अलविदा कपिला जी ! साहित्य, संस्कृति और संगीत के क्षेत्र की अपूरणीय क्षति


कपिला वात्स्यायन संभवतः पुपुल जयकर के बाद देश की दूसरी ऐसी कला हस्ती थीं जिन्हें कला-संस्कृति को संचालित और विकसित करने वाली संस्थाओं में काम करने के बहुत अवसर मिले। जब 1985 में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अपनी मां और देश की पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी की स्मृति उनके नाम पर ही देश के पहले कला और संस्कृति ही केंद्र की स्थापना की तो कपिला जी को उसका संस्थापक निदेशक बनाया गया।



संगीत,साहित्य, कला और संस्कृति के क्षेत्र की महान विदुषी कपिला वात्स्यायन अब हमारे बीच नहीं हैं, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला और संस्कृति केंद्र की संस्थापक सचिव और इंडिया इंटरनेशनल सेण्टर की आजीवन ट्रस्टी कपिला जी एक महान स्शख्सियत की धनी और बहुआयामी प्रतिभा से भरपूर अदम्य शौर्य और साहस वाली महिला थीं। जीवन के नब्बे दशक पूरे कर अनंत लोक के लिए प्रस्थान करने वाली कपिला वात्स्यायन का एक परिचय यह भी रहा कि वो हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार और श्रेष्ठतम हिंदी पत्रकार सच्चिदानन्द हीरानंद वात्स्यायन “अज्ञेय” की धर्मपत्नी भी थी लेकिन दोनों को जीवन भर एक साथ रहने का सौभाग्य नहीं मिल सका था।

पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी की बेहद करीबी रही कपिला जी को उनकी विशिष्ट प्रतिभा और योग्यता की बदौलत समय-समय पर देश-विदेश के अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। 1955 में भारत सरकार के सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित कपिला वात्स्यायन को 1966 में सामुदायिक नेतृत्व के लिए अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था इसके अलावा 1974, में संगीत नाटक अकादमी का आजीवन उपलब्धि पुरस्कार, रत्न सदस्य भी उनको मिल चुका है। यही नहीं 1977 में कपिला जी को, हस्तशिल्प को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के यूनेस्को पुरस्कार से तथा भारत सरकार के पद्म विभूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।

25 दिसंबर 1928को जन्मीं और 16 सितम्बर 2020 को 91 वर्ष की उम्र में परलोकवासी हुईं कपिला वात्स्यायन संभवतः पुपुल जयकर के बाद देश की दूसरी ऐसी कला हस्ती थीं जिन्हें कला-संस्कृति को संचालित और विकसित करने वाली संस्थाओं में काम करने के बहुत अवसर मिले। कपिला वात्स्यायन सरकार में उच्च सांस्कृतिक पदों पर रहीं, दो बार राज्य सभा की सदस्य मनोनीत हुईं और जब 1985 में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अपनी मां और देश की पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी की स्मृति उनके नाम पर ही देश के पहले कला और संस्कृति ही केंद्र की स्थापना की तो कपिला जी को उसका संस्थापक निदेशक बनाया गया।

उनके निधन पर साहित्य, कला, संकृति और राजनीति के क्षेत्र से जुडी हस्तियों ने गहन दुःख व्यक्त किया है। इस कड़ी में प्रख्यात संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेयी सरोद वादक अमजद अली खान, जयपुर साहित्य उत्सव के संजय के राय और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के ही देश के अनेक राज्यों के मुख्य मंत्री, साहित्य, संगीत,कला,फिल्म और रंगमंच के क्षेत्र से जुडी अनेक हस्तियों के नाम भी शामिल हैं। उनके निधन पर भेजे गए शोक संदेशों में आम तौर पर यह बात कही गई है कि श्रीमती वात्स्यायन एक महान विदुषी और विलक्षण प्रतिभा की धनी महिला थीं। उन्होंने सहित्य, कला और संस्कृति के संवर्धन तथा विकास के लिए ऐतिहासिक कार्य किया। वह अपने आप में एक संस्था थीं और कला से जुड़ी संस्थाओं के निर्माण तथा कलाकारों के बीच संवाद कायम करने में उन्होंने एक सेतु की तरह का काम किया था। उनका निधन राष्ट्र की अपूरणीय क्षति है।

