डॉक्टर्स-डे स्पेशल : समाज के देवदूत डॉक्टर


पिछले साल कोरोना के ‘फ्रंट लाईन वर्कर’ के रूप में देश भर के अस्पताल एवं डॉक्टर्स पर पुष्प वर्षा करके सरकार द्वारा जनता की ओर से आभार भी व्यक्त किया गया है। जिस तरह विषम परिस्थितियों में कोरोना जैसी संक्रामक बीमारी में उनकी भूमिका दिखी तो ऐसा लगने लगा कि सचमुच भगवान का एक जीवंत रूप हमारे समाज में सामने दिख रहा है।


अमित कुमार
मत-विमत Updated On :

मानव जीवन के आरंभ से अंत तक चिकित्साशास्त्र की महती भूमिका रहती है। मनुष्य जब जन्म लेता है तब भी और जब उसकी मौत होती है तब भी, दोनों ही परिस्थितियों में डॉक्टर की उपस्थिति अवश्यंभावी है। यही कारण है कि डॉक्टर को हम धरती पर भगवान का एक रूप मानते हैं।बिना डॉक्टर के हम अपने जीवन कि कल्पना भी करें तो भय का आभास होता है। यही कारण है कि समाज में डॉक्टर के पेशे को काफी सममानपूर्वक देखा जाता रहा है।

स्वाभाविक है कि समाज द्वारा अपने ऊपर किए जानेवाले उपकार का प्रतिफल किसी-न-किसी रूप में अदा किया जाना चाहिए। इसी क्रम में डॉक्टर को शुक्रिया अदा करने के उद्देश्य से भारत में 1 जुलाई को प्रतिवर्ष ‘डॉक्टर्स-डे’ मनाया जाता है। जिसमें उन्हें समाज उनके द्वारा किए गए सामाजिक सुकृत्यों के बदले धन्यवाद देता है। भारत में 1991 से तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय डॉक्टर्स-डे’ मनाने कि शुरुआत कि गयी। 1 जुलाई की तिथि को चुनने का मुख्य कारण यह रहा कि इसी दिन भारत के मशहूर चिकित्सक एवं पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री डॉक्टर विधान चन्द्र राय कि जयंती और पुण्य तिथि भी है।

कोरोना के इस दौर में पिछले एक-डेढ़ साल से हमें इनकी जीवन की कठिनाईयों का आभास अधिक हुआ है। पिछले साल कोरोना के ‘फ्रंट लाईन वर्कर’ के रूप में देश भर के अस्पताल एवं डॉक्टर्स पर पुष्प वर्षा करके सरकार द्वारा जनता की ओर से आभार भी व्यक्त किया गया है। जिस तरह विषम परिस्थितियों में कोरोना जैसी संक्रामक बीमारी में उनकी भूमिका दिखी तो ऐसा लगने लगा कि सचमुच भगवान का एक जीवंत रूप हमारे समाज में सामने दिख रहा है। इस दौर में ये भी एहसास हुआ कि डॉक्टर्स पर काम का बोझ अत्यधिक हो गया है क्योंकि, पर्याप्त संख्या में देश में डॉक्टर्स कि उपलब्धता नहीं है।

2017 के एक आंकड़े के अनुसार देश में कुल 9 लाख 59 हजार एलोपैथ डॉक्टर्स पंजीकृत थे। इसके अलावा आयुर्वेद, होम्योपैथ, यूनानी आदि के भी 6 लाख 77 हजार डॉक्टर पंजीकृत थे। अगर एलोपैथ कि बात की जाय तो उपलब्ध डॉक्टर की संख्या लगभग 80 फीसदी तक ही है जो सही तरह से अपनी सेवा दे पाते हैं। इस आधार पर अगर अनुपातिक रूप से देखा जाए तो देश में लगभग 1681 लोग पर 1 डॉक्टर उपलब्ध है।(1:1681)। हालांकि विश्व स्वस्थ्य संगठन के मानक के अनुसार प्रति हजार एक डॉक्टर होना चाहिए। अगर सभी आयुर्वेद, होम्योपैथ, यूनानी सभी की संख्या सम्मिलित कर ली जाए तो यह अनुपात प्रति डॉक्टर 893 मरीज हो जाते हैं।

देश में अभी लगभग 11.5 लाख पंजीकृत डॉक्टर एलोपैथ के हो गए हैं और कुछ दिन पहले ही केंद्रीय स्वस्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने असम में एक मेडिकल कॉलेज के दीक्षांत समारोह में बोलते हुए आश्वस्त किया कि – ‘बहुत निकट भविष्य में भारत विश्व स्वस्थ्य संगठन के मानक को पूरा करने में सक्षम हो जाएगा। इसके लिए मेडिकल कॉलेज में लगातार सीटों की संख्या में वृद्धि की जा रही है।‘ डॉक्टर की संख्या में राज्य-वार असमानता भी बहुत अधिक है लगभग 40 से 45 फीसदी डॉक्टर मात्र चार राज्यों में ही सीमित है। इससे एक बात तो स्पष्ट है कि डॉक्टर्स की काफी कमी है नतिजन, उन पर कार्य का बोझ सामान्य स्थिति में ही बढ़ जाता है। जबकि कोरोना के इस दौर में जिस तरह मरीजों कि संख्या बढ़ गयी उसमें दिन रात एक कर देने के बबजूद भी स्थिति को संभाल पाना दूभर हो गया।

