एक सपने को साकार करने के लिए आजीवन संघर्ष करने वाले सी.राजेश्वर राव


सी.राजेश्वर राव का जन्म आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िला में एक बड़े किसान परिवार में 6जून,1914को हुआ था। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई और फिर वे अंग्रेज़ी दासता के खिलाफ आज़ादी की लड़ाई में शामिल हो गए। अनेक वर्षों तक जेल में रहे और भारत की आज़ादी के बाद भी एक नए भारत के निर्माण के लिये जिसमें कोई भूखा,नंगा व बेकार नहीं होगा, संघर्ष किया।



राम मोहन राय 

आज ख्यातिप्राप्त कम्युनिस्ट लीडर, प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी,चिंतक व लेखक सी.राजेश्वर राव की पुण्यतिथि है। उनका जन्म आन्ध्र प्रदेश (वर्तमान तेलंगाना) के कृष्णा ज़िला में एक बड़े किसान परिवार में  6 जून, 1914 को हुआ था। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई और फिर वे अंग्रेज़ी दासता के खिलाफ आज़ादी की लड़ाई में शामिल हो गए। अनेक वर्षों तक जेल में रहे और भारत की आज़ादी के बाद भी एक नए भारत के निर्माण के लिये जिसमें कोई भूखा, नंगा व बेकार नहीं होगा, संघर्ष किया। 

तेलंगाना में किसानों के सशस्त्र संघर्ष जो उनकी ही बिरादरी व वर्ग के अन्याय के खिलाफ था, उसका नेतृत्व किया। और बाद में कम्युनिस्ट पार्टी के एक होल टाइमर कार्यकर्ता बन कर पार्टी के शीर्षस्थ नेतृत्व में शामिल हुए। इस दौरान उन्हें अजय घोष, एस ए डांगे, भूपेश गुप्त, एजी अधिकारी, समर मुखर्जी, इंद्रजीत गुप्त जैसे महान चिंतकों व प्रखर नेताओ के साथ काम करने का सौभाग्य मिला। वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के 22 वर्षों तक लगातार महासचिव रहे। इस दौरान उन्होंने तमाम उतार-चढ़ाव का सामना किया। इमरजेंसी का समर्थन भी किया और बाद में उसके दुष्परिणाम आने पर विरोध भी। उनके समय में ही उन्होंने भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन के निर्माताओं में से एक एसए डांगे को ही पार्टी से निष्कासित करने का निर्णय भी सुनाया। खैर, इस पोस्ट में मैं उनकी जीवनी न कह कर अपनी बात ही रखना चाहूंगा। क्योंकि उनके निर्णयों की समीक्षा करने में मैं एक उचित व्यक्ति नही हूं।

सन 1974 में आर्य सीनियर सेकंडरी स्कूल, पानीपत से बारहवीं पास कर मैंने साथ लगते आर्य कॉलेज में प्रवेश लिया। कारण यह भी था कि आर्य समाज की पृष्ठभूमि थी और इसलिये आर्य संस्थाओं के प्रति आकर्षण था। माता-पिता कांग्रेस के पक्के समर्थक और इंदिरा जी के प्रबल हामी। उस समय देश में जय प्रकाश नारायण का इंदिरा सरकार विरोधी आंदोलन चल रहा था। जेपी का नारा सम्पूर्ण क्रांति का था। उनके समर्थक लोग नारे लगते ‘सम्पूर्ण क्रांति का नारा है, भावी भविष्य हमारा है’। 

