12 अक्टूबर की सुबह मुझे एम.आर.आाई. मशीन के भीतर ले जाने की तैयारी हो रही थी। अब तक मैं अपने घर के तीन लोगों (मां, बहन और भाई) को एम.आर.आई. मशीन से जांच करवाने ले गया हूं। खुद एम.आर.आई. मशीन के भीतर लेटने का यह पहला अनुभव था। दरअसल मैं 11 अक्टूबर को महाराष्ट्र के दक्षिणी जिले कोल्हापुर में स्थित श्रीक्षेत्र सिद्धगिरि मठ गया हुआ था। मठ के स्वामित्व में वहां दो सर्वसुविधा संपन्न हास्पिटल चलते हैं- एक आयुर्वेदिक और दूसरा नए जमाने वाला। यहां नई और प्राचीन दोनों विधियों का बड़ा सुंदर समन्वय है।
सिद्धगिरि मठ के परम पूज्य स्वामी अदृश्य काडसिद्धेश्वर जी का मेरे ऊपर विशेष स्नेह रहता है। ग्रामयुग अभियान में मैं उनकी बड़ी भूमिका देखता हूं। जब मैं उनसे मिला तो उन्होंने कहा कि 50 साल के हो गए हो। अगर लंबा काम करना है तो एक बार सभी आवश्यक स्वास्थ्य जांच करवा लो। इसके लिए उन्होंने अपने कुछ लोगों को काम पर भी लगा दिया। अगले दिन बातचीत में जब मैंने डाक्टर को बताया कि मेरी मां, भाई और बहन को ब्रेन ट्यूमर हो चुका है तो डाक्टर ने कहा कि आपको एम.आर.आई भी करवा लेना चाहिए। एक-एक करके फिर मेरे दूसरे टेस्ट भी हुए। 13 अक्टूबर को जब सभी टेस्ट का परिणाम आया तो मुझे यह जान कर संतोष हुआ कि मैं पूरी तरह से स्वस्थ हूं।
जो डाक्टर मेरी जांच कर रहे थे, उनका नाम डाक्टर सचिन है। मेरी दिनचर्या और आदतों को जानने के बाद उन्होंने कहा कि मेरे स्वास्थ्य के पीछे एकादशी व्रत एक मुख्य कारण है। बता दूं कि यह व्रत मैं पिछले कई वर्षों से करता हूं। लोग सामान्यतः यह व्रत धार्मिक कारणों से शुरू करते हैं। लेकिन मेरे मामले में ऐसा नहीं रहा। यह बात वर्ष 2018 की है। उस वर्ष मेरी कंपनी संवाद मीडिया प्राइवेट लिमिटेड को जबर्दस्त घाटा हुआ था। घाटा इतना अधिक था कि मुझे सब कुछ बंद कर देना पड़ा था। यह घाटा मेरे शरीर और मन को स्थायी नुक्सान न पहुंचा दे, इसके लिए मैं कुछ उपाय करना चाह रहा था।
उसी दौरान मुझे आटोफैजी के बारे में पता चला। दो वर्ष पहले अर्थात 2016 में जापानी वैज्ञानिक Yoshinori Ohsumi को औषधि विज्ञान के क्षेत्र में विशेष खोज के लिए नोबेल प्राइज दिया गया था। योशिनोरी ने पता लगाया था कि जब मनुष्य शरीर को 24 घंटे तक भोजन नहीं मिलता तब Autophagy नामक एक विशिष्ट प्रक्रिया शुरू होती है। इसके द्वारा शरीर अपनी क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को नष्ट कर उन्हें ऊर्जा में बदल देता है। सरल शब्दों में कहें तो 24 घंटे का उपवास रखने पर शरीर अपनी ही बीमार कोशिकाओं को खा जाता है। इससे कैंसर जैसी कई असाध्य बीमारियों का खतरा कम हो जाता है। जब हम पेट को पर्याप्त समय के लिए खाली नहीं रखते तो Autophagy की प्रक्रिया नहीं हो पाती। इसके चलते शरीर में क्षतिग्रस्त कोशिकाएं इकट्ठा होती रहती हैं और वही अंततः कई बीमारियों का कारण बनती हैं।
