गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा क्यों कहते हैं?

सनातन परंपरा में गुरु को ईश्वर से भी ऊंचा स्थान दिया गया है। सनातन धर्म में जिसे आम तौर पर हम हिन्दू धर्म के नाम से ही जानते है गुरु पूर्णिमा का बड़ा महत्त्व इसलिए भी है क्यों इस धर्म की मान्यता में गुरु को ईश्वर का दर्जा दिया गया है और दोनों को एक समान माना गया है।

कभी-कभी प्रकृति में भी अजब -गजब के संयोग बनते हैं। यह साल भी ऐसे ही संयोगों से भरा साल है। संयोग भी ऐसा कि साल के शुरुआती सात महीने के दौरान एक के बाद एक दो ग्रहण लग गए। अभी एक पखवाड़े पहले ही तो 21 जून सोमवार को अमावस्या के दिन सूर्य ग्रहण लगा था और अब रविवार 5 जुलाई  को पूर्णमासी के दिन चन्द्र ग्रहण का योग बन रहा है। सूर्य ग्रहण हमेशा ही अमावस्या को दिन में और चन्द्र ग्रहण पूर्णमासी की रात को ही लगता है और यह सब नक्षत्रों की गति पर ही निर्भर करता है सूर्य का चक्कर लगाने वाली पृथ्वी और पृथ्वी का चक्कर लगाने वाला चन्द्र का तीनों एक सीध में आ जाते हैं? 

सूर्यग्रहण तब होता है जब चन्द्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाता है। इसी तरह जब सूर्य पृथ्वी और चन्द्रमा के बीच में आ जाता है तो चन्द्र ग्रहण हो जाता है। ऐसे इसलिए होता है क्योंकि दोनों ही स्थितियों में पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य एक सीध में आ जाते हैं। जब चन्द्रमा के बीच में आने की वजह से सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुंचता या कम पहुंचता है तब सूर्य ग्रहण और जब सूर्य के चन्द्रमा और पृथ्वी के बीच में आ जाने की वजह से च्नाद्र्मा का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुंचता या कम पहुंचता है तब चन्द्र ग्रहण होता है।

इस बार ये दोनों संयोग एक पखवाड़े के अंतराल में ही देखने को मिल गए ये वास्तव में एक बड़ी बात भी है। संयोग यह भी है कि इस बार जिस पूर्णिमा को चन्द्र ग्रहण का ये संयोग बन रहा है उस दिन गुरु पूर्णिमा है। ऐसी मान्यता है कि संवत्सर केलेंडर की जिस तिथि को इस पूर्णिमा का आयोजन होता है उसी दिन महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था और वेद व्यास को श्रृष्टि का गुरु माना जाता है इसलिए इस पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा नाम दिया गया।

शास्त्रों की मान्यता के हिसाब से संवत्सर कैलेंडर आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। यह उत्सव गुरु के प्रति सम्मान और कृतज्ञता का प्रतीक पर्व माना जाता है। इस साल यह पर्व रविवार 5 जुलाई को मनाया जाएगा। गुरु पूर्णिमा के इसी मौके पर चंद्र ग्रहण का संयोग भी बन रहा है। सनातन परंपरा में गुरु को ईश्वर से भी ऊंचा स्थान दिया गया है। सनातन धर्म में जिसे आम तौर पर हम हिन्दू धर्म के नाम से ही जानते है गुरु पूर्णिमा का बड़ा महत्त्व इसलिए भी है क्यों इस धर्म की मान्यता में गुरु को  ईश्वर का दर्जा दिया गया है और दोनों को एक समान माना गया है। 

गुरु भगवान के समान है और भगवान ही गुरु हैं। गुरु ही ईश्वर को प्राप्त करने और इस संसार रूपी भव सागर से निकलने का रास्ता बताते हैं। गुरु के बताए मार्ग पर चलकर व्यक्ति शान्ति, आनंद और मोक्ष को प्राप्त करता है। शास्त्रों और पुराणों में कहा गया कि अगर भक्त से भगवान नाराज हो जाते हैं तो गुरु ही आपकी रक्षा और उपाय बताते हैं। गुरु और इश्वर के इस सनातन रिश्ते को मान्यता देने के सन्दर्भ में ही भारतीय चिंतन परंपरा में गुरु के महत्व को बताते हुए संत कबीर दास के उस दोहे को भी सामाजिक और आध्यात्मिक मान्यता मिल गई है जिसमें कहा गया है ,”गुरु गोविन्द (ईश्वर) दोनों खड़े काके लागू पाय, बलिहारी गुरु आपने जिन गोविन्द दियो बताय।”

