क्या अदानी ग्रुप को सबक सिखाने में लग गया है बाइडेन प्रशासन


अदानी पोर्टस की इस महत्वकांक्षा को अमेरिकी और चीनी दोनों प्रशासन पसंद नहीं कर रहे है। दरअसल अदानी पोर्टस के निवेश को अमेरिका और चीन दोनों मुल्क जियो स्ट्रैटजिक एंगल से भी एनालसिस कर रहे है। वैसे में अदानी पोर्टस पर हुई कार्रवाई को सिर्फ म्यांमार की सेना से संबंधों के मद्देनजर ही नहीं देखा जाना चाहिए।


संजीव पांडेय संजीव पांडेय
मत-विमत Updated On :

क्या जो बाइडेन प्रशासन भारत के प्रभावी कारपोरेट घरानों को सबक सिखाने के खेल में लग गया है। कम से कम अमेरिकी प्रशासन के एक ताजा फैसले ने भारत के एक बड़े कारपोरेट घरानों के तगड़ा झटका दिया है। भारत सरकार के नजदीकी कारपोरेट घराना अदानी ग्रुप को बाइडेन प्रशासन से झटका मिला है। अदानी ग्रुप से संबंधित अदानी पोर्ट्स को अमेरिकी शेयर सूचकांक डॉओ जोंस ने बाहर कर दिया है। अदानी पोर्टस के म्यांमार की सेना से संबंध को आधार बनाते हुए अदानी पोर्टस को बाहर किया गया है।

निश्चित तौर पर इस कार्रवाई को एशियाई जियो इकनामिक्स से जोड़ कर देखा जाना चाहिए। इसमें अमेरिकी प्रशासन की भूमिका को नजर अंदाज नहीं कर सकते है। अमेरिकी कारपोरेट घरानों की भूमिका को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। क्योंकि अमेरिकी शेयर सूचकांक से अदानी पोर्टस को बाहर किए जाने का सीधा प्रभाव अदानी ग्रुप के विदेशों के कारोबार पर पड़ेगा। क्योंकि अदानी पोर्टस की नजर कई एशियाई बंदरगाहों पर है।

लेकिन अदानी पोर्टस की इस महत्वकांक्षा को अमेरिकी और चीनी दोनों प्रशासन पसंद नहीं कर रहे है। दरअसल अदानी पोर्टस के निवेश को अमेरिका और चीन दोनों मुल्क जियो स्ट्रैटजिक एंगल से भी एनालसिस कर रहे है। वैसे में अदानी पोर्टस पर हुई कार्रवाई को सिर्फ म्यांमार की सेना से संबंधों के मद्देनजर ही नहीं देखा जाना चाहिए।

डॉओ जोंस इंडाइसिस ने अदानी पोर्टस को बाहर करते हुए कहा है कि भारत के अदानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन लिमिटेड को म्यांमार की सेना के साथ व्यापारिक संबंधों के कारण अपने सूचकांक से हटाया है। अदानी पोर्टस ने म्यांमार में बंदरगाह विकास का काम लिया है, जिसके लिए जमीन म्यांमार की सेना की कंपनी ने लीज पर उपलब्ध करवायी है।

म्यांमार की सेना इस समय तख्ता पलट कर म्यांमार में शासन कर रही है। म्यांमार की सेना का जोरदार विरोध लोकतंत्र समर्थक कर रहे है। सैन्य कार्रवाई में लगभग 700 लोग मारे जा चुके है। म्यांमार की सेना पर तख्तापलट के बाद मानवाधिकारों का भारी हनन का आरोप लगा है। म्यांमार की सेना से संबंधित कंपनी म्यांमार इकनॉमिक कारपोरेशन के कारोबारी संबंध अदानी ग्रुप के साथ है। म्यांमार की सेना की इस कंपनी के कारोबार पश्चिमी देशों के निशाने पर पिछले कई सालों से है। अदानी पोर्टस म्यांमार की सेना की इस कंपनी से लीज पर ली गई जमीन पर यांगून में 290 मिलियन डॉलर की लागत से पोर्ट बना रहा है।