2018 में चूंकि मेरा आफिस बंद हो चुका था। बिजनेस में क्या नया करूं, समझ में नहीं आ रहा था, इसलिए पूरा ध्यान शरीर और मन को स्वस्थ रखने पर केन्द्रित कर दिया। Autophagy पर जब और पढ़ना शुरू किया तो पता चला कि इसके लिए एक विशेष प्रकार का भोजन (कीटो डाइट) बड़ी कारगर है। कीटो डाइट में शरीर को केवल फैट और प्रोटीन दिया जाता है, कार्बोहाइड्रेट की मात्रा को लगभग खत्म कर दिया जाता है। एक शाकाहारी व्यक्ति के लिए इस डाइट को निभा ले जाना असंभव सा होता है, लेकिन मैंने 6 महीने तक इसे किया। उन दिनों पनीर, दही, घी और पत्तीदार सब्जियों के अलावा मैं कुछ भी नहीं खाता था। सभी प्रकार के अनाज, दूध, फल, और जमीन के नीचे उगने वाले कंद आदि मेरे लिए वर्जित थे। कीटो डाइट में चीनी ही नहीं हर मीठी चीज मना होती है, इसलिए मैंने इनको भी ना कह दिया था।
लोग प्रायः वजन कम करने के लिए कीटो डाइट पर जाते हैं लेकिन मेरे मामले में यह मुख्य कारण नहीं था। मेरी इच्छा तो बस स्वस्थ रहने की थी। इस डाइट के बाद शरीर में Ketosis नामक एक प्रक्रिया होती है जिसे वैज्ञानिक स्वास्थ्य के लिए (विशेष रूप से बौद्धिक कार्य के लिए) बहुत अच्छा मानते हैं। मैं इस प्रक्रिया का स्वयं अनुभव करना चाहता था। इसके लिए डाइट पर नियंत्रण के साथ-साथ उन दिनों हर रोज योग, व्यायाम और 5 किमी की दौड़ लगाना भी मेरी दिनचर्या का हिस्सा था।
अब पीछे मुड़कर देखता हूं तो लगता है कि 2018 में बिजनेस का घाटा वास्तव में बहुत फायदेमंद साबित हुआ। उस दौरान मैंने स्टोइक दार्शनिकों के बारे में भी खूब पढ़ा। घाटे के मानसिक त्रास को कम करने में मुझे इससे मदद मिली। दर्शन शास्त्र की यह शाखा प्राचीन यूनान और रोम में विकसित हुई थी। इसके अनुसार अगर जीवन में सुखी होना है तो आपको सुख-सुविधाओं की लत छोड़नी पड़ेगी। हमेशा सुख-सुविधाओं के बीच रहना दुखी रहने का अचूक उपाय है। स्टोइक फिलासफी जोर देकर कहती है कि सभी को बीच-बीच में स्वेच्छा से वंचित जीवन जीने का अभ्यास करना चाहिए। इसमें उपवास को एक प्रमुख उपाय बताया गया है। पेट भरने का मजा आपको तभी महसूस होगा जब आप इसे बीच-बीच में खाली रखेंगे। रोमन सम्राट मार्कस ओरेलियस जिसके कदमों में दुनिया का सारा वैभव पड़ा था, वह स्वयं स्टोइक फिलासफर होने के साथ-साथ इस दर्शन का अभ्यासी भी था। विलासितापूर्ण जीवन जीने में उसे कोई रुचि नहीं थी।
2018 में मैने अपने शरीर पर जो ढेर सारे प्रयोग किए, उसके पीछे दो किताबों की भी बड़ी भूमिका रही। पहली किताब का नाम है- ऐन्टी फ्रैजाइल। इसका लेखक नसीम निकोलस तालिब कहता है कि मानव शरीर की प्रवृत्ति एंटी फ्रैजाइल है। अर्थात जब इसे एक निश्चित सीमा के भीतर विपरीत परिस्थितियों में डाला जाता है, उसे चुनौती दी जाती है, उसे कष्ट दिया जाता है तो यह अपने को और बेहतर बनाने में लग जाता है। यदि शरीर को हमेशा सुख-सुविधाओं के बीच रखा जाए तो वह धीरे-धीरे स्वयं को ही नष्ट करने की प्रक्रिया शुरू कर देता है। ऐसी स्थिति में उसे औषधियों की मदद से लंबे समय तक जीवित तो रखा जा सकता है किंतु उसे निरोग रखना असंभव होगा। अगर शरीर को निरोगी रखना है तो उसे उपवास आदि के जरिए आपात् स्थिति का संकेत देते रहना चाहिए। इससे वह अपने को तैयार और चुस्त दुरुस्त रखता है।
