ग्रामयुग डायरी : बैटल प्लान में बदलाव

ग्रामयुग और मिशन तिरहुतीपुर एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक राष्ट्रीय स्तर पर चलने वाली वैचारिक मुहिम है जबकि दूसरी स्थानीय स्तर पर लागू की जा रही ठोस कार्य योजना है। मिशन तिरहुतीपुर की गति नीचे से ऊपर की ओर है जबकि ग्रामयुग का विस्तार ऊपर से नीचे की ओर होगा।

अक्टूबर 2020 में जब मैं दिल्ली से अपना काम-धाम समेट कर गांव में रहने के लिए पहुंचा तब मेरे मन में अपने उद्देश्य को लेकर पूरी स्पष्टता थी। माननीय गोविन्दाचार्य जी के मार्गदर्शन में हमें एक ऐसे फार्मूले की तलाश करनी थी जिससे गांवों की अच्छाइयां तो बची रह जाएं लेकिन उनकी बुराईयां नष्ट हो जाएं। यही नहीं, हम तो यह भी चाहते थे कि गांवों के आदर्श जीवनमूल्य और वहां की अच्छी आदतें शहरी जीवन का भी अंग बन जाएं। इस महत्वाकांक्षी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए हमने एक योजना भी तैयार की थी जिसमें 7 वर्षों की समय-सीमा के भीतर हमें अपनी आधारभूमि तैयार करनी थी।

इस 7 वर्षीय योजना के पहले दो वर्ष अर्थात अक्टूबर 2022 तक हमने ऑब्जर्वेशन अर्थात पर्यवेक्षण के लिए रखा है। शहरों में अर्जित पूर्वाग्रह के आधार पर हम गांव में कोई काम नहीं करना चाहते थे। इन दो वर्षों के बारे में मैंने मिशन तिरहुतीपुर डायरी-6 में लिखा था, “सबसे पहले गांव को उसकी समग्रता में देखने, समझने और उससे संवाद स्थापित करने का काम होगा। यह प्रक्रिया तिरहुतीपुर से शुरू होगी किंतु धीरे-धीरे इसमें देश भर के कई गांव शामिल किए जाएंगे। इस दौरान मिशन स्वयं को एक पत्रकार और शोधार्थी की भूमिका में ही सीमित नहीं रखेगा, बल्कि वह उस वैज्ञानिक की भूमिका भी निभाएगा जो एक निष्कर्ष तक पहुंचने के पहले ढेर सारे प्रयोग करता है।”

जहां तक पत्रकार और शोधार्थी की दृष्टि से गांव को देखने और समझने की बात थी, वह हमने बहुत अच्छे से किया। मिशन के सभी 9 आयामों के संदर्भ में हमने जो भी देखा-समझा, उसे बिना लाग-लपेट के संजो लिया। हमने उन बिंदुओं की तलाश की जहां से मिशन तिरहुतीपुर और ग्रामयुग के काम को आगे बढ़ाया जा सकता है। हमने गांव वालों के चेतन और अवचेतन दोनों प्रकार के मन को पढ़ने की कोशिश की।

पत्रकार और शोधार्थी वाला काम हमने अच्छे से किया लेकिन वैज्ञानिक वाला काम उतना अच्छे से नहीं हो पाया। हालांकि इस पहलू पर भी हमने शिक्षा वाले आयाम में ठीक काम किया। शिक्षा संबंधी अपनी धारणाओं को गांव के परिवेश में जांचने-परखने के लिए हमने खूब प्रयोग किए। आज हमारे पास पूरक शिक्षा का एक ऐसा माडल है जिससे गांवों की ही नहीं बल्कि पूरे देश की शिक्षा व्यवस्था में गुणात्मक सुधार हो सकता है। दुर्भाग्य से शिक्षा के अलावा अन्य शेष 8 आयामों में हम जमीन पर उतर कर कोई व्यवस्थित प्रयोग नहीं कर पाए। संसाधनों की कमी के चलते यहां हमें रुकना पड़ा।

अक्टूबर 2021 में एक साल पूरा होने के बाद हमें ग्रामयुग वाले पहलू पर काम करना था। इसका उल्लेख करते हुए मैंने मिशन तिरहुतीपुर की डायरी-22 में लिखा था, “तिरहुतीपुर को आधार बनाकर राष्ट्रीय स्तर पर एक अभियान चलाया जाएगा जिसका नाम होगा ग्रामयुग। इसके अंतर्गत सबसे पहले यह सुनिश्चित किया जाएगा कि लोग व्यक्तिगत स्तर पर गांव के बारे में सोचना शुरू करें। इसके बाद गांव के बारे में सामूहिक चर्चा और बहस के लिए जमीन तैयार की जाएगी। अंतिम चरण में अधिकाधिक लोगों (विशेष रूप से शहरी लोगों) को जमीनी स्तर पर गांव से जुड़कर कुछ करने के लिए तैयार किया जाएगा।

ग्रामयुग अभियान कुछ गिने-चुने लोगों से बड़ा-बड़ा काम करवाने की बजाए बड़ी संख्या में लोगों को छोटा-छोटा काम करने के लिए प्रोत्साहित करने की नीति पर चलेगा। दूसरे शब्दों में कहें तो ग्रामयुग अभियान एक ऐसा खेल होगा जिसमें लोगों को दर्शक दीर्घा में बैठकर मैच देखने की बजाए स्टेडियम में आकर खेलने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।”

