कोरोना राहत पैकेज: अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की कवायद


अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने के लिए ऐसे ही किसी व्यापक सुधार की जरूरत भी थी ताकि देश में मांग की भावना पैदा की जा सके। अर्थशास्त्र का यह एक बुनियादी सिद्धांत है कि बाजार में आपूर्ति की निर्भरता मांग पर ही होती है। मांग के बढ़ने पर ही उत्पादन भी बढ़ता है। अगर मांग ही न हो तो उत्पादन भी नहीं होगा। मांग बढ़ाने के लिए जरूरी है कि उपभोक्ता के पास खर्च करने के लिए पैसा हो।



प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विगत बुधवार 12 मई 2020 को कोरोना मसले पर राष्ट्र के नाम अपने चौथे सन्देश में कई तरह के खुलासे किये थे। अपने इस सन्देश में अन्य बातों के साथ ही प्रधानमंत्री ने कोरोना  राहत की मद में बीस लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज का एलान भी किया था। बीस लाख करोड़ की रकम भारत जैसे किसी देश के सन्दर्भ में एक बहुत बड़ी रकम मानी जाती है और इतनी बड़ी रकम को किसी एक मद में खर्च करने तक सीमित रखने का पर्याय भी नहीं माना जा सकता। इसके बहुआयामी मतलब हैं और यह भी कि यह रकम किसी एक मद में खर्च न करके अनेक मदों में खर्च करने की योजना सरकार ने कोरोना के सन्दर्भ में बनाई है। 

जब किसी बड़ी रकम को देश के विकास के सन्दर्भ में अनेक मदों में खर्च करने की योजना बनाई जाती है तब उसका मतलब यह भी होता है कि यह महज एक योजना भर नहीं है बल्कि देश में एक बड़े आर्थिक सुधार की एक महत्वाकांक्षी योजना भी इसमें शामिल है। कोरोना के सन्दर्भ में ही सही, देश को आर्थिक रूप से आत्म  निर्भर बनाने की दिशा में लिए गए प्रधानमंत्री के इस कदम को 1991- 92 के बाद देश के दूसरे बड़े आर्थिक सुधार के रूप में भी देखा जा रहा है। याद हो कि लगभग तीन दशक पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव की नेतृत्व वाली केंद्र की सरकार को आर्थिक सुधार के कदम तब उठाने पड़े थे जब सोवियत संघ के विघटन के चलते पूरे विश्व की व्यवस्था एक ध्रुवीय हो गई थी और इसका प्रतिकूल असर वैश्विक अर्थ व्यवस्था पर भी स्वाभाविक रूप से पड़ा था। 

ऐसे में दुनिया के सभी देशों को वैश्विक परिस्थितियों के अनुरूप अपने को  ढालने के लिए  किसी न किसी तरह के आर्थिक सुधार करने पड़े थे। उसी दौर में नरसिम्हराव सरकार के वित्त मंत्री के रूप में डॉक्टर मनमोहन सिंह ने आजाद भारत में पहले आर्थिक सुधार की रूप रेखा तैयार करने के साथ ही इनको लागू करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया था।

देश में पहले आर्थिक सुधार की वजह सोवियत संघ का विघटन बना था तो दूसरे आर्थिक सुधार का आधार  कोरोना वायरस के संकट से पैदा हुई मंदी की मार झेल रही देश की खस्ताहाल आर्थिक व्यवस्था ने तैयार कर दिया। डेढ़ महीने से अधिक समय से देश के उद्योग और व्यापार जगत के सभी प्रतिष्ठानों के बंद रहने से अभूतपूर्व आर्थिक संकट का सामना देश को करना पड़ रहा है। 

अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने के लिए ऐसे ही किसी व्यापक सुधार की जरूरत भी थी ताकि देश में मांग की भावना पैदा की जा सके। अर्थशास्त्र का यह एक बुनियादी सिद्धांत है कि बाजार में आपूर्ति की निर्भरता मांग पर ही होती है। मांग के बढ़ने पर ही उत्पादन भी बढ़ता है। अगर मांग ही न हो तो उत्पादन भी नहीं होगा। मांग बढ़ाने के लिए जरूरी है कि उपभोक्ता के पास खर्च करने के लिए पैसा हो। 

कोरोना वायरस से बचाव के लिए लागू किये गए राष्ट्रव्यापी लॉक डाउन की वजह से उपभोक्ता पैसे- पैसे को मोहताज होने की स्थिति में आ गया है जिसकी वजह से मांग भी ख़त्म हो गई और इस वजह से उत्पादन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। इस स्थिति से निपटने के लिए ऐसे किसी आर्थिक सुधार की जरूरत थी जो देश में मांग पैदा कर सके। लॉक डाउन के दौरान सबसे ज्यादा असर सूक्ष्म, लघु और मध्यम श्रेणी के उद्योग धंधों पर पड़ा है। 

एक तरफ जहां आम उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति बढ़ाने के लिए उसे आर्थिक मदद की जरूरत इस देश में थी तो दूसरी तरफ सूक्ष्म, लघु और मध्यम श्रेणी के उद्योगों को भी उत्पादन में वृद्धि के लिए आर्थिक मदद की जरूरत है। आर्थिक सुधार के नए प्रतिमानों में आम उपभोक्ता के साथ ही सूक्ष्म, लघु और मध्यम श्रेणी के कुटीर उद्योगों को भी जरूरत भर की सहायता सहायता करने के ये इंतजाम करों, ब्याज दरों में रियायत देने के साथ ही आसान किस्तों में नए कर्ज उपलब्ध कराने के रूप में भी उपलब्ध कराये गए हैं।

प्रधानमंत्री द्वारा घोषित किये गए कोरोना के आर्थिक सुधार की विस्तृत जानकारी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंत्रालय में अपने सहयोगी वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर के साथ पत्रकारों को दी। आर्थिक सुधारों का यह  दायरा कितना व्यापक होगा इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सरकार के लिए इस सम्बम्न्ध में तमाम जानकारी एक साथ और एक ही दिन में उपलब्ध कराना संभव नहीं हो सका। अपनी प्रेस वार्ता में स्वयं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यह यह स्वीकार किया कि वो और उनकी टीम कई दिनों में अलग- अलग मुद्दों पर इस सम्बन्ध में मीडिया के साथ जानकारी साझा करेंगे। 

याद हो कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी मंगलवार 12 मई को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में इसी  बात का जिक्र करते हुए कहा  था कि चौथे चरण का लॉक डाउन कैसा होगा इस बारे में राज्यों के मुख्य मंत्री और केन्द्रीय मंत्री अलग- अलग जानकारी देंगे लेकिन सरकार 20 लाख करोड़ रुपये के  जिस बृहद  आर्थिक पैकेज की घोषणा करने जा रही है उसके विविध पहलूओं की जानकारी अलग- अलग दिनों में वित्त मंत्री देश के साथ साझा करेंगी। 

आर्थिक पैकेज को लेकर अपनी पहली पत्रकार वार्ता में वित्त मंत्री ने अन्य बातो के साथ ही जिन दो प्रमुख बातों पर विशेष रूप से ध्यान आकर्षित किया उनमें मुख्य रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम श्रेणी के उद्यमों को तीन लाख करोड़ रुपये की विशेष आर्थिक सहायता और विभिन्न मदों में देश के आम उपभोक्ताओं को करीब 20 करोड़ रुपये की विशेष सहायता। इन दोनों मदों में आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को कैसे लागू किया जाएगा, इसकी जानकारी निर्मला सीतारमण ने पत्रकारों को दी। तीसरे लॉक डाउन की समाप्ति से पहले तक विशेष पत्रकार वार्ता का यह सिलसिला अभी कई दिनों तक जारी रहेगा।