
अमेरिका में एक अश्वेत की हत्या के बाद पूरे अमेरिका में उबाल है। पूरी दुनिया में चर्चा इस बात की है कि आखिर दुनिया भर में मानवाधिकारों का ठेकेदार देश में बीच सड़क पर एक अश्वेत की हत्या पुलिस कर रही है। हालांकि हत्या के लिए जिम्मेवार पुलिस अधिकारी और उसके सहयोगी कानून के शिकंजे में है। लेकिन सवाल अमेरिकी न्यायिक व्यवस्था पर भी है। सवाल अमेरिकी प्रशासन पर कई है। दुनिया यह सवाल अमेरिका से पूछने की हिम्मत नहीं करती। सवाल यह भी है कि आखिर विकास और विज्ञान का अगुआ अमेरिका का शासक तानाशाहों की तरह क्यों बात कर रहा है? शायद ट्रंप को लगता है कि गोरा-काला विवाद उन्हें चुनाव जीता देगा। गोरे अमेरिकी आबादी के लगभग 60 प्रतिशत है। कोविड-19 से अमेरिका के हुए नुकसान के कारण ट्रंप का ग्राफ काफी तेजी से नीचे गिरा है। ट्रंप शायद नस्ली माहौल में चुनाव जीतना चाहते है। ट्रंप अपना ट्रंप कार्ड चल चुके है। हालांकि यह कार्ड उन्हें उल्टा भी पड़ सकता है।
दक्षिण एशिया के देश को इस समय खुश होने के लिए यही घटना काफी कुछ है। चीन भी इस घटना के बाद खुश है। आखिर खुश भी क्यों न हो। यही अमेरिका मानवाधिकारों के नाम पर रिपोर्ट जारी करता है। यही अमेरिका मानवाधिकारों के नाम पर विकासशील देशों की ग्रांट को रोक देता है। यही अमेरिका मानवाधिकारों के नाम पर वीजा जारी करने से मना कर देता है। 21 वीं सदी के अमेरिका में दक्षिण एशियाई के पिछड़े देशों की तरह जातीए, नस्ली भेदभाव है? कम से भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, ईऱान समेत पश्तिम एशिया के तमाम देशों को खुश होना चाहिए। क्योंकि इन देशों को अमेरिका लगातार बैड कैरेक्टर और गुड कैरेक्टर सर्टिफिकेट बांटता रहा है।
आज एक अश्वेत की मौत ने अमेरिकी समाज और शासन की पोल खोल दी है। नस्ली भेदभाव यहां है। धार्मिक भेदभाव यहां है। तभी तो फ्लॉयड की हत्या ने अमेरिका को गृह युद की स्थिति में पहुंचा दिया है। डोनाल्ड ट्रंप खुद घोर नस्लवादी ब्यान दे रहे है। अब अमेरिका पाकिस्तान को जातीय औऱ धार्मिक हिंसा पर अगर एडवाइजरी जारी करेगा तो पाकिस्तान भी सवाल उठा सकता है। चीन भी खुश है। हालांकि इस बात से इंकार नहीं कर सकते है, चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, भारत जैसे मुल्कों में नस्ली, धार्मिक उत्पीड़न है। मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन यहां होता रहा है।
अमेरिकी पुलिस और न्यायिक व्यवस्था की पोल खुल रही है। अश्वेतों से लंबे समय से घोर भेदभाव होता रहा है। अमेरिकन सिविल वार इसका उदाहरण है। तमाम संवैधानिक रिफार्म के बाद भी अफ्रीकन अमेरिकन वहां दोयम दर्जे के नागरिक बने रहे। पुलिस और न्याय व्यवस्था वहां की भेदभाव करती रही है। इसके लिए जिम्मेवार अमेरिकी पूंजीवादी व्यवस्था भी जो गोरों के कंट्रोल में है। इस व्यवस्था ने अश्वेतों को बेसिक राइटस से दूर रखा।