अमेरिकी शेयर बाजार से अदानी पोर्टस को बाहर करने की घटना को अकेले में नहीं देखा जा सकता है। दरअसल इस फैसले से कुछ दिन पहले भारतीय समुद्री इलाके में बिना अमेरिकी नौसेना ने बिना अनुमति प्रवेश कर स्वतंत्र नौवहन के नाम पर अभ्यास किया। इसके बाद भारत को चिढ़ाने के लिए अमेरिकी नौ सेना ने एक ब्यान भी जारी किया। अमेरिकी नौ सैनिकों का अभ्यास भारत के मैरीटाइम एक्ट का उल्लंघन था। वहीं कुछ दिन पहले भारत के दौरे पर आए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के विशेष प्रतिनिधि जॉन कैरी ने दिल्ली पुलिस दवारा टूल किट मामले में गिरफ्तार दिशा रवि की तारीफ की थी।

निश्चित तौर पर समुद्री क्षेत्र में अडानी पोर्टस के विस्तार से अमेरिका भी प्रसन्न नहीं है। क्योंकि अमेरिका वैश्विक समुद्री ताकत के रुप में अपना एकक्षत्र राज चाहता है। अमेरिका ने चीनी समुद्री विस्तार को भी चुनौती दी है। अमेरिका की समुद्री ताकत की सर्वोच्चता को पिछले कुछ सालों में चीन ने चुनौती दी है। लगभग बीस साल पहले चीन ने मल्लका जलडमरूमध्य से नीचे हिंद महासागर से लेकर फारस और अदन की खाड़ी तक अपनी समुद्री ताकत का विस्तार करने का फैसला लिया था। चीन ने व्यवहार रुप में अपनी ताकत का विस्तार कर भी लिया है। आज चीन के पास कुछ देशों में महत्वपूर्ण स्ट्रैटजिक बंदरगाह है। इसमें पाकिस्तान, जिबूती, म्यांमार और श्रीलंका जैसे देश शामिल है।

पिछले तीन-चार सालों में अदानी पोर्टस ने भी भारत से बाहर बंदरगाहों के विकास में निवेश तेज किया। दरअसल समुद्री नौवहन पर कब्जे को लेकर संघर्ष का एक इतिहास रहा है। दूसरे विश्वयुद से पहले जापान और अमेरिका के बीच तनाव का एक बड़ा कारण समुद्री नौवहन के रूट थे, जिस पर जापान कब्जा चाहता था। जापान अमेरिकी प्रभाव वाले समुद्री रूटों पर अपनी ताकत को बढाना चाहता था। उसके कारण जापान और अमेरिका दोनों आमने सामने आ गए। आज भी हालात लगभग वही है।

अब अमेरिकी सर्वोच्चता को चुनौती चीन दे रहा है। लेकिन अदानी पोर्टस के भारत से बाहर के विस्तार के बाद वैश्विक ताकतें सतर्क हो गई। हाल ही में श्रीलंका सरकार ने कोलबों में विकसित किए जाने वाले एक प्रोजेक्ट से अदानी ग्रुप को बाहर कर दिया था। भारत, जापान और श्रीलंका के बीच हुए एक त्रिपक्षीय समझौते के तहत कोलंबो बंदरगाह के ईस्ट कंटेनर टर्मिनल को विकसित किया जाना था। भारत की तरफ से इस टर्मिनल में अदानी पोर्टस ने निवेश करना था। लेकिन श्रीलंका सरकार ने अदानी पोर्टस के अनुबंध को एकतरफा रद्द कर दिया।

श्रीलंका सरकार का यह फैसला अदानी पोर्टस के लिए एक झटका था। बताया जाता है कि इस खेल में भी पीछे से वैश्विक ताकतें सक्रिय थी। दरअसल चीन और अमेरिका दोनों नहीं चाहते है कि महत्वबपूर्ण स्ट्रैटजिक बंदरगाहों में भारतीय कारपोरेट घरानों का निवेश हो। वैसे भी दुनिया के कई बड़े कारपोरेट घराने अदानी और अंबानी के बढते कद के खिलाफ लामबंदी कर रहे है।

निश्चित तौर पर अमेरिकी शेयर सूचकांक से अदानी पोर्ट्स के बाहर होने से अदानी के कारोबार पर असर पड़ेगा। इसका असर अदानी पोर्टस के शेयरों पर भी दिखा। अदानी पोर्टस के शेयर में गिरावट भी देखी गई। फिलहाल अदानी पोर्ट्स का मार्केट कैप करीब 1.45 लाख करोड़ रुपए है। दूसरी तरफ अदानी पोर्ट्स के अमेरिकी शेयर सूचकांक से हटाए जाने के फैसले को सिविल सोसायटी के कार्यकर्ताओं ने स्वागत किया है।