारे में जानकारी भी दी लेकिन हमने सेना की चेतावनियों को सरकार अनदेखा किया और बात यहां तक पहुंच गई कि चीन एलएसी के पास मजबूत स्थिति में पहुंच गया।
आज एक बार फिर गलवान घाटी से पीछे तो हट गया है लेकिन अपनी हरकतों से उसने भरोसा पूरी तरह तोड़ दिया है। चीन पर भरोसा करना इसलिए भी ठीक नहीं लगता क्योंकि 1962 से लेकर आजतक चीन सोच-समझकर भारतीय इलाके में घुसा, वो भी एक नही कई जगहों पर। हो सकता है दवाब पड़ने पर दो जगह से पीछे हट भी गया हो। चीन उसी जगह से पीछे हटा है जहां से वो पहले तय करके आगे बढ़ा है। ऐसे में क्या चीन पैंगोंग लेक के से पीछे हटकर फिंगर 8 के पीछे अपनी पुरानी वाली जगह चला गया है?
क्या गलवान से पेट्रोलिंग पॉइंट 14 के पीछे हटने की वजह यह तो नही है कि गलवान नदी में बाढ़ आई हुई है। अगर सैनिक पीछे नही हटे बाढ़ के चपेट में आ जाएंगे। यह भी देखना होगा कि क्या चीनी सैनिक टैक्टिकल हाइट पर तो नहीं जम गए हैं? क्या जिन जगहों पर चीन ने अपने बंकर बना लिए है हम उन बंकरों को तोड़ पाएंगे? या फिर कोई चिन्ह ही बना लिया है तो हम उसे खत्म कर देंगे? दोनों देशों के बयान में नपे तुले हैं। शब्दों का खेल है। साफ है कि लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) को बदलने का कोई भी काम एकतरफा नही होगा। यानी मिलकर तनाव कम करना है। तनातनी को कम करना है। पर यह बहुत मुश्किल है।
चीन के लिए आसान नही है कि वो अप्रैल, 2020 के पहले वाली जगह पर चला जाए। अगर चीन यहां झुकता है तो दुनियां में क्या मैसेज जाएगा? जहां तक भारत की बात है तो पहले कहा गया कि चीन हमारी सीमा में आया नहीं था तो फिर जब आया नहीं तो वापस कैसे जा रहा है? सवाल विश्वसनीयता का भी है, जिसका बहाल चीन ने गलवान घाटी में भले ही अपनी सेना को करीब दो किमी पीछे कर लिया हो लेकिन सेना को चीन पर कतई भरोसा नहीं है। बार बार चीन के धोखे के बाद अब सेना किसी भी तरह का खतरा उठाना नहीं चाहती है। चीन के इस कदम के बाद भी सेना अपनी पेट्रोलिंग को लगातार बढ़ा रही है। चीन को अब उसी की भाषा में जवाब देने के लिए सरकार पहले ही सेना को खुली छूट दे चुकी है।