नवंबर 2021 में ही मैंने गोविन्दजी को बता दिया था अभी कुछ दिन गाजियाबाद में ही एकांतवास करते हुए ग्रामयुग योजना के लिए यथोचित शोध और अध्ययन कार्य करूंगा। दिल्ली की गतिविधियों में शामिल होने की मुझे बिल्कुल इच्छा नहीं थी। मेरी इच्छा का सम्मान करते हुए गोविन्दजी ने मुझे कभी दिल्ली नहीं बुलाया और न ही किसी काम के लिए कहा। मार्च 2022 में जब मैंने अपना एकांतवास खत्म करने की बात बताई तब उन्होंने मुझे नदी संवाद के कार्यक्रम में हाथ बंटाने के लिए कहा जो 12 अप्रैल 2022 को दिल्ली के तालकटोरा इनडोर स्टेडियम में प्रस्तावित था।
नदी संवाद कार्यक्रम की पृष्ठभूमि में गोविन्दाचार्य जी की तीन यात्राएं थीं जो उन्होंने गंगाजी (1 सितंबर से 2 अक्टूबर 2020) नर्मदा जी (19 फरवरी से 17 मार्च 2021) और यमुना जी (28 अगस्त से 15 सितंबर 2021) के किनारे-किनारे की थीं। इन यात्राओं के कुछ समय बाद 30 नवंबर 2021 को दिल्ली स्थित कांस्टीट्यूशन क्लब में एक कार्यक्रम आयोजित हुआ जिसमें देशभर के सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए। यहां सभी ने देश भर की नदियों की बेहतरी के लिए मिलकर काम करने का फैसला लिया।
कई लोगों को लगता था कि 78 वर्ष की उम्र में ये यात्राएं गोविन्दजी के स्वास्थ्य के लिए बेहद नुक्सानदेह साबित होंगी, लेकिन हुआ इसका उल्टा। देश की मिट्टी और अपने लोगों के सान्निध्य ने गोविन्दजी में एक नई ऊर्जा का संचार कर दिया। मार्च 2022 में जब मैं उनसे मिला तो इस अंतर को साफ-साफ देख पा रहा था। उनके साथ कार्यकर्ताओं की एक नई टोली जुड़ चुकी थी जिसका उत्साह देखने लायक था। इस टोली का संचालन जिनके हाथ में था, उनका नाम है जीवकांत झा। जीवकांत जी मूलतः आध्यात्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं, लेकिन दुनियादारी की भी उन्हें अच्छी समझ है। जिस प्रकार वे तनावमुक्त होकर इतने बड़े आयोजन का कुशलता से संयोजन कर रहे थे, वह अद्भुत था।
12 अप्रैल को तालकटोरा स्टेडियम में जब नदी संवाद का कार्यक्रम चल रहा था, उस समय कई पुराने साथियों और वरिष्ठ लोगों से बरसों बाद मिलना हुआ। सबसे मिलना-जुलना बहुत अच्छा लगा। लेकिन कुछ लोगों से मिलकर झेंपना भी पड़ा क्योंकि वे तो मुझे पहचान गए, किंतु मैं उन्हें पहचान नहीं पाया। इसका उल्टा भी हुआ। कई लोग ऐसे भी मिले जिन्हें मैं पहचान रहा था पर वे मुझे भूल गए थे। इस दिन मुझे एहसास हुआ कि संबंधों को, विशेष रूप से नए संबंधों को बहुत देखभाल की जरूरत होती है।
33 वर्ष दिल्ली में रहने के कारण मेरे यहां ढेर सारे मित्र, शुभचिंतक और परिचित हैं। इनमें व्यक्तिगत, सामाजिक, राजनीतिक और प्रोफेशनल हर प्रकार के लोग हैं। गांव चले जाने के कारण एक लंबे समय से मैं इन सबसे कटा रहा। तालकटोरा के अनुभव के बाद मुझे लगा कि संबंधों की जिस पूंजी को मैंने दिल्ली में 33 वर्षों में पाल-पोस कर विकसित किया था, उसके प्रति एकदम से लापरवाह हो जाना ठीक नहीं। लेकिन संबंधों की इस पूंजी को सहेजने के लिए क्या करूं, यह समझ में नहीं आ रहा था।
अतीत में जिस तरह मैं दिल्ली में लोगों से आए दिन मिल लिया करता था, वह अब संभव नहीं था क्योंकि भविष्य में मेरा अधिकतर समय दिल्ली नहीं बल्कि तिरहुतीपुर में बीतेगा। इसलिए मुझे कुछ ऐसा उपाय ढूंढना था जिससे मैं तिरहुतीपुर में रहते हुए देश भर में फैले अपने लोगों से संपर्क रख सकूं और नए लोगों से जुड़ भी सकूं।
वास्तव में संबंधों की पूंजी एक ऐसे जलकुंड की तरह है जो एक पहाड़ी ढलान पर किसी सदानीरा नदी से जुड़ी हुई है। इस जलकुंड का कुछ पानी हमेशा वहीं बना रहता है, कुछ बहकर आगे चला जाता है। अगर कुछ आगे जाता है तो पीछे नदी से नया पानी भी आता रहता है। कुल मिलाकर देखा जाए तो जलकुंड में पानी का स्तर लगभग बराबर बना रहता है।