अमेरिका में काले सबसे कम वेतन पर काम करने वाले श्रमिक है। अस्पतालों में उन्हें जल्दी समय नहीं मिलता। गंदी बस्तियों में रहने के लिए वो मजबूर है। साफ हवा में वे नहीं जी सकते है। सबसे ज्दा बीमारियां उन्हें होती है। गरीब होने के कारण उन्हें इंश्योरेंस कवर लेने की क्षमता नहीं होती। वैसे में गंभीर बीमारियों से वो मरते है। लेकिन वे कर भी क्या सकते है। अमेरिका में वे महज 13 प्रतिशत है। उनका वोट शायद ही महत्वपूर्ण है। रिपलब्लिकन भी उन्हें नजर अंदाज करते रहे। डेमोक्रेट भी उनके पक्ष में सिर्फ भाषण देते है। वोट लेने के लिए। जमीन पर उनकी मदद नहीं होती। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है।
एक अश्वेत बराक ओबामा अमेरिका का राष्ट्रपति रहा। उसके जमाने में हजारों अश्वेतों को पुलिस मुठभेड़ में मारा गया। ओबामा के कार्यकाल में गोरे के मुकाबले दोगुने काले पुलिस मुठभेड़ में मारे गए। अब इसे क्या कहेंगे? 2014 में बराक ओबामा के कार्यकाल में सड़क पर दो अश्वेत को मामूली अपराध मे पुलिस ने जान से मार दिया। इसे अब क्या कहेंगे? ओबामा की क्या मजबूरी थी? वे अश्वेत होकर भी अश्वेतों के हितों की रक्षा नहीं कर पाए? क्या अमेरिका में नस्लवादी लोग सिस्टम में इतने मजबूत है कि ओबामा की उनके सामने नहीं चली?
अमेरिकी न्यायिक व्यवस्था नस्लवादी है। पुलिस का नस्लवादी चेहरा तो लंबे समय से दिख रहा है। अमेरिका में 2014 से अबतक जितने अश्वेत अमेरिकन पुलिस ज्यादती के शिकार हुए उन्हें न्याय नहीं मिला। अमेरिका की आबादी में अश्वेतों की हिस्सेदारी महज 13 प्रतिशत है। लेकिन 2013 से 2019 तक पुलिस कार्रवाई में में 7677 अश्वेत मारे गए। श्वेत लोगों के मुकाबले अश्वेत पुलिस कार्रवाई में ढाई गुणा ज्यादा मारे गए। अमेरिकी जेलों में कुल बंद कैदियो में 38 प्रतिशत अश्वेत है।
अब अमेरिकी न्यायिक व्यवस्था का भी हाल देखे। 2014 में पुलिस के हाथों मौत के शिकार हुए एरिक गार्नर और माइकल ब्राउन को न्याय नहीं मिला। इनके साथ अमेरिकन न्यायिक व्यवस्था ने भेदभाव किया। एऱिक गार्नर का मामला दिलचस्प है। न्यूयार्क में बीच सड़क पर गार्नर की हत्या एक पुलिस अधिकारी ने कर दी। लेकिन हत्या के जिम्म्मेवार पुलिस अधिकारी डेनियल पेटालियो को न्यूयार्क की ग्रैंड ज्यूरी ने बेकसूर बताया। फर्गुसन में अश्वेत अमेरिकन माइकल ब्राउन को गोली मारने की घटना को भी ले। गोली मारने के लिए जिम्मेवार पुलिस अधिकारी डैटन वेल्सन का पक्ष ग्रैंड ज्यूरी ने लिया। वेल्सन पर मुकदमा ही नहीं चला। न्यायिक व्यवस्था के इस रवैये के बाद अब शंका है अश्वेत ब्रेओना टेलर औऱ जार्ज फ्लॉयड की हत्या के जिम्मेवार पुलिस अधिकारियों को सजा मिलेगी।
