माता सीता को अपशब्द कहने वाली हीर खान गिरफ्तार

संजय तिवारी
मत-विमत Updated On :

हीर खान जनवरी महीने से एक यू ट्यूब चैनल चलाती थी। बीते कई महीने से वह लगातार भारत के धार्मिक शहर प्रयागराज में बैठकर हिन्दू देवी देवताओं को गाली दे रही थी। लेकिन पांच अगस्त को अयोध्या में रामलला मंदिर के भूमि पूजन के बाद वह बौखला जाती है। उसके बाद उसने अपने यू ट्यूब चैनल का नाम 5 अगस्त ब्लैक डे कर देती है और भगवान राम और सीता को भद्दी-भद्दी गालियां देना शुरु कर देती है। अचानक किसी की नजर पड़ती है और वह उसके वीडियो 25 अगस्त को ट्विटर पर डाल देता है। देखते ही देखते ट्विटर पर #अरेस्टहीरखान का अभियान चल पड़ता है और तत्काल प्रयागराज पुलिस कार्रवाई करते हुए पच्चीस अगस्त की शाम तक उसे गिरफ्तार भी कर लेती है। लेकिन उसका जिस तरह का अपराध है उसे देखते हुए उस पर बहुत हल्की धाराओं में कार्रवाई की गयी है।

सोशल मीडिया पर वह न सिर्फ भगवान राम को बल्कि मां सीता को भी भद्दी-भद्दी गालियां दे रही थी। इतनी भद्दी गालियां कि सुनने वाला कान पर हाथ रख ले। गाली देने के बाद अपने कई वीडियो में वह चैलेन्ज भी करती थी कि अगर यूपी पुलिस में दम है तो मुझे गिरफ्तार करके दिखाये। सोशल मीडिया पर सक्रिय हिन्दूवादी लोगों ने 24 अगस्त की रात से ही इसकी खोज शुरु कर दी। हिन्दू साइबर सेल नामक एक ट्विटर एकाउण्ट से उसकी पहचान बताने की अपील की गयी और जल्द ही पता चल गया कि वह प्रयागराज के खुल्दाबाद इलाके में रहती है। इसके बाद उसके खिलाफ एफआईआर हुई और उसे गिरफ्तार कर लिया गया।

लेकिन इस पूरे मामले में एक महत्वपूर्ण बात ये रही कि सोशल मीडिया पर एक भी व्यक्ति ने ये नहीं कहा कि इसे सजा हम देंगे। जिसने भी इस मामले पर पोस्ट लिखा या फिर अपील किया उन सबने यही कहा कि इस लड़की को तत्काल गिरफ्तार किया जाए। यह समझना महत्वपूर्ण है कि अपनी आराध्या मां सीता और देवी दुर्गा तथा काली को इतनी भद्दी गाली देनेवाली महिला के लिए किसी ने भी ये नहीं कहा कि इसे मार दो। इसे जिन्दा जला दो या फिर इसे हम हिन्दू सजा देंगे। सबने यही कहा कि इसे गिरफ्तार करके कानून के मुताबिक कठोर से कठोर सजा दिया जाए। अर्थात अपने आराध्य का इतना वीभत्स अपमान सुनने के बाद भी लोगों ने कानूनन कार्रवाई करने की अपील किया।

क्या अगर यही टिप्पणी मुसलमानों के पैगंबर या उनसे जुड़े लोगों पर की जाती तो मुसलमान इतनी समझदारी दिखाता? शायद नहीं। बिल्कुल नहीं। इस्लाम का इतिहास उठाकर देंखेंगे तो पायेंगे कि नबी निंदकों को सजा देने के लिए मुसलमान स्वयं आगे आ जाते हैं। अभी हाल में ही अचानक रात में बंगलौर का एक हिस्सा जल उठा। पुलिस थानों पर हमला किया गया। मामला क्या था? एक लड़के पर आरोप लगा था कि उसने मुसलमानों के पैगंबर का अपमान कर दिया था। ऐसे मामलों में आखिर मुसलमान कानून पर भरोसा न करके आखिर स्वयं सजा देने क्यों निकल पड़ता है?

