दशकों से प्रताड़ना झेल रहे किसानों की दशा सुधरने की उम्मीद

अभिषेक गुप्ता
मत-विमत Updated On :

संसद में जब केंद्र सरकार कृषि विधेयक को लाने का प्रस्ताव रख रही होगी, तब किसी को पता नहीं होगा की इतना बड़ा विरोध झेलना पड़ेगा। लोक सभा में तो बिल पास होने में ज्यादा जोर आजमाइश नहीं हुई लेकिन राज्य सभा तक जाते जाते बिल फटने के साथ साथ सांसद टेबल पर चढ़े और माइक टूटने का सिलसला भी देखने को मिला। विपक्ष को तो जैसे इस बिल में अपनी खोई हुई ऊर्जा नज़र आती है। कांग्रेस और उसकी साथी पार्टियां बिल के विरोध को लेकर लामबंद हैं।

पक्ष हो या विपक्ष कृषि बिल को लेकर आगामी चुनावों में अपनी सियासी रोटी सेकने की तैयारी में हैं। एक तरफ सरकार इस बिल को किसान हितैषी बता रही है तो वहीं विपक्ष इस बिल को किसानों के खिलाफ बता रही हैं। बिल के विरोध में लोग सड़कों पर भी हैं, और ऐसे भी लोग है जो बिल के समर्थन में सड़कों पर हैं। किसान संगठनों का कहना है कि ये विधेयक कृषि क्षेत्र को कार्पोरेट के हाथों में सौंपने की कोशिशों का हिस्सा हैं। लेकिन सरकार का दावा है कि इससे किसानों की आय बढ़ेगी और नए बाज़ार भी किसानों को उपलब्ध होंगे।

विपक्ष भ्रम फैलाकर ये कह रहा है कि इससे एमएसपी में नुकसान होगा, जबकि सरकार ने साफ साफ शब्दों में कहा है कि एमएसपी पर कोई खतरा नहीं है। बिहार में आरजेडी समेत अन्य विपक्षी पार्टियां भी इसके विरोध में हैं और होना तो लाजमी भी है क्योंकि कुछ ही महीनों बाद बिहार में विधानसभा चुनाव जो है। कृषि के नजरिए से देखा जाए तो उत्तर प्रदेश और बिहार दोनों ही राज्य कृषि प्रधान राज्य है। दोनों ही राज्यों में चावल, धान, गेहूं और दालों की उपज सबसे बढ़िया है क्योंकि दोनों ही राज्यों में नदियों का बढ़िया पानी है जो भूमि को उपजाऊ बनाता है।

लेकिन विपक्ष जनता और किसानों की आंखों में धूल झोंककर अपना सियासी पलड़ा भारी करने की फिराक में है, क्योंकि बिल के हिसाब से ना तो एमएसपी पर कोई फर्क पड़ रहा है और ना ही दशकों से चली आ रही मंडी व्यवस्था पर। सरकार का इस बिल को लाने का मकसद साफ है, एक तो किसानों को उनकी फसल के अच्छे दाम मिले और दूसरा किसान सीधे तौर पर निवेशकों से सौदा कर सके। हां अगर किसी को नुकसान है तो वो है बिचौलिए, केंद्र सरकार के इस बिल से बिचौलिए की भूमिका ख़तम हो जाएगी जिसका सीधा फायदा किसानों कि जेब में पहुंचेगा। जमाखोर और बड़े जमींदारों की मनमानी ख़त्म होगी, जिसका मतलब किसान के एक एक पसीने कि बूंद की कीमत किसान के पास ही जाएगी ना कि बिचोलियों के पास।

ऐसे में मुख्य तौर पर बिहार के जो किसान है, जहां जमाखोर और बिचोलियों की भरमार है ये बिल उन किसानों के लिए वरदान साबित होगा। वर्तमान भारत में बाइस हजार ग्रामीण हाटो पर किसान अपना उत्पाद बेचते हैं जहाँ उपभोक्ता उनसे उनका सामान खरीदता है। ऐसे कई राज्य है जहाँ सरकारी मंडी कानून उन्हें अपना सामान बेचने से रोकता है। क्योंकि बिहार में मंडी व्यवस्था ही नहीं है, ऐसे में छोटे किसानों को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है उन्हें उनकी फसल का सही दाम ही नहीं मिल पाता।

इस बिल के पास होने के बाद उन्हें अपनी फसल बेचने की आजादी मिलने के साथ दूसरे लाभ भी मिलने की उम्मीद है। जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं, उनमें किसान नहीं बल्कि बिचौलिये शामिल हैं। न्यूनतम समर्थन मूल्य और सरकारी खरीद जारी रखे जाने से किसानों की फसल और ज्यादा सुरक्षित होगी। इस विधेयक ने उन्हें खुले तौर पर दूसरे प्रदेशों की मंडी में अपना अनाज बेचने की छूट दी है। ये समझना मुश्किल नहीं है कि जब खुद किसान इस बिल का समर्थन कर रहे हैं तो सड़कों पर कौन है? क्योंकि यह विधेयक किसानों को अपने उत्पाद बेचने की आजादी देगा और वे मंडी तक सीमित नहीं रहेंगे। इससे उन्हें फसल की अच्छी कीमत भी मिलेगी। मंडियों के अलावा फार्म गेट, कोल्ड स्टोर, वेयर हाउस और प्रसंस्करण यूनिटों के पास भी व्यापार के ज्यादा अवसर होंगे। बिचौलियों का खेल भी खत्म हो जाएगा।

सरकार ने भविष्य में होने वाली कठिनाइयों को भी मद्देनजर रखते हुए बिल में बदलाव किए है जैसे कि किसान को समय पर फसल का भुगतान मिल सकेगा। इसका लाभ बिहार जैसे राज्य के लाखों सीमांत व छोटे किसानों को मिलेगा। खेत में ही उपज की गुणवत्ता जांच और परिवहन जैसी सुविधाएं उपलब्ध होंगी। कृषि उत्पाद की गुणवत्ता सुधरेगी और बिना रोकटोक निर्यात को बढ़ावा भी मिलेगा। जब सब्जियों की कीमत ज्यादा होगी या खराब न होने वाले अनाज का मूल्य 50 फीसद बढ़ जाएगा तो सरकार भंडारण की सीमा तय कर देगी, इससे किसान व खरीदार दोनों को फायदा होगा।

कोल्ड स्टोर और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में निवेश बढ़ेगा। किसानों की फसल भी बर्बाद नहीं होगी। चाहे बिहार सरकार हो या उत्तर प्रदेश की सरकार या फिर केंद्र की सरकार, नीयत स्पष्ट है मेहनत जिसकी हो फायदा भी उसी का हो। और जब बात किसानों कि हो तब केंद्र सरकार पीछे कैसे हट सकती है, देश का अन्नदाता ही है जो दिन रात मेहनत करके पूरे देश का पेट भरता है लेकिन बिचौलियों और जमाखोरों की वजह से नुकसान झेलता है। लेकिन अब किसानों को उनकी फसलों का सही मूल्य मिलेगा जिससे किसान को बृद्धि और खुशी दोनों मिलेगी।