बफरजोन के बहाने : चीन की मंशा को समझने की जरुरत


पूर्वी लद्दाख के गलवान और हॉट स्प्रिंग एरिया समेत कई सैन्य इलाकों से तो चीनी सेना हट गई है लेकिन यहां के गेपोंग क्षेत्र में अभी भी तरह से छंटा नहीं है। गेपोंग एरिया में चीन फिंगर-4 के पास है यहां दोनों देशों के सैनिक एक दूसरे के आमने-सामने ही डटे हुए हैं। इस क्षेत्र से पीछे हटने के लिए चीन ने भारत के सामने एक शर्त रख दी है कि दोनों देश अपने-अपने क्षेत्रों में दो से तीन किलोमीटर क्षेत्रफल का एक बफरजोन बनाएं।



सामरिक सन्दर्भ में “बफरजोन” नामक एक शब्द का बहुतायत के साथ उपयोग किया जाता है। बफरजोन दो देशों की सीमाओं के बीच के एक ऐसे स्थान को कहा जाता है जिसमें किसी भी देश की सेना तैनात नहीं होती। दोनों देशों की सेनायें बफरजोन के बाद अपने-अपने कब्जे वाले क्षेत्रों में ही तैनात होती हैं और इसका फैसला दोनों देशों के बीच आपसी सहमति से ही बनता है। चीन के साथ चल रहे मौजूदा तनाव के सिलसिले में इस शब्द का दो स्थानों पर दो सन्दर्भों में इस्तेमाल हुआ है। 

ख़बरों के मुताबिक पूर्वी लद्दाख के गलवान और हॉट स्प्रिंग एरिया समेत कई सैन्य इलाकों से तो चीनी सेना हट गई है लेकिन यहां के गेपोंग क्षेत्र में अभी भी तरह से छंटा नहीं है। गेपोंग एरिया में चीन फिंगर-4 के पास है यहां दोनों देशों के सैनिक एक दूसरे के आमने-सामने ही डटे हुए हैं। इस क्षेत्र से पीछे हटने के लिए चीन ने भारत के सामने एक शर्त रख दी है कि दोनों देश अपने-अपने क्षेत्रों में दो से तीन किलोमीटर क्षेत्रफल का एक बफरजोन बनाएं। और दोनों देशों के सैनिक इस बफरजोन के बाद ही तैनात किये जाएं। 

भारत को चीन की यह शर्त मंजूर नहीं है इसलिए चीन के सैनिक वहीं डटे हैं। गेपोंग एरिया को छोड़ कर पूर्वी लद्दाख के अन्य सभी विवादित क्षेत्रों में बफरजोन बनाने में किसी पक्ष को कोई आपत्ति नहीं हुई लेकिन न जाने क्या हुआ कि गेपोंग इलाके में चीन के बफरजोन का प्रस्ताव भारत को पसंद नहीं आया और बात आगे नहीं बढ़ी। दोनों पक्ष सीमा पर शान्ति बनाने के प्रयास कर रहे हैं और उम्मीद की जानी चाहिए कि जल्दी ही कोई रास्ता निकल ही आएगा।

भारत, पाकिस्तान और चीन के सन्दर्भ में बात करें तो बफरजोन की यह सियासत नई नहीं है सिर्फ स्थान और पाले बदले हैं। याद हो कि जब सोवियत संघ का ज़माना था तब दुनिया में अमेरिका के साथ ही सोवियत संघ को भी दूसरा शक्ति केंद्र माना जाता था। पूरी दुनिया इन्हीं दो ध्रुवों में बंटी हुई थी। चीन के रिश्ते सोवियत संघ से भी अच्छे नहीं थे लेकिन वह अमेरिका के खेमे में तब भी नहीं था और भारत को कभी भी अमेरिका के खेमे का देश नहीं माना गया क्योंकि भारत ने दोनों शक्ति केन्द्रों से बराबर की दूरी बनाए रखने के क्रम में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन को बढ़ावा देना ज्यादा जरूरी समझा था।

इन हालात में अमेरिका ने भारत को कभी अपना नहीं माना और भारत के खिलाफ पाकिस्तान को हर तरह की मदद देना अपना लक्ष्य बना लिया था। उधर चीन के साथ भी भारत के रिश्ते अच्छे नहीं थे इसलिए अमेरिका ने पाकिस्तान के हमदर्द के रूप में चीन को भी परोक्ष रूप से मदद देना शुरू कर दिया था। अमेरिका सोवियत संघ को तहस-नहस कर देना चाहता था और इसके लिए भारत को चारों तरफ से घेर लेने की रणनीति भी उसने बनाई थी। इसी रणनीति के तहत कभी अमेरिका ने भारत के समुद्री क्षेत्र में अपना सातवां बेडा भेज दिया था तो कभी कुछ और किया।

इसी रणनीति के तहत अमेरिका भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य के किसी ऐसे सामरिक क्षेत्र में बफरजोन बनाने की कवायद कर रहा था जहां से अमेरिका भारत को नियंत्रण में रखने के साथ ही चीन पर भी नजर रख सके और पाकिस्तान को पूरी तरह अपने कब्जे में कर सके। सात के दशक में भारत को लेकर इस तरह की कोई भी कोशिश कामयाब नहीं हो सकी क्योंकि तब भारत किसी देश का अनुयायी नहीं बल्कि गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का निर्विवाद नेतृत्व कर रहा था। बफरजोन के बहाने भारत से पाकिस्तान-चीन और एशिया महाद्वीप के कई देशों पर नजर रखने की इस योजना को डिक्सन प्लान कहा गया था क्योंकि इसके योजनाकार डिक्सन थे। ये डिक्सन एक समय अमेरिका की विदेश मंत्री रह चुकी कोंडालिसा राइस के पिता थे।

अब स्थितियां बदली हुई हैं भारत और अमेरिका एक दूसरे के बहुत करीब हैं। ऐसे में चीन को शायद ऐसा लगता हो कि मौके का फायदा उठा कर अमेरिका कहीं अपने उस दशकों पुराने प्लान को लागू करने का मन न बना ले। इसलिए वो भारत और चीन के ऐसे सीमा क्षेत्रों को भी बफरजोन के नाम पर विवाद में दाल देना चाहता है ताकि वहां पर न कभी मध्यस्थता हो सके और न ही दुनिया की किसी अन्य ताकत को वहां तक प्रसार करने की जरूरत ही हो सके।

ऐसा इसलिए भी महसूस किया जा रहा है क्योंकि मौजूदा सन्दर्भ में भी कुछ लोगों का यह कहना है कि अब पाकिस्तान भी उतनी मुस्तैदी से चीन के साथ नहीं है जिस मुस्तैदी के साथ वो पहले चीन के साथ था। पाकिस्तान किसी भी कीमत पर अमेरिका का साथ नहीं छोड़ सकता और अमरिका ने खुले आम यह कह दिया है कि अगर चीन ने भारत के खिलाफ किसी भी तरह के आक्रामक तेवर दिखाए तो अमेरिका भारत का ही साथ देगा। अमेरिका यह कह कर साफ़ सन्देश देना चाहता है कि आज की तारीख में जो चीन का दोस्त है वो उसका दुश्मन है। अमेरिका का यह सन्देश पाकिस्तान को डराने के लिए पर्याप्त है इसलिए भारत- चीन के मौजूदा विवाद में पाकिस्तान ने चीन का साथ न देना ही उचित समझा। 

यही वजह है कि भारत से तनातनी और कोरोना संकट के कारण ड्रैगन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पूरी दुनिया की नजर में खटकने भी लगा है इसीलिए बीच का रास्ता निकालते हुए उसने कुछ इलाकों से तो अपने सैनिक वापस बुला लिए लेकिन गेपोंग क्षेत्र को बफरजोन के नाम पर लटका दिया। पाकिस्तान को भी इस वक़्त चीन का साथ इसलिए छोड़ना पड़ा क्योंकि उसके नेताओं को लगता है कि अगर पाकिस्तान ने चीन का साथ देना जारी रखा तो उसे भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अलगाववाद का शिकार होना पड़ सकता है।