
कोरोना वायरस के एकदम ताजा दौर यानी हाल-फिलहाल के दिनों में एक नया शब्द चर्चा में आया है। इस शब्द का नाम है,”हॉट स्पॉट” अंग्रेज़ी के दो शब्दों को मिला कर इस्तेमाल किये जाने वाले इस शब्द का अर्थ तो गर्म स्थान होता है। लेकिन कोरोना के सन्दर्भ में हॉट स्पॉट का इस्तेमाल एक संज्ञा के रूप में किसी जिले, शहर, कस्बे या गांव के उस इलाके को माना गया है जहां कोरोना वायरस पीड़ितों की पहचान हुई है। ऐसे स्थानों से कोरोना के वायरस का प्रकोप आगे न संक्रमित हो इसलिए इन इलाकों को पूरी तरह सील कर वहां मौजूद लोगों को उनके घर पर ही रोजमर्रा की वस्तुएं उपलब्ध कराने की व्यवस्था प्रशासन करता है।
इन इलाकों में रहने वाला कोई भी व्यक्ति अपने सीलबंद इलाके से बाहर नहीं जा सकता है और न ही किसी बाहर वाले को यहां आकर स्थानीय निवासियों से मिलने की इजाजत होती है। यहां इस शब्द, “हॉट स्पॉट” को समझने की जरूरत इसलिए भी है क्योंकि आने वाले दो-तीन या चार हफ़्तों के दौरान कोरोना वायरस और उसके दिन पर दिन बढ़ते प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए सरकार और जनता के स्तर पर जो कुछ भी किया जाना है उसमें हॉट स्पॉट की पहचान और और वहां उपलब्ध कराई जाने वाली चिकित्सा तथा अन्य सुविधाओं की भूमिका ही महत्वपूर्ण होने जा रही है।
ये माना कि लॉकडाउन के चलते कोरोना वायस के फैलाव पर काफी हद तक सफलता मिली है लेकिन एक अनिश्चित काल तक पूर्ण तालाबंदी इस समस्या का स्थाई समाधान नहीं हो सकता है। उलटे इससे कई दूसरी तरह की समस्याएं भी पैदा हो सकती हैं। इसीलिए हॉट स्पॉट के माध्यम से एक तरफ जहां इस महामारी पर अंकुश लगाने की पूरी कोशिश करने की योजना है वहीं दूसरी तरफ लॉकडाउन के दौरान ही खेतों में फसल की कटाई से लेकर अनेक कामों को भी गति दी जा सकती है।
महाराष्ट्र के सांगली जिला प्रशासन ने इसी तरकीब से औसत अवधि में कोरोना वायरस पर काबू पा लेने का उल्लेखनीय काम किया है जो अब देश के लिए एक नजीर बन चुका है। कहना गलत नहीं होगा कि वैश्विक स्तर पर कोरोना को एक इलाका विशेष तक सीमित रखने का जो काम चीन के वूहान में किया गया है,वही काम जिला स्तर पर महाराष्ट्र के सांगली प्रशासन ने किया है।
हॉट स्पॉट प्रयोग के नतीजे आशाजनक भी कहे जा सकते हैं,शायद इसीलिए देश में राज्य वार और जिला वार हॉट स्पॉट की संख्या भी बढ़ती जा रही। हॉट स्पॉट प्रयोग का एक फायदा इस रूप में भी नजर आ रहा है कि एक तरफ प्रशासन अपनी आर्थिक और प्रशासनिक सामर्थ्य के अनुरूप कोरोना के पीड़ितों को एक स्थान विशेष तक सीमित रख कर उनके उपचार की व्यवस्था बनाए रख पा रहा है, तो दूसरी तरफ आम जरूरत के खेती जैसे कामों को शुरू कर लॉकडाउन को जारी रखने के साथ ही उससे पैदा होने वाले सन्नाटे को चीरने में भी सहायक साबित हो रहा है।
संभवतः हॉट स्पॉट के साथ लॉकडाउन के इसी प्रयोग की सफलता को ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने पहले चरण में राज्य के 15 जिलों में 133 स्थानों को हॉट स्पॉट के रूप में चिन्हित किया था तो दूसरे चरण में 25 जिलों के 59 और स्थान इसमें शामिल कर लिए गए हैं। इसके साथ ही राज्य सरकार ने लॉक डाउन के दौरान खेती से जुड़े फसल की कटाई जैसे काम करने की अनुमति भी दे दी है। न केवल उत्तर प्रदेश सरकार बल्कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली समेत देश के कई राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों/प्रदेशों की सरकारों ने भी अपने-अपने प्रशासनिक अधिकार वाले क्षेत्रों में हॉट स्पॉट की पहचान सुनिश्चित करने, जरूरत पड़ने पर इनकी संख्या में वृद्धि करने तथा जरूरत से जुड़े कार्यों को लॉक डाउन की अवधि में अनुमति देने का फैसला भी लिया है।
इस सम्बन्ध में सभी की निगाहें आज 14 अप्रैल को होने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के राष्ट्र के नाम संबोधन पर लगी हैं। कोरोना को लेकर भविष्य में किये जाने वाले किसी भी तरह के कामों का आधार इस सम्बन्ध में प्रधानमंत्री का यह चौथा संबोधन ही बनेगा। प्रसंगवश खेती के काम को प्राथमिकता देने की जरूरत इसलिए भी है कि देश के ग्रामीण इलाकों में गेहूं की फसल पक कर तैयार खड़ी है और अगर इस फसल को समय पर काटा नहीं गया और खलिहान से गोदाम तक नहीं पहुंचाया गया तो भारी नुक्सान भी हो सकता है। क्योंकि कुछ दिनों में बारिश और तूफ़ान की संभावनाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता। इसी तरह आम जरूरत के दूसरे कामों को भी इस अवधि में संपन्न करने की अनुमति प्राथमिकता के आधार पर देनी होगी।
निस्संदेह खेती बागबानी वक़्त की जरूरत है और प्राथमिकता भी। इसे प्रधानमंत्री भी समझते हैं इसीलिए उन्होंने पिछले दिनों लॉक डाउन के विस्तार के सम्बन्ध में मुख्यमंत्रियों के साथ एक विडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये संपन्न एक बैठक के बाद साफ़ तौर पर कहा था कोरोना से बचाव के लिए लॉकडाउन जैसे उपाय भी जरूरी हैं। इसके साथ ही इस बात का ध्यान रखना भी जरूरी है कि इस अवधि में किसी को भी खाने-पीने की असुविधा न हो, कोई भूखा पेट न सोये और सभी को जरूरत की चीजें समय पर मिलती भी रहें।
इस सम्बन्ध में,”जान है तो जहान है” मुहावरे का प्रधानमंत्री ने नए सन्दर्भों में कुछ इस तरह और इन शब्दों में प्रयोग किया था, “जान भी है और जहान भी” मतलब यह कि संकट की इस घड़ी में ऐसा कुछ करने की जरूरत है जिसमें जान और जहान दोनों की सुरक्षा की जा सके। प्रधानमंत्री के इसी संकेत को निर्देश समझ कर देश के कई राज्यों ने अपने-अपने राज्यों में लॉकडाउन की अवधि तक 30 अप्रैल तक विस्तार करने की घोषणा पहले ही कर दी है और अब इस विस्तारित लॉकडाउन की अवधि में उन्हें क्या करना है इसके लिए सभी राज्यों को प्रधानमंत्री के इसी राष्ट्रीय संबोधन का इन्तजार भी था।
(लेखक दैनिक भास्कर के संपादक हैं।)