अब जरा सोचिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीस लाख करोड़ रुपये की पैकेज देने की घोषणा की है। ये पैकेज किसे मिलेगा? निजी क्षेत्र को। लेकिन इस पैकेज कार्य का निष्पादन कौन करेगा। देश के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक। अब जरा सोचिए कोरोना संक्रमण देश में फैल रहा है। इसका इलाज कौन कर रहा है? पब्लिक सेक्टर के हॉस्पिटल। निजी क्षेत्र के हास्पिटल क्या कर रहे है? अपनी दुकान बंद करके भाग गए है। क्योंकि कोरोना इलाज में मुनाफा नहीं है, जान भी जाने का डर सताता है। अब जरा सोचिए। लॉक डाउन में मजदूरों, गरीबों को घर पहुंचाने की बात हुई। उन्हें घर तक छोड़ने की जिम्मेवारी किसे मिली है? सार्वजनिक क्षेत्र के रेलवे को। दरअसल कोविड-19 महामारी ने कई कड़वी सच्चाई सामने ला दी है। प्राइवेटाइजेशन के पैरोकार अपने आदेश धड़ाधड़ पब्लिक सेक्टर के अदायरों को दे रहे है।
कई सच्चाई सामने आ गई है, जिसे पिछले कुछ सालों से पॉलिसी मेकर स्वीकार नहीं कर रहे थे। वे प्राइवेटाइजेशन को विकास का एकमात्र पहिया मानते रहे है। तभी तो राष्ट्रहित के लिए कड़ी मेहनत से तैयार पब्लिक सेक्टर को कौड़ियों के भाव में बेचा जा रहा है। एयर इंडिया की बोली लगा दी गई है। देश के जिला अस्पतालों को भी निजी क्षेत्र की सौंपने की तैयारी कर ली गई थी। उधर सरकार रेलवे के प्राइवेटाइजेशन की शुरूआत भी कर चुकी है। फायदे वाले रूटों को निजी क्षेत्र के हवाले किए जा रहे है। कोविड-19 जैसे महामारी ने सरकार को साफ चेतावनी दी है कि अंधाधुंध निजीकरण किसी भी देश के विकास का आधार नहीं बन सकता है। अगर निजीकरण ही विकास का पहिया है तो फिलहाल तबाह हो रहे निजी क्षेत्र के लोग पब्लिक सेक्टर के बैंकों से पैसा क्यों मांग रहे है? पूरे देश में चिकित्सा क्षेत्र में भारी सुविधा उपलब्ध करवाने का दावा करने वाले निजी क्षेत्र के अस्पताल इस समय कोरोना संक्रमितों के इलाज करने के वक्त कहां है? जब श्रमिकों को गृह राज्य तक पहुंचाने की जरूरत पड़ी है तो प्राइवेट ट्रांसपोर्ट सेक्टर कहां है?
नरसिम्हा राव की सरकार की प्राइवेटाइजेशन पॉलिसी को अटल बिहारी वाजपेयी ने तेजी से आगे बढाया। वाजपेयी के कार्यकाल में सरकार के महंगे होटल कौड़ियों में बेचे गए। मनमोहन सिंह की सरकार भी प्राइवेटाइजेशन को ही विकास का एकमात्र पहिया मानती रही। नरेंद्र मोदी की सरकार प्राइवेटाइजेश की गति काफी तेज है। हालात ये है कि सरकारी खर्चों को चलाने के लिए सरकारी बहीखाते को ठीक करने के लिए पब्लिक सेक्टर बेच रही है। औने-पौने दामों में सरकारी संपतियों को बेचने की पूरी कोशिश जारी है। लेकिन कोरोना ने सरकर की इस नीतियों को पूरी तरह से विनाशकारी साबित किया है। आज जब कोरोना महामारी के वक्त डॉक्टर, नर्स, बेड और अस्पताल की भारी जरूरत पड़ी है, निजी क्षेत्र गायब है। इस संकट काल में सरकारी क्षेत्र की स्वास्थ्य सेवाओं ने आगे आकर देश के नागरिकों की सेवा की है। निजी क्षेत्र के डॉक्टर मरीजों के इलाज के लिए तैयार नहीं है। क्योंकि उन्हें खुद कोरोना से भारी डर लग रहा है। अस्पतालों को कोरोना के इलाज में अपना मुनाफा नजर नहीं आ रहा है। उन्हें लगता है कि कोरोना का इलाज घाटे का सौदा है।
दूसरी तरफ सरकार की स्वास्थ्य नीति को परखे। समझ मे आ जाएगा, सरकार देश की जनता के इलाज के लिए कितना सचेत है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति-2017 स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण पर ही बल देता है। देश की 1 अरब से ज्यादा की आबादी को पूरी तरह से प्राइवेट हेल्थ केयर पर के हाथ में देने नीति सरकार ने बनायी। लेकिन कोरोना आपदा के वक्त अभी तक लाखों तो क्या हजारों में आए मरीजों के इलाज से ही प्राइवेट हेल्थ केयर भाग गया। कुछ प्राइवेट अस्पतालों ने इलाज शुरू किया। लेकिन कुछ दिनों बाद ही कोरोना इलाज में आर्थिक घाटा होने का दुखड़ा रोने लगे। 1 साल में ढाई लाख करोड़ रुपए का कारोबार करने वाला प्राइवेट हेल्थ केयर को हजार-दो हजार मरीज के इलाज में आर्थिक घाटा नजर आने लगा। प्राइवेट हेल्थ केयर तर्क देने लगा कि उनका रेवेन्यू घट गया है, डॉक्टरों और नर्सों को वेतन देने के लिए पैसे नही है।
