गवलान, दार्जिलिंग और थिम्पू


भारत ने हमेशा ही अपने पड़ोसी देशों को मजबूत बनाने की नीति का अनुसरण किया है और इसी नीति का पालन करते हुए भारत ने नेपाल, भूटान, श्रीलंका, मालदीव समेत अपने सभी पड़ोसी देशों की हर संभव मदद भी की है। ऐसे में जब भारत हर पड़ोसी देश की मदद करने के लिए आगे आ रहा हो तब पड़ोसी देश को भी संकट की घड़ी में भारत का साथ देने के लिए आगे आना चाहिए। लेकिन हो इसका उल्टा रहा है।



विगत मंगलवार 30 जून को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा राष्ट्र का नाम संदेश देने से पहले यह उम्मीद जताई जा रही थी कि कोरोना अनलॉक की जानकारी देने के साथ ही चीन की ताजा गतिविधियों, भारत के पड़ोसी देशों में बिछाए गए उसके जाल के सम्बन्ध में भी राष्ट्र को महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करायेंगे। प्रधानमंत्री से देश ने इस आशय की उम्मीद इसलिए भी लगाईं थी क्योंकि चीन जिस तरह भारत के पड़ोसी देशों को एक साजिश के तहत भारत के विरोध में खड़ा करने की लगातार कोशिश कर रहा है वो भारत के लिए दीर्घकालीन खतरा बन सकता है और इस खतरे की जानकारी देश के लोगों को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को भी होनी  चाहिए।

दुनिया को यह भी पता होना चाहिए कि भारत ने हमेशा ही अपने पड़ोसी देशों को मजबूत बनाने की नीति का अनुसरण किया है और इसी नीति का पालन करते हुए भारत ने नेपाल, भूटान, श्रीलंका, मालदीव समेत अपने सभी पड़ोसी देशों की हर संभव मदद भी की है। ऐसे में जब भारत हर पड़ोसी देश की मदद करने के लिए आगे आ रहा हो तब पड़ोसी देश को भी संकट की घड़ी में भारत का साथ देने के लिए आगे आना चाहिए। लेकिन हो इसका उल्टा रहा है। भारत की मदद करने के बजाय ये पड़ोसी जिनकी भारत हमेशा मदद ही करता रहा है, परोक्ष रूप से उसके खिलाफ ही खड़े दिखाई देने लगे हैं। 

ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि चीन भारत के इन पड़ोसी देशों को गुमराह कर रहा है और भारत के खिलाफ खड़ा कर रहा है। चीन की ये नापाक हरकतें पूरी दुनिया को पता होनी चाहिए इसलिए यह उम्मीद की जा रही थी कि प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में इसका उल्लेख करेंगे। पर ऐसा नहीं हो सका इसकी कुछ जरूरी वजह भी हो सकती हैं लेकिन लोगों को यह पता होना चाहिए नेपाल के बाद भूटान ने भारत का पानी बंद करने की हिम्मत भी कैसे की जबकि भारत ने तो 1949 से ही भूटान को अपने एक छोटे भाई की तरह विकास के हर काम में मदद करनी शुरू कर दी थी।

भारत की आज़ादी के बाद 8 अगस्त, 1949 को भारत और भूटान के बीच दार्जिलिंग में एक संधि पर हस्ताक्षर हुए थे। इसमें अनेक प्रावधान शामिल थे जिनमें से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण था रक्षा और विदेश मामलों में भूटान का भारत पर आश्रित होना। काफी लंबे समय तक इस संधि के जारी रहने के बाद भूटान के आग्रह पर 8 फरवरी, 2007 को इसमें बदलाव कर इसे मौजूदा जरूरतों के हिसाब से प्रासंगिक बनाया गया। इस संधि में यह उल्लेख है कि भारत और भूटान के बीच स्थायी शांति और मैत्री होगी। इसके अलावा इसमें से ऐसे प्रावधानों को हटा दिया गया जो समय के साथ अप्रचलित हो गए थे।