दूसरी किताब जिसने मुझे राह दिखाई, उसका नाम है नज (Nudge). यूनिवर्सिटी आफ शिकागो के अर्थशास्त्री RH Thailer और हार्वर्ड ला स्कूल के प्रोफेसर CR Sunstein ने अपनी इस किताब में ऐसी कई राज की बातें बताई हैं जिनकी मदद से आप अपने मन को कठिन से कठिन काम करने के लिए आसानी से तैयार कर सकते हैं। उदाहरण के लिए यदि आपको हर घंटे मुंह चलाने की आदत है और आप 24 घंटे का उपवास करना चाहते हैं तो आपको यह किताब पढ़नी पड़ेगी। उसी तरह यदि आपको दो कदम चलने में भी कष्ट होता है और आप मैराथन दौड़ना चाहते हैं, तब भी आप इस किताब की शरण में जा सकते हैं।
2018 में जब कीटो डाइट करते हुए मुझे 6 महीने हो गए तब मुझे थोड़ी ऊबन शुरू हो गई। मेरी आहार शैली के कारण घर में और विशेष रूप से पत्नी को जो असुविधा हो रही थी, उसे लेकर भी मैं असहज हो रहा था। उसी दौरान एक दिन अचानक मेरा ध्यान एकादशी व्रत की ओर गया। मैंने पाया कि एकादशी व्रत की प्रक्रिया ऐसी है कि उसमें Autophagy और Ketosis दोनों प्रक्रियाएं एक साथ हो सकती हैं। फिर क्या था मैंने कीटो डाइट को अलविदा कहा और एकादशी व्रत को अपना लिया।
धीरे-धीरे मुझे मालूम हुआ कि यह कितना अद्भुत व्रत है। मैंने ऊपर जिन बातों का जिक्र किया है, इसमें वे सब हैं। बात उतनी भर नहीं है। इस व्रत की इतनी खूबियां हैं कि मुझे उस पर अलग से लिखना पड़ेगा। इसमें तन के साथ-साथ मन और आत्मा को भी स्वस्थ रखने की व्यवस्था है।
एकादशी व्रत को एक विडियो गेम की तरह डिजाइन किया गया है। इसमें नज् के मनौवैज्ञानिक सिद्धांतों का बड़ी खूबसूरती से इस्तेमाल हुआ है। अगर आपने पहले कभी व्रत नहीं किया है तो आपको लेवल-1 से शुरू करना होगा। इसमें व्रती से अपेक्षा की जाती है कि वह एकादशी के दिन भगवान विष्णु को प्रणाम करके चावल और मांसाहार का त्याग कर दे। शेष सबकुछ पहले जैसा ही रहेगा। लेवल-1 में भोजन की मात्रा और आवृत्ति पर कोई प्रतिबंध नहीं होता। जब आप इस प्रक्रिया को महीने में दो बार करना शुरू करेंगे तो आप धीरे-धीरे व्रत के अगले लेवल की ओर सहज ही बढ़ते चलेंगे। किसी अनुभवी व्यक्ति का साथ मिल जाए तो यह प्रक्रिया और प्रभावी हो जाती है।
एकादशी व्रत के पारलौकिक और आध्यात्मिक फायदों को कोई माने या न माने, लेकिन इसके लौकिक फायदों से कोई इनकार नहीं कर सकता। दवाई और अस्पतालों के नाम पर हजारों-लाखों रूपए खर्च करने और तन-मन की पीड़ा से बचने का यह सबसे सहज और आसान तरीका है। आधुनिकतम अनुसंधान और अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर यह बात मैं दावे के साथ कह सकता हूं।
मेरे सभी परिचित इस व्रत से परिचित हों, इसीलिए मैंने तय किया है कि हर महीने मैं दशमी के दिन यह डायरी पोस्ट करूंगा ताकि लोग लेवल-1 का व्रत रखने के लिए स्वयं को तैयार कर सकें। ग्रामयुग की जो मेरी परिकल्पना है, उसके लिए मुझे यह बहुत जरूरी लगता है।
(विमल कुमार सिंह, संयोजकः ग्रामयुग अभियान।)