COVID-19: जीवन जीने की लॉकडाउन शैली


लॉकडाउन के इस दौर में कोई कूकिंग में प्रवीण हो गया तो किसी ने घर को ही अपनी मैराथन दौड़ का ट्रैक बना लिया, कोई घर पर ही अपने स्मार्ट फ़ोन से छोटी- छोटी फ़िल्में बनाने लगा तो किसी ने अपना म्यूजिक ट्रैक तैयार कर लिया। इसी कड़ी में हम जैसे लोगों को भी वर्क फ्रॉम होम के बाद भी इतना ज्यादा समय मिला कि इस समय का सदुपयोग घर के कामकाज निपटाने के साथ ही कई अच्छी पुस्तकें पढ़ने में किया गया।



वायरस शब्द का चलन तो आम जन जीवन में सदियों पुराना है। विषाणु के रूप में तो इसके अर्थ को बहुत पहले से ही मान्यता मिली हुई है इधर वायरस से बने वायरल शब्द ने सोशल मीडिया के जरिये पूरी दुनिया को लहू-लुहान किया हुआ है। कभी किसी का फोटो तो कभी किसी का उल्टा-सीधा बयान फेसबुक से लेकर इन्स्टाग्राम और ट्वीटर सरीखे सोशल मीडिया के तमाम माध्यमों से वायरल होता ही रहता। लिहाजा वायरस और इससे बने वायरल शब्द का चलन इस लिहाज से जाना पहचाना और काफी पुराना भी माना जा सकता है।

वायरल के बाद दूसरा शब्द जो आजकल कुछ ज्यादा ही चलन में है, वो है कोरोना। ये एकदम नया शब्द है दिसम्बर 2019 से पहले इसे कोई जानता तक नहीं था। लेकिन जब चीन के वुहान शहर में एक अजीब किस्म के बुखार के साथ कोरोना नामक विषाणु के रूप में इस शब्द ने पहली बार दस्तक दी थी तो शुरू में किसी के भी समझ में कुछ नहीं आया। जब बाद में इसी विषाणु ने एक-एक कर लोगों की जान लेना शुरू कर दिया तब लोगों को इसकी आक्रामकता और महामारी के रूप में फ़ैल कर पूरी दुनिया को लपेट में ले लेने का इसका खतरनाक इरादा भी समझ में आने लगा। महामारी तो फ़ैल चुकी थी। चीन से निकल कर इटली के रास्ते यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका महाद्वीप के कई देशों तक पहुची तो उधर इरान के रास्ते एशिया के भारत,पाकिस्तान समेत कई देशों को अपनी चपेट में ले लिया।

इस अज्ञात वायरस ने कोरोना के नाम से पूरी दुनिया में अपनी पहचान बना ली। जब वायरस और उसके रोग की वैश्विक पहचान बन गई तब उसके इलाज के तरीके खोजना भी एक जरूरी काम बन चुका था। तत्काल कोरोना नामक इस रोग की न तो कोई दवा बन सकती थी और न ही किसी तरह की रोकथाम का कोई टीका ही बन सकता था इसलिए एहतियात के तौर पर इससे दूर रहना जरूरी समझा गया और इसके लिए जरूरी था दुनिया के लोग सब काम धाम छोड़ कर अपने घरों में क़ैद रहे, न कहीं जाएं और न किसी से मिलें। 

स्कूल-कॉलेज,दफ्तर-कारखाने,बाजार,मंदिर-मस्जिद-गिरजाघर और गुरुद्वारे सब बंद कर लोग केवल अपने घरों में ही रहें और जिसे जो कुछ भी करना कहना है वो अपने घर में रह कर ही करे। केवल बहुत जरूरी चीजें और सेवाओं को छोड़ कर तमाम काम घर से ही करने पड़ें तो फिर न सड़क पर कार- बस चलेगी, न पटरियों पर रेल दौड़ेगी और न ही आकाश में हवाई जहाज और समुद्र में पानी के जहाज चलने की आवाजें सुनाई देंगी। जब कभी ऐसी स्थिति आ जाए और हालात किसी एक देश या कुछ इलाकों तक ही सीमित न होकर कमोबेश पूरी दुनिया को अपनी गिरफ्त में ले लें तो इस स्थिति को ही लॉकडाउन कहा जाता है।  

