बंगाल में BJP को नेताओं और मुद्दों का अकाल, उधार के मुकुल, शुभेंदु औऱ दिनेश त्रिवेदी से नहीं चल रहा काम


श्यामा प्रसाद मुखर्जी पश्चिम बंगाल में भाजपा की कोई मदद नहीं कर पा रहे है। आखिर क्या मजबूरी है कि भाजपा बंगाल में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जगह रवींद्र नाथ टैगोर का नाम जप रही है?


संजीव पांडेय संजीव पांडेय
मत-विमत Updated On :

पश्चिम बंगाल में भाजपा उधार के हथियारों से विधानसभा चुनाव में लड़ाई लड़ रही है। भाजपा के पास लड़ाई लड़ने के लिए नेता तृणमूल के है, तो मतदाता लेफ्ट के है। इन्हीं उधार के दो हथियारों से भाजपा पश्चिम बंगाल का किला फतह करना चाहती है। उधार के हथियारों पर जाति और धर्म की धार लगाया जा रहा है। इसी के बल पर भाजपा पश्चिम बंगाल में सत्ता हासिल करना चाहती है।

पश्चिम बंगाल में भाजपा की स्थिति दिलचस्प हो गई है। भाजपा अपने एक बड़े नेता का नाम तो पूरे देश में जपती है। लेकिन उस नेता का नाम पश्चिम बंगाल चुनाव के प्रचार के दौरान कहीं नजर नहीं आ रहा है। नेता का नाम श्यामा प्रसाद मुखर्जी है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी पश्चिम बंगाल में भाजपा की कोई मदद नहीं कर पा रहे है। आखिर क्या मजबूरी है कि भाजपा बंगाल में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जगह रवींद्र नाथ टैगोर का नाम जप रही है? सुभाष चंद्र बोस का नाम जप रही है। टैगोर और सुभाष तो भाजपा की विचाऱधारा के विरोधी रहे है।

भाजपा की मजबूरी पश्चिम बंगाल में साफ दिख रही है। सत्ता की लालच में श्यामा प्रसाद मुखर्जी का त्याग और वामपंथी विचारधारा के सुभाषचंद्र बोस का नाम जपना भाजपा की मजबूरी है। बंगाल चुनाव का एक और दिलचस्प पहलू है। बंगाल भाजपा के पास अपना कोई मजबूत नेता नहीं है। भाजपा के पास अपना कोई मजबूत चेहरा नहीं है, जो ममता बनर्जी का बंगाल में मुकाबला कर सके। मजबूरी में भाजपा ने बड़ी संख्या में तृणमूल कांग्रेस से नेताओं को आयात किया।

पिछले लोकसभा चुनाव से पहले मुकुल राय समेत कई नेता टीएमसी छोड़ भाजपा में आए थे। अब विधानसभा चुनाव से पहले शुभेंदु अधिकारी जैसे नेता भाजपा में शामिल हो गए है। दिनेश त्रिवेदी भाजपा में आ गए है। दोनों नेता