जरा कल्पना करिए कि आप का कोई प्रिय व्यक्ति पहली बार कार चलाने जा रहा है। आप जानते हैं कि वह जिस रास्ते पर जा रहा है, वह खूबसूरत है लेकिन आपको यह भी मालूम है कि वह पहली बार स्टियरिंग व्हील संभाल रहा है और उसे गाड़ी चलाने का कोई अनुभव नहीं है। ऐसे में आप क्या करेंगे? क्या आप आतिशबाजी करते हुए, डीजे की आवाज में नाचते-कूदते उसकी यात्रा की खुशी मनाएंगे? संभवतः आप ऐसा नहीं करेंगे। मैं भी ऐसा नहीं कर सकता। मुझे मौका मिला तो मैं उसे गाड़ी सुरक्षित चलाने की सलाह दूंगा और उन सभी स्थितियों से आगाह करूंगा जहां गाड़ी के दुर्घटनाग्रस्त होने का खतरा अधिक है।
मेरा इशारा दूल्हा-दुल्हन और उनके विवाह में शामिल होने वाले बारातियों की ओर है। 15 मई को खजुराहो में अपने मित्र नीतेश द्विवेदी के विवाह में हिस्सा लेते समय मैं यही सोच रहा था कि अगर मुझे मौका मिले तो मैं नीतेश जी या किसी भी नव दंपति को क्या सलाह दूंगा। अगले दिन 16 मई को जब मैं श्रीमती जी के साथ पन्ना टाइगर रिजर्व घूमने गया तब भी मेरे दिमाग में यही सवाल घूम रहा था। 17 मई को दिल्ली आने के बाद भी इस मुद्दे पर मंथन चलता रहा जो लगभग पूरे महीने चला। इस महीने विवाह का मुद्दा मेरे मन पर कुछ अधिक ही छाया रहा तो इसके पीछे एक विशेष कारण है। असल में आज से 30 वर्ष पहले मई के महीने में ही मेरे और मेरी श्रीमती जी के माता-पिता ने तय किया था कि हम अपने जीवन की भावी यात्रा मिलकर पूरी करें।
पिछले 30 वर्षों में जहां तक मैं समझ पाया हूं, पति-पत्नी के जीवन में एक तरफ अनुराग और समर्पण की शीतलता तथा दूसरी ओर अपेक्षा और अधिकारों की उष्मा होती है। इन्हीं दो के बीच में वैवाहिक जीवन तमाम उतार-चढ़ाव के साथ आगे बढ़ता है। फार्मूला बहुत सीधा सा है। जब अनुराग और समर्पण की अधिकता होगी तो सुख और संतुष्टि मिलेगी लेकिन जब अधिकार और अपेक्षा की भावना प्रबल होने लगेगी तो कलह और वैमनस्य की संभावना बढ़ जाएगी। अधिकार और अपेक्षा की अधिकता से समस्या पैदा होती है लेकिन यही वह तत्व है जिसके द्वारा पति-पत्नी एक-दूसरे की पसंद-नापसंद को समझ पाते हैं। इसी के द्वारा उन्हें अपने कर्तव्य की अनुभूति होती है और उस सीमारेखा के बारे में पता चलता है जिसका उन्हें अतिक्रमण नहीं करना चाहिए। संक्षेप में कहूं तो विवाह की गाड़ी को सुरक्षित चलाने के नौ सूत्र हैं जो केवल नवदंपतियों को ही नहीं बल्कि मेरे जैसे पुराने अनुभवी लोगों को भी हमेशा याद रखनी चाहिए।
1. विवाह इस बात की घोषणा है कि एक व्यक्ति बाल्यकाल को पीछे छोड़कर वयस्क बनने जा रहा है। एक बच्चा हमेशा अपने मां-बाप और आस-पास के परिवेश से कुछ न कुछ लेने और मांगने की मुद्रा में रहता है, वह किसी को देने के बारे में नहीं सोचता। इसके विपरीत एक वयस्क व्यक्ति अपने परिवेश से यदि कुछ लेता है तो वहीं वह वापस लौटाने के बारे में भी सोचता है। विवाह वास्तव में इसी प्रक्रिया की एक औपचारिक ट्रेनिंग है। जीवनसाथी की भूमिका मां-बाप से अलग होती है। मां-बाप अधिकार नहीं जतलाते लेकिन जीवनसाथी तो ऐसा अवश्य करेगा या करेगी। यदि कोई इसे समझे बिना अपने अधिकार और अपनी मांग में ही उलझा हुआ है तो इसका मतलब है कि वह अभी बच्चे की मानसिकता से बाहर नहीं आ पाया है।
2. प्रत्येक मनुष्य में अपने किस्म की अच्छाई और कमी दोनों होती है। आपके जीवनसाथी में केवल अच्छाई ही अच्छाई हो, यह इच्छा रखना नासमझी है। इसलिए जरूरी है कि अपने जीवनसाथी की ‘कमी’ को दिल बड़ा करके स्वीकार कीजिए। उसकी ‘कमियों’ से चिढ़ने की बजाए उसे मैनेज या न्यूट्रलाइज करने में अधिक समझदारी है। आपको शांत होकर यह भी सोचना चाहिए कि जिसे आप ‘कमी’ मान रहे हैं, क्या वास्तव में वह कोई कमी है।
