कोरोना और विश्व स्वास्थ्य संगठन


विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रति अमेरिका की नाराजगी की एक बड़ी वजह यह बताई जा रही है कि वहकोरोना के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में दुनिया के सभी देशों के साथ ही चीन को भी साथ लेने की बात कर रहा है, यही बात संयुक्त राष्ट्र के इस प्रस्ताव में भी कही गई है। इस बाबत सभी का मानना है कि कोरोना के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में सभी देशों को एक साथ आना होगा, किसी को इससे अलग रख कर यह लड़ाई जीती नहीं जा सकेगी।



कोरोना संकट के मौजूदा दौर में अमेरिका संयुक्त राष्ट्रसंघ के अनुषंगी संगठन विश्व स्वास्थ्य संगठन को लेकर उत्तेजित हो गया है। अमेरिका संयुक्त राष्ट्र संघ की तरफ से सुरक्षा परिषद में लाये गए उस प्रस्ताव का इस सीमा तक विरोध कर रहा है कि पिछले डेढ़ माह से यह प्रस्ताव इसलिए पारित नहीं हो सका। हर बार अमेरिका इस पर वीटो लगा देता है। अमेरिका के वीटो लगाने की वजह यह है कि कोरोना वायरस से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र के इस प्रस्ताव में विश्व स्वास्थ्य संगठन का जिक्र है और अमेरिका किसी भी तरह इस प्रसंग को प्रस्ताव से हटाना चाहता है। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रति अमेरिका की नाराजगी की एक बड़ी वजह यह बताई जा रही है विश्व स्वास्थ्य संगठन कोरोना के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में दुनिया के सभी देशों के साथ ही चीन को भी साथ लेने की बात कर रहा है, यही बात संयुक्त राष्ट्र के इस प्रस्ताव में भी कही गई है। इस बाबत सभी पक्षों का मानना है कि कोरोना के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में दुनिया के सभी देशों को एक साथ आना होगा, किसी को इससे अलग रख कर यह लड़ाई जीती नहीं जा सकेगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन की यही बात अमेरिका को मंजूर नहीं है अमेरिका को लगता है कि अमेरिका की आर्थिक मदद से चलने वाला यह संगठन चीन की कठपुतली बनता जा रहा है। इस आधार पर अमेरिका ने विश्व स्वाथ्य संगठन को अपनी तरफ से दी जाने वाली आर्थिक बंद करने की बात भी कही है।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने तो इस बाबत यहां तक बयान दे डाला कि विश्व स्वास्थ्य संगठन कोरोना को लेकर चीन की तरफदारी कर दुनिया को गुमराह कर रहा है। ट्रम्प ने यह भी कहा कि अमेरिका इस संगठन को हर साल 50 करोड़ डालर की आर्थिक मदद करता है फिर भी यह संगठन अमेरिका की नहीं चीन की सुनता है।अमेरिका चीन जाकर कोरोना पीड़ितों की मदद करना चाहता है लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन के ऐसा करने नहीं देते। इसी सन्दर्भ में अमेरिकी राष्ट्रपति ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के बारे में जल्द ही कोई बड़ा एलान करने की बात भी कही है। माना जा रहा है कि यह बड़ा एलान विश्व स्वास्थ्य संगठन को अमेरिका से मिलने वाली आर्थिक मदद को बंद करने वाला भी हो सकता है। गौरतलब है कि अमेरिका ने अतीत में भी संयुक्त राष्ट्र संघ के यूनेस्को, यूनिसेफ समेत कई अनुषंगी को संगठनों आर्थिक मदद करना या तो बंद कर दिया है या फिर अमेरिका से मिलने वाली आर्थिक मदद की राशि बहुत कम  कर दी गई है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की आर्थिक मदद रोकने संबंधी अमेरिका के भावी कार्यक्रम के खतरों का संज्ञान लेते हुए ही संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुतारेस को हाल ही में यह कहना पड़ा था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन का फण्ड रोकने का यह  सही समय नहीं है। उन्होंने कहा कि कोरोना के खिलाफ सभी देशों को मिल कर कदम बढ़ाना होगा और इस समय विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत ऐसे किसी भी मानवतावादी संगठन की आर्थिक मदद रोकना किसी भी दृष्टि से ठीक नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जब कभी संयुक्त राष्ट्र संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका के संबंधों का जिक्र आता है, आमतौर पर यही माना जाता है कि दोनों एक ही सिक्के के दो पहलुओं की तरह हैं और दोनों के बीच घनिष्ठ समबन्ध भी हैं और ऐसा है भी बावजूद इसके कि दोनों ही एक दूसरे से एकदम अलग दो स्वायत्त संस्थाएं हैं।

