हम ईश्वर से प्रार्थना करते है कि कोरोना की तीसरी लहर नही आये और यह सिर्फ एक अफवाह बन कर सामने आए। पहली-दूसरी लहर में भारत समेत दुनियाभर में लाखों लोगों ने अपनी जान गवाई है। ऐसे अनेक लोग है जो ठीक होने के बाद भी इसके आफ्टर एफ्फेक्ट्स के कारण अभी तक जीवन- मृत्यु की शैय्या पर पड़े है। हजारों बच्चे है जिन्होंने अपने माता-पिता दोनों को ही खोया है और अनेक परिवार ऐसे है जिनके कमाऊ सदस्य खत्म हो गए है। अरबों रुपये का व्यापार खत्म हुआ है। लाखों लोग बेरोजगार हुए है। यह ऐसी स्थिति है जो अत्यंत भयावह है जिसकी कल्पना से भी डर लगता है।
यदि हम, हमारे परिवार के सभी सदस्य, रिश्तेदार, मित्र व शुभचिंतक इस दौर में सुरक्षित बचे है तो यह उस परमात्मा की ही अत्यंत कृपा है। आपने सभी सुरक्षा प्रदान करने वाले नियमों का पालन किया होगा तभी यह सम्भव हो सका वरना हालात हमारे सामने है। क्या अच्छे अस्पताल, शानदार चिकित्सा व्यवस्था,ऑक्सीजन व बेड्स की उपलब्धता सभी को बचाने के लिए काफी है।
मेरे संज्ञान में अनेक ऐसे निकटष्ठ परिचित परिवार है जो विदेशों में रोगग्रस्त हुए उन्हें शानदार चिकित्सा सेवा मिली। लाखों नही करोड़ से भी ऊपर रुपये खर्च हुए पर उनके सदस्य बच न सके। तो फिर हम भारत के अस्पतालों की स्थिति व अपनी धन पूंजी के बलबूते जीवित रहने की उम्मीद कैसे कर सकते है ?
कई लोग कहते है कि यह शहरों की बीमारी है और उन लोगों को लगती है जो मेहनत नहीं करते। वे तो देहात में रहते है। पूरा दिन मेहनत मशक्कत करते है। पशुओं विशेष कर गौ माता की सेवा में रहते है फिर उन्हें कैसी बीमारी? आओ अपने आस-पास का सर्वे करें कि पिछले 6 महीने में एक गांव में बुखार होने पर कितने लोग मरे है? हमें जानना होगा कि कोरोना होने पर हर मरीज मरता नहीं है।
अधिकांश मामलों में वह घरेलू उपचार से भी बच जाता है पर जो फंस गया वह मुश्किल ही बचता है और बचने के बाद भी अधमरा। तो क्या वैक्सीनशन करवाने से हम बिल्कुल सुरक्षित रहेंगे। क्या कोरोना होगा ही नहीं ? वैक्सीनशन कोई अमृत का टीका नही है कि इसके लगवाने से कुछ नही होगा। पर इतना जरूर है कि वैक्सीनेट होने पर बीमारी के चांस कम होंगे और यदि हुई तो इससे बचने के चांस ज्यादा होंगे। दूसरे शब्दों में वैक्सीन लिए हुए दस करोड़ लोगों में से एक-आध।
सम्पन्न लोगों की समझ की बीमार होने पर वे अच्छे से अच्छे अस्पताल में भर्ती हो सकते है, गरीब लोगों की नियति तो मरना तो है ही फिर चाहे बीमारी के हालात में या फिर भूखे रह कर और सरकार की स्थिति कि वैक्सीनशन की कमी,यह तीनों बातों ने आम जन को एक अंधे तिराहे पर खड़ा कर दिया है। अंधविश्वास ,पोंगापंथी व कठमुल्लापन हमारे विश्वास को लगातार डगमगाने का काम कर रहा है।
विज्ञान सम्मत हर वह पैथी जो उपचार में सहायक हो उसका स्वागत है ,परन्तु अपने को श्रेष्ठ बता कर दूसरे की आलोचना ठीक नही है। अब सुनने में आ रहा है कि एक नए वैरिएंट ने दस्तक दे दी है। ऐसे में बहुत ही सचेत व जागरूक होने की जरूरत है। हम काम भी करेंगे पर ध्यान भी रखेंगे। हम पढ़ेंगे पर नियमों का पालन कर, हम व्यवसाय करेंगे पर कर्मचारियों का ध्यान रख कर। पर्यटन भी एक व्यवसाय है, वह भी करेंगे पर भीड़ बढ़ा कर नहीं।
(राममोहन राय सामाजिक कार्यकर्ता और सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता हैं।)