फाल्गुन माह के आते ही मन होली के रंग में सराबोर हो जाता है, होली का अपना एक अलग ही मजा है हर तरफ होली की मस्ती छाई रहती है। क्या बच्चे क्या बूढ़े, जिसे देखो सब एक अजीब से रंग में रंग जाते हैं, मिजाज भी रंगीन साथ ही उत्सव भी रंगीन, जो हमें यह सन्देश देती है कि जीवन में एकरसता का कहीं कोई जगह नहीं है।
होली का महत्व कृष्ण के समय से ही चला आ रहा है। पहले फूलों की होली होती थी फिर गुलाल की होली और अब हानिकारक रंगों की होली। बदलाव विकास की प्रक्रिया है लेकिन क्या इस तरह का बदलाव विकास ला सकता है। आज लोगों की मानसिकता बदली है लेकिन ऐसा विकास बदलाव तो नहीं लेकिन विनाश जरूर ला सकता है। कहते हैं जरुरत से ज्यादा विकास विनाश का परिचायक होता है।
खैर हम बात कर रहे हैं होली के बदलते स्वरुप की। फूलों की होली अपने आप में एक शांति और प्रेम का सन्देश लाती है। रीतिकाल में होली प्रेम और छेड़छाड़ से भरी होती थी चाहे वह पति-पत्नी के बीच खेली जाने वाली होली हो या फिर देवर-भाभी के बीच की होली। हाँ, प्रेम और छेडछाड़ आज भी होली के अवसर पर होता है पर उसका स्वरुप बदल गया है। इसका अर्थ हम अपने आप लगा सकते हैं जैसे सतयुग में फूल शांति और प्रेम का प्रतीक था वैसे ही आज हानिकारक युक्त रंग ने इसका अर्थ ही बदल डाला है।
हालाँकि आज भी कई जगहों पर होली रीतिकाल की तरह ही खेली जाती है, वही प्रेम भरी छेडछाड़़ होती है लेकिन आज कई जगहों पर होली के नाम पर बदसलूकी और छेडछाड़ होते देखा जा सकता है। जिसको देख कर आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि वर्तमान में होली का स्वरुप कितना बदल गया है। वृन्दावन में पहले लट्ठमार होली खेली जाती थी तो वर्तमान में भी हमने बीते कुछ वर्ष पहले वो होली देखी है मुंबई में, जहाँ आसाराम बापू के होली समारोह में उनके समर्थकों ने मीडियाकर्मियों को जमकर पीटा, यानि लट्ठ की जगह लात और थप्पड़ ने ले ली, तो हुआ न विकास….?
खैर कोई बताएगा क्या कसूर था उन मीडिया कर्मियों का। यह वाक्या 18 मार्च 2013 का है जब महाराष्ट्र में आसाराम की पानी वाली होली होने पर विवाद हो गया था। आसाराम ने नागपुर के होली समारोह में भक्तों पर हजारों लीटर पानी बहाया तो नवी मुंबई नगर पालिका ने आसाराम को ऐसी होली के लिए पानी की सप्लाई से ही मन कर दिया। बस फिर क्या था उनके समर्थक भड़क गए और उन्होंने मीडिया पर अपना गुस्सा निकला।
आसाराम की होली के बारे में मीडिया में खबर दिखाए जाने से भड़के समर्थकों ने मीडिया पर जमकर पथराव किया जिसमें तीन पत्रकार घायल हो गए। घटना के समय आसाराम घटनास्थल पर ही थे और चाहते तो अपने समर्थकों को शांत करा सकते थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। नगरपालिका ने सही किया क्योंकि महाराष्ट्र चार दशकों से सबसे भयंकर सूखे का सामना कर रहा था साथ ही आबादी को देखते हुए भी पानी की किल्लत का अंदाजा लगया जा सकता था पर यह बात आसाराम को समझ नहीं आया। उनका बस जब सरकार पर नहीं चला तो बेबस लोगों पर अपना कहर बरसाने लगे।
हालाँकि सरकार का फैसला एकदम सही था जहाँ जनता पानी के लिए परेशान है वहां होली के नाम पर पानी को क्यों व्यर्थ बहने दे। जब लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ (मीडिया) ही नहीं बच सका तो आम लोग कैसे बच पायेगा। खैर हम बात कर रहे थे होली की, होली का महत्त्व जो तब था, आज भी वही है। जहाँ पहले होली सारे अलगाव और कटुता को अपनी रंग भरी धाराओं से धो जाती थी वहीँ आज लोगों के पास वक्त ही नहीं है त्योहार को मनाने का तो अलगाव और कटुता कैसे दूर हो पायेगी।
आज इन्सान को अपने लिए ही वक्त नहीं है तो ऐसे में अपनों के लिए कहाँ से वक्त निकाल पायेगा। आज होली जैसा त्यौहार भी रंगहीन प्रतीत होता है। पहले फाल्गुन मास के आते ही होली की धूम मची रहती थी वही आज होली कब आई और कब बीत गई कुछ पता ही नहीं चलता। वर्तमान में रंगमय त्यौहार का महत्त्व अक्षुण्ण व नगण्य होने लगा है। कहते हैं होली के रंग-बिरंगे रंग व्यक्ति के जीवन में अनगिनत रंग भरते है और जीवन को उल्लास व भाईचारे के बोध से अवगत कराते हैं पर अफ़सोस, यह हमारे जीवन से दूर होते जा रहा है।