कोविड-19 के संक्रमण का भ्रमजाल


सरकार की एक एजेंसी के हवाले से यह जानकारी दी गई है कि नवम्बर के महीने में कोरोना संक्रमितों की संख्या चरम पर होगी और उपचार के बाद कमी आने में कम से कम चार महीने का समय और लगेगा। इस लिहाज से यह सिलसिला नवम्बर के बाद अगले साल मार्च तक चलेगा। मतलब यह कि इस साल जिस महीने से कोरोना को रोकने के लिए लॉकडाउन जैसे उपायों का सहारा लिया गया, वो सिलसिला अब मार्च 2021 तक चलने वाला है।



भारत सरकार को चाहिए कि कोरोना के सन्दर्भ में एक ऐसी ठोस व्यवस्था सुनिश्चित करे जिसके तहत पूरे देश में कोरोना को लेकर किसी भी तरह की जानकारी किसी एक ही केंद्रीकृत एजेंसी द्वारा ही जारी की जाए। स्वास्थ्य मंत्रालय या सूचना प्रसारण मंत्रालय की किसी एक एजेंसी को या फिर दोनों मंत्रालयों की कोई एक संयुक्त एजेंसी को इसके लिए अधिकृत किया जाए कि वो एक निश्चित अंतराल में समय-समय पर कोरोना या कोविड 19 से जुड़ी कोई भी नई अथवा अतिरिक्त जानकारी राष्ट्रीय स्तर पर जारी करे। इस एक एजेंसी के अलावा कोई भी एजेंसी कोरोना के बारे में कुछ न बोले। किसी भी विभाग या देश के किसी राज्य को कोई जानकारी राष्ट्र को देनी भी है तो उसे केंद्र की इसी एजेंसी के माध्यम से ही अपनी बात कहने का मौका दिया जाए। 

ऐसा करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि कोरोना को लेकर हर रोज नई- नई जानकारी आंकड़ों के साथ जारी होती रहती है और कई बार तो एक ही दिन में एक से अधिक एजेंसियां कोरोना के इलाज, संक्रमितों की संख्या, उपचार के बाद ठीक होकर घर जाने वाले कोरोना मरीजों की संख्या और कोरोना संकट के जारी रहने की अवधि जैसे तमाम मुद्दों पर परस्पर विरोधी आंकड़े और जानकारियां जारी करती रहतीं हैं जिससे आम नागरिक भ्रम की स्थिति में खुद को ठगा हुआ सा महसूस करने लगता है। आम आदमी वैसे ही कोरोना महामारी और उसके प्रभाव से परेशान है,  उस पर जब उसको परस्पर विरोधी जानकारियां विभिन्न स्रोतों के माध्यम से मिलती रहेंगी तो इससे एक भ्रम जाल ही बनेगा और इस भ्रमजाल से उसकी परेशानियों में और इजाफा ही होगा। 

हाल ही का एक उदाहरण इस परेशानी को समझने के लिए पर्याप्त है। कुछ दिन पहले ही तो किसी अधिकृत सरकारी एजेंसी ने ही यह बताया था कि सितम्बर के दूसरे सप्ताह से कोरोना संक्रमितों की संख्या कम होने के साथ ही सामान्य औसत तक पहुंच जायेगी। मतलब यह कि आज से एक -डेढ़ महीने के बाद देश में हालात धीरे- धीरे सामान्य होने लगेंगे। इसी बीच सरकार की ही एक अन्य एजेंसी के हवाले से यह जानकारी दी गई है कि नवम्बर के महीने में कोरोना संक्रमितों की संख्या चरम पर होगी और उपचार के बाद कमी आने में कमसे कम चार महीने का समय और लगेगा। इस लिहाज से यह सिलसिला नवम्बर के बाद अगले साल मार्च तक चलेगा। मतलब यह कि इस साल जिस महीने से कोरोना को रोकने के लिए लॉकडाउन जैसे उपायों का सहारा लिया गया, वो सिलसिला अब मार्च 2021 तक चलने वाला है।  

गौरतलब है कि आज की मीडिया सुर्ख़ियों के मुताबिक भारत में चीन से फ़ैली कोरोना नामक यह  महामारी नवंबर में अपने चरम पर होगी, जिसकी वजह से अस्पतालों में आईसीयू और वेंटिलेटर के साथ ही रोगियों के बिस्तरे और तमाम तरह की चिकित्सा सुविधाओं का एक तरह से अकाल ही पड़ जाएगा। एक चिकित्सा अध्ययन के हवाले से दी गई इस अधिकृत सरकारी जानकारी से आम जनता में जबरदस्त भ्रम की स्थिति बन गई है। गनीमत है कि भारत सरकार ने समय गवाएं बिना इस रिपोर्ट का खंडन करते हुए साफ़ कर दिया है कि भारत में कोरोना के उपचार, इलाज, प्रबंधन और भावी योजनाओं को लेकर ऐसी कोई घबराने वाली स्थिति नहीं है। 