कुछ इसी तरह की बात प्रसिद्ध एन्थ्रोपोलाजिस्ट (मानवशास्त्री) राबिन डनबर ने भी कही है। उनके अनुसार एक मनुष्य औसतन केवल 150 लोगों से ही निकट का सामाजिक संबंध रख सकता है। इस सूची में जब नए लोग जुड़ते हैं तो कुछ पुराने लोग बाहर भी होते हैं। सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश के साथ इस संख्या में थोड़ा बहुत बदलाव हो सकता है लेकिन यह बदलाव बहुत सीमित होता है।
डनबर के इस नियम से कुछ हद तक बचा जा सकता है यदि हम अपने संबंधों को सहेजने के लिए कोई संस्थागत उपाय कर लें। थोड़ा सोचने के बाद मुझे यह उपाय भारतीय पक्ष पत्रिका में दिखा। गोविन्दाचार्य जी के मार्गदर्शन में यह पत्रिका 2004 में शुरू हुई थी। आर्थिक दिक्कतों के कारण 2014 में इसका प्रकाशन बंद हो गया था। एक समय देश और समाज के प्रति सजग लोगों की यह पसंदीदा पत्रिका थी। मैंने तय किया कि इस पत्रिका को फिर से प्रकाशित किया जाए।
मैंने योजना बनाई कि पत्रिका के लिए लिखना, लिखवाना और उसे डिजाइन करने का काम मैं अपने साथियों के साथ कर लूंगा और फिर उसे डिजिटल स्वरूप में लोगों तक आनलाइन पहुंचाने का प्रयास किया जाएगा। हमारे ऊपर कोई आर्थिक बोझ न पड़े, इसके लिए छपाई और वितरण को फिलहाल स्थगित रखेंगे। गोविन्दजी ने मेरी इस योजना को सहमति दे दी। तय हुआ कि नवंबर 2022 से भारतीय पक्ष अपने डिजिटल स्वरूप में फिर से अवतरित होगी।
ग्रामयुग अभियान के सिलसिले में मैंने जो भी सोचा या किया है, उसे नियमित रूप से गोविन्दाचार्य जी से साझा करता आया हूं। अप्रैल से यह प्रक्रिया और तेज हो गई। उनसे लगभग रोज बातचीत होने लगी। इसी बातचीत में एक दिन गोविन्द जी ने मुझसे कहा कि ग्रामयुग अभियान के बारे में चर्चा और सलाह के लिए एक औपचारिक कोर ग्रुप बनाओ। उन्होंने जोर देकर कहा कि जो बातें मुझे बताते हो, उस पर अब एक बड़े समूह में नियमित चर्चा होनी चाहिए।
मैं भी कुछ ऐसा ही सोच रहा था क्योंकि गोविन्दजी आलोचनात्मक टिप्पणी से बचते हैं। प्रायः वे प्रोत्साहन की मुद्रा में ही रहते हैं। इसलिए मैं चाह रहा था कि कुछ ऐसे लोगों के सामने भी अपनी बात रखी जाए जो एक आम आदमी की नजर से मेरे काम को समझें और मुझे खुलकर अपनी राय दें। मेरी यह भी इच्छा थी कि यह समूह मेरी अनुपस्थिति में भी ग्रामयुग को लेकर दिल्ली में मासिक बैठकें करता रहे और जहां जरूरत हो मुझे निर्देश और सहायता भी प्रदान करे।
मेरे एक पुराने मित्र हैं राजकमल मिश्रा जी। लगभग 26 साल से हम एक-दूसरे को जानते हैं। गोविन्दजी के साथ जुड़कर वे मुझसे पहले से काम कर रहे हैं। अभी फिलहाल वे जयपुर स्थित एक युनिवर्सिटी में रजिस्ट्रार के पद पर कार्यरत हैं । लेकिन हर हफ्ते रविवार को दिल्ली आते हैं। मैंने उनसे निवेदन किया कि वे कोरग्रुप के संयोजक की जिम्मेदारी निभाएं और कुछ ऐसे लोगों को आमंत्रित करें जो मेरी अनुपस्थिति में भी नियमित बैठक में आ सकें। सौभाग्य से उन्होंने मेरा निवेदन स्वीकार कर लिया।
गोविन्दजी से बात करके हमने 14 अप्रैल 2022 को अपने कोर ग्रुप की पहली बैठक बुलाई। अब तक इसकी दो बैठकें हो चुकी हैं। इन बैठकों में जब मैंने अपनी बात रखी और जब लोगों ने मुझसे सवाल पूछे, तो बहुत सी चीजें और स्पष्ट हुईं। छोटी-छोटी ऐसी कई बातें ध्यान में आईं जो बेहद जरूरी थीं लेकिन मेरा ध्यान उनपर नहीं था। कोर ग्रुप के सदस्यों के साथ संवाद करते हुए मुझे अपनी एक बड़ी कमजोरी के बारे में भी पता चला। मजे की बात यह थी कि इस कमजोरी को मैं अब तक अपनी मजबूती माने बैठा था।
(विमल कुमार सिंह पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)
