
गूगल सर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार अब इस प्लेटफार्म पर कोरोना के बारे में जानकारी चाहने वालों की संख्या अचानक ही आश्चर्यजनक तरीके से कम हो गई है। पिछले सप्ताह के अंतिम दिन तक जहां गूगल सर्च में 80 फीसदी लोग कोरोना के बारे में जानकारी पाने के इच्छुक हुआ करते थे, अब यह प्रतिशत घट कर 40 फीसद से भी कम रहा गया है। उल्लेखनीय है कि बीते सप्ताह के अंतिम दिन यानी 7 जून 2020 को ही लॉक डाउन ख़त्म होने के बाद अनलॉक -1 का पहला सप्ताह भी पूरा हुआ था इसके बाद सोमवार 8 जून 2020 से दूसरे चरण के अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हुई थी। इसके दूसरे दिन ही गूगल सर्च की इस आशय की रिपोर्ट बाहर आने का मतलब क्या निकाला जाए?
गूगल की इस रिपोर्ट के बाद क्या यह मान कर चला जाए कि कोरोना का संकट टल गया है और अब इससे घबराने की कोई जरूरत नहीं है, पर वास्तव में ऐसा है नहीं, कोरोना के संक्रमितों की संख्या में कमी नहीं हो रही है, मरीज बढ़ते ही जा रहे हैं अलबत्ता कोरोना से मरने वालों की संख्या में कमी जरूर आ गई है। इसका मतलब यह भी निकाला का सकता है कि कोरोना तो अभी रहेगा लेकिन उसकी मारक क्षमता कुछ कमजोर अवश्य हुई है इसलिए अब लोग इसके साथ ही जीने को भी तैयार हैं। आज के इंसान ने जब कोरोना के साथ जीने का मन बना ही लिया है तब उसे रोज – रोज केवल कोरोना के बारे में ही जानने की जरूरत भी नहीं होगी। इसके अलावा भी उसे कई तरफ ध्यान देना होगा।
कोरोना के बारे में एक सच यह भी है कोरोना ऐसा वायरस है जो एक बारनिष्प्रभावी होने के बाद दोबारा भी फ़ैल सकता है। चीन के वूहान में भी ऐसा ही हुआ था, ये बात अलग है कि इस पर जल्दी ही काबू भी पा लिया गया था। अभी एक – दो दिन पहले ही यूरोप के एक खूबसूरत छोटे से देश न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री ने भी अपने देश के कोरोना मुक्त होने की घोषणा करते हुए यह साफ़ तौर पर कहा था भी कि कोरोना एक बार फिर पलटवार कर सकता है लेकिन उनका देश हर परिस्थिति में उसका सामना करने के लिए हर वक़्त पूरी तरह तैयार है। कोरोना से पीड़ित हर देश को न्यूजीलैंड की तरह इससे मुक्त होने के रास्ते भी तलाशने होंगे और भविष्य की मुश्किलों का सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार भी रहना होगा।
संभवतः हम इसी दिशा में आगे बढ़ भी रहे हैं और लॉकडाउन के बाद अनलॉक की प्रक्रिया को अपनाने का मकसद भी शायद यही है। किसी भी काम को शुरू करना आसान होता है।एक बार जब काम शुरू हो जाता है तो उसे बंद करना थोडा मुश्किल होता है, किसी मजबूरी में अगर वो काम बंद करना पड़े तो उसे फिर से शुरू करना सबसे कठिन काम है। कोरोना की वजह से जिस मजबूरी में लॉकडाउन लागू किया गया उसमें एक साथ सब कुछ बंद कर देना पड़ा था। अब नए सिरे से सब कुछ शुरू किया जा रहा है तो इसमें वक़्त भी लगेगा और परेशानी भी उठानी होगी। अभी कोरोना का संकट टला नहीं है इसलिए काम पर वापस आने के लिए धैर्य और सावधानी की इस समय कुछ ज्यादा ही जरूरत होगी।
कोरोना या कोविड -19 एक अलग तरह का रोग है। इसके बारे में कोई पिछला अनुभव न होने से पहले तो इसे समझने में ही बहुत वक़्त लग गया फिर जब समझ में आ सका तो इलाज और उपचार के इंतजाम में भी बहुत वक़्त लग गया। शुरुआती दौर में इस तरह की दिक्कतों के चलते इस रोग से मरने वालों की संख्या में भी इजाफा हुआ और आर्थिक अभाव ने भी समस्या के समाधान में रुकावटें पैदा की। सरकारी तंत्र तो मुस्तैदी से अपने काम में लगा रहा लेकिन सरकार से उतनी मदद नहीं मिल सकी जितनी मिलनी चाहिए थी। इसी कारण परिस्थितियों को समझने में समय लगा और यही विलम्ब अब पूरी व्यवस्था को नए सिरे से लागू करने के सन्दर्भ में भी हो रहा है।
कोरोना बाद की परिस्थितियों को फिर से व्यवस्थित करने में इसलिए भी विलम्ब हो रहा है क्योंकि इसमें नए सिरे से काम शुरू करने से पहले संक्रमण से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग जैसे फार्मूले को लागू करने के साथ ही कई तरह के एहतियाती इंतजाम करना भी बहुत जरूरी हैं। लॉकडाउन ख़त्म करना और नए सिरे से काम करना इसलिए भी जरूरी था क्योंकि ऐसा न करने पर अर्थव्यवस्था के पूरी तरह से चौपट होने का खतरा मंडराने लगा था। सरकार ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कई सुधारवादी कार्यक्रमों की घोषणा की है। लेकिन भारत जैसे बड़े देश की कोरोना से खस्ताहाल हो चुकी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार के इन प्रयासों से बहुत अधिक राहत मिलने की उम्मीद भी नहीं की जा सकती। भारत की स्थितियां चीन, अमेरिका, न्यूजीलैंड, फ़्रांस और जर्मनी जैसे कोरोना प्रभावित देशों से सर्वथा अलग हैं।
हमें अपनी परिस्थितियों के हिसाब से ही इन्हें समझना और समाधान निकालना होगा। यहां एक बात जरूर समझने वाली है कि किसी भी वस्तु का मूल्य उसके चलन में रहने पर ही होता। चलन से बाहर होने पर कीमती से कीमती वस्तु भी अपना मूल्य खो देती है जिस तरह पैसा ( मुद्रा ) घर में रखने से बढ़ता नहीं है लेकिन चलन में रहने पर उसकी कीमत बढ़ती ही जाती है। इसी तरह जब इंसान काम नहीं करता तो उसके सारे रास्ते ही बंद हो जाती हैं। कोरोना की वजह से ऐसा ही कुछ हुआ जिसे वक़्त चलते पटरी पर लाना जरूरी भी हो गया था।