
रेखागणित में कोण की महिमा अपरम्पार है। अलग-अलग आकार के ये कोण कमसे कम 10 डिग्री से शुरू होकर 180 और फिर 360 डिग्री के भी होते हैं। इसे यूं भी समझ सकते हैं कि एक गोलाकार आकृति में अगर बीचों बीच एक सीधी रेखा खींच दी जाए तो उस रेखा के दोनों तरफ और वृत्त के अन्दर की तरफ जो क्षेत्रफल होता है उसका आकार 360 डिग्री अक्षांश का होता है। इस वृत्त के आधे हिस्से का क्षेत्रफल 180 डिग्री अक्षांश का और इसका चौथाई हिस्सा 90 डिग्री का होता है। 90 डिग्री के ही इस कोण को सम कोण भी कहा जाता है क्योंकि यह कोण जिन दो रेखाओं के बीच बनता है वो दोनों रेखाएं एक समान होती हैं।
समकोण की इन रेखाओं के बीच की दूरी कम होने पर न्यून कोण बनते हैं जो 10 से लेकर 80 और 88 तक बार सकते हैं। इसके विपरीत जैसे-जैसे इन समकोण की इन दोनों रेखाओं के बीच की दूरी ऊपर की तरफ बढ़ने लगती है कोण का आकार भी बढ़ने लगता है। इन दोनों रेखाओं की बीच की दूरी जब इतनी बढ़ जाती है कि दोनों रेखाएं मिल कर एक में ही समा जाती हैं तब इस रेखा के दोनों तरफ 180 डिग्री के दो कोण बन जाते हैं।
रेखागणित के सन्दर्भ में बात करें तो कोरोना के नाम से जिस महामारी ने पूरी दुनिया को पिछले 5-6 महीने से जकड़ रखा है उसकी हालात भी अब बहुकोणीय हो गई है। पहले तो रोग की ही पहचान नहीं हो सकी। पहचान नहीं हो सकी थी इसलिए उचित और वांछित इलाज की भी व्यवस्था नहीं हो सकी। जैसे- तैसे लक्षण समझ में आये तो पता चला कि कोरोना के ये लक्षण भी स्थाई नहीं हैं। इसके दूसरे तरह के लक्षण भी हो सकते हैं।
कभी कहा गया कि ठण्ड के मौसम और नमी की वजह से कोरोना को फैलने में ज्यादा मदद मिलती है, पर अब हालत ऐसी है कि 45 डिग्री सेल्सियस की सूखी गर्मी में भी कोरोना संक्रमितों की संख्या कम होने के बजाय बढ़ती ही जा रही है। चीन में वूहान नामक शहर की बोतल से निकला कोरोना वायरस का यह जिन्न अब पूरी दुनिया में फ़ैल ही नहीं चुका है बल्कि अपने भयावह डैनों के फैलाव से लाखों लोगों की को मौत का शिकार भी बना चुका है। इससे काफी बड़ी तादाद में लोग बीमार हैं और इलाज करा रहे हैं। महामारी का प्रकोप इतिहास में इससे पहले भी कई बार हुआ है।
हैजा और प्लेग जैसी महामारी भी अतीत में मानवता के लिए अभिशाप बन कर सामने आई हैं लेकिन ये संकट एक समय में दुनिया के किसी एक या दो देशों तक ही सीमित रहे हैं लेकिन कोरोना ने तो एक साथ पूरी दुनिया को अपनी जकड़ में ले रखा है। अपने इसी वैश्विक स्वरुप के चलते ही कोरोना के अलग-अलग रूप भी देखने को मिले हैं। कोरोना के ये रूप भयानक और वीभत्स भी हैं खुशी के आंसुओं से भरे नम और सुखद भी। कोरोना के बहाने राजनीति भी हो रही है और कोरोना के नाम पर एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिशों में भी लोग लगे हुए हैं। कुछ उदाहरण अच्छे कर्मों के हैं तो बुरे कर्मों के उदाहरण भी कम नहीं हैं।
हमारे देश में राजनीति का आलम यह है कि कोरोना को फैलने से रोकने के लिए लॉकडाउन लागू करने का जो फैसला जल्दबाजी में लिया गया उससे बेरोजगार हुए मजदूर जब अपने घरों की तरफ वापस जाने लगे तो किसी तरह का कोई साधन नहीं था और वो पैदल ही निकल पड़े। कुछ घर पहुंचे तो कुछ ने रास्ते में ही दसम तोड़ दिया। इनमें कई रेल से कट कर और कई ट्रक से कुचल कर मर गए। विपक्षी दल के नेताओं ने जब अपने खर्च पर बसों से इन मजदूरों को घर पहुंचाने की बात की सरकार ने उन बसों को जाने की अनुमति देना तो दूर विपक्ष के नेताओं को ही निशाने पर ले लिया।
उधर राजनीति के लिहाज से नीदर्सलैंड जैसे छोटे से देश ने यह मिसाइल कायम कर दी कि कोरोना के दौर में वहां के प्रधानमंत्री स्वास्थ्य मामलों के एक जानकार विपक्ष के सांसद को स्वास्थ्य मंत्रालय की ही जिम्मेदारी सौंप दी। उस देश में राजनीति वोट को देश के स्वास्थ्य से अलग देख कर की जाती है लेकिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में सिर्फ वोट की राजनीति को ध्यान में रख कर ही हर राजनीतिक दल अपनी चाल चलता है।
कोरोना के बहुआयामी कोण हैं। इसके नकारात्मक पक्षों को अलग रख दें और सकारात्मक पक्ष की चर्चा करें तो बहुत कुछ सीखने को भी मिल सकता है। यह भी एक संयोग ही है कि इस बार ईद का पर्व भी कोरोना संकट में फंस कर रह गया ऐसे में गरीबों को जकात और उपहार देने के सिलसिले में भी रुकावट आई। लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कैराना के एक व्यापारी ने रेडीमेड गारमेंट और जूतों के शो रूम का सारा सामान अपनी बिरादरी के गरीब लोगों में बांट दिया। इस काम में स्थानीय प्रशासन की भी पूरी मदद ली गई ताकि जरूरतमंदों की अच्छी तरह से पहचान होने के साथ ही उनमें सामान का वितरण भी सही तरीके से हो जाए। और ऐसा ही हुआ भी।
इसी तरह मीडिया के हवाले से एक और घटना सामने आई है। इस घटना के सुखद और दुखद दोनों प्रसंग हैं। पहले बात दुखद प्रसंग की, कुछ उत्पाती किस्म के लोगों ने राह चलते एक फल विक्रेता की रेहडी से आम की पूरी फसल लूट ली। ये फल उसने सब्जी मंडी से तीस हजार रुपये में खरीदे थे। उसकी पूरी कमाई डूब गई थी। एक टीवी चैनल में जब इसकी खबर दिखाई दी और उस खबर में फल विक्रेता के माध्यम से उसके बैंक खाते की जानकारी दर्शकों को मिली तो उस व्यक्ति के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उसे पता चला कि लोगों की मदद से उसके खाते में आठ लाख रुपये की अच्छी रकम जमा हो गई है। ये भी कोरोना का ही एक कोण है।