कोरोना और वीजा पाबंदी

अमेरिका जैसे आर्थिक रूप से संपन्न समझे जाने वाले देश को भी कोरोना महामारी का सामना करने के लिए अपने देश के वीजा नियमों में कुछ इस तरीके के बदलाव करने को विवश होना पड़ा है ताकि दूसरे देशों के लोग रोजगार की तलाश में अमेरिका की तरफ न आयें और अमेरिका अपनी जरूरत के हिसाब से अपने देश के नागरिकों को ही रोजगार दिला सके।

यह बात एकदम सही है कि प्रकृति की मार बड़े से बड़े को सीधा कर देती है। आंधी, तूफ़ान, बाढ़, सूखा, भूकंप और भू स्खलन जैसी घटनाओं में ही दुनिया की आबादी का एक बड़ा हिस्सा किसी न किसी रूप में इंसान को प्रभावित करता ही रहता है। प्रकृति के विनाश का यह असर आम तौर पर दुनिया के एक या दो इलाकों में ही देखने को मिलता है। लेकिन कोरोना महामारी के रूप में दुनिया को इस दौर में जिस प्राकृतिक आपदा का सामना करना पड़ रहा है उससे एक या दो देश नहीं बल्कि पूरी दुनिया ही आक्रान्त है। दुनिया के सभी देश कोरोना के प्रकोप से इस कदर सिहर गए हैं कि सभी अपने अस्तित्व को बचाने की कोशिश में लग गए हैं। 

कोरोना की वजह से लागू किये गए लॉकडाउन के चलते महीनों तक उद्योग, व्यापार और काम-धंधे बंद रहने की वजह से अर्थ व्यवस्था तहस-नहस होने के कगार पर है और बड़े पैमाने पर सभी के सामने बेरोजगारी की समस्या विकराल रूप में सामने आ गई है। अमेरिका जैसे आर्थिक रूप से संपन्न समझे जाने वाले देश को भी इस समस्या का सामना करने के लिए अपने देश के वीजा नियमों में कुछ इस तरीके के बदलाव करने को विवश होना पड़ा है ताकि दूसरे देशों के लोग रोजगार की तलाश में अमेरिका की तरफ न आयें और अमेरिका अपनी जरूरत के हिसाब से अपने देश के नागरिकों को ही रोजगार दिला सके।

वीजा नियमों में किये गए इन्हीं ताजा बदलावों के तहत ही अमेरिका ने अपने एचवन-बी वीजा पर पाबंदी लगा दी है। गौरतलब है कि दुनिया के दूसरे देशों से अलग-अलग काम से अमेरिका आने वाले विदेशी नागरिकों को उनके काम के वर्गीकरण के हिसाब से ही अलग-अलग तरह के वीजा देने के संवैधानिक प्रावधान अमेरिका में हैं। इन्हीं प्रावधानों में एक प्रावधान एचवन-बी वीजा का भी है। अमेरिकी वीजा के इस प्रावधान के तहत भारत समेत तीसरी दुनिया के उन हजारों स्किल्ड कामगारों को अमेरिका में रोजगार के लिए पनाह मिल जाता करती थी जो अब बंद हो जायेगी।  

कोरोना काल में अमेरिका द्वारा लगाईं गई इस पाबंदी के बाद ऐसे असंख्य लोगो को अपने  देश वापस भी आना पड़ सकता है जो गुजरे कई सालों में वहां इस वीजा के तहत काम कर रहे हैं और किसी वजह से अमेरिका की नागरिकता उनको नहीं मिल सकी है। वीजा नियम में यह बड़ा बदलाव अमेरिका को रोजगार की दिन पर दिन बढ़ती जा रही समस्या को ध्यान में रह कर करना पड़ रहा है। वैसे तो डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के साथ ही वीजा प्रावधानों में बदलाव की संभावनाएं लगने लगी थीं लेकिन सरकार के ऐसे किसी संभावित फैसले को लेकर प्रतिरोध के स्वर भी वहां उठने लगे थे इसलिए राजनीतिक मोल–भाव को ध्यान में रखते हुए ट्रम्प प्रशासन ऐसा कदम उठाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। 

अब चूंकि कोरोना के चलते खस्ताहाल अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने और बढ़ती बेरोजगारी का समाधान खोजने के लिए कुछ तो करना ही होगा इसलिए विरोधी भी ज्यादा दबाब नहीं बना पायेंगे। यही सब देखते हुए अमेरिका ने आव्रजन नियम सख्त करते हुए एचवन-बीवीजा पर पाबंदी लगा दी है। राष्ट्रेपति डोनाल्ड ट्रंप के इस फैसले से अमेरिका में नौकरी का सपना देखने वाले करीब ढाई लाख भारतीय कामगारों को बड़ा झटका लगा है। हालांकि ये रोक इस साल के अंत 31 दिसंबर 2020 तक रहेगी। भारतीय पेशेवरों को अमेरिकी राष्ट्रपति के फैसले से झटका लगा है। प्रसंगवश यह भी एक गौर करने लायक तथ्य है कि अमेरिका में काम करने वाली कंपनियों के विदेशी कामगारों को मिलने वाले वीजा को एचवन-बी वीजा कहते हैं। जिसे तय समय के लिए जारी किया जाता है। 

अमेरिका के इस फैसले का सबसे ज्यादा असर  भारत पर ही पड़ेगा क्योंकि सूचना तकनीकी के क्षेत्र में काम करने वाले सबसे ज्यादा पेशेवर भारत के ही हैं जो इस वीजा प्रावधान के तहत अमेरिका में काम करते हैं। सबसे ज्याकदा भारतीय आईटी प्रोफेशनल्सप एचवन-बी वीजा हासिल करते हैं। कहना गलत नहीं होगा कि कोरोना वायरस के प्रकोप से अमेरिका में बेरोजगारी की समस्या एक सीमा से आगे बढ़ी है। अपने देश के नागरिकों को रोजगार देना किसी भी सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। यही प्राथमिकता फिलहाल अमेरिका की भी है और अगर अमेरिका अपने देश वासियों के हित में ऐसी कोई कार्रवाई करता है तो उसे गलत भी नहीं कहा जा सकता। फिर भी अनेक संस्थाओं ने ट्रम्प प्रशासन के इस फैसले की निंदा की है।  

ट्रंप प्रशासन के इस फैसले का असर करीब ढाई लाख लोगों के रोजगार पर पड़ेगा। अमेरिका में हर साल 85,000 लोगों को एच-1बी वीजा मिलता है। कुल एचवन-बी वीजा का 70 फीसदी सिर्फ भारतीयों को दिया जाता है। इस तरह इस फैसले से प्रभावित होने वाले कुल लोगों में करीब डेढ़ लाख तो भारतीय ही होंगे। अमेरिका की सरकार के इस फैसले से  करीब पांच लाख 25 हजार पद खाली होंगे। इससे इतने ही संख्या में अमेरिका के मूल निवासियों को रोजगार मिल पाएगा। गूगल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) सुंदर पिचाई ने भी इस फैसले को गलत बताया है। उन्होंने कहा कि इमिग्रेशन की वजह से अमेरिका को इतना फायदा हुआ है। इसकी वजह से वह वैश्विक टेक लीडर बना। ट्विटर पर पिचाई ने लिखा कि वह इस निर्णय से निराश हैं। उन्होंने कहा कि हम प्रवासियों के साथ खड़े रहेंगे और उन्हें हर तरह के मौके दिलाने के लिए काम करते रहेंगे। 

 

First Published on: June 24, 2020 3:38 AM
Exit mobile version