पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी में भारत के साथ चीन ने जो व्यवहार किया वो तो सबके सामने है। लेकिन चीन भारत को परेशानी में डाले रखने के लिए परोक्ष तरीके से भी बहुत कुछ कर रहा है जो फिलहाल दिखाई तो नहीं दे रहा है पर उसके प्रभाव किसी न किसी रूप में सामने आते दिखाई देने लगे हैं। भारत को परेशानी में डालने के चीन के ऐसे ही परोक्ष कारनामों में एक है चीन का नेपाल से लेकर पाकिस्तान, बांग्ला देश, श्रीलंका, मालदीव और अफगानिस्तान समेत भारत के सभी पड़ोसी देशों को किसी न किसी वजह से भारत के खिलाफ कर देना।
अफगानिस्तान के मामले में तो चीन ऐसा करने में सफल नहीं रहा क्योंकि एक तो अफगानिस्तान के पाकिस्तान के साथ सम्बन्ध ठीक नहीं हैं और दूसरा इसलिए भी क्योंकि तालिबानी आतंकवाद से लड़ने में भारत-अमेरिका के साथ मिल कर इस देश की मदद कर रहा है। एक अफगानिस्तान को छोड़ कर चीन भारत के शेष पड़ोसी देशों में ऐसी कोई न कोई हरकत जरूर कर रहा है जिससे भारत के उन देशों के साथ सम्बन्ध खराब हों और चीन अपने पक्ष में उसका भरपूर फायदा उठा सके।
साम्यवादी व्यवस्था का पोषक चीन आज की तारीख में सबसे बड़े साम्राज्यवादी विस्तार वाले देश का प्रतीक बन चुका है। अपनी इसी विस्तार वादी नीति के चलते चीन ने भारतीय उप महाद्वीप के सभी देशों को किसी न किसी रूप में अपनी जकड़ में ले रखा है। पाकिस्तान तो भारत का घोषित दुश्मन है ही, नेपाल ने भी नक्शा विवाद खड़ा कर भारत के साथ दूरी बना कर रखना ठीक समझा है श्रीलंका को भी मित्रवत देश नहीं कहा जा सकता और अब भूटान भी नेपाल के ही नक़्शेकदम पर चलने की तैयारी कर रहा है। कहा जा रहा है कि विगत गुरुवार 25 जून 2020 को भूटान द्वारा भारत के लिए पानी न छोड़ने की जो ख़बरें आयीं थीं उसके पीछे भी कहीं न कहीं चीन का ही हाथ रहा है। चीन के दबाव में ही भूटान ने ऐसे हरकत की थी।
अब चूंकि भूटान सरकार के साथ ही भारतीय राज्य असम की सरकार भी यह साफ़ कर चुकी हैं कि भूटान की तरफ से पानी बंद करने जैसी कोई गतिविधि नहीं हुई और लॉकडाउन की वजह से बंद हो चुके नालों की वजह से भूटान का पानी भारत में नहीं आ सका था, जो अब ठीक हो चुका है। दो सरकारों की बातों पर भरोसा करना राजनय और राजनीतिक विवशता भी है इसलिए हम यह मान कर चल सकते हैं कि भारत और भूटान के रिश्तों में पहले जैसा सौहार्द और सद्भाव आज भी बना हुआ है।
प्रसंगवश गौर करने लायक बात यह भी है कि भारत और भूटान के बीच न केवल राजनीतिक बल्कि सांस्कृतिक रिश्तों का भी एक लम्बा इतिहास रहा है। भारत में समय- समय पर हुए सत्ता परिवर्तन का भी भारत- भूटान रिश्तों पर कोई विपरीत असर कभी नहीं पड़ा है। इसके विपरीत समय के साथ-साथ दोनों देशों के आपसी रिश्ते और प्रगाढ़ ही हुए हैं। रिश्तों की प्रगाढ़ता का ही नतीजा है कि 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपानीत गठबंधन सरकार का भारत में गठन हुआ तब इन रिश्तों को मजबूती देने की गरज से ही भारत और भूटान के बीच एक नए समझौते पर भी हस्ताक्षर किये गए थे।
भारत- भूटान रिश्तों की प्रगाढ़ता को इस तथ्य से भी समझा जा सकता कि जब मोदी सरकार ने विदेश मंत्री पद पर पूर्व विदेश सचिव एस. जयशंकर की नियुक्ति से सभी हैरत में पड़ गए थे। इस पद पर नियुक्त होने के बाद नए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत की पड़ोसी पहले नीति के तहत अपनी पहली विदेश यात्रा के लिये भूटान को चुना। भूटान के साथ सदियों से भारत के मधुर संबंध रहे हैं और यह भारत का करीबी सहयोगी रहा है तथा पिछले कुछ सालों में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में काफी प्रगति हुई है। विदेश मंत्री के इस दौरे से यह भी स्पष्ट हुआ कि निकट मित्र एवं पड़ोसी भूटान के साथ संबंधों को भारत कितना महत्त्व देता है।
वर्ष 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद नरेंद्र मोदी ने भी अपने पहले विदेश दौरे के लिये भूटान को ही चुना था। वर्ष 2019 में जब नरेंद्र मोदी ने दोबारा प्रधानमंत्री पद की शपथ ली तो बिम्सटेक देशों के नेताओं को आमत्रित किया गया था, जिसमें भूटान के प्रधानमंत्री लोते शेरिंग भी शामिल थे। भूटान के साथ हुई ताजा संधि के तहत प्रधानमंत्री ने भूटान के अधिक से अधिक छात्रों को बौद्ध धर्म जैसे पारंपरिक क्षेत्रों में अध्ययन करने के लिये भारत आने का निमंत्रण दिया था। इसके अलावा प्रधानमंत्री की इस यात्रा के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा 720 मेगावाट की मांगदेछु जल विद्युत परियोजना का उद्घाटन किया गया था।
भारत और भूटान ने संयुक्त रूप से ग्राउंड अर्थ स्टेशन (Ground Earth Station)और SATCOM नेटवर्क का उद्घाटन किया, जिसे भूटान में दक्षिण एशिया उपग्रह के उपयोग के लिये इसरो की सहायता से विकसित किया गया है। यह अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से भूटान के विकास को सुविधाजनक बनाने संबंधी भारत की प्रतिबद्धता का प्रतीक है। यही नहीं भारत, भूटान के साथ ई-स्कूलों (e-schools),अंतरिक्ष (space)और डिजिटल भुगतान (Digital Payment)से लेकर आपदा प्रबंधन तक बड़े पैमाने पर सहयोग करने की कोशिश कर रहा है। इस समय भूटान के चार हज़ार से अधिक छात्र भारत में अध्ययनरत हैं तथा इस संख्या में और अधिक वृद्धि की जा सकती है। इन परिस्थितियों में अगर भारत -भूटान के बीच किसी तरह के असंतोष की बात की जाती है तो आश्चर्य होना स्वाभाविक ही है।