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पंचमहाभूत लोकोत्सव का आयोजन एक परीक्षा थी। यह परीक्षा केवल मेरे लिए ही नहीं बल्कि कनेरी मठ के मठाधिपति और उनके साथ लगे हजारों कार्यकर्ताओं के लिए भी थी। इस परीक्षा में हम पास हुए या फेल, इसका निर्धारण समाज करेगा किंतु हम इसका निरपेक्ष भाव से एक पुनरावलोकन तो कर ही सकते हैं, ठीक उसी तरह जैसे लंबी तैयारी के बाद परीक्षा देकर लौट रहे विद्यार्थी आपस में करते हैं।
यह सच है कि राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मीडिया में इस आयोजन पर कोई विशेष चर्चा नहीं हुई, फिर भी इसके दीर्घकालिक महत्व को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। पंचमहाभूत लोकोत्सव के माध्यम से कनेरी मठ ने संदेश दिया है कि जलवायु परिवर्तन की समस्या का समाधान तभी निकलेगा जब समाज और सरकार के विविध घटक मिलकर एक साथ काम करेंगे। इस दिशा में यदि एक कदम सरकार उठाती है तो जरूरी है कि दूसरा कदम समाज की ओर से उठाया जाए। सरकार के ऊपर सारी जिम्मेदारी डालकर यदि समाज निश्चिंत हो गया तो परिणाम भयावह होंगे।
मेरी जानकारी में यह पहला ऐसा आयोजन था जिसमें पर्यावरण और जीवनशैली के मुद्दे पर धर्मसत्ता, समाजसत्ता और राजसत्ता ने एक साथ मिलकर पूरे तालमेल के साथ काम किया हो। कनेरी मठ के 49वें मठाधिपति स्वामी अदृश्य काडसिद्धेश्वर जी ने इस आयोजन के द्वारा सिद्ध किया कि भारत की धर्मसत्ता में अभी भी इतना तेज है कि वह देश-दुनिया के सम्मुख उपस्थित चुनौतियों का सामना कर सकती है। जिस तरह इस आयोजन के लिए पिछले कई महीनों से हजारों स्वयंसेवकों ने अपना समय और संसाधन मठ को उपलब्ध कराया, उससे यह भी साबित हो गया कि आज भी धर्मसत्ता के साथ समाज पूरी मजबूती के साथ खड़ा होने के लिए तैयार है।
लोकोत्सव के आयोजन में महाराष्ट्र सरकार ने भी पूरे मनोयोग से साथ दिया। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने इस आयोजन में व्यक्तिगत रुचि ली। सड़क, बिजली, पानी, कानून व्यवस्था के साथ-साथ लोकोत्सव में आ रहे लोगों की सुविधा के लिए सरकार की ओर से हर संभव उपाय किए गए। पर्यावरण और जीवनशैली का मुद्दा लोगों तक प्रभावी ढंग से पहुंचे, इसके लिए महाराष्ट्र सरकार ने आयोजन स्थल पर ही एक उच्च तकनीक से लैस थिएटर का निर्माण करवाया। यहां प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक वीजू माने द्वारा बनाई गई एक डाक्यूमेंट्री को हर दिन चार बार दिखाया गया। फिल्म के बीच-बीच में कुछ कलाकार अपनी जीवंत प्रस्तुति भी दे रहे थे जिसके चलते यह लोगों में बहुत लोकप्रिय हुई।
उद्घाटन और समापन को छोड़कर लोकोत्सव के शेष पांच दिन पांच तत्वों और पांच विषयों को समर्पित किए गए थे। 21 को आकाश, 22 को वायु, 23 को अग्नि, 24 को जल और 25 को पृथ्वी तत्व पर विशेष चर्चा और प्रबोधन के कार्यक्रम हुए। इन पांच दिनों में क्रमशः युवा, उद्योजक, संत, मातृशक्ति और किसानों को ध्यान में रखते हुए बात कही गई। मंच से जिन लोगों ने अपनी बात रखी उनमें राजनेता, संत, समाजसेवी, उद्योगपति, शिक्षाविद्, कलाकार, किसान सभी थे।
मंचीय उद्बोधन और फिल्म प्रस्तुति के साथ-साथ लोगों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए सभी पांच तत्वों अर्थात आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी पर विशाल प्रदर्शनियां तैयार की गई थीं। इसके अलावा आरोग्य और रीसाइक्लिंग विषय पर भी एक-एक प्रदर्शनी बनाई गई थी। प्राकृतिक खेती पर तो लगभग चार एकड़ में एक जीवंत फार्म ही तैयार किया गया था जहां 100 से अधिक फसलें लहलहा रही थीं। इन सभी को देखने के लिए सात दिनों में जिस तरह से लोगों की भीड़ उमड़ी, उसे देखकर कहा जा सकता है कि यदि आयोजक की विश्वसनीयता हो और प्रस्तुति का तरीका रोचक हो तो लोग पर्यावरण और जीवन शैली के मुद्दे को जानने-समझने के लिए भी खुले मन से आते हैं।