कपिला वात्स्यायन राष्ट्रीय आंदोलन की प्रसिद्ध लेखिका सत्यवती मलिक की पुत्री थीं। वह संगीत नृत्य और कला की महान विदुषी थीं। उनकी शिक्षा दीक्षा दिल्ली विश्विद्यालय, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और अमेरिका के मिशिगन विश्वविद्यालय में हुई थी। कपिला वात्स्यायन, कवि और आलोचक केशव मलिक की छोटी बहन थीं। उनका विवाह प्रख्यात साहित्यकार सच्चिदानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ के साथ 1956 में हुआ था, हालांकि वे दोनों 1969 में अलग हो गए। उन्होंने अपने लंबे करियर में कला और इतिहास पर लगभग 20 पुस्तकें लिखी थीं। कपिला वात्स्यायन का जन्म एक जागरूक परिवार में हुआ था। पिता रामलाल जाने-माने वकील थे और मां सत्यवती मलिक अच्छी लेखक और कला-संगीत-प्रेमी। यह परिवार आज़ादी के संघर्ष से भी गहरे जुड़ा था और उस वक़्त के कई प्रमुख हिंदी लेखक उनके घर में होने वाली गोष्ठियों में शरीक होते थे।

कपिला जी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में एमए और फिर मिशिगन से इतिहास में भी एमए किया और बाद में बनारस विश्वविद्यालय में वासुदेव शरण अग्रवाल जैसे विद्वान के निर्देशन में विशेष छात्र के तौर पर इतिहास, पुरातत्व और वास्तुकला में शोध किया। प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ से विवाह भी उनके जीवन की एक उल्लेखनीय घटना थी। लेकिन यह बंधन सिर्फ़ तेरह साल 1956 से 1969 तक बना रहा। विच्छेद होने के बाद कपिला जी अज्ञेय के निधन (1987) के बाद ही उनके घर गयीं। कपिला वात्स्यायन ने अच्छन महाराज से कथक सीखने के अलावा भरतनाट्यम, मणिपुरी और आधुनिक पश्चिमी नृत्यों की भी शिक्षा ली। कथक उन्होंने बचपन से शुरू कर दिया था।

यूनेस्को, नई दिल्ली ने भी उनके निधन पर शोक ट्वीट के जरिये शोक व्यक्त किया है जिसमें कहा गया है कि, कपिला वात्स्यायन को एशियाई इतिहास का विशद ज्ञान था.. .दिवंगत आत्मा को शांति मिले। कपिला वात्स्यायन यूनेस्को के कार्यकारी बोर्ड में भारत क उन्हें 2000 में राजीव गांधी राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार भी प्रदान किया.संगीत नाटक अकादमी फेलो रह चुकीं कपिला प्रख्यात नर्तक शम्भू महाराज और प्रख्यात इतिहासकार वासुदेव शरण अग्रवाल की शिष्या भी थीं।

वह 2006 में राज्यसभा के लिए मनोनीत सदस्य नियुक्त की गई थीं और लाभ के पद के विवाद के कारण उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता त्याग दी थी। इसके बाद वह दोबारा फिर राज्यसभा की सदस्य मनोनीत की गई थीं। कपिला वात्स्यायन सफल जीवन की मिसाल थीं । उन्हें साहित्य , कला और संस्कृति के क्षेत्र में किये गए योगदान के लिए सरकार के साथ राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से भरपूर सम्मान भी मिला लेकिन इतना सम्मान मिलने के बाद भी उनके व्यक्तित्व में अहंकार और घमंड बिलकुल भी नहीं आया।

भारत सरकार के दूसरे सबसे बड़े अलंकरण ‘पद्मविभूषण’, यूनेस्को और मेगसेसे जैसे सम्मान के साथ ही संगीत नाटक अकादमी और ललित कला अकादमी की सबसे प्रमुख फेलोशिप भी उनको मिलीं थीं। वो इंडिया इंटरनेशनल सेंटर की आजीवन न्यासी होने के साथ-साथ वे उसके एशिया प्रोजेक्ट की अध्यक्ष भी रहीं। कला विधाओं पर बाज़ार और पश्चिमीकरण के बढ़ते असर को लेकर भी उनके मन में कई संशय थे।