दोहा शांति वार्ता और बाइडेन प्रशासन


अफगानिस्तान के राष्ट्रपति तालिबान के तमाम दावे को नकार कर रहे है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा है कि अफगानिस्तान में कोई अंतरिम और इस्लामिक सरकार नहीं बनेगी। उनकी सरकार अफगानिस्तान के संविधान के अनुसार चुनाव होने के बाद ही नई सरकार को कार्यभार सौंपेंगे।


संजीव पांडेय संजीव पांडेय
मत-विमत Updated On :

अफगानिस्तान शांति वार्ता कतर की राजधानी दोहा में जारी है। लेकिन इस बीच घटे कुछ घटनाक्रम महत्वपूर्ण हैं। तालिबान का प्रतिनिधिमंडल ईऱान पहुंचा है। उधऱ अमेरिका ने संकेत दिए हैं कि अमेरिकी फौजों की अफगानिस्तान से वापसी मई तक नहीं हो पाएगी। यही नहीं दोहा में चल रहे शांति वार्ता में अमेरिकी प्रशासन फिलहाल कोई खास रूचि नहीं दिखा रहा है।

इधर अशऱफ घनी ने साफ कहा है कि अफगानिस्तान में अंतरिम इस्लामिक सरकार कोई सवाल नहीं पैदा होता है। अफगानिस्तान के संविधान के अनुसार चुनी हुई सरकार को ही अफगानिस्तान में सत्ता मिलेगी।

ये संकेत यह बताने के लिए काफी है कि फिलहाल दोहा शांति वार्ता का कोई परिणाम नहीं आने वाला है। बेशक बीते सितंबर से अफगानिस्तान सरकार और तालिबान के प्रतिनिधि आपस में बात कर रहे हैं।

दिलचस्प बात है कि एक तरफ दोहा में अफगान सरकार के प्रतिनिधिमंडल और तालिबान के बीच शांति वार्ता चल रही है, और अभी तक शांति वार्ता का कोई परिणाम नहीं निकला है। लेकिन तालिबान का एक प्रतिनिधिमंडल इस बीच ईरान गया, वहां की सरकार से बातचीत की।

तालिबान प्रतिनिधिमंडल का ईरान जाना काफी महत्वपूर्ण घटना है। क्योंकि ईऱान जहां अफगानिस्तान में अपनी पूरी घुसपैठ रखता है, वहीं पूरे क्षेत्र में अमेरिका विरोधी मोर्चेबंदी का प्रतिनिधित्व करता है।

तेहरान में ही तालिबानी प्रतिनिधिमंडल ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर कहा कि अमेरिका और तालिबान के बीच हुए शांति समझौते के मुताबिक अफगानिस्तान में वर्तमान अशरफ घनी की सरकार को हटाया जाएगा और उसकी जगह इस्लामिक सरकार जगह लेगी।

दिलचस्प बात है कि दोनों गुटों के बीच बातचीत दोहा में चल रही है। हल कुछ नहीं निकला है। लेकिन तालिबान ने ईऱान की राजधानी तेहरान पहुंच अफगानिस्तान में इस्लामिक सरकार बनाए जाने की घोषणा की है। ये घटनाक्रम साफ बताता है कि ईऱान खुलकर अफगानिस्तान के मामले में अपनी दखलदांजी दे रहा है।

अफगानिस्तान के राष्ट्रपति तालिबान के तमाम दावे को नकार कर रहे है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा है कि अफगानिस्तान में कोई अंतरिम और इस्लामिक सरकार नहीं बनेगी। उनकी सरकार अफगानिस्तान के संविधान के अनुसार चुनाव होने के बाद ही नई सरकार को कार्यभार सौंपेंगे।

बीच में अंतरिम सरकार का कोई मतलब ही नहीं बनता है। दोहा में शांति वार्ता के बीच दोनों तरफ से सरकार को लेकर टकराव साफ बता रहे है कि अफगानिस्तान शांत वार्ता अधऱ में लटक जाएगा।

हाल ही में अमेरिका में सत्ता में आए जो बाइडेन प्रशासन का रवैया इस शांति वार्ता को लेकर काफी ठंडा है। जो बाइडेन प्रशासन ने साफ संकेत दिए है कि अफगानिस्तान में मई के बाद भी अमेरिकी फौजौं की मौजूदगी रहेगी। जो बाइडेन प्रशासन का रवैया डोनाल्ड त्रंप प्रशासन से बिल्कुल अलग है।

ट्रंप प्रशासन ने साफ कहा था कि मई 2021 तक अफगानिस्तान से सारी अमेरिकी फौजों की वापसी हो जाएगी। जनवरी 2021 तक अफगानिस्तान में अमेरिकी फौजों की संख्या 2500 तक करने के आदेश ट्रंप प्रशासन ने दिया था।

बताया जाता है कि जो बाइडेन प्रशासन अफगानिस्तान शांति वार्ता के लिए अमेरिका की तरफ से नामित विशेष अमेरिकी दूत जलमॉय खलीलजाद की भूमिका से खुश नहीं है।

जो बाइडेन प्रशासन का मानना है कि ट्रंप के इशारे पर जलमॉय खलीलजाद अशरफ घनी की चुनी हुई अफगान सरकार को पूरी तरह से नजरअंदाज कर तालिबान के साथ शांति वार्ता को अंजाम दिया। अशरफ घनी से जरूरी सलाह तक खलीलजाद ने नहीं ली।

जल्दीबाजी में शांति समझौते को अंजाम खलीलजाद ने दिया। जलमॉय खलीलजाद की भूमिका से अशरफ घनी सरकार खासी नाराज रही है।

ट्रंप के समय विदेश सचिव रहे माइक पौम्पियों किसी भी कीमत पर जल्दीबाजी में समझौते को अंजाम तक पहुंचने का खेल कर रहे थे। जो बाइडेन प्रशासन की सोच है कि जलमॉय खलीलजाद ने तालिबान से शांति वार्ता के वक्त अफगान सरकार को पूरी तरह से नजरअंदाज कर अफगानिस्तान मे नई समस्या खड़ी की है।