सरकार का यह साफ़ कहना है कि लॉकडाउन के कारण भारत में कोरोना की स्थितियों में काफी सुधार आया है जबकि भारत सरकार ही ही यही कथित स्टडी रिपोर्ट इसके उलट यह कहती है कि लॉकडाउन के कारण कोविड-19 महामारी आठ हफ्ते देर से अपने चरम पर पहुंचेगी। भारत सरकार सूचना और प्रसारण मंत्रालय की अधिकृत संस्था पत्र सूचना ब्यूरो (पीआईबी) इस रिपोर्ट का खंडन करते हुए यह भी कहा है कि यह खबर भ्रामक और आधारहीन है। 

प्रसंगवश इस सम्बन्ध में एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि सरकार की जिस रिपोर्ट में नवम्बर में कोरोना संक्रमितों की संख्या चरम में पहुचने का दावा किया गया है उसके बारे में यह भी बताया गया है कि इसे भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् यानी ICMR ने अधिकृत किया था जबकि पीआईबी के खंडन में यह साफ़ कहा गया है कि जिस स्टडी का रिपोर्ट में जिक्र किया गया है, उसे ICMR ने प्रायोजित नहीं किया है।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा कथित रूप से गठित इस ‘ऑपरेशंस रिसर्च ग्रुप नामक स्टडी ग्रुप के शोधकर्ताओं के हवाले से बताया गया था कि लॉकडाउन ने संक्रमण के मामलों में 69 से 97 प्रतिशत तक कमी कर दी, जिससे स्वास्थ्य प्रणाली को संसाधन जुटाने और बुनियादी ढांचा मजबूत करने में मदद मिली। लॉकडाउन के बाद जन स्वास्थ्य उपायों को बढ़ाए जाने और इसके 60 प्रतिशत कारगर रहने की स्थिति में महामारी नवंबर के पहले हफ्ते तक अपने चरम पर पहुंच सकती है। इसके बाद 5-4 महीनों के लिए आइसोलेशन बेड, 4-6 महीनों के लिए आईसीयू बेड और 3-9 महीनों के लिए वेंटिलेटर कम पड़ जाएंगे।

आईसीएमआर की यह कथित रिपोर्ट लॉक डाउन को तो फायदेमंद बताती है लेकिन इसके शोध कर्ताओं का यह मानना है कि इससे रोग का संक्रमण होने की गति रूक गई और संक्रमण का चरम आगे खिसक गया। रिपोर्ट के मुताबिक अगर लॉकडाउन और जन स्वास्थ्य उपाय नहीं किए गए होते तो स्थिति अत्यधिक गंभीर हो सक कहा कि कोविड-19 के प्रबंधन से नीतियों की उपयुक्त समीक्षा करने और स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करने में मदद मिलेगी। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि ‘लॉकडाउन महामारी के चरम पर पहुंचने में देर करेगा और स्वास्थ्य प्रणाली को जांच, मामलों को पृथक करने, उपचार और संक्रमित व्यक्तियों के संपर्क में आए लोगों का पता लगाने के लिए जरूरी समय प्रदान करेगा। 

उधर कुछ दिन पूर्व ही भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के दो जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने यह दावा किया था कि कोविड-19 नामक महामारी मध्य सितंबर के आसपास भारत में खत्म हो सकती है। इन स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए गणितीय प्रारूप पर आधारित विश्लेषण का सहारा लिया है। इस विश्लेषण के मुताबिक भारत में वास्तविक रूप से महामारी दो मार्च से शुरू हुई थी और तब से कोविड-19 के पॉजिटिव मामले बढ़ते चले गए। विश्लेषण के लिए विशेषज्ञों ने भारत में कोविड-19 के लिये आंकड़े वर्ल्डमीटर्स डॉट इंफो से एक मार्च से 19 मार्च तक दर्ज किये गये मामलों, संक्रमण मुक्त हो चुके मामले और मौतों से जुड़े आंकड़े लिये।अध्ययन दस्तावेज के मुताबिक बेलीज रिलेटिव रिमूवल रेट (बीएमआरआरआर), कोविड-19 के सांख्यिकीय विश्लेषण (लिनियर), के भारत में सांख्यिकीय विश्लेषण से प्रदर्शित हुआ है कि मध्य सितंबर के बीच ‘लीनियर लाइन’ 100 पर पहुंच रहा है।