संयुक्त राज्य अमेरिका कई राज्यों को मिला कर बनाया गया एक देश है तो संयुक्त राष्ट्र संघ दुनिया के सौ से अधिक देशों द्वारा आपस में मिल कर बनाई गई एक ऐसी वैश्विक संस्था है जो सुरक्षा,स्वास्थ्य, शिक्षा, बेरोजगारी, भूख, कुपोषण, महामारी, अंतर्राष्ट्रीय क़ानून, सीमा विवाद और महिला तथा बाल कल्याण जैसी बुनियादी समस्याओं के समाधान में सदस्य देशों की मदद करती है ताकि दुनिया में शांति की स्थापना की जा सके। सदस्य देश अपनी-अपनी हेसियत के हिसाब से संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक मदद करते हैं। 

आर्थिक मदद करने वाले देशों में अमेरिका का स्थान पहले नंबर पर आता है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र के सभी अनुषंगी संगठनों को सबसे अधिक आर्थिक मदद अमेरिका ही करता है। इसीलिए संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय और सुरक्षा परिषद् समेत सभी अनुषंगी संगठनों की प्रशासकीय और प्रबंधकीय व्यवस्था में सबसे अधिक और प्रमुख जिम्मेदारी भी अमेरिका को ही दी गई है। आज तक किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति ने संयुक्त राष्ट्र के किसी अनुषंगी संगठन की आर्थिक मदद रोकने जैसी कोई बात कभी नहीं की। संभवतः पहली बार मौजूदा राष्ट्रपति को इस लहजे में सवाल उठाते देखा गया है जो आश्चर्यजनक होने के साथ ही अमेरिका की गरिमा के भी खिलाफ नजर आता है।  

प्रसंगवश यह जानना दिलचस्प भी होगा कि आखिर संयुक्त राष्ट्र संघ है क्या, कब इसकी स्थापना हुई और कैसे चलता है इसका कामकाज। यह दुनिया के 193 देशों का एक संगठन  है और इसका खर्च सदस्य राष्ट्रों द्वारा दिए जाने वाले फंड से चलता है। ये सभी सदस्य देश हर साल एक तय रकम अपने फण्ड के रूप में इस संस्था को  देते हैं। इनमें सबसे ज्यादा करीब 10 बिलियन डालर की रकम फण्ड के रूप में अमेरिका देता है, इसके बाद इंग्लैंड और जापान का नंबर आता है इन देशों का आर्थिक योगदान भी कम नहीं है। दुनिया के ऐसे 20 देश हैं जो संयुक्त राष्ट्र को आर्थिक मदद करते हैं। 

इन शीर्ष देशों में भारत कहीं भी शामिल नहीं है। हालांकि, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इसमें कटौती की बात करते रहे हैं। यह समस्या इसलिए पैदा हुई है, क्योंकि कुछ देशों ने अभी तक अपना फंड नहीं दिया है। 193 देशों में से अब तक सिर्फ 129 देशों ने ही अपना फंड दिया है। इनमें केवल 35 देशों ने अभी  पूरा फंड दिया है। फंड देने वाले इन 35 देशों में भारत भी शामिल है। वहीं, 65 देशों के पास अभी तक कुल 1.386 बिलियन डॉलर बकाया है, जिनमें ब्राजील, अर्जेंटीना, मैक्सिको, ईरान, इजरायल और वेनेजुएला प्रमुख देश हैं। इस रकम के अलावा अमेरिका को भी बड़ा हिस्सा चुकाना बाकी है। जबकि 35 देशों की लिस्ट में चीन और पाकिस्तान का नाम नहीं है।