
अखिल भारतीय किसान मजदूर सभा की केंद्रीय कार्यकारिणी ने संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा 30 जून को “हूल क्रांति” दिवस मनाया जाने का स्वागत करते हुए अपनी सभी इकाइयों को जन गोलबंदी के साथ इसे मनाने का निर्देश दिया है। यह कार्यक्रम बड़े पैमाने पर उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उप्र व बंगाल के इलाकों में मनाया जाएगा।
आदिवासियों का संघर्ष किसानों के संघर्ष का अभिन्न हिस्सा है। एसकेएम ने अपने चल रहे किसान आंदोलन की, आदिवासियों के जमीन, वन उत्पाद, संस्कृति तथा राजनीतिक अधिकारों की रक्षा के लिए चल रहे संघर्षों के साथ एकजुटता जताई है।
30 जून 1855 को कोलकाता की ओर कुछ के साथ शुरू हुए इस संथाल विद्रोह को तत्काल औपनिवेशिक शासकों ने हूल क्रांति का नाम दिया। यह शानदार संघर्ष, अंग्रेज उपनिदेशक शासकों और उनके अधीनस्थ स्थानीय जमींदारों के शोषण व उत्पीड़न के खिलाफ आदिवासियों ने लड़ा था। अंग्रेजों ने इस संघर्ष को कुचलने के लिए अपनी अपनी उपनिवेशिक फौज को भेजा और इस संघर्ष में 15000 आदिवासियों ने अपनी जान की कुर्बानी दी। इसका हथियारबंद दौर जनवरी 1856 तक चला।
यह संघर्ष राजमहल पहाड़ियों के संथाल आदिवासियों का हथियारबंद संघर्ष था, जो इलाका अब झारखंड में है। यह औपनिवेशिक शासकों और जमींदारों द्वारा जमीन तथा वन उत्पाद पर कब्जा करने और जबरन मुफ्त में मजदूरी कराने के विरुद्ध लड़ा गया था। उस समय अंग्रेज वहां पर रेल लाइन बिचवा रहे थे और इस काम के लिए वे आदिवासियों व संसाधनों का क्रूर शोषण कर रहे थे।
आज भी आदिवासी अपनी जमीन व जीविका की रक्षा करने के लिए लड़ रहे हैं। हालांकि उनके अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए कई कानून बनाए गए हैं, जैसे संथाल परगना टेनेंसी कानून, छोटानागपुर टेनेंसी कानून, संयुक्त आंध्र प्रदेश का 1/1970 कानून और उड़ीसा का 1958 का रेगुलेशन 2 कानून, आदिवासियों और गैर आदिवासी गरीबों को बुनियादी अधिकारों से वंचित करने की प्रक्रिया तेजी से जारी है।
वन अधिकार कानून 2006, आदिवासियों के संघर्षों के दबाव में बनाया गया था। परंतु इसका अमल बहुत ही कमजोर है और किसी भी राज्य सरकार ने कानून के अनुसार उन्हें जमीन के पट्टे नहीं दिए गये हैं। यही नहीं, आदिवासियों को उनकी जमीन व वनों से भारी मात्रा में बेदखल कर इन्हें विदेशी व घरेलू बड़े कारपोरेट घरानों को सौंपा जा रहा है।
आदिवासी लोग सुरक्षाबलों द्वारा भारी दमन का शिकार हैं और हजारों की संख्या में वे यूएपीए जैसे काले कानूनों के तहत जेलों में बंद हैं। उनकी बस्तियों पर सुरक्षा बलों ने नियंत्रण जमाया हुआ है।