कोरोना की मार से बचने के लिए घर में बंद होकर लॉकडाउन का आनंद लेने का यह सुझाव इसलिए भी बेहतर माना जा सकता है कि जब यह पता हो कि इस मर्ज का कोई इलाज फिलहाल संभव नहीं है और यह भी मालूम है कि अगर लोग आपस में दूरी बना कर रहें तो कम से कम इंसान से इंसान के बीच हो सकने वाले इसके मारक संक्रमण से बचा जा सकता है। इसी आधार पर दुनिया के सभी देशों ने लॉकडाउन को एक अनिवार्य एहतियाती कदम के रूप में स्वीकार किया और अपने देश की जरूरत और समय के हिसाब से अपने यहां इसे लागू भी किया। 

मसलन चीन ने तो अपने शहर वुहान में इसे इस साल जनवरी से ही लागू कर दिया था। कुछ देशों में लॉकडाउन का सिलसिला फरवरी के महीने से शुरू हुआ तो कहीं मार्च के महीने में इसकी शुरुआत हुई थी। भारत में मार्च के तीसरे सप्ताह से जारी लॉकडाउन का यह सिलसिला कई महीनों तक चला, इस दौरान न किसी फिल्म की शूटिंग हुई और न ही कोई फिल्म रिलीज़ ही हुई। सरकारी और निजी दफ्तर, कारखाने सभी कुछ बंद न होटल खुले, न माल में शापिंग हुई। दफ्तरों का बहुत जरूरी काम वर्क फ्रॉम होम के नाम पर घर से ही हुआ। घर से जितना हो सकता था उतना काम लोगों ने किया भी लेकिन जब घर पर करने के लिए कुछ न हो तो लोग क्या करें? इन हालात में खेल,फिल्म, साहित्य और दूसरे क्षेत्रों से जुड़े पेशेवर लोगों ने घर को अपनी प्रयोगशाला बना दिया।

लॉकडाउन के इस दौर में कोई कूकिंग में प्रवीण हो गया तो किसी ने घर को ही अपनी मैराथन दौड़ का ट्रैक बना लिया, कोई घर पर ही अपने स्मार्ट फ़ोन से छोटी- छोटी फ़िल्में बनाने लगा तो किसी ने अपना म्यूजिक ट्रैक तैयार कर लिया। यही नहीं कई फिल्में भी ऑनलाइन रिलीज़ होने लगी तो कई नए फैशन ट्रेंड भी लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन रिलीज़ होने लगे। कहने का मतलब यह कि कोरोना वायरस से विरासत में मिले लॉकडाउन के इस अवसर ने लोगों को कुछ नया करने का मौका भी दिया। इसी कड़ी में हम जैसे लोगों को भी वर्क फ्रॉम होम के बाद भी इतना ज्यादा समय मिला कि इस समय का सदुपयोग घर के कामकाज निपटाने के साथ ही कई अच्छी पुस्तकें पढ़ने में किया गया।
इस लिहाज से कहें तो लगभग दो महीने की अवधि वाले इस लॉकडाउन पीरियड में नसरीन मुन्नी कबीर की फिल्मकार गुरुदत्त पर लिखी एक पुस्तक के साथ ही महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका प्रवास पर आधारित गिरिराज किशोर के उपन्यास पहला गिरमिटिया,फिल्म अभिनेता आशुतोष राणा की रामकथा पर आधारित पुस्तक रामराज्य।नीलिमा पाण्डेय की लखनऊ शहर पर लिखी पुस्तक लखनऊ शहर, असगर वजाहत की पुस्तक स्वर्ग में पांच दिन,रस्किन बांड की पुस्तक रस्टी जब भाग गया और रुडयार्ड किपलिंग की पुस्तक जंगल बुक पढ़ने का मौका भी इन पंक्तियों के लेखक को भरपूर मिला। लॉकडाउन को देखने का एक नजरिया यह भी तो हो सकता है।