अद्यतन संधि में पारस्पारिक और दीर्घकालिक लाभ के लिये आर्थिक सहयोग को मज़बूत करने और उसके विस्तार, संस्कृरति, शिक्षा, स्वास्थ्य, खेल तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में सहयोग के नए प्रावधान शामिल किये गए। इसमें दोनों देशों के नागरिकों के साथ व्यवहार अथवा हमारी विद्यमान मुक्त व्यापार व्यवस्था में किसी परिवर्तन की परिकल्पाना नहीं है। यह माना गया कि इस अद्यतन संधि से दोनों देश अपने-अपने राष्ट्री य हितों से संबंधित मुद्दों पर एक-दूसरे के साथ घनिष्ठत सहयोग करने तथा एक-दूसरे की राष्ट्री य सुरक्षा और हितों के विरुद्ध क्रियाकलापों हेतु अपने क्षेत्रों का उपयोग न करने देने के लिये प्रतिबद्ध होंगे।

विदित हो कि पिछले कई दशकों से भूटान के साथ संबंध भारत की विदेश नीति का एक स्था यी कारक रहा है। साझा हितों और पारस्पलरिक रूप से लाभप्रद सहयोग पर आधारित अच्छे पड़ोसी के संबंधों का यह उत्कृाष्टप उदाहरण है। यह इस बात का प्रतीक है कि दक्षिण एशिया की साझा नियति है। यही वज़ह है कि आज परिपक्वता, विश्वास, सम्मान और समझ-बूझ तथा निरंतर विस्तृकत होते कार्यक्षेत्र में संयुक्त प्रयास भारत-भूटान संबंधों की विशेषता है।

भारत भूटान का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। वर्ष 2018 में दोनों देशों के बीच कुल द्विपक्षीय व्यापार 9228 करोड़ रुपए का था। इसमें भारत से भूटान को होने वाला निर्यात 6011 करोड़ रुपए (भूटान के कुल आयात का 84 प्रतिशत) तथा भूटान से भारत को होने वाला निर्यात 3217 करोड़ रुपए (भूटान के कुल निर्यात का 78 प्रतिशत) दर्ज किया गया। भारत-भूटान व्यापार और पारगमन समझौता, 1972 द्वारा दोनों देशों के बीच व्यापार संचालित होता है, जिसे अंतिम बार नवंबर 2016 में नवीनीकृत किया गया था तथा जो जुलाई 2017 में प्रभावी हुआ था इस समझौते ने दोनों देशों के बीच एक मुक्त व्यापार व्यवस्था स्थापित की। समझौते में तीसरे देशों को भूटानी निर्यात के ड्यूटी फ्री ट्रांज़िट का भी प्रावधान है।

इसके साथ ही भूटान की जलविद्युत परियोजनाएं दोनों देशों के बीच सहयोग के प्रमुख उदाहरण हैं जो भारत को सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा का विश्वसनीय स्रोत प्रदान करती हैं तथा राजस्व अर्जन के साथ-साथ दोनों देशों के बीच आर्थिक एकीकरण को मज़बूती प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। भारत और भूटान के बीच जलविद्युत क्षेत्र में सहयोग वर्ष 2006 में हाइड्रोपावर क्षेत्र में हुए सहयोग समझौते तथा प्रोटोकॉल पर आधारित है जिस पर मार्च 2009 में हस्ताक्षर किये गए थे। जलविद्युत निर्यात भूटान के घरेलू राजस्व का 40 प्रतिशत और उसके सकल घरेलू उत्पाद का 25 प्रतिशत से अधिक राजस्व प्रदान करता है। 

इतना ही नहीं भारत ने भूटान की मुद्रा न्गुल्ट्रम (Ngultrum) को रुपए के समान मूल्य पर ही रखा है और यही कारण है कि भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों तथा भूटान में दोनों मुद्राएं चलती हैं। निवेश की आकांक्षा से अपने उत्तर-पूर्व पड़ोसी चीन के प्रति आकर्षण से भूटान इसलिये भी स्वयं को बचाता है, क्योंकि भारत से उसके संबंध बेहद विश्वासपूर्ण रहे हैं। लेकिन डोकलाम की घटना के बाद चीन की विस्तारवादी नीति ने दोनों देशों के सामने सीमा सुरक्षा संबंधी चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। चीन भूटान के साथ औपचारिक राजनयिक और आर्थिक संबंध स्थापित करने का इच्छुक है तथा कुछ हद तक भूटान के लोग भी चीन के साथ व्यापार और राजनयिक संबंधों का समर्थन कर रहे हैं। इससे आने वाले समय में भारत के सामने कुछ अन्य चुनौतियां खड़ी हो सकती है। इसलिये ऐसे सभी मुद्दों पर दोनों देशों को मिलकर विस्तार से विचार करने की जरूरत होगी।