युवा आंदोलन व नेतृत्व की वजह से हम भी स्वयं को उनसे प्रभावित होते दिखते। हमने अपने ऐसे ही जिज्ञासा पूर्ण प्रश्नों को अपने गुरु दीपचंद निर्मोही, जो आर्य स्कूल में हिंदी के अध्यापक थे तथा जिन्हें मैं प्रारम्भ से ही अपना आदर्श मानता हूं, उनके समक्ष रखा। उन्होंने मेरे प्रश्नों का उत्तर देते हुए क्रांति की पूरी विचारधारा एवम प्रक्रिया को रखा और मैं उनकी ही प्रेरणा से आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन की तरफ मुड़ा। घर वालों को इस पर कोई आपत्ति इस वजह से भी नहीं थी क्योंकि एआईएसएफ तथा उसकी मूल पार्टी सीपीआई उस समय के इंदिरा विरोधी आंदोलन में इंदिरा जी के साथ थी।

आर्य समाजी-कांग्रेसी पारिवारिक वातावरण ने स्कूल में ही मुझे आगे बढ़ने के अनेक अवसर प्राप्त हुए। भाषण, वाद विवाद प्रतियोगिता में भाग लेकर विजयी होने पर पुरस्कृत भी हुए। निर्मोही जी के प्रोत्साहन पर अब मैं धीरे-धीरे रटन्त भाषण से मुक्त हो रहा था। अब धीरे-धीरे प्रगतिशील विचारधारा की ओर अग्रसर भी। कॉलेज में इन सब बातों का लाभ मिला और मैं जल्दी ही अपने सहपाठियों के बीच लोकप्रिय होने लगा। 

इसी दौरान अन्य छात्र नेताओं विजय सपरा व बलबीर भसीन से मेरा परिचय गुरु जी के माध्यम से ही हुआ। ये दोनों स्टूडेंट्स फेडरेशन के स्थानीय नेता थे। मेरे जैसे कुशल वक्ता को पाकर ये साथी अत्यंत प्रसन्न हुए और इन्होंने मुझे आगे बढ़ने के लिये प्रोत्साहित किया। सीपीआई के जिला सचिव कामरेड रघुवीर सिंह बहुत ही संजीदा इंसान थे। उनका भी मेरे प्रति बहुत स्नेह रहा। अन्य कारणों के अतिरिक्त एक कारण यह भी था कि वे अपने स्कूल समय में मेरे पिता के विद्यार्थी रहे थे। स्थानीय नेता रामदत्ता, बलवंत सिंह,सूरत सिंह,रणबीर मलिक आदि सभी मेरे परिवार के प्रति स्नेही थे। उनका मानना था कि मैं पार्टी का एक उदयमान नेता हो सकता हूं। उन्हीं दिनों दिल्ली के सीपीआई मुख्यालय अजय भवन में छात्रों का एक वैचारिक स्कूल लगा था। हरियाणा से नरेन्द्र सुखन,बलबीर भसीन उसमे पहले ही भेजे जा चुके थे।  

तीन जून,1975 का दिन था, कामरेड रघुवीर सिंह हमारे घर सुबह-सुबह आये और उन्होंने कहा कि उन्हें आज ही दिल्ली अजय भवन में एक महीने के लिये जाना है। मेरे माता-पिता ऐसे किसी भी जगह जाने में आड़े नही आते थे पर फिर भी मैने गुरु जी निर्मोही जी से आज्ञा लेनी मुनासिब समझा और उनसे बात कर मैं दिल्ली की बस में बैठ कर दोपहर तक बहादुर शाह जफर मार्ग पर स्थित अजय भवन पहुंच गया। 

मैं उस समय शरीर से पतला-दुबला था और शर्मिला भी। अजय भवन पहुंचते ही मुझे रिसेप्शन पर अनिल राजिमवाले मिलने आये और उन्होंने हाथ मिलाने के लिये हाथ बढ़ाया। मेरे संस्कारो में अपने से बड़े लोगों के चरण स्पर्श की परंपरा थी अतः मैंने सहमते हुए अपना हाथ बढ़ाया। अपने से बड़े किसी भी व्यक्ति से हाथ मिलाने का यह शुभारंभ था। जो अब भी लगता है कि उनका हाथ आज भी मेरे साथ है। उसी स्कूल में हमारे साथ सीपीआई की वर्तमान सचिव अमरजीत कौर, गुजरात से एसवाई अयाची जैसे अनेक युवा थे।