3. आपका जीवनसाथी हूबहू आप जैसा हो, यह न तो संभव है और न ही वांछनीय। वास्तव में आपका जीवनसाथी उस बड़ी दुनिया की एक झलक है जो आपसे अलग है। यदि आपका जीवनसाथी आप जैसा नहीं है, यदि उसकी आदतें और पसंद-नापसंद आपसे अलग हैं तो इसे शुभ संकेत मानिए। ईश्वर ने उसके द्वारा आपको एक मौका दिया है कि आप अपनी समझ को और विकसित एवं व्यापक बना सकें। जो बातें आपमें नहीं हैं, उन्हें अपने जीवनसाथी में ढूंढिए और उनका सदुपयोग कीजिए। यदि आपने अपने जीवनसाथी को अपना पूरक बनाना सीख लिया तो आप अपनी किसी भी कमी को पूरा कर लेंगे क्योंकि आपको दूसरों की क्षमता का उपयोग करना जो आ गया।
4. दंपति को एक-दूसरे से नाराज होने का पूरा हक है लेकिन उन्हें एक-दूसरे को अपमानित करने का हक बिल्कुल नहीं है। समझदार लोग मौन होकर अपनी असहमति या नाराजगी व्यक्त कर देते हैं जबकि अन्य लोग इसके लिए ऊंची आवाज की मदद लेते हैं। यदि कोई अपनी बात चिल्ला कर कहता है या अपशब्दों का प्रयोग करता है तो इसका साफ मतलब है कि समझदारी ने उसका साथ छोड़ दिया है। शायद ऐसे ही लोगों को ही ध्यान में रखकर रहीम ने लिखा था, “रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय। टूटे पर फिर ना जुरे, जुरे गांठ परि जाय।”
5. वैवाहिक जीवन में युद्ध और शांति के बीच भी कई चरण होने चाहिए। अशांति के शुरुआती संकेतों को एकदम से युद्ध की घोषणा मानकर पलटवार नहीं करना चाहिए। जब कभी आपका अपने जीवनसाथी से मनमुटाव शुरू हो तो उसी समय आपको तय करना चाहिए कि इसे कहां तक ले जाकर रोकना है और फिर संबंधों को कैसे धीरे-धीरे वापस पटरी पर लाना है। ध्यान रखिए कि यह काम दोनों में से वही करेगा जो अधिक समझदार है।
6. यदि नवदंपति अपने कुल की मर्यादा और उसके सम्मान के प्रति सचेत हैं, तो इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि उनके वैवाहिक जीवन में कोई बड़ी बाधा नहीं आएगी। ऐसे दंपति विपरीत परिस्थितियों में भी अपने संबंध को बिखरने नहीं देंगे क्योंकि उन्हें मालूम होता है कि ऐसा करने से उनके माता-पिता और उनके कुल के सम्मान पर आंच आएगी। दूसरे शब्दों में कहें तो नवदंपति को अपने कुल और परिवार के कार्यक्रमों में अधिकाधिक हिस्सा लेना चाहिए क्योंकि यह एक तरह से उनके संबंधों को हरा-भरा रखने की गारंटी है।
7. स्थायी प्रेम की प्रकृति सौम्य, शांत और आडंबर विहीन होती है। यदि किसी दंपति ने पार्टी, सैर-सपाटा, गिफ्ट और महंगी वस्तुओं के संग्रह को प्रेम का पर्याय मान लिया है तो उन्हें सावधान हो जाना चाहिए। इनकी अधिकता अंततः उनके वैवाहिक जीवन की गुणवत्ता को खराब ही करेगी।
8. वे लोग नादान होते हैं जो वैवाहिक ‘मैच’ में जीत दर्ज करने के लिए उतावले रहते हैं। समझदार लोग विवाह के इस ‘मैच’ को टाई करने के लिए खेलते हैं। कभी वे आगे बढ़कर दूसरे के पाले में गोल करते हैं तो कभी चुपचाप अपने पाले में गोल हो जाने देते हैं। वे कभी भी अपने जीवनसाथी को हारने नहीं देते।
9. वैवाहिक जीवन एक ऐसी परीक्षा है जिसमें किसी को सौ में सौ नंबर नहीं मिलते। अगर तनाव और मनमुटाव के बीच प्रेम और समर्पण के कुछ पल जीवन में यदा-कदा आ रहे हैं तो मानिए कि आप इस परीक्षा में पास हैं। ये पल किसी भी कीमत में मिलें, उन्हें ले लीजिए। यह सौदा कभी घाटे का सौदा नहीं होता।
ऊपर मैंने जो बिंदु गिनाए हैं, वे अपने आप में पूर्ण नहीं हैं। इसमें कई बातें और जोड़ी जा सकती हैं। यहां मैंने केवल यह बतलाने की कोशिश की है कि आज की तेजी से भागती-दौड़ती दुनिया में सुखी दांपत्य जीवन कोई सहज या अनायास घटना नहीं है। इस स्थिति तक पहुंचने और उसे बनाए रखने के लिए दंपति को हमेशा सजग और प्रयत्नशील रहना होगा। जो इस बात को समझ गया वो होशियार और जो ना समझा वो…