नूंह की हिंसा के पांच अर्धसत्य: हिन्दू श्रद्धालुओं पर सुनियोजित हमला?


इस घटना के बारे में आए अनेक वीडियो और प्रमाण भी देखता रहा हूं, मीडिया और निहित स्वार्थों द्वारा फैलाए प्रोपेगंडा को भी सुनता रहा हूं। कुल मिलाकर देश के सामने अद्र्धसत्य से भरी एक भ्रामक छवि बनाई जा रही है जो राष्ट्रीय एकता के लिए घातक है।


योगेन्द्र यादव
मत-विमत Updated On :

31 जुलाई की शाम को नूंह से इन खबरों को देख कर मेरी चिंता का ठिकाना नहीं था। पिछले 22 वर्ष से हरियाणा के मेवात इलाके से मेरा लगाव रहा है। अगले ही दिन 1 अगस्त को मैं देश के सबसे पिछड़े जिले के मुख्यालय नूंह पहुंचा। वहां डी.सी. और एस.पी. को मिला, घटनास्थल पर गया, हिंसा के शिकार कुछ व्यक्तियों को मिला और कई चश्मदीद गवाहों से बात की।

इस घटना के बारे में आए अनेक वीडियो और प्रमाण भी देखता रहा हूं, मीडिया और निहित स्वार्थों द्वारा फैलाए प्रोपेगंडा को भी सुनता रहा हूं। कुल मिलाकर देश के सामने अद्र्धसत्य से भरी एक भ्रामक छवि बनाई जा रही है जो राष्ट्रीय एकता के लिए घातक है। इसलिए इस घटना और इसके संदर्भ का पूरा सच देश के सामने रखना जरूरी है।

अर्धसत्य 1 : ‘‘यह मुस्लिम दंगाइयों द्वारा सुनियोजित हमला था’’ : यह सच है कि पत्थरबाजी और हिंसा की शुरूआत मुस्लिम भीड़ द्वारा की गई। यह भी सच है कि इस मुस्लिम बहुसंख्यक इलाके में अल्पसंख्यक हिंदुओं की सुरक्षा की नैतिक जिम्मेवारी मुस्लिम समाज की है लेकिन अपराधी की शिनाख्त करने वाले इस कथन में कई झूठ छुपे हैं।

पहला, यह कथन चंद मुस्लिम गुंडों के कुकृत्य की जिम्मेवारी पूरे मुस्लिम समाज पर डालता है। अगर इसे मान लें तो क्या गुडग़ांव में मस्जिद पर हमले और उसके मौलवी की हत्या की जिम्मेवारी पूरे हिंदू समाज पर डाली जा सकती है?

दूसरा, इसमें शक नहीं कि इतनी बड़ी हिंसा बिना किसी तैयारी के हो नहीं सकती, लेकिन इसमें किसी संगठन का हाथ होने का कोई प्रमाण नहीं है। तीसरा, यह इस सच को छुपाता है कि अगर हमला शुरू करने वाले कुछ मुसलमान थे तो हमले से नूंह के मैजिस्ट्रेट, भादस गांव के गुरुकुल और बडकली चौक के हिंदू दुकानदारों को बचाने वाले भी मुसलमान ही थे।

अर्धसत्य 2 : ‘‘इस हिंसा के शिकार एक धार्मिक यात्रा में शामिल हिंदू श्रद्धालु थे।’’ इस हिंसा के शिकार की पहचान करने वाले इस कथन में भी अद्र्धसत्य है। यह सच है कि नलहड़ के शिव मंदिर की परंपरा के अनुसार इस यात्रा में महिलाओं और बच्चों सहित अनेक श्रद्धालु शामिल थे।

जाहिर है वह कोई दंगा-फसाद करने नहीं आए थे। यह भी सच है कि शुरूआती हिंसा का शिकार हुए अधिकांश हिंदू थे लेकिन सच यह है कि इस जलाभिषेक शोभा यात्रा में साधारण श्रद्धालुओं के साथ-साथ बड़ी संख्या में हथियारबंद हुड़दंगी भी शामिल थे जो किसी धार्मिक नीयत से नहीं बल्कि दंगा भड़काने की नीयत से और दंगे फसाद की तैयारी के साथ आए थे। हिंसा और प्रतिहिंसा का श्रद्धालुओं से संबंध नहीं था। यात्रा में शामिल किसी महिला से कोई छेडख़ानी या दुव्र्यवहार की कोई घटना नहीं हुई, इसकी पुष्टि राज्य की ए.डी.जी.पी. ममता सिंह ने की है। हिंसा से बचने के लिए मंदिर में जमा हुए यात्रियों को घेर कर उन पर सुनियोजित हमले की बात भी सही नहीं है। मंदिर के पुजारी ने स्वयं इसका खंडन किया है।