अश्वेतों को छोटे-मोटे अपराधों के लिए पुलिस मौत की सजा अमेरिका में दे देती है। अफ्रीकी अमेरिकन पर अक्सर थर्ड डिग्री का इस्तेमाल करती है। इसे एरिक गार्नर और माइकल ब्राउन की घटना से समझा जा सकता है। एरिक गार्नर पर न्यूयार्क में बिना टैक्स चुकाए हुए सिगरेट बेचने का जुर्म था। उसे मात्र इस आरोप में ही न्यूयार्क में पुलिस ने जमीन पऱ फेंका और उसकी मौत हो गई। फर्गुसन में अश्वेत माइकल ब्राउन पर मामूली चोरी का आरोप था। उसे गोली मार दी गई।
केंटुकी में महिला स्वास्थ्य कर्मी ब्रेओना टेलर पर मादक द्रव्य रखने का आरोप था। पुलिस ने उसे गोली मार दी। टेलर की मौत के बाद पुलिस ने टेलर की घर की तलाशी ली। कोई मादक द्रव्य नहीं मिला। पुलिस ने फिर अपने बचाव में कहा कि ब्रेओना टेलर के पुरुष मित्र ने पुलिस पर गोली चलायी। उसके जवाब में पुलिस की चलायी गई गोली से ब्रेओना टेलर मारी गई। अब जार्ज फ्लॉयड की घटना को ले। जार्ज फ्लायड पर नकली डालर देकर सिगरेट लेने का आरोप था। डालर का नकली होना तो जांच का विषय है। लेकिन उससे पहले पुलिस ने फ्लॉयड को सड़क पर गिरा लिया। उसकी गर्दन दबा दी। वो मर गया।
अब अश्वेत पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा रो रहे है। कहते है 2020 के अमेरिका में नस्लवादी सोच तेजी से बढ़ रही है। बतौर ओबामा सड़कों पर अश्वेत अमेरिकनों को नस्ल के आधार पर धमकाया जा रहा है। न्यूयार्क के सेंट्रल पार्क में एक अश्वेत को गोरी महिला ने धमकाया। अश्वेत को पार्क छोडकर जाने को कहा। जब वो नहीं माना तो उसे पुलिस बुलाने की धमकी दी गई। अश्वेतों के साथ सैर और जॉगिंग के दौरान नस्लवादी व्यवहार किया जा रहा है। अमेरिका मे कुछ इस तरह का माहौल बनाया जा रहा है कि काले नस्ल वाले पार्क में बैठ कर चीड़िया भी नहीं देख सकते है। समुद्र किनारे जॉगिंग नहीं कर सकते।
अमेरिकी स्वास्थ्य व्यवस्था में अश्वेतों के साथ होने वाला भेदभाव देखने वाला है। कोविड-19 में सबसे ज्यादा मौत अश्वेतों की हुई है। एक अध्ययन के मुताबिक कोविड-19 के कारण अश्वेत अमेरिकन की मौत एशियन अमेरिकन, लैटिनों अमेरिकन और गोरे अमेरिकनों के मुकाबले दोगुना है। अश्वेत अमेरिकन के मुकाबले गोरे अमेरिकन, एशियाई अमेरिकन औऱ लैटिन अमेरिकन की मौत कम है। इसका कारण अश्वेतों की खराब आर्थिक स्थिति है। वे मलिन बस्तियों में रहते है। वे स्वस्थ हवा नहीं ले पाते है। अश्वेतों की खराब आर्थिक स्थिति है। बीमा कवर का आभाव है। कोविड-19 के इलाज में अमेरिका में 35 से 40 हजार डालर तक का न्यूनतम खर्च आ रहा है। जिनके पास बीमा कवर नहीं है वे इलाज करवाने से ही कतरा रहे है। इसका सबसे ज्यादा शिकार अश्वेत हुए है।