कोरोना वायरस से उपजा आर्थिक संकट


किसान सहायता निधि और अन्य नकद भुगतान स्कीमों की किश्तें जल्दी ही सरकार जारी करेगी। भारत में भविष्य निधि पीएफ का संग्रह करीब 11 लाख करोड़ रूपये का है, इससे एडवांस लेने की छूट और छोटी कंपनियों में नियोक्ताओं के अंशदान को तीन माह तक टाला जा सकता है जिससे उन्हें मदद मिलेगी। वित मंत्री निर्मला सीतारमन ने भी कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए तमाम नियमों और कानूनों में नरमी बरती जाने का भी ऐलान किया है।



कोरोना वायरस से आज समूचा विश्व त्रस्त है। देश का हर एक नागरिक इस संकट से किसी न किसी रूप में जूझ रहा है। यह सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक परिदृश्य के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। जिसे पहले अन्य बीमारियों की तरह एक मामूली वायरल संक्रमण समझने की भूल आम जनता करती रही लेकिन शीघ्र ही इस वायरस ने असमय कई लोगों की जान लेकर अपना विकराल रूप पूरी दुनिया को दिखा दिया। आज हम सभी लॉकडाडन के चलते अपने-अपने घरों में कैद हैं। पहले 21 दिन का लॉकडाउन और फिर इसकी अवधि निरंतर बढ़ती ही जा रही है। कोरोना संक्रमण के मामलों में लगातार इजाफा हो रहा है। भारत ही नहीं पूरे विश्व में यह परिस्थिति बनी हुई है। इस बीमारी से बचने का एक मात्र तरीका सोशल डिस्टेंसिंग यानी कि ‘सामाजिक दूरी’ बनाए रखने का यह तरीका सभी देशों द्वारा अपनाया गया है। 

पहली बार किसी बीमारी से बचने के लिए देश में धारा-144 लगाई गई है और जिसका सख्ती से पालन भी किया गया है। कुछ जरूरी सेवाओं को छोड़कर कल-कारखाने, दुकानें, होटल, टूरिज्म, बिजनेस और कंपनियों में ताले लग गए हैं। मेहनतकश मजदूरों और गरीब जनता जो एक दिन की दिहाड़ी पर निर्भर रहती है उसके लिए रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। मजदूर और गरीब शहर से गांव की ओर बडी संख्या में पलायन कर गए हैं। इस पलायन को रोकने के लिए सरकार ने भले ही राहत पैकेज का ऐलान किया हो तथा उनके खाने-पीने का इतंजाम भी किया हो मगर बिना रोजगार के कितने दिन गुजारा चलेगा यह एक बडा सवाल है।ऐसी नाजुक स्थिति में बेरोजगारी भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने एक बड़ी चुनौती है। 

कोरोना महामारी जैसे इस वैश्विक संकट ने भारत ही नहीं पूरी विश्व की अर्थव्यवस्था को हिला कर रख दिया है। भारत पहले से ही बेरोजगारी से जूझ रहा था इस बीच लॉकडाउन के चलते बेरोजगारी की दर में तीन गुना वृद्धि हुई है। लॉकडाउन शुरू होने के बाद से अब तक लगभग 1.4 करोड़ लोगों की नौकरी जा चुकी है। अमेरिका जैसी मजबूत अर्थव्यवस्था की खामियां भी पूरे विश्व के सामने उजागर हो गई है जहां मार्च के अंत में लॉकडाउन के बाद 66 लाख कामगारों ने बेरोजगारी भत्ते के लिए आवेदन किया है।

भारत भले ही एक कृषि प्रधान देश है मगर औद्योगिक क्रांति ने यहां एक ऐसे मध्यम वर्ग को जन्म दिया जो उच्च और निम्न वर्ग के बीच स्थित है। भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के पीछे इस मध्यम वर्ग का बहुत बडा़ योगदान है। आर्थिक संकट के समय सबसे अधिक प्रभावित यह मध्यम वर्ग ही होता है। इस वर्ग को सरकार द्वारा जारी राहत पैकेज का लाभ भी नहीं मिल पाता। ऐसी स्थिति में यह निम्न आय वर्ग की श्रेणी में आ जाता है। आईएमएफ की रिपोर्ट के अनुसार भारत का मध्यम वर्ग सिकुड़ रहा है। जो एक चिन्ताजनक स्थिति है चूंकि एक विकाशील अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में इस मध्यम वर्ग का बड़ा हाथ होता है।

ऐसे मौके पर जब विश्व की तमाम देशों ने कोरोना संकट से लड़ने के लिए आर्थिक पैकेजों की घोषणा की है, भारत ने भी कमजोर और असंगठित क्षेत्र के लोग जो आर्थिक संकट से जूझ रहें हैं उनके लिए 1.7 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की है। मगर मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर जो मांग के साथ-साथ आपूर्ति आधारित संकट का सामना कर रहा है उसके लिए अभी किसी तरह के पैकेज का ऐलान सरकार ने नहीं किया है। इस क्षेत्र को पुनः सुचारू रूप से चलाने के लिए बडे़ आर्थिक पैकेज की आवश्यकता पडे़गी।

विश्व बैंक के अनुसार वित्तीय वर्ष 2019-20 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर मात्र 5 प्रतिशत रह जाएगी और 2020-21 में भारी गिरावट के साथ यह दर 2.8 प्रतिशत तक रह जाएगी। भारतीय अर्थव्यवस्था की गति पहले से ही धीमी थी कोरोना संकट ने आर्थिक वृद्धि दर की रफ्तार और धीमी कर दी है। लॉकडाडन के चलते देश में फैक्ट्री, ऑफिस, मॉल्स और बाजार तक बंद हैं, घरेलू आपूर्ति और मांग में कमी आई है जिसके चलते आर्थिक वृद्धि दर भी प्रभावित हुई है।

अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संगठन के अनुसार कोरोना वायरस सिर्फ एक वैश्विक स्वास्थ्य संकट नहीं है यह एक बड़ा आर्थिक संकट बन गया है। जिसने आमजन की जीवनशैली को पूरी तरह बदल दिया है। विश्व बैंक ने चेतावनी दी है कि भारत ही नहीं बल्कि समूचे दक्षिण एशिया को स्थानीय स्तर पर अस्थायी रोजगार सृजन कार्यक्रमों पर ध्यान देना होगा अन्यथा गरीबी उन्मूलन जैसे कार्यक्रम से मिले फायदे भी गंवाने पड़ सकते हैं।

आर्थिक रिसर्च थिंक टैंक (सी.एम.आई.ई) के अनुसार अप्रैल के तीसरे सप्ताह में देश में बरोजगारी की दर 26 फीसदी पहुंच चुकी है, अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संगठन (आईएलओ) का कहना है कि यदि इस प्रकार नौकरियां जाती रही तो भारत के असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की स्थिति और दयनीय हो जाएगी। यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बडा संकट है चूंकि देश को 50 प्रतिशत जीडीपी इसी क्षेत्र से प्राप्त होती है।

इस बीच देश में दैनिक आमदनी पर निर्भर करने वाले प्रवासी मजदूर जिनकी संख्या 4 करोड से भी अधिक है भारी संख्या में पलायन करने के लिए विवश है। इस पलायन को रोकने के लिए यदि जल्द राज्य और केन्द्र सरकार द्वारा प्रभावी कदम नहीं उठाये गए तो भविष्य में कंपनियों को अपना उत्पादन कार्य शुरू करने लिए कुशल मजदूर नहीं मिल पाएंगे। जिससे अर्थव्यवस्था की प्रगति धीमी हो जाएगी।

सरकार ने 1.7 लाख करोड़ रूपये के राहत पैकेज के ऐलान के साथ ही एमएसएमई सेक्टर को 20 करोड़ की मदद तथा मनरेगा में 4,431 करोड़ रूपये देने का वायदा किया है। सरकार ऐसे एमएसएमई को ‘टर्नअराउंड कैपिटल’ देगी जो कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद अपने कारोबार को पुनः नये शिरे से शुरू करेंगे।

किसान सहायता निधि और अन्य नकद भुगतान स्कीमों की किश्तें जल्दी ही सरकार जारी करेगी। भारत में भविष्य निधि पीएफ का संग्रह करीब 11 लाख करोड़ रूपये का है, इससे एडवांस लेने की छूट और छोटी कंपनियों में नियोक्ताओं के अंशदान को तीन माह तक टाला जा सकता है जिससे उन्हें मदद मिलेगी। वित मंत्री निर्मला सीतारमन ने भी कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए तमाम नियमों और कानूनों में नरमी बरती जाने का भी ऐलान किया है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना स्कीम के अंतर्गत सभी कोरोना मेडिकल वारियर के लिए 50 लाख रूपये का इंश्योरेंस भी दिया जाएगा। इस बीच रिजर्व बैंक ने भी सभी कर्जों पर तीन माह तक किश्तों का भुगतान टालने को कहा है।  

इस बीच देश की अर्थव्यवस्था कैसी रहेगी यह इस बात पर निर्भर करता है कि आनेवाले दिनों में कोरोना पर काबू पाने में हम कितने सफल रहते हैं। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्था आईएमएफ ने बिगड़ती हुई अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया है। इस टास्क फोर्स में आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन भी शामिल है। भारत को चाहिए कि देश की आर्थिक स्थिति को पटरी पर लाने के लिए भारत में भी प्रतिभाशाली अर्थशास्त्रीयों की एक कमेटी बनाई जाए जो भारतीय चुनौतियों के अनुसार देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए चरणबद्ध तरीके से नीतिगत समाधान सरकार के सामने प्रस्तुत कर सकें।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत में लॉकडाउन लागू करने के लिए नरेन्द्र मोदी सरकार की तारीफ की है। यहां तक की भारत में कोरोना को लेकर उठाए गए कदम की सराहना पूरी दूनिया में हो रही है। अमेरिका भारत रणनीतिक एवं साझेदारी मंच (यूएसआईएसपीएफ) के अध्यक्ष ने भी पीटीआई से हुई बातचीत में प्रधानमंत्री मोदी के लिए गए फैसले की सराहना की है। उन्होंने कहा कि इस चुनौतीपूर्ण समय को भारत एक अवसर में बदल सकता है। चूंकि वह एक आकर्षक बाजार भी है। बंद की इस घोषणा से दुनिया में यह संदेश गया है कि भारत अपने नीति निर्धारण में खुला और पारदर्शी है। ऐसे में भविष्य में निवेश की स्थितियां बनी रहेगी।

राजनैतिक परिदृश्य की यदि बात करें तो राजनैतिक विशेषको का यह मानना है कि आनेवाले समय में राष्ट्रवाद और अधिक सशक्त होगा चूंकि कोरोना महामारी से लड़ने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों के लिए आने वाला समय बेहद मुश्किल का होगा। भारत बहुत जल्दी इस महामारी से उबर जाएगा, इस वक्त पूरी दुनिया की निगाहें भारत पर टीकी है।