गंदा है पर सोशल मीडिया का धंधा है

कोई भी व्यक्ति फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, लिंक्ड इन, यू ट्यूब या फिर ऐसे ही किसी सार्वजनिक मंच पर आता है तो उसका निजता का दायरा क्या होना चाहिए? स्वाभाविक है इन मंचों पर वह अपने आप को अभिव्यक्त करने के लिए आता है। अभिव्यक्ति का दायरा क्या होगा, इसका निर्धारण भी वह स्वयं करता है।

निजता या प्राइवेसी एक ऐसी मांग है जो तकनीकि के विस्तार के साथ साथ पूरी दुनिया में बढ रही है। जैसे जैसे तकनीकि अपने पैर पसार रही है निजता की मांग भी बढती जा रही है। तो क्या तकनीकि किसी व्यक्ति के जीवन के उन अनपेक्षित हिस्सों में प्रवेश कर रहा है जो किसी का अपना निजी दायरा होता है?

यह एक कठिन सवाल है जिसका जवाब इतना आसान नहीं है। एक बार फिर से वाट्स एप्प द्वारा ‘निजता की सहमति’ मांगने के बाद जो बहस खड़ी हो रही है उसमें सबसे पहले तो भारत जैसे तीसरी दुनिया के देश में निजता की ही समीक्षा जरूरी है। आखिर सोशल मीडिया पर मौजूद किसी भी व्यक्ति की निजता का दायरा निर्धारित कैसे होगा?

कोई भी व्यक्ति फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, लिंक्ड इन, यू ट्यूब या फिर ऐसे ही किसी सार्वजनिक मंच पर आता है तो उसका निजता का दायरा क्या होना चाहिए? स्वाभाविक है इन मंचों पर वह अपने आप को अभिव्यक्त करने के लिए आता है। अभिव्यक्ति का दायरा क्या होगा, इसका निर्धारण भी वह स्वयं करता है। अपने घूमने फिरने की जगहों से लेकर अपने किचन बाथरूम या बेडरूम तक की जानकारी शेयर करना या न करना उसके विवेक पर निर्भर करता है।

इसे कोई कंपनी निर्धारित कर सकती है कि वह क्या बताना चाहता है या क्या छिपाना चाहता है। अगर किसी को शिकायत है सिर्फ सोशल मीडिया पर होना भर निजता में दखल है तो यह उसे स्वयं तय करना होता है कि वह अपनी निजता की रक्षा करेगा या फिर सोशल मीडिया पर रहेगा। लेकिन निजता या गोपनीयता भंग का मामला सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। आरोप प्रत्यारोप इसके आगे हैं।

सोशल मीडिया साइट्स खासकर फेसबुक पर लंबे समय से आरोप लग रहा है कि वह अपने उपयोगकर्ताओं की जानकारी खुले बाजार में बेचता है। इन जानकारियों की बिक्री के जरिए वह न सिर्फ अकूत धन कमाता है बल्कि अपने उपभोक्ताओं के साथ धोखाधड़ी भी करता है। फेसबुक पर आनेवाली तमाम एन्टरटेनमेन्ट एप या खेलों के विज्ञापन असल में फिशिंग एप्प होते हैं जो कुछ छुटपुट मनोरंजन के नाम पर उपयोगकर्ता से उसकी जानकारियां हासिल करने की परमीशन मांगते हैं फिर उपभोक्ताओं की दुनिया में दखल देते हैं।

जैसे वो आपसे आपके फोनकाल मैनेज करने का परमीशन मांगते हैं या फिर आपके फोनबुक में प्रवेश की अनुमति ले लेते हैं। एक झटके में हम उन्हें अनुमति दे भी देते हैं। बिना यह सोचे समझे कि इस परमीशन का वो करेंगे क्या? जैसे अगर कोई एप्प आपके फोनकाल मैनैज करने की परमीशन मांगता है तो वह चुपके से आपकी कॉल रिकार्डिंग शुरु कर देता है। आप किससे क्या बात करते हैं उसके आधार पर वह आपकी बाजार जरूरतों के हिसाब से डाटा तैयार करता है और फिर उसे आगे कंपनियों को बेचा जाता है।

