मिथिला राज्य की मांग और भारत के राज्य


देश में राज्यों के गठन के लिए पहले  आयोग  का 1953 में न्यायमूर्ति अली फजल की अध्यक्षता में किया गया था। इस तीन सदस्यीय आयोग के दो सदस्य थे हृदय नाथ कुंजरू और केएम  पणिक्कर। इस आयोग की सिफारिशों के आधार पर 1956 में नए राज्यों का गठन किया गया था।



दिल्ली के जंतर मंतर पर आए दिन धरने, प्रदर्शन आयोजित होते रहते हैं। एक मायने में जंतर मंतर एक ऐसा मंच है जहां से जनता अपने मन की बात, अपना दुख और अपनी समस्याएं लोकतान्त्रिक तरीके से केंद्र सरकार तक पहुंचा देती है। देश की संसद, प्रधानमंत्री समेत केंद्र सरकार के मंत्रियों के निवास और कार्यालयों के करीब होने की वजह से दिल्ली के जंतर मंतर पर किये जाने वाले धरने-प्रदर्शन आम आदमी का ध्यान भी अधिक खींचते हैं, यहाँ किये जाने वाले इस तरह के आयोजनों पर केंद्र सरकार की नजर भी जल्दी पड़ती है और राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान भी सबसे पहले जाता है। इस स्थान की इन्हीं विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए रविवार 21 अगस्त 2022 को इस स्थान पर आयोजित एक धरना प्रदर्शन में इस तरह के नारे भी सुनने को मिले। “भीख नहि अधिकार चाहीं, हमारा मिथिला राज चाहीं”। मैथिली भाषा में लगाए जा रहे इस नारे का मतलब आसानी से समझा जा सकता है।

मतलब यह कि बिहार के मिथिलाञ्चल में रहने वाले लोग पाने क्षेत्र के लिए एक पूर्ण स्वायत्त राज्य चाहते हैं। अपने राज्य की चाहत में ही ये लोग कह रहे हैं कि उन्हें भीख नहीं, अपना मिथिला राज्य चाहिए। दिल्ली के जंतर मंतर पर इस धरने का आयोजन, “मिथिला स्टूडेंट्स यूनियन” (एमएसयू) ने किया था, सवाल है कि एमएसयू ने यह आयोजन क्यों किया और बिहार से अलग करके एक नया मिथिला राज्य बनाने की जरूरत क्या है? जंतर मंतर के इस धरने से ही सवाल का जवाब भी मिला। इस जवाब के मुताबिक सरकार की तरफ से मिथिलाञ्चल की लगातार हो रही उपेक्षा के मद्दे नजर अब मैथिल भाषियों  के बीच अलग मिथिला राज्य के गठन की मांग तेजी से बढ़ने लगी है। मिथिला की उपेक्षा के बारे में सवाल पूछने पर पता चलता है कि आज मिथिला में एक भी उद्योग नहीं है। अतीत में चीनी मिल या जूट मिल के ररूपमें जितने भी उद्योग इस इलाके में थे वो अब किसी न किसी कारण बंद कर दिए गए हैं।

विकास और प्रगति की दौड़ में पिछड़ जाने की इसी चिंता को लेकर अतीत में उत्तराखंड और झारखंड राज्यों के गठन की मांग को लेकर कई साल तक चलने वाले आंदोलन भी हो चुके हैं। छोटे राज्यों के गठन की मांग को लेकर आंदोलन करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्तर पर एक अखिल भारतीय मोर्चे का गठन भी किया जा चुका है। इस आंदोलन की वजह से या अन्य अपरिहार्य कारणों की वजह से साल  2000 के नवंबर के महीने में उत्तराखंड, झारखंड और छत्तीसगढ़ के रूप में तीन नए राज्यों का गठन हुआ था और इसी कड़ी में साल 3014 में आंध्र प्रदेश से अलग करके तेलंगाना नामक राज्य वजूद में आया था। इसी कड़ी में पूर्वोत्तर क्षेत्र में पश्चिम बंगाल से अलग कर गोरखालँड़, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट बहुल जिलों के साथ ही कुछ और जिलों को मिला कर पांचाल प्रदेश और पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों को मिला कर पूर्वाञ्चल प्रदेश बनाने समेत कई नए राज्यों के गठन  की मांग भी कई दशक से की जा रही हैं। कोरोना काल में इस तरह के आंदोलनों को आगे बढ़ाने का मौका नहीं मिल पाया था पर देर सबेर यह सवाल तो उठेगा ही।

मिथिला राज्य के गठन की मांग करने वालों का दावा है कि यह आज की नहीं सौ साल पुरानी मांग है। कहते हैं कि 1922 में दरभंगा के तत्कालीन महाराज रामेश्वर सिंह ने अलग मिथिला राज्य की मांग की थी । तब से समए – समय पर छिट पुट  आंदोलन भी इसके लिए किये गए लेकिन मिथिला राज्य आंदोलन को वो धार नहीं मिल सकी जो झारखंड या उत्तराखंड राज्य आंदोलनों को मिली थी। बताते हैं कि अब यह आंदोलन धार पकड़ेगा। एमएसयू  के पदाधिकारियों के मुताबिक अब मिथिला की उपेक्षा बर्दाश्त नहीं की जाएगी और अलग राज्य के लिए आंदोलन को और तेज किया जाएगा। इसकी एक बड़ी वजह यह भी बताई गई कि केंद्र सरकार मिथिला के विकास की कई योजनाओं की घोषणा तो कर चुकी है लेकिन सालों तक उन पर कोई अमल नहीं हुआ। मसलन मैथिल भाषा को आठवीं सूची में शामिल किये हुए कई साल हो गए लेकिन अभी तक इसे अमल में लाने के लिए कुछ नहीं किया गया, जिसकी वजह से आज भी मैथिल भाषा में पढ़ाई का सिलसिला शुरू नहीं हो सका है।

