देश के कई राज्यों में कोरोना कहर ढा रहा है। उतर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र में कोरोना आफत बन गया है। दिल्ली में कोरोना कहर ढा रहा है। केंद्र सरकार में मंत्री तक को बेड के लिए टवीट करना पड़ रहा है। महामारी के चपेट में देश के कई वरिष्ठ नौकरशाह भी आ गए है। सीबीआई के पूर्व मुखिया रंजीत सिन्हा की मृत्यु कोरोना से हो गई। उतर प्रदेश मे कई वरिष्ठ आईएएस अधिकारी कोरोना के चपेट में आ गए है।
देश का मध्यवर्ग बुरी तरह से डर गया है। क्योंकि सुविधाभोगी मध्यवर्ग पहले से ही अपने शरीर में कई बीमारियों को लेकर चलता है। इस कारण मध्य वर्ग का इम्यून सिस्टम पहले से ही कमजोर है। इम्यून सिस्टम कमजोर होने के कारण एयरकंडिशन में रहने वाले मध्य वर्ग पर कोरोना ज्यादा घातक हो गया है। यही मध्यवर्ग इस समय शहरों के अस्पतालों के अंदर बेड, आक्सीजन और वेंटिलेटर के लिए संघर्ष करता नजर आ रहा है।
दिल्ली के अस्पतालों में बेड नहीं मिलने के कारण कोरोना के मरीज पड़ोस के हरियाणा के जिला अस्पतालों की तरफ भाग रहे है। दिल्ली से कोरोना के मरीज चंडीगढ़ के अस्पतालों में पहुंच रहे है। लेकिन वहां भी अस्पतालों में बेड नहीं मिल रहा है। दिल्ली के कई मरीज हरियाणा और पंजाब के शहरों में निजी अस्पतालों में फोन कर बेड की स्थिति जान रहे है। ताकि उन्हें आक्सीजन और वेंटिलेटर की सुविधा कम से कम मिल जाए।
पिछले कुछ सालों से इस मुल्क में पंडित जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी को जमकर कोसा जा रहा है। हर जगह यही सवाल पूछा जाता है कि नेहरू ने इस देश के लिए क्या किया ? इंदिरा गांधी ने इस मुल्क के लिए क्या किया ? लेकिन कोरोना महामारी के समय में नेहरू और इंदिरा गांधी लोगो को याद आ रहे है। उन्होंने इस देश में स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में क्या किया, सारा कुछ नजर आ रहा है। नेहरू और इंदिरा गांधी के जमाने में बनाए गए सरकारी अस्पताल इस समय कोरोना मरीजों के काम आ रहे है। उन्हीं अस्पतालों में कोरोना के गंभीर मरीजों का इलाज हो रहा है।
पीजीआई, चंडीगढ़ और एम्स, दिल्ली नेहरू की वैज्ञानिक सोच का परिणाम है। आज से तीस-चालीस साल पहले देश भर में बनाए गए मेडिकल क़ॉलेजों ने कोरोना महामारी के काल में लोगों को खासी राहत दी है। तीस-चालीस साल पहले बने सरकारी जिला अस्पताल ही इस समय कोरोना पीड़ितों के काम आ रहे है। कोरोना महामारी ने देश को सबक दिया है कि स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण भारत जैसे गरीब मुल्क में मौत लेकर ही आएगा।
सार्वजनिक क्षेत्र के अस्पताल ही भारत जैसे गरीब मुल्क के लोगों का बचाव भविष्य में करेंगे। जरा सोचिए आज सरकारी जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज न होते तो कोरोना मरीजों का क्या हाल होता ? क्योंकि कोरोना महामारी के दौर में सरकारी मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पताल ही आम मरीजों के लिए देवदूत बनकर सामने आए है। निजी क्षेत्र के हास्पीटल कोरोना के काल में मरीजों को लूट रहे है।
कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने सरकारी इंतजाम की धज्जियां उड़ा दी है। मरीज इतने ज्यादा आ रहे है कि सरकारी अस्पतालों में मरीजों के लिए बेड कम पड़ गए हैं। आक्सीजन की भारी कमी हो गई है। मध्य प्रदेश के शहडोल में आक्सीजन की कमी के कारण एक साथ 12 मरीजों ने दम तोड़ दिया। पुरानी घटनाओं से सीख इस मुल्क में नहीं ली जाती। गोरखपुर स्थित मेडिकल कॉलेज में आक्सीजन के आभाव में ही बच्चों की मौत हो गई थी। इसके बावजूद सरकारों ने कोई सुधार नहीं किया।
दिलचस्प बात है कि इस महामारी के दौर में राजनीति हो रही है। महाराष्ट्र सरकार ने आरोप लगाया कि महाराष्ट्र में जरूरी दवाइयों की आपूर्ति रोकी जा रही है। केंद्र के इशारे पर रेमडिसिविर जैसी दवाइयों की आपूर्ति महाराष्ट्र में रोकी जा रही है। आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी है। हालांकि रेमडिसिविर की कमी कई राज्यों में पायी गई है।
एक तरफ भारत जहां दूसरे मुल्कों को कोरोना वैक्सीन निर्यात कर रहा था, वही अब कोरोना नियंत्रण के प्रबंधन में पड़ोसी मुल्कों से पिछड़ता नजर आ रहा है। कोरोना मरीजों के आंकड़ें यह बता रहे है कि भारत का कोरोना नियंत्रण प्रबंधन दक्षिण एशिया में सबसे कमजोर है। अप्रैल के दूसरे- तीसरे सप्ताह में कोरोना मरीजों के आंकड़े से पता चलता है कि दक्षिण एशिया के कई देशों ने कोरोना प्रबंधन के मामले में भारत को पीछे छोड़ दिया है।
पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका और अफगानिस्तान जैसे देश से आक्सीजन की कमी की खबरें नहीं आ रही है। अस्पतालों में बेड की कमी की खबरें नहीं आ रही है। कोरोना के मरीजों को बेड की कमी से परेशानी हो रही है, ये खबरें न पाकिस्तान से आयी है, न बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका से आयी है। पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका आदि देशों ने कोरोना के प्रकोप को काफी हद तक नियंत्रित कर रखा है।
जहां भारत में इस समय औसतन दो लाख से ज्यादा कोरोना के नए मरीज प्रतिदिन आ रहे है, वहीं पाकिस्तान में 10 अप्रैल के बाद प्रतिदिन औसतन 5 हजार नए कोरोना मरीज सामने आए। बांग्लदेश में 10 अप्रैल के बाद औसतन 6 हजार नए मरीज प्रतिदिन सामने आए। जबकि अफगानिस्तान में औसतन 75 नए कोरोना के मामले प्रतिदिन आए है। नेपाल में औसतन 400 और श्रीलंका में 300 नए कोरोना मरीज 10 अप्रैल के बाद आए है।
इस महामारी ने कई सीख दी है। वैक्सीन की बात करने वालों को यह समझना होगा कि बेहतर जीवनशैली ही इस तरह के वायरस से बचाव है। जो वैक्सीन लगवा चुके है, उन्हें भी कोरोना हो रहा है। वैक्सीन के साइड अफेक्ट भी सामने आने लगे है। कई देशों में वैक्सीन लगवाने के बाद लोगों की मौत हो गई है। जो लोग अच्छा शारीरिक श्रम करने वाले है, उनपर कोरोना के आक्रमण का कोई असर नहीं दिख रहा है।
भारत जैसे देश में सरकारें शिक्षा और स्वास्थ्य की जिम्मेवारी खुद ले। निजी क्षेत्र के भरोसे शिक्षा और स्वास्थ्य नहीं चल सकता है। कोरोना हो या कोई और महामारी इससे निपटने के लिए जिला स्तर पर सार्वजनिक क्षेत्र के अस्पतालों का जाल बिछाना होगा। वहां सरकारी डाक्टरों और नर्सों की भर्ती करनी होगी।
निजी क्षेत्र के अस्पताल पैसे बना सकते है। वे महामारी से नहीं निपट सकते है। इसका एक बड़ा उदाहरण अमेरिका है, जहां स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह से निजी क्षेत्र के हवाले है। अमेरिका इस समय कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में शामिल है।