IMA के अनुसार कोरोना के कारण अब तक लगभग 734 डॉक्टर्स की मौत हो गयी, सिर्फ अप्रैल 2021 में ही 34 डॉक्टर की जान चली गयी। डॉक्टर तथा अन्य मेडिकल स्टाफ को कोरोना संक्रमण होने का खतरा किसी भी अन्य लोगों की तुलना में अधिक बना रहता है। कई डॉक्टर्स तो इस दौरान दो-दो बार कोरोना संक्रमित हो गए थे। स्वाभाविक है की उनकी ड्यूटी में जान की बाज़ी लगी होती है। दूसरी तरफ अगर उनकी निजी जिंदगी की बात की जाए तो वो भी कष्टप्रद हो चुकी है। अस्पताल से घर आने के बाद उन्हें अपने परिवार की सुरक्षा की चिंता बनी रहती है इसलिए, अधिकांश घर में भी स्वयं को आयसोलेट कर लेते हैं। एक तो कम का दबाब दूसरा बीमारी होने का भय, एकाकी जीवन शैली एवं परिवार की सुरक्षा की चिंता उन्हें अवसाद में पहुंचा दे रही है।

सर्वविदित है कि, कुछ डॉक्टर्स ने अवसाद में ख़ुदकुशी तक कर ली। अगर ये दौर कुछ समय के लिए ही रहता तो संभव था कि ये संख्या घटती भी लेकिन जिस तरह से कोरोना का कहर रूप बदल बदल कर सामने आ रहा है उनके लिए एकाकी जीवन जीना ज्यादा आवश्यक हो गया है। इसलिये यह दिखता है कि डॉक्टर्स कि निजी एवं व्यावसायिक जीवन दोनों में स्थिति पीड़ादायक बनी हुई है। परंतु, इन समस्याओं से जूझते हुए भी अगर वो अपने सेवा धर्म के प्रति पूर्ण समर्पित रहे हैं तो ये इंसानियत के प्रति उनकी भावना और प्रेम को ही दिखाता है।

कुछ लोगों द्वारा अस्पताल या डॉक्टर्स के साथ दुर्व्यवहार एवं मार-पीट तक की घटनाएँ सामने आई हैं भले ही वे अपने किसी संबंधी की मौत से आहत हो आवेश में कर बैठते हैं पर यह कृत्य अत्यंत निंदनीय है। कुछ जगह से ऐसी खबरें भी मिली कि कोरोना काल में डॉक्टर्स को किराए के मकान लेने में परेशानी आ गयी थी। कई जगह तो उनका घर तक खाली करवा लिया गया। जो दूसरों कि ज़िंदगी को बचाने के लिए अपनी जिंदगी खतरे में डालते हैं उनकी निजी जिंदगी को कुछ लोग अपनी जिंदगी की सुरक्षा के लिए असुरक्षित कर दे रहे हैं ऐसी भी स्थिति देखने को मिली।

जिस तरह समाज के सभी लोग अच्छे ही नहीं हो सकते वैसे ही सारे डॉक्टर्स भी अच्छे ही हों ये आवश्यक नहीं क्योंकि वे भी इसी समाज आते हैं। इस आपात स्थिति का लाभ “आपदा में अवसर” की तलाश करते हुए मरीजों से मनमाना पैसा भी वसूल करने में कुछ अस्पताल प्रबंधन दिखे जो मानवता की हत्या के समान है। जैसे समाज के कुछ गलत लोग पूरे समाज का प्रतिनिधित्व नहीं करते उसी तरह कुछ गलत डॉक्टर्स के अनुचित क्रियाकलाप के कारण पूरी डॉक्टर्स बिरादरी को उतरदायी नहीं ठहराया जा सकता। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि इस कठिन परिस्थिति में जिस तरह डॉक्टर्स ने देश को कम संसाधन के बावजूद जितना संभाला वह अतुलनीय है। इस दौरान सरकार कि कमियाँ भी सामने आई जब पर्याप्त मात्रा में मेडिकल उपकरण की अनुपलब्धता, उचित अधिसंरचना का अभाव दिखा, तब कई डॉक्टर बेबस होकर अपने मरीजों की जन बचाने के लिए सरकार, स्वयंसेवी संस्थाओं एवं अपने अन्य परिचितों से मदद की गुहार लगते भी दिखे जो उनकी संवेदनशीलता का परिचायक है।

सारत:, यह बीता दौर हमें ये सबक दे गया कि, भविष्य में सरकार द्वारा अच्छी तैयारी डॉक्टर की संख्या में बढ़ोत्तरी एवं उनकी राज्यवार अनुपात को ठीक करना, मेडिकल उपकरण की पर्याप्त व्यवस्था, बेहतर अधिसंरचना के विकास से डॉक्टर्स के काम के बोझ को कुछ कम किया जाए। साथ ही, समाज की तरफ से उन्हें न सिर्फ सामाजिक एवं भावनात्मक सहयोग दिया जाए बल्कि, उनके सेवा-धर्म से प्रेरित होते हुए उनके प्रति संवेदना और कृतज्ञता भी प्रदर्शित की जाय।