
देश भर में आज संविधान दिवस मनाया जा रहा है। सरकारी संस्थानों के साथ ही स्कूलों कॉलेजों में केंद्र सरकार के निर्देशानुसार आज छात्र-अध्यापक संविधान दिवस पर वाद-विवाद प्रतियोगिता और भारत के महापुरुषों से जुड़ें संदर्भों को याद करेंगे। सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों संविधान दिवस को अपने-अपने तरीके से मना रहे हैं। आज संविधान दिवस के मौके पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर के मध्य प्रदेश स्थित जन्मस्थान पर जाकर उनको श्रद्धांजलि अर्पित किया। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सुप्रीम कोर्ट में एक समारोह में शामिल होकर लोकतंत्र में न्यायपालिका के महत्व को रेखांकित किया। भारतीय संविधान में चुनावी लोकतंत्र, वयस्क मताधिकार, संवैधानिक संस्थाओं का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है। लोकतंत्र के साकार करने में चुनाव और चुनाव आयोग की भूमिका उल्लेखनीय है। पहले हम संविधान दिवस मनाने का कारण और भारतीय संविधान की विशेषताओं का जिक्र करेंगे, फिर भारतीय लोकतंत्र में चुनाव आयोग की भूमिका और उसके वर्तमान स्थिति का भी आकलन करेंगे।
संविधान दिवस मनाने की शुरुआत कब से हुई ?
देश का संविधान तो 1949 में ही बन गया था और सन 1950 में इसे लागू कर दिया गया था। लेकिन संविधान दिवस मनाने की शुरुआत देरी से हुई। साल 2015 में संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर की 125वीं जयंती मनाई जा रही थी। भारत सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने इस दिन को ‘संविधान दिवस’ के रूप में मनाने के केंद्र सरकार के फैसले को अधिसूचित किया और 26 नवंबर को ‘संविधान दिवस’ के रूप में मनाने का फैसला किया था। तब से हर वर्ष 26 नवंबर को संविधान दिवस का आयोजन होने लगा।
भारतीय संविधान की विशेषताएं
ब्रिटिश गुलामी से लंबे संघर्षों के बाद भारत 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र हुआ था। स्वतंत्रता के समय भारत के लिए एक संविधान की आवश्यकता थी। अंग्रेज राजनेता, नौकरशाह और बुद्धिजीवियों को भ्रम था कि भारत कोई संविधान नहीं बना सकता। यदि बना भी लिया तो भारत संविधान के अनुसार चलते हुए अपनी स्वतंत्रता को बनाएं-बचाएं नहीं रख सकता है। भारत ने उस समय ने केवल अंग्रेजों के भ्रम को तोड़ा बल्कि दुनिया के सामने सबसे बड़ा और लिखित संविधान तैयार करके रख दिया।
अंग्रेजों के पहले भारत का कोई लिखित संविधान नहीं था। स्थानीय रीति-रिवाजों, धर्मग्रंथों और शासकों के अपने विवेक के अनुसार शासन होता था। देश में अलग-अलग न्याय प्रणालियां थीं। आजादी के समय देश के समक्ष देश भर में शासन एवं न्याय व्यवस्था में एकरूपता लाने के लिए लिखित कानून की आवश्यकता थी। संविधान सभा के सदस्यों ने इस चुनौती को स्वीकार किया और एक निश्चित समय में संविधान को तैयार किया।
दरअसल, आज ही के दिन 26 नवंबर, 1949 में संविधान को अपनाया गया था और राष्ट्र को समर्पित किया गया था। और 26 जनवरी, 1950 को इसे लागू किया गया था। इसलिए हर साल 26 नवंबर को संविधान दिवस और 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। भारतीय संविधान विश्व का सबसे लंबा और लिखित संविधान है। भारत के संविधान में विश्व के कई देशों के संविधान के अच्छे प्रावधानों को स्वीकार किया गया है। इसीलिए इसके कई हिस्से ब्रिटेन, अमेरिका, जर्मनी, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और जापान के संविधान से लिये गये हैं। इसमें देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों, कर्तव्यों, सरकार की भूमिका, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, राज्यपाल और मुख्यमंत्री की शक्तियों का वर्णन किया गया है। विधानपालिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के काम का उल्लेख संविधान में स्पष्ट किया गया है। भारत के मूल संविधान में 22 भागों, 8 अनुसूची और 395 लेख शामिल थे, जिसमें लगभग 145,000 शब्द थे। अब संविधान में 25 भाग, 470 लेख और पांच परिशिष्टों के साथ 12 अनुसूचियां हैं।
संविधान सभा के सदस्यों ने 2 साल, 11 महीने और 18 दिन की अवधि में कुल 11 सत्र और 167 दिन में पूरे संविधान का निर्माण किया था। बाबा साहब भीमराव अंबेडकर संविधान निर्मात्री समिति के अध्यक्ष थे। इस कारण उनकों संविधान निर्माता भी कहा जाता है। भारत का मूल संविधान टाइप या मुद्रित नहीं बल्कि हस्तलिखित है। प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने मूल संविधान को इटैलिक शैली में हाथ से लिखा। जिसके प्रत्येक पृष्ठ को चित्रकार राममनोहर सिन्हा और नंदलाल बोस ने अलंकृत किया।
संविधान, लोकतंत्र और चुनाव आयोग
संविधान हमें एक आजाद देश का आजाद नागरिक की भावना का एहसास कराता है। जहां संविधान के दिए मौलिक अधिकार हमारी ढाल बनकर हमें हमारा हक दिलाते हैं, वहीं इसमें दिए मौलिक कर्तव्य में जिम्मेदारियों को भी याद दिलाते हैं। भारतीय संविधान नागरिक अधिकारों के साथ ही चुनावी लोकतंत्र के महत्व को बहुत प्रमुखता से रेखांकित करता है। चुनाव को पारदर्शी तरीके से संपन्न कराने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की है।
विगत कुछ दिनों से चुनाव आयोग और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति चर्चा की विषय बना हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त (ईसी) के रूप में नियुक्त करने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया पर सवाल उठाया और कहा कि उनकी फाइल को “जल्दबाजी” और “हड़बड़ी” में मंजूरी मिली है। शीर्ष अदालत ने कहा कि गोयल की नियुक्ति से संबंधित फाइल को “बिजली की गति” के साथ मंजूरी दे दी गई। कोर्ट ने कहा कि, हम अरुण गोयल की साख और योग्यता पर सवाल नहीं उठा रहे हैं, लेकिन यह किस प्रकार का मूल्यांकन है? कोर्ट ने कहा कि हमें ऐसा चुनाव आयोग चाहिए जो पीएम पर भी कार्रवाई कर सके।
संविधान का अनुच्छेद 324 क्या कहता है?
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324 चुनाव आयोग को भारत में सभी विधानसभाओं के साथ-साथ संविधान द्वारा स्थापित राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के कार्यालयों के चुनावों को निर्देशित, नियंत्रित और संचालित करने का अधिकार देता है। अनुच्छेद 324 “चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण” को एक चुनाव आयोग में निहित करता है, जिसमें “मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की संख्या, यदि कोई हो, जैसा कि राष्ट्रपति समय-समय पर तय कर सकते हैं” शामिल है।
भारत का चुनाव आयोग आजादी के बाद लंबे समय गुमनाम बना रहा। नब्बे के दशक में मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने चुनाव आयोग के अधिकार को देश के सामने रखा और चुनाव में होने वाले हर तरह की गड़बडी को रोका। चुनाव में पैसा, शराब और बूथ कैप्चरिंग जैसे तरीकों को रोका। इसके लिए उन्होंने सत्तापक्ष, विपक्ष और नौकरशाहों तक को कटघरे में खड़ा किया। चुनाव आयोग ने भारतीय लोकतंत्र में मतदान और मतदाता के अधिकार को रेखांकित किया।