ग्रामयुग और मिशन तिरहुतीपुर एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक राष्ट्रीय स्तर पर चलने वाली वैचारिक मुहिम है जबकि दूसरी स्थानीय स्तर पर लागू की जा रही ठोस कार्य योजना है। मिशन तिरहुतीपुर की गति नीचे से ऊपर की ओर है जबकि ग्रामयुग का विस्तार ऊपर से नीचे की ओर होगा। दोनों की मंजिल एक है और दोनों एक-दूसरे की मदद करते हुए आगे बढ़ेंगे। मिशन तिरहुतीपुर का काम जनता जनार्दन के बीच जा चुका है किंतु ग्रामयुग की बात करें तो यह अभी तैयारी की अवस्था में है। जनता के बीच व्यापक रूप से ले जाने के पहले इसमें कई तरह के अध्ययन और प्रयोग चल रहे हैं। मौजूदा ग्रामयुग डायरी को इसी दिशा में एक कदम माना जा सकता है।

आज जून 2022 की स्थिति यह है कि हम अपने मूल शेड्यूल से पीछे चल रहे हैं। इससे मन में थोड़ी खिन्नता है लेकिन इसके चलते हताशा और निराशा जैसी कोई बात नहीं। हमारा स्ट्रेटेजिक वीजन और आपरेशनल प्लान अपने मूल स्वरूप में कार्य कर रहा है। उसमें बदलाव की कोई जरूरत नहीं है। टैक्टिकल प्लान भी कमोबेश ठीक है। हालांकि हमारा पहला फील्ड प्लान (बैटल प्लान) अब एक तरह से बेकार हो चुका है।

पहले फील्ड प्लान (बैटल प्लान) का फेल होना बहुत ही स्वाभाविक बात है। जर्मन फील्ड मार्शल मोल्टका द एल्डर (Moltke the Elder) ने कहा ही है, “नो बैटल प्लान सरवाइव द कांटैक्ट विथ एनिमी।” अर्थात नियति, परिस्थिति और मानवीय हस्तक्षेप के कारण प्रायः योजना का तात्कालिक पहलू हूबहू लागू नहीं हो पाता। इसलिए जमीनी हालात को देख-समझ कर उसमें तुरंत बदलाव के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।

हमें और हमारे सभी शुभचिंतकों को यह याद रखना होगा कि हमारी यात्रा एक नदी की तरह है, नहर की तरह नहीं। ऐसा कई बार होगा जब हम अपने गंतव्य की ओर न बढ़कर आड़े-तिरछे चलेंगे, हो सकता है कभी बिल्कुल उल्टी दिशा में बहते दिखाई दें। अपनी यात्रा में हम कभी शांत और स्थिर दिखेंगे तो कभी हमारे प्रवाह में अत्यधिक तेजी और कोलाहल भी दिख सकता है। कभी यह भी हो सकता है कि हम अंतःसलिला हो जाएं, जैसा कि बनारस के पंचगंगा घाट पर गंगाजी से आकर मिलने वाली किरणा और धूतपापा नामक दो नदियां हैं।

दिसंबर 2021 में मिशन तिरहुतीपुर की स्थिति इन्हीं दो गुप्त नदियों जैसी हो गई थी। मेरे मन में मिशन पूरी ऊर्जा के साथ स्पंदित और प्रवाहित हो रहा था किंतु बाह्य रूप से कुछ भी दृश्यमान नहीं था। इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए मैंने अपने बैटल प्लान (अल्पकालीन कार्ययोजना) में बदलाव किया। मेरे आस-पास ऐसा कोई नहीं था जिससे मैं अपने स्वाभिमान की रक्षा करते हुए मदद मांग सकूं। लेकिन ऐसे बहुत से लोग थे जिन्हें मैं मदद दे सकता था।

अपने सर्कल में मेरी छवि एक कम्युनिकेशन स्ट्रैटेजिस्ट की है। डाक्यूमेंट्री फिल्में, पत्रिका, किताब, विविध प्रकार के लेखन कार्य और औपचारिक आयोजनों के माध्यम से एक व्यक्ति या संस्था किस प्रकार अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकती है, इस बारे में मुझे व्यापक अनुभव है। किसी विशेष लक्ष्य को साधने के लिए मनोविज्ञान और सभी मीडिया प्लेटफार्म्स का समन्वित उपयोग कैसे किया जाए, इस बारे में मैं हमेशा कुछ नया जानने की कोशिश करता रहता हूं।

जल्दी ही मैंने अपने परिचित कुछ ऐसे चुनिंदा व्यक्तियों की सूची बनाई जो भविष्य में ग्रामयुग अभियान के सहयोगी हो सकते हैं। ऐसे लोगों को मैंने आगे बढ़कर सहयोग देने की पेशकश की। मेरा सहयोग पूर्णतः स्वैच्छिक था। संबंधित व्यक्ति या संस्था को बदले में मुझे कुछ नहीं देना था। भविष्य में वे मेरे अभियान में सहयोग करेंगे, इस मुद्दे पर भी मैंने कोई बात नहीं की थी। सच कहें तो मैं प्रसिद्ध मनोविज्ञानी Robert Cialdini के फार्मूले को आजमा रहा था। मेरे इस प्रयोग का क्या परिणाम निकला, जानेंगे अगली डायरी में।

निवेदनः मेरा भाई राजकमल अस्पताल से मुक्त होकर घर आ गया है। आप सब प्रार्थना करें कि वह शीघ्र ही पूरी तरह स्वस्थ हो जाए।

 (विमल कुमार सिंह वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)

First Published on: June 12, 2022 12:13 PM
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