ऐसा भी नहीं है कि ये हालात सिर्फ भारत में हैं। पड़ोस के पाकिस्तान में कठोर नबी निंदा कानून बना है जिसमें फांसी तक का प्रावधान है, फिर भी वहां के मुसलमान कानूनी प्रक्रिया के पूरे होने का भी इंतजार नहीं करते और मौका मिलते ही कथित नबी निंदक को मार देते हैं। बीते महीने जुलाई में ताहिर अहमद नसीम को भरी अदालत में एक मुस्लिम नौजवान ने मार दिया। नसीम पर आरोप था कि उसने नबी की निंदा किया था। इसी तरह यूपी के लखनऊ में कमलेश तिवारी को योजना बनाकर मार दिया जबकि वह कथित तौर पर पैगंबर के खिलाफ दिये अपने बयान के कारण गिरफ्तार भी हो चुका था और जमानत पर बाहर था।

पेरिस के चार्ली हाब्दो की कुख्यात घटना आज भी लोगों को याद है कि कैसे कार्टूनिस्टों को सिर्फ इस अपराध में मार दिया कि उन्हें लगा कि चार्ली हाब्दो के कार्टूनिस्टों ने उनके पैगंबर का कार्टून बनाया है। अपेक्षाकृत उदार कहे जानेवाले तुर्की में भी कलाकारों पर कानूनी रोक है कि वो इस्लाम से जुड़ा कोई ऐसा चित्र नहीं बनायेंगे जिससे इस्लाम की या उसके पवित्र निशानियों कि निंदा झलकती हो। मजे की बात तो ये है कि इन कानूनों का उपयोग से ज्यादा दुरुपयोग होता है। मसलन, मार्च 2017 में बलोचिस्तान के मरदान विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के छात्र मशाल खान को उसके हॉस्टल में घुसकर उन्मादी भीड़ ने मार दिया था।

मशाल खान पर आरोप था कि उसने इस्लाम की निंदा किया था। उसकी मौत के बाद जांच में पता चला कि मशाल खान के खिलाफ उसके विश्वविद्यालय में ही एक ग्रुप सक्रिय था और उससे दुश्मनी रखता क्योंकि मशाल खान मार्क्सवादी विचारों को मानता था। इसी साल बलोचिस्तान में ही एक और घटना हुई जब एक स्थानीय हिन्दू व्यापारी पर आरोप लगा कि उसने इस्लाम की निंदा करनेवाली पोस्ट सोशल मिडिया पर डाली है। पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया लेकिन एक स्थानीय मौलाना के नेतृत्व में उन्मादी भीड़ ने थाने पर हमला कर दिया और मांग करने लगे कि आरोपी को उन्हें सौंप दिया जाए ताकि वो सजा दे सकें। हालांकि पुलिस ने भीड़ को तितर बितर करने के लिए गोलीबारी कर दी जिसमें एक दस साल का लड़का मारा गया।

सवाल नबी निंदा का नहीं रहा। सवाल हो गया मुसलमानों की सहिष्णुता का। अगर वो इसी तरह अफवाहों को सुनकर मारने के लिए दौड़ पड़ेंगे तो फिर लोग अफवाहें फैलाकर मुसलमानों का अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करेंगे जैसे आज पाकिस्तान में कर रहे हैं। मामला कुछ और भी रहे तो ब्लासफेमी की हवा उड़ा दी जाती है और लोग कथित आरोपी पर टूट पड़ते हैं। हीर खान के मामले में कम से कम किसी हिन्दू ने भीड़ बनने की कोशिश नहीं किया और न ही ये कहा कि इसकी सजा हम खुद देंगे। मुस्लिम समुदाय को भी कानून व्यवस्था और संविधान अपने हाथ में लेने की बजाय उस पर भरोसा करना सीखना होगा, भले ही मामला हीर खान की गालियों जितना ही गंभीर क्यों न हो।