दूसरी सच्चाई को देखे। हेल्थ केयर के प्राइवेटाइजेशन के कारण सरकारी अस्पताल तबाह हो गए है। देश के अस्पतालों में उपलब्ध कुल बेड का दो तिहाई बेड प्राइवेट अस्पतालों के पास है। देश में उपलब्ध कुल वेंटिलेटरों का 80 प्रतिशत वेंटिलेटर प्राइवेट अस्पतालों के पास है। जब साजो सामान से युक्त प्राइवेट अस्पताल भाग लिए तो पब्लिक सेक्टर के अस्पतालों का महत्व सरकारों को पता चला। ब्रिटिश राज में संक्रामक रोग अस्पतालों का जाल बिछाया गया। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इसका महत्व समझा, इसका विस्तार किया। इसके साथ ही एम्स दिल्ली और पीजीआई चंडीगढ़ जैसे हेल्थ रिसर्च सेंटर भी बना दिया। लेकिन अब संक्रामक रोग अस्पताल कहां है? सारे सरकारी संक्रामक रोग अस्पताल बंद हो गए है या बंद होने के कागार है। अगर ये संक्रामक रोग अस्पताल आज सही सलामत होते तो तो महाराष्ट्र, गुजरात, तामिलनाडू, मध्य प्रदेश में कोरोना कहर नहीं बनता। राज्यों को संक्रमित मरीजों के लिए न तो बेड की कमी होती, न विशेषज्ञ डॉक्टर और नर्स की कमी होती।
पब्लिक सेक्टर को बर्बाद करने का खामियाजा भविष्य में देश भुगत सकता है। कोरोना का यही संदेश है। संकट की इस घड़ी में पब्लिक सेक्टर के रेलवे ने गरीब श्रमिकों की मदद की है। अगर आज रेलवे पूरी तरह से प्राइवेट सेक्टर के हवाले होता तो गरीब श्रमिकों को कौन ढोता ? बिहार जैसे राज्य ने तो संसाधन की कमी का रोना रो दिया था। बिहार की 1 करोड़ आबादी दूसरे राज्य में श्रम करती है। जब उन्हें वापस गृह राज्य लाने की बात हुई तो बिहार के उप मुख्यमंत्री ने साफ कहा कि बिहार के पास श्रमिकों को बस से लाने के लिए संसाधन नही है। दरअसल बिहार में पब्लिक सेक्टर का बिहार राज्य पथ परिवहन निगम को बहुत पहले ही बर्बाद कर दिया गया।
वैसे में बिहारी मजदूरों को लाने का एकमात्र साधन भारतीय रेल ही है। रेलवे घाटे के बावजूद श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चला रही है। रेलवे 1 सवारी पर प्रति किलोमीटर 90 पैसे खर्च कर रहा है। लेकिन रेलवे को 90 पैसे के एवज में मात्र 45 पैसे की आमदनी हो रही है। क्या प्राइवेट तेजस ट्रेन श्रमिकों को इतनी सब्सिडी पर गंतव्य स्थान पर पहुंचा देगी? सरकार को अब सोचना होगा कि आखिर इतनी अमूल्य संपतियों को मुनाफाखोर निजी क्षेत्र के हवाले करना देशहित मे है? आज जब महामारी के संकट काल में विदेशों से भारतीय लोगों को लाने की बात हुई तो सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी एय़र इंडिया ही आगे आयी। यूरोप से लेकर एशिया के कई देशों में फंसे भारतीयों को एयर इंडिया भारत लेकर आया। क्या ये काम निजी क्षेत्र की विमान कंपनियां कर देती?
आज कोविड-19 के कारण हुए लॉक डाउन के से पूरे देश में आर्थिक संकट छा गया है। देश के तमाम अर्थशास्त्री सरकार से राहत पैकेज की मांग कर रहे है। प्रधानमंत्री मोदी ने 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की घोषणा भी कर दी है। अब इस आर्थिक पैकेज का निष्पादन और प्रबंधन की जिम्मेवारी पब्लिक सेक्टर के बैंक ही करेंगे। दरअसल सूक्ष्म, लघु और मध्यम उधमों की हालात खराब है। इन्हें भारी नुकसान हुआ है।
देश के अंदर 6.33 करोड़ सूक्ष्म, लघु, मध्यम उधमों में लगभग 11 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है। लॉक डाउन के प्रभाव के कारण 11 करोड़ लोगों में से 70 प्रतिशत का रोजगार खत्म हो गया है। जबकि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उधम देश के ग्रामीण और शहरी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाते है। देश के कुल रोजगार का लगभग 20-25 प्रतिशत यही सेक्टर उपलब्ध करवाता है। कोविड-19 की मार के इस सेक्टर पर ज्यादा पड़ी है। इस सेक्टर के 30 प्रतिशत यूनिट बंद होने की संभावना जतायी जा रही है। अब इसे भी बचाने की जिम्मेवारी पब्लिक सेक्टर के बैंकों की है। प्राइवेट सेक्टर बैंक यहां भी भाग जाएंगे, क्योंकि डूबते सेक्टर में दिए गए कर्ज की वापसी की संभावना पर सवाल उठते है।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।)