अर्धसत्य 3 : ‘‘दो समुदायों के बीच साम्प्रदायिक हिंसा हुई।’’ यह जरूर है कि इस लड़ाई में एक तरफ हिंदू थे और दूसरी तरफ मुसलमान, लेकिन यह दोनों समुदायों के बीच संघर्ष नहीं था। अगर एक तरफ मुस्लिम दंगाई थे, तो दूसरी तरफ हिन्दू हुड़दंगी। 31 तारीख से लेकर आज तक मेवात में कहीं से भी पूर्वोत्तर दिल्ली जैसी स्थानीय हिंदू और मुसलमान समुदाय में हिंसा या झड़प की कोई घटना नहीं हुई है।

अर्धसत्य 4 : ‘‘अचानक भड़के इस दंगे के सामने पुलिस और प्रशासन बेबस हो गया।’’ सच यह है कि 31 जुलाई को भड़की हिंसा में कुछ भी अचानक नहीं हुआ। इस जलाभिषेक यात्रा में 2 साल पहले भी मजार तोडऩे की घटना हो चुकी थी। 25 और 26 जुलाई तक मोनू मानेसर और बिट्टू बजरंगी के भड़काऊ वीडियो चल रहे थे, खुफिया रिपोर्ट आ चुकी थी। 27 जुलाई को स्थानीय शांति समिति की बैठक में यह वीडियो पुलिस प्रशासन के आला अफसरों को दिखाए जा चुके थे। फिर भी अगर इस यात्रा में डेढ़ सौ से अधिक वाहनों को आने दिया जाता है, यात्रा के बीच चल रहे हुड़दंगइयों को रोका नहीं जाता, उन्हें डंडे, तलवार और बंदूक लेकर चलने दिया जाता है तो स्पष्ट है कि या तो पुलिस और प्रशासन की आपराधिक लापरवाही थी या फिर उसने जान-बूझकर इसे होने दिया।

अर्धसत्य 5 : ‘‘स्थानीय स्तर पर जो भी गफलत हुई हो, राज्य सरकार ने सख्त कार्रवाई कर अब शांति स्थापित कर दी है।’’ ऊपर से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है, लेकिन सच यह है कि इस अशांति की जड़ में राज्य की भाजपा सरकार थी और अब वहां शांति की बजाय दीर्घकालिक अशांति के बीज बोए जा रहे हैं। यह संदेह होना स्वाभाविक है कि किसान आंदोलन से झटका खाई हरियाणा की भाजपा ने नूंह की चिंगारी का इस्तेमाल अपने चुनावी चूल्हे को जलाने के लिए किया है।

अशांति की पूरी आशंका के बावजूद दंगे को होने देना राज्य सरकार के इशारे के बिना संभव नहीं था। हरियाणा में चौथी बार (हिसार, पंचकूला, झज्जर और नूंह) है कि हिंसा होते ही पुलिस गायब हो गई है। इस हिंसा के बाद राज्य के दूसरे इलाकों में मुसलमानों की सुरक्षा के लिए राज्य सरकार ने प्रभावी कदम नहीं उठाए जिसके कारण हजारों गरीब मुसलमानों को रातों-रात पलायन करना पड़ा।

हिंसा में शामिल अपराधियों की शिनाख्त करने की बजाय बेतरतीब धरपकड़ की गई। और फिर कानून को ताक पर रख नूंह में बुल्डोजर राज चला और कोई 200 से 300 तक मकानों और दुकानों को अतिक्रमण के नाम पर तोड़ दिया गया। आखिर हाईकोर्ट ने इसे रोका। यह सब शांति स्थापित करने की बजाय एक पक्ष की तरफ से दूसरे पक्ष पर बदला लेने की कार्रवाई जैसा दिखता है। इतिहास गवाह है कि ऐसी आग में सिर्फ एक पक्ष नहीं जलता। अन्याय और दमन से कभी शांति स्थापित नहीं होती, उससे दीर्घकाल में असंतोष, अलगाववाद और उग्रवाद पनपता है।

(योगेन्द्र यादव राजनीतिक कार्यकर्ता और चुनाव विश्लेषक हैं।)