इसके अलावा संस्कृत के प्रसिद्ध श्लोक में गुरु को परम ब्रह्म बताया गया है। गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।। धार्मिक मान्यता के अनुसार, गुरु पूर्णिमा पर गुरु की पूजा-आराधना की जाती है। देश में गुरु पूर्णिमा का बहुत ही महत्व है। गुरु पूर्णिमा को लोग बड़े उत्साह और जोश के साथ मनाते हैं। भारत ऋषियों और मुनियों का देश है जहां पर इनकी उतनी ही पूजा होती है जितना भगवान की। महर्षि वेद व्यास प्रथम विद्वान थे, जिन्होंने सनातन धर्म के चारों वेदों की व्याख्या की थी। साथ ही सिख धर्म केवल एक ईश्वर और अपने दस गुरुओं की वाणी को ही जीवन का वास्तविक सत्य मानता आ रहा है।  

गुरु पूर्णिमा महाकाव्य महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। वेदव्यास संस्कृत के महान ज्ञाता थे। सभी 18 पुराणों का रचयिता भी महर्षि वेदव्यास को माना जाता है। वेदों को विभाजित करने का श्रेय भी वेद व्यास को दिया जाता है। इसी कारण इनका नाम वेदव्यास पड़ा था। इसलिए गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना हमारे देश में गुरु पूर्णिमा क्यों मनाते हैं यह बहुत ही कम लोग जानते होंगे। आज हम आपको बताते हैं कि गुरु पूर्णिमा पर्व किसे समर्पित हैं। 

पौराणिक गाथाओं एवं शास्त्रों की मानें तो अनेक ग्रन्थों की रचना करने वाले वेदव्यास को सभी मानव जाति का गुरु माना गया है। बताया जाता है कि आज से लगभग 3 हजार ईसा पूर्व आषाढ़ माह की पूर्णिमा को महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। तब से ही उनके मानन एवं कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु आषाढ़ शुक्ल की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाई जाती हैं। भारत भर में इस दिन अधिकांश जगह लोग महर्षि वेदव्यास के चित्र का पूजन कर उनके द्वारा रचित ग्रंथो को पढ़ते हैं। गुरु पूर्णिमा को कई जगह भव्य महोत्सव के रूप में मनाते हुए ब्रह्मलीन गुरुओं की समाधि का पूजन अर्चन भी करते हैं।

भारतीय संस्कृति में गुरुओं को ब्रह्माण्ड के प्रमुख देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान पूज्यनीय माना गया हैं। पुराणों में कहा गया हैं की गुरु ब्रह्मा के समान हैं और मनुष्य योनि में किसी एक विशेष व्यक्ति को गुरु बनाना बेहद जरूरी हैं। क्योंकि गुरु अपने शिष्य का सर्जन करते हुए उन्हें सही राह दिखाता हैं। इसलिए गुरु पूर्णिमा के दिन बहुत से लोग अपने ब्रह्मलीन गुरु या संतो के चरण एवं उनकी चरण पादुका की पूजा अर्चना करते हैं। 

गुरु के प्रति समर्पण भाव गुरु पूर्णिमा के दिन देखा जा सकता हैं। गुरु के प्रति ये सब मान्यताएं हैं और सारी मान्यताएं आस्था पर टिकी हैं, कह सकते हैं कि हर इंसान, “जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी” के सिद्धांत का पालन करते हुए अपने गुरु का स्मरण करता है। दुनिया में ऐसे लोग भी हैं जो किसी को अपना गुरु नहीं मानते। बहरहाल ! गुरु एक सत्य है यह बात किसी से छिपी नहीं है 

First Published on: July 4, 2020 5:20 AM
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