
25 मार्च 2020 से लॉकडाउन शुरू हुआ था और शराब की दुकाने भी बंद थी। 20 अप्रैल के आसपास एक परिचित से फ़ोन पर बात हुई तो उन्होंने कुछ इस अंदाज में लॉकडाउन की तारीफ़ की, “आज एक महीना होने वाला है और इस दौरान एक दिन भी शराब नहीं पी। शुरू के दो- तीन दिन तो ऐसा लगा था कि लॉकडाउन के तीन हफ्ते का समय कैसे बीतेगा, बगैर शराब के नींद कैसे आयेगी, लेकिन धीरे-धीरे बगैर शराब के नींद भी आने लग गई है और दिन भी आसानी से कट जाता है। अच्छा हुआ इस बहाने शराब भी छूट गई।” ऐसा कहने वाले ये परिचित अकेले नहीं हैं जिन्होंने लॉकडाउन का इस रूप में वर्णन में किया हो।
इस अवधि में फ़ोन के जरिये ही लोगों से बातचीत हो पाती है लिहाजा ऐसे अनेक मित्रों ने कुछ इसी अंदाज में लॉकडाउन की तारीफ़ भी की थी। उम्मीद थी कि जो लॉकडाउन शुरू में तीन हफ्ते के लिए लागू हुआ था और बाद में 40 दिन के लिए बढ़ा दिया गया था, उसकी अवधि पूरी होने तक लोगों की शराब पीने की आदत छूट जायेगी। पर सोमवार 4 मई 2020 को जब लॉकडाउन की अवधि 17 मई तक बढ़ाने की घोषणा के साथ ही कुछ बाजार सशर्त खोलने की छूट में सरकारी नियंत्रण वाली शराब की दुकानों को भी इसमें शामिल कर लिया गया तो उसके बाद पूरे देश में जो नजारा देखने को मिला उससे ऐसा लगता है अंगूर की बेटी से पिंड छुडाना इतना आसान नहीं है।
पूरे चालीस दिन की तालाबंदी के बाद शराब की दुकाने खुलने पर पूरे देश में क्या हुआ इसे बार- बार दोहराने की जरूरत नहीं है लेकिन कर्णाटक के बंगलुरू से लेकर देश के मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड राज्यों के अनेक शहरों के साथ ही देश की राजधानी दिल्ली में शराब की बिक्री के दौरान जो नजारा देखने को मिला उससे एक बड़ा सबक यही मिलता है कि लॉकडाउन के दरमियान ही शराब की दुकान खोलने का फैसला लेने के बारे में या तो सरकार से कहीं कोई गलती हुई है या फिर यह जल्दबाजी में लिया गया कोई फैसला है।
शराब की दुकाने खोलने से पहले सरकार को एहतियात के कुछ और उपाय भी करने चाहिए थे। यह ठीक है कि सामाजिक मान्यताओं के अनुरूप शराब पीने की आदत को अच्छा नहीं माना जा सकता पर इसके साथ ही यह भी एक सच है कि हमारे पौराणिक आख्यानों में इसी द्रव्य को समुद्र मंथन से निकले 14 अमूल्य रत्नों में एक भी माना जाता है इसलिए कहना गलत नहीं होगा कि हमारे समाज ने ही सामान्य कार्य- व्यवहार में इसके चलन की मान्यता भी दे रखी है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने में शराब की बहुत बड़ी और अहम भूमिका भी है।
अर्थ तंत्र में शराब के अतुलनीय योगदान को इस तरह भी समझा जा सकता है कि कोरोना वायरस से बचाव के चलते जब एहतियात के तौर पर चालीस दिन तक बंद रहीं शराब की दुकानें पहली बार 4 मई को खुलीं तो देश के एक राज्य के एक शहर में ही करीब 45 हजार करोड़ का व्यापार हो गया। ये आंकड़े बढ़ा-चढ़ा कर पेश किये गए भी हो सकते हैं। लेकिन सच बात तो यही है कि सरकार चाह कर भी शराब की बिक्री से मुंह नहीं मोड़ सकती क्योंकि आबकारी कर के रूप में सरकार शराब के उत्पादन से जितना राजस्व वसूल करती है उसकी दर अन्य उत्पादों की तुलना में कई सौ गुना ज्यादा होती है।
देसी और कच्ची शराब में आबकारी कर कुछ कम तो भारत में निर्मित विदेशी शराब पर आबकारी कर की दर कुछ ज्यादा ही होती है। इसके साथ ही विदेश में बनी आयातित शराब पर तो सरकार को उत्पादन शुल्क के साथ ही आयात कर की मद में भी अतिरिक्त आय होती है। कोरोना की वजह से मंदी की मार झेल रही अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार ने अगर शराब की बिक्री खोलने का एलान किया है तो इसमें गलत कुछ भी नहीं है लेकिन ऐसा निर्णय तत्काल लेने के बजाय इससे पहले कुछ सोच- विचार करना जरूरी माना जा रहा है।
माना कि सामाजिक मान्यता के अनुरूप शराब पीना अच्छी बात नहीं है पर हमारे पौराणिक आख्यानों में ही यह भी कहा गया है कि समुद्र मंथन से निकले 14 अमूल्ल्य रत्नों में यह रत्न भी द्रव्य के रूप में एक कलश में मिला था जिसके अधिग्रहण को लेकर देवताओं और असुरों के बीच संग्राम भी हुआ था और इसके साथ ही इसके चलन की सामाजिक मान्यता भी मिल गई थी और यह सिलसिला कई युगों से आज तक जारी है।
शराब से देश को आर्थिक राजस्व भी अन्य उत्पादों की तुलना में कई सौ गुना ज्यादा ही मिलता है। देशी से लेकर भारत में निर्मित विदेशी शराब और विदेशों से भारत में आयातित शराब सभी पर अलग-अलग दरों के साथ शुल्क वसूला जाता है जिससे सरकार को अच्छी आमदनी भी होती है। इसलिए यह फैसला लेने के लिए सरकार की आलोचना करना तो ठीक तो नहीं होगा। लेकिन इतना अवश्य कहा जा सकता है कि अगर यही फैसला थोडा सोच- विचार के बाद लिया जाता तो बेहतर होता। और ऐसा करने पर 4 मई को हुईं अप्रिय घटनाओं से बचा जा सकता था।
दिल्ली के सन्दर्भ में बात करें तो कह सकते हैं कि मुख्यमंत्री केजरीवाल ने शराब की कीमतों में कोरोना कर के नाम से जो 70 फीसदी की मूल्य बृद्धि का एलान इन अप्रिय घटनाओं के बाद किया है वह पहले भी किया जा सकता था। यही नहीं कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है कि पीने वाला तो पिएगा ही चाहे जितनी महंगी हो। जब तक जेब में पैसा है वो अपनी प्यास बुझाएगा ही, इसलिए अगर शराब के दाम सौ फीसदी बढ़ा कर शराब उसके दरवाजे तक पहुंचाने का इंतजाम भी कर दिया जाता तो सरकार को राजस्व भी ज्यादा मिलता और कोई हंगामा भी देखने को नहीं मिलता।