उसी दौरान अजय भवन स्कूल में एसए डांगे, डॉ एजी अधिकारी व उनकी पत्नी, बाबा सोहन सिंह जोश, मोहित सेन, भूपेश गुप्त, इंद्रजीत गुप्त, रमेश चंद्रा,एबी वर्द्धन, रुस्तम जी, गिरीश मिश्र आदि नेताओं से न केवल मिलने का अपितु उनकी आत्मीयता प्राप्त करने का भी अवसर मिला। इसी दौरान कामरेड राजेश्वर राव, जो   पार्टी के महासचिव थे, हमारे स्कूल में एक क्लास लेने के लिये पधारे। एक विशालकाय व्यक्तित्व, चेहरा अनुपम ऊर्जा व तेज से परिपूर्ण, जो बरबस ही हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता था। सभी के परिचय के दौरान कामरेड अनिल राजिमवाले ने मेरे परिचय में उन्हें बताया कि मैं एक आर्य समाजी-कांग्रेसी स्वतन्त्रता सेनानी परिवार से हूं तो वे बेहद प्रसन्न हुए और गर्मजोशी से हाथ मिलाया। अब मुझे भी बड़ों से हाथ मिलाने का अभ्यास हो गया था।

जेपी आंदोलन अपने उभार पर था। अजय भवन के नजदीक ही एक तरफ कुछ ही दूरी पर रामलीला मैदान था और दूसरी तरफ गांधी शांति प्रतिष्ठान था। रामलीला मैदान की एक विशाल जनसभा में हमने 23 जून की शाम  को जयप्रकाश नारायण के मुखारविंद से वह सुना जब उन्होंने पत्रकारों के जवाब में कहा था कि “यदि आरएसएस फ़ासिस्ट है तो वे भी फ़ासिस्ट है।” और उसी रात एमरजेंसी की घोषणा हो गयी और उसी रात को जीपीएफ से जेपी गिरफ्तार हो गए। अजय भवन रहते हुए हम सब उन लमहों के गवाह थे। उसी दिन कामरेड राजेश्वर राव का बयान आपातकाल के समर्थन में उसी समय जारी किया गया जिसके शब्द आज भी कंठस्थ है ‘आपातकाल की घोषणा और प्रतिगामी व प्रतिक्रियावादी ताकतों पर पूर्वगामी प्रहार से प्रगतिशील एवम प्रतिक्रियावादी ताकतों का संघर्ष नए दौर में पहुंच गया है।’

अजय भवन स्कूल समाप्त होने के बाद हम पानीपत आकर अपनी पढ़ाई के साथ -साथ छात्रों के मुद्दों पर संघर्ष करते रहे। लॉ करते हुए भी यही क्रम जारी रहा। स्टूडेंट्स फेडरेशन के काम के साथ-साथ मजदूरों और वह भी खेत मजदूरों के काम से जुड़े। जेल भी गए, पुलिस की पिटाई भी खाई परन्तु हार नही मानी। वकालत पास कर अब अपने शहर पानीपत में वकालत के साथ पार्टी का काम भी करते। हमारे आदर्श भूपेश गुप्त व राजेश्वर राव ही थे। मन मे प्रबल इच्छा थी कि घर-गृहस्थी न बनाए और होल टाइमर बन कर पार्टी का ही काम करे। परन्तु ऐसा न हो सका। अपनी पसंद से एक राजनीतिक परिवार में विवाह हुआ।

इसी दौरान कामरेड सी राजेश्वर राव जो कि अखिल भारतीय खेत मजदूर यूनियन के अध्यक्ष भी थे,यूनियन की जनरल कॉउन्सिल की मीटिंग के लिये पानीपत आये। पता चला कि वे दिल्ली से पानीपत रोडवेज़ की एक बस  से आ रहे हैं। उन्हें लेने की जिम्मेदारी मुझे दी गयी। मैं नियत समय पर बस अड्डे पर पहुंच गया। तभी मैने देखा कि बस के सकरे दरवाजे से कामरेड राव अपना बिस्तरबंद लिए बड़े मुश्किल से फंस-फंसा कर उतर रहे हैं। मैंने जाकर उनका स्वागत किया। उनके हाथ से उनका बिस्तरबंद व एक छोटी अटैची लेने की कोशिश की पर वे न माने। तब मैंने एक रिक्शा भगतसिंह स्मारक (सीपीआई, हरियाणा का मुख्यालय) के लिये ली। उनके विशालकाय शरीर के लिये रिक्शा छोटा था पर वे उसकी सीट पर बहुत ही मुश्किल से धंसे। मैं पीछे बैठा और हम अपने गन्तव्य स्थल पर आ गये। मैं पूरे रास्ते सोचता रहा कि यह कोई साधारण व्यक्ति तो हैं नहीं परन्तु इनकी सादगी व सरलता कितनी महान है। कामरेड राजेश्वर राव का कोई भी लक्षण आधुनिक नेताओं वाला नही था। वे एक गर्म पैंट के नीचे पैरों में चप्पल पहने थे और ऊपर एक मामूली स्वेटर। उनकी सादगी अद्भुत व अनुकरणीय थी।

उसी दिन शाम को किला ग्राउंड पर एक जनसभा में उनका सम्बोधन था। मैं व मेरी पत्नी दोनों उस जलसे में गए। मैं मंच संचालक था अतः कामरेड राव के साथ बैठने का मुझे अवसर मिलना ही था। पर उस समय भी उन्हें मेरा परिचय याद था जो कई वर्ष पहले अनिल राजिमवाले ने उन्हें दिया था।

इमरजेंसी के दौर में सीपीआई व कांग्रेस का गठजोड़ खूब अच्छा चला। इंदिरा गांधी जी के 20 सूत्रीय कार्यक्रम को लागू करवाने में पार्टी की भूमिका अग्रणी थी, पर तभी एक सुनियोजित षडयंत्र के तहत संजय गांधी एवम उनकी चांडाल चौकड़ी का उदय हुआ। उन्होंने इंदिरा जी के 20 सूत्रीय कार्यक्रम के समानांतर 5 सूत्री कार्यक्रम प्रस्तुत किया और फिर परिवार नियोजन, स्वच्छता के नाम पर अनेक भवनों व सड़कों का विध्वंस तथा सीपीआई के चरित्र हनन का अभियान शुरू हो गया। 

इमरजेंसी के खात्मे के साथ-साथ ही न केवल कांग्रेस सरकार का पतन हुआ वहीं कांग्रेस-सीपीआई गठजोड़ की भी समाप्ति हो गयी। पार्टी की भठिंडा कांग्रेस ने इस सम्बन्ध के खात्मे पर मोहर लगा दी। हम लोग कामरेड एसए डांगे, मोहित सेन की कार्यनीति एकता व संघर्ष  के समर्थक थे। इन नेताओं के पार्टी के निष्कासित होने के बाद धीरे-धीरे हम भी सक्रिय न रह पाए। अंततः हम लोगों को भी पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। तब हम लोगों की प्रतिक्रिया थी कि पार्टी ने हमें निष्कासित किया है, हमने तो पार्टी को नहीं किया।

कामरेड राजेश्वर राव जैसे नेताओं के बारे में सोच कर भी मन सिहर उठता है कि कैसे थे वे लोग और अब वे कहां चले गए। कामरेड सी राजेश्वर राव को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि।

(राम मोहन राय वरिष्ठ अधिवक्ता,आर्य समाज के नेता हैं और पानीपत में रहते हैं।)