अगर आपके फोन में चौबीसों घण्टे इंटरनेट और जीपीएस आन है तो फेसबुक सहित कई अन्य एप्प फोन पर या फोन के अतिरिक्त भी आपके द्वारा की जानेवाली बातचीत को रिकार्ड करते हैं और उसके हिसाब से आपको विज्ञापन दिखाते हैं। जैसे अगर आप किसी गाड़ी की चर्चा किसी व्यक्ति से बातचीत में करते हैं तो कोई आश्चर्य नहीं कि अगली बार जब आप फेसबुक या कोई अन्य सोशल मीडिया साइट खोलें तो उसी गाड़ी का विज्ञापन आपको दिखाई देने लगे। इसके अतिरिक्त गूगल पर आपके सर्च के समानांतर विज्ञापन दिखाने की घोषित नीति तो पहले से ही है।

इंटरनेट पर सक्रिय व्यक्ति एक पैटर्न पर काम करत है। कंपनियां या सोशल साइट्स उसी पैटर्न को पकड़ने का काम करती हैं ताकि उस व्यक्ति को बाजार के दायरे में समेटा जा सके। अगर शिकायत यहीं तक रहती तो शायद उतना बड़ा खतरा नहीं है। खतरा तब बड़ा बन जाता है जब आपके द्वारा दो लोगों के मध्य शेयर की जानेवाली जानकारियां किसी तीसरे या चौथे व्यक्ति के पास पहुंच जाता है वह भी बिना आपकी जानकारी के। वाट्स एप द्वारा निजता की सहमति मांगने के बाद जो ताजा विवाद पैदा हुआ है उसके मूल में यही बात है।

हालांकि फेसबुक इंकारपोरेशन ने इस बात को स्पष्ट किया है कि वह निजी बातचीत को उसी तरह इन्ड टू इन्ड इन्क्रिप्टेड रखेगा जैसे पहले रखता आया है। इसका मतलब वाट्स एप्प पर निजी बातचीत को वह सार्वजनिक नहीं करेगा। लेकिन वाट्स एप्प के जो बिजनेस एकाउण्ट हैं उन पर साझा की गयी जानकारियां वह फेसबुक के साथ शेयर करेगा ताकि बेहतर यूजर और बेहतर सेवाएं प्राप्त कर सके।

मसलन, अगर कोई वाट्स एप्प के बिजनेस एकाउण्ट पर किसी कंपनी द्वारा इस्तेमाल की गयी सेवाओं की जानकारी शेयर करता है तो फेसबुक उस डाटा को उक्त कंपनी के प्रतिस्पर्धी कंपनियों को दे सकती है कि देखो अमुक व्यक्ति अपनी यात्राओं के लिए यात्रा.कॉम की सेवाएं लेता है।

ऊपर से देखने में ये उतना डरावना नहीं लगता लेकिन क्या गारंटी है कि निजी बातचीत को फेसबुक या अन्य सोशल साइट्स शेयर नहीं करती होंगी? ऐसे में किसी सामान्य उपयोगकर्ता के सामने विकल्प क्या है? क्या वह यभी प्रकार की सोशल साइट्स से दूरी बना ले? क्या वह स्मार्टफोन का इस्तेमाल करना बंद कर दे? क्या वह इंटरनेट का इस्तेमाल न करे?

अगर निजता को बचाकर रखना है को इन तीनों से दूर हुए बिना निजता और गोपनीयता को सुरक्षित रखना मुश्किल है। सवाल ये उठता है कि कोई व्यक्ति अगर इन सभी से अलग हो गया तो समूची संचार क्रांति का उसके लिए अर्थ क्या रह जाएगा? वाट्स एप्प विवाद पैदा होने के बाद कुछ लोग एक दूसरी अमेरिकी मैसेन्जर साइट सिग्नल को बढावा दे रहे हैं। यहां तक कि टेसला मोटर के मालिक एलन मस्क ने भी सिग्नल इस्तेमाल करने की सलाह दी है।

सवाल है कि निजता या गोपनीयता के सुरक्षा की गारंटी वहां कौन देगा और कब तक? बाजार की ताकतों को सफल कारोबारियों से मतलब है और कोई भी मैसेन्जर एप क्यों न हो आखिरकार निवेश और मुनाफे के खेल से वह बाहर नहीं हो सकती। अगर वाट्स एप्प में निवेश करनेवालों को मुनाफा चाहिए तो क्या सिग्नल में निवेश करनेवाले कारोबारियों को मुनाफा नहीं चाहिए? अगर मुनाफा चाहिए तो भला सिग्नल के लिए ये धंधा कब तक गंदा नहीं होगा?

First Published on: January 17, 2021 4:30 PM
Exit mobile version