बिहार में चुनाव: सुशासन बनाम परिवारवाद


तेजस्वी और तेज प्रताप दोनों ही विधायक हैं,उनकी बड़ी बहन राज्यसभा की सदस्य हैं और उनकी मां विधान परिषद् सदस्य हैं। ऐसे में उनकी पार्टी पर परिवारवाद के पोषण का आरोप लगाना स्वाभाविक भी है। इसके अलावा जब बिहार में राबडी देवी मुख्यमंत्री हुआ करती थीं तब किस तरह उनके पति सरपंच पति की तरह मुख्यमंत्री पति के रूप में शासन की कमान थामे रखते थे।



केंद्र और बिहार सरकार की गतिविधियों को देख कर यह अंदाज लगाना अब कोई मुश्किल काम नहीं रह गया है कि यदि स्थितियां सामान्य रहीं तो बिहार विधानसभा के इस साल के अंत (नवम्बर महीने) में होने वाले चुनाव नियत समय पर ही होंगे। राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी एचआर श्रीनिवास ने अपने इस कथन से भी इसकी पुष्टि की है। उनके ही शब्दों में कहें तो, “मतदान केंद्रों पर वोटरों की सुरक्षा के मद्देनजर कुछ प्रस्ताव भेजे गए हैं। उद्देश्य है कि मतदाता बूथ पर किसी भी वस्तु के संपर्क में न आ सके। इसके लिए तमाम एहतियाती विकल्पों पर विचार किया जा रहा है।”  

बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी के इस कथन से यह तथ्य भी उजागर होता है कि न केवल सरकार और चुनाव आयोग बल्कि राज्य के सभी राजनीतिक दल भी विधान सभा के चुनाव तय समय पर ही करवाए जाने के हिमायती हैं। बिहार विधानसभा के चुनाव आयोजित करवाना चुनाव आयोग के लिए एक बड़ी चुनौती इसलिए भी है।

राज्य के एक लाख छह हजार बूथों पर सात करोड़ से अधिक मतदाताओं से कोरोना संकट के इस दौर में वोट डलवाना एक बड़ा काम है। नियत समय पर बिहार विधानसभा के चुनाव होने का मतलब यह भी है कि कोरोना वायरस के चलते इस साल मार्च के अंतिम सप्ताह में लागू किये गए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन और उसके बाद कई चरणों में शुरू की गई अनलॉक की प्रक्रिया के बाद देश में पहली बार आम चुनाव का आयोजन हो सकेगा।

इस दौरान राज्य सभा और कई राज्यों की विधान परिषदों की रिक्त सीटों के लिए तो द्विवार्षिक और उप चुनाव की प्रक्रिया तो जरूर हुई लेकिन वो चुनाव इतने व्यापक स्तर पर नहीं होते जितने किसी विधानसभा के लिए चुनाव होता है। चुनाव के सन्दर्भ में पिछले दिनों आयोजित एक गई सर्वदलीय बैठक में सभी पार्टियों का उत्साह भी देखने लायक था। एक तरफ जहां सत्ता पक्ष ने एक या दो चरणों में चुनाव कराने का सुझाव दिया तो विपक्ष ने घर-घर जाकर जनसंपर्क करने की अनुमति देने का आग्रह किया। भारतीय जनता पार्टी ने तो मतदाता सूची से आधार कार्ड को लिंक करने के विकल्प पर भी विचार करने का अनुरोध किया है।

कुल मिला कर स्थिति यह है कि बिहार विधान सभा के चुनाव के लिए सभी पक्ष पूरी तरह तैयार हैं और चिराग पासवान जैसे एकाध अपवाद को छोड़ कर सभी पक्ष तय समय पर चुनाव कराने  के पक्ष धर हैं। अपनी-अपनी तैयारियों के बीच किसी भी पक्ष को यह जानने में बिलकुल भी दिलचस्पी नहीं है कि राज्य के जिन सात करोड़ से अधिक मतदाताओं को इस चुनाव में वोट देकर नई सरकार के गठन का फैसला करना है, वो आखिर इस बारे में क्या सोचता है। राजनीतिक दल और गठबंधन चुनाव की तारीखों की घोषणा का इन्तजार कर रहे हैं। सत्तारूढ़ राजद के भाजपा और जद (यू) सरीखे तमाम घटकों के साथ ही प्रतिपक्षी संप्रग के राजद और कांग्रेस समेत सभी घटक दल और उनके नेता अपने-अपने गठबन्धनों के राजनीतिक समीकरणों का गुना भाग करने में व्यस्त हैं। चुनाव की दृष्टि से दोनों ही गठबंधन पहले की तरह सहज नहीं दिखाई दे रहे हैं। सत्तारूढ़ गठबंधन की अपनी अलग तरह की दिक्कतें हैं तो विपक्षी संप्रग में भी उतार चढ़ाव का सिलसिला जारी है।