इस लोकोत्सव के ढेर सारे आयाम थे लेकिन सभी के बीच एक बात समान थी। लोगों को अलग-अलग तरीके से यह समझाने की कोशिश की गई कि वे प्रकृति से अलग नहीं हैं। वे भी उन्हीं पांच तत्वों से बने हैं, जिनसे यह प्रकृति बनी है। प्रकृति और मनुष्य दो नहीं बल्कि एक ही हैं, इसे स्थापित करने के साथ ही लोगों का ध्यान जीवनशैली से जुड़े हुए उन तमाम पहलुओं पर खींचा गया जो उनके और प्रकृति दोनों के लिए हानिकारक अथवा उपयोगी हैं।
26 फरवरी को पंचमहाभूत लोकोत्सव औपचारिक रूप से पूरा हो गया। सात दिनों में इसमें लगभग 35 लाख लोग शामिल हुए जिनमें बालक-बूढ़े, अमीर-गरीब, महिला-पुरुष, शिक्षित-अशिक्षित, शहरी-ग्रामीण, गृहस्थ-संन्यासी, समाजसेवी-व्यवसायी सभी शामिल हुए। लोगों ने जिस उत्साह के साथ इस आयोजन में हिस्सा लिया, उसे देखते हुए एक आस बंधती है। अब जरूरत है कि कनेरी मठ और महाराष्ट्र सरकार जनता के इस उत्साह को विविध प्रकार की गतिविधियों के द्वारा व्यवहार में लाए। इसके लिए “क्राउड साइकोलाजी” को आगे रखते हुए रणनीति बनाई जाए। लोगों को “प्राइमिंग” और “नजिंग” के द्वारा सकारात्मक बदलाव के लिए धीरे-धीरे तैयार किया जाए। ध्यान रखा जाए कि जनता तर्क की अपेक्षा भावनाओं की भाषा बेहतर समझती है। इस दिशा में “गेमीफिकेशन” की नई-नई विधियां भी बहुत उपयोगी रहेंगी। यदि यह सब ठीक से किया गया तो इसके चमत्कारिक परिणाम निकलेंगे और महाराष्ट्र की धरती से शुरू हुई इस पहल को भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया अपनाएगी।
इसे मैं अपना सौभाग्य ही कहूंगा कि पंचमहाभूत लोकोत्सव की संकल्पना से लेकर इसके समापन तक मैं स्वामी जी के साथ हर पल खड़ा रहा। केवल स्वामी जी ही नहीं, बल्कि इस आयोजन से जुड़े सैकड़ों कार्यकर्ताओं के साथ भी मैंने काम किया। अलग-अलग पृष्ठभूमि से आने के कारण कई बार तनाव की स्थिति पैदा हुई लेकिन कभी भी स्थिति नियंत्रण से बाहर नहीं हुई। सच कहूं तो इतने कम समय में इतने विशाल आयोजन का साकार होना किसी चमत्कार से कम नहीं है। यह आयोजन इस बात का प्रमाण है कि यदि धर्मसत्ता, समाजसत्ता और राजसत्ता एक साथ आ जाएं तो असंभव को भी संभव किया जा सकता है।
जो लोग भी इस आयोजन में लगे थे, उन्हें इसकी सफलता से प्रशन्न होने का पूरा अधिकार है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सबकुछ एकदम दोष रहित था। आयोजन के दौरान मैंने ऐसी बहुत सारी कमियां देखीं जो स्वामी जी के करिश्माई नेतृत्व कारण ढंक गईं। तात्कालिक रूप से काम चल गया लेकिन यदि सिद्धगिरि मठ को एक लंबी दूरी तय करनी है, समाज को एक विश्वसनीय और प्रभावी नेतृत्व देना है तो उसे अपनी कार्यप्रणाली में व्यापक सुधार करना होगा। जिस तेजी से लोग मठ से जुड़ रहे हैं, उन्हें संभालने, सहेजने, सिखाने, समझाने और काम पर लगाने के लिए मठ को एक औपचारिक संगठन की जरूरत पड़ेगी। और यह तभी होगा जब स्वामी जी अपनी सहायता के लिए एक सक्षम “स्टाफ आफिस” तैयार करेंगे।
यह तो रही सामूहिक चर्चा। अगर मैं अपनी व्यक्तिगत बात करूं तो पिछले ढाई महीनों में मैंने कनेरी में रहते हुए बहुत कुछ सीखा और समझा है। जहां एक ओर देश भर से आए सैकड़ों नए लोगों से मेरा परिचय हुआ, वहीं कई पुराने लोगों से भी संबंध को और प्रगाढ़ करने का अवसर मिला। मठ के परिवेश में रहते हुए मैंने मन और शरीर को साधने के जो कई प्रयोग किए हैं, उनसे मेरा आत्मविश्वास बढ़ा है। प्रतिकूलताओं को न केवल झेलने बल्कि उनसे लाभान्वित होने की विधा मुझे कुछ और स्पष्ट हो गई है। मुझे नहीं मालूम कि इन सबका आगे किस प्रकार इस्तेमाल होगा, किंतु इतना निश्चित है कि कनेरी में रहते हुए मैंने संभावनाओं के जो ढेर सारे बीज बोए हैं, वे समय आने पर अंकुरित जरूर होंगे।
यह सच है कि कनेरी में रहते हुए मैंने ग्रामयुग अभियान के दीर्घकालिक हित को सुरक्षित किया है, लेकिन अगर वर्तमान की बात करूं तो यह भी सच है कि इस दौरान मेरा काम ढाई-तीन महीने पीछे चला गया। एक मार्च 2023 को जब मैं दिल्ली पहुंचा तो मेरे सामने वही प्रश्न दोबारा खड़े हो गए जिन्हें पीछे छोड़कर मैं दिसंबर 2022 में कनेरी गया था। पिछले कई दिनों से मैं उन्हीं प्रश्नों का उत्तर ढूंढ रहा हूं। कनेरी की परीक्षा पूरी हो गई लेकिन कई परीक्षाएं अभी शेष हैं।
(विमल कुमार सिंह ग्रामयुग अभियान के संयोजक हैं।)