प्रसंगवश यह  जानकारी बहुत दिलचस्प है कि 1947 में देश के आजाद होने के बाद से लेकर साल 2014 में तेलंगाना के रूप में नए राज्य का गठन हो जाने तक देश में  11  -12 बार राज्यों  का नए सिरे से गठन किया गया। इस प्रक्रिया में कुछ नए राज्यों का गठन किया गया तो कुछ पुराने राज्यों के नाम भी बदले गए थे । 1947 में देश की आजादी के बाद स्वतंत्र भारत को 562 रियासतें विरासत में मिली थीं जिनको 14 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों  के रूप में नई पहचान दी गई थी। उस समय देश की कश्मीर, जूनागढ़, हैदराबाद और  भोपाल और रियासतों ने भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया था लेकिन 1956 में ये रियासतें भी भारतीय संघ का हिस्सा बन चुकी थीं। आजादी के समय देश में राज्यों के संचालन को लेकर तीन तरह की व्यवस्थाएं वजूद में थीं। एक व्यवस्था के तहत  300  से अधिक रियासतों का प्रशासनिक संचालन होता था तो दूसरी दो व्यवस्थाएं क्रमशः फ्रांस और पुर्तगाल के नियंत्रण वाली थीं जिनके तहत भारत के कई मौजू  राज्यों का उपनिवेश के रूप में संचालन किया जाता था। इन उपनिवेशों की पहचान गोवा, अंडमान निकोबार द्वीप और पॉन्डिचेरी के रूप की जाती रही है।

आजादी के बाद भारतीय  राज्यों   के गठन का   सिलसिला सबसे पहले 1950 में शुरू हुआ था और बाद के दौर में समय की जरूरत के हिसाब से बदलाव करने की गरज से 1953 , 1956 ,1960 , 1963 , 1966 , 1972 , 1975 , 1987 , 2000 2014  और 2019 में भी यह प्रक्रिया अमल में लायी गई थी। इसी प्रक्रिया के तहत 30 अक्टूबर 2019 को जम्मू कश्मीर को  संविधान के अनुच्छेद  370 के तहत मिले विशेष दर्जे को समाप्त कर कश्मीर को लद्दाख और जम्मू – कश्मीर  दो केंद्र शासित प्रदेशों में बदल दिया गया था। इस व्यवस्था के लागू होने के बाद ही देश में पूर्ण स्वायत्त राज्यों की संख्या 29 से घट  कर 28 हो गई थी और केंद्र शासित राज्यों की संख्या 7 से बढ़ कर 9 हो गई थी।

देश में राज्यों के गठन के लिए पहले  आयोग  का 1953 में न्यायमूर्ति अली फजल की अध्यक्षता में किया गया था। इस तीन सदस्यीय आयोग के दो सदस्य थे हृदय नाथ कुंजरू और केएम  पणिक्कर। इस आयोग की सिफारिशों के आधार पर 1956 में नए राज्यों का गठन किया गया था। राज्यों के गठन का दूसरा दौर 1960 में तब चला बॉम्बे राज्य की जगह महाराष्ट्र और गोवा के रूप में दो नए राज्य बनाए गए थे । नए राज्यों के गठन का अगला सिलसिला 1963 में तब शुरू हुआ था जब नागालैंड राज्य का गठन हुआ था  इसी तरह 1966 में पंजाब का विभाजन  कर उसे पंजाब, हरियाणा और हिमाचल तीन राज्यों के रूप में स्थापित किया गया था। इसी क्रम में 1972 में मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा राज्यों का गठन हुआ था और 1975 में सिक्किम का एक राज्य के रूप में भारतीय  संघ में विलय किया गया था।

इसके बाद 1987 में मिजोरम राज्य का गठन करने के साथ ही पूर्व में बनाए गए दो  केंद्र शासित राज्यों- गोवा और अरुणाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्ज दिया गया था । नए राज्यों का गठन करने के क्रम में ही साल 2000 में उत्तराखंड , झारखंड और छत्तीसगढ़ के रूप में तीन नए राज्य वजूद में आए और इसी कड़ी में साल 2014 में तेलंगाना का गठन होने के साथ ही 2019 में कश्मीर को दो केंद्र शासित राज्यों – जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विभाजित किया गया था । इस तरह मौजूदा हालत में देश के 28 राज्य हैं -अरुणाचल प्रदेश,असम, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, कर्नाटक, केरल, गुजरात, गोवा, छत्तीसगढ़, झारखंड, तमिलनाडु, नागालैंड, त्रिपुरा, पंजाब, बिहार , मणिपुर, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मिजोरम, मेघालय, राजस्थान, सिक्किम, हरियाणा, हिमाचल और तेलंगाना । मौजूद समय में अंडमान और निकोबार, चंडीगढ़ , दमन और दीव, दादर और नागर हवेली, पॉन्डिचेरी, दिल्ली, लक्ष्य दीप, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख देश के नौ केंद्र शासित प्रदेश / क्षेत्र हैं।