इस बार एक फर्क इस रूप में देखा जा सकता है राजग और संप्रग के लोजपा और राजद के चिराग पासवान और तेजस्वी यादव सरीखे युवा नेता कुछ नई सोच के साथ चुनावी समर का सामना करना चाहते हैं। जहां चिराग ने अपनी इस नई सोच का यह कहते हुए इजहार किया है कि कोरोना संकट के चलते बिहार विधान सभा के चुनाव कुछ और समय के लिए टाले जा सकते हैं, वहीँ तेजस्वी यादव ने यह स्वीकार किया है कि उनके पिता लालू प्रसाद यादव के समय से चली आ रही जातिवादी राजनीतिक परंपरा का अब अंत होना चाहिए।

इन दोनों युवा नेताओं के कथनों का विरोधी खेमा यह अभिप्राय भी निकाल रहा है कि अपनी- अपनी दलगत कमजोरियों के चलते चिराग और तेजस्वी को इस तरह के बयान देने पर विवश होना पड़ा है। पर जैसा भी हो, एक निश्चित किस्म का बदलाव तो इस बार के बिहार विधान सभा चुनाव में देखने को मिलेगा ही। समय के सन्दर्भ में इस बदलाव को सकारात्मक तरीके से लिया जाना चाहिए। 

बिहार चुनाव को लेकर कशमकश दोनों ही घटक दलों में है। अब देखना यह है कि तेजस्वी यादव की साफगोई और नीतीश कुमार की कमजोरियों में जनता किसे पसंद और किसे नापसंद करती है। जनता की पसंद नापसंद इस बार इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गई है क्योंकि अब नीतीश कुमार भी लालू की कमज़ोरीयों को अपने साथ मिलाकर जनता के बीच अपनी ही अच्छी छवि को ख़ुद ही दागदार बनाने से परहेज नहीं कर रहे हैं। बताते हैं कि लालू प्रसाद यादव के मुख् मंत्री काल में जिस तरह दागदार बाहुबली नेता अपराध कर जिस तरह सीधे मुख्यमंत्री आवास पहुंच जाया करते थे कुछ इसी तरह के अंदाज में अब नीतीश के बाहुबली भी नीतीश के दीवाने आम से दीवानेखास तक पहुंच जाते हैं। 

इसके विपरीत तेजस्वी अपने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ मिल कर नीतीश को चुनौती देते हुए दिखाई देते हैं। तेजस्वी पर परिवारवाद को बढ़ावा देने का आरोप घेरे हुए है तो नीतीश की दागदार छवि उनके सुशासन मंत्र पर हावी होती दिखाई दे रही है। तेजस्वी और उनके बड़े भाई तेज प्रताप दोनों ही विधायक हैं,  उनकी बड़ी बहन राज्यसभा की सदस्य हैं और उनकी मां विधान परिषद् सदस्य हैं। ऐसे में उनकी पार्टी पर परिवारवाद के पोषण का आरोप लगाना स्वाभाविक भी है’।  इसके अलावा एक सत्य यह भी है कि बिहार के लोग आज भी ये बात नहीं भूले हैं कि जब बिहार में राबडी देवी मुख्यमंत्री हुआ करती थीं तब किस तरह उनके पति सरपंच पति की तरह मुख्यमंत्री पति के रूप में शासन की कमान थामे रखते थे। सरकार लालू यादव चलाते थे। उसी सरकार में राबड़ी देवी के दो भाई साधु और सुभाष की सक्रियता और उनकी बदनामी की वजह से राजद को बहुत बड़ा नुक्सान उठाना पड़ा था जिसकी भरपाई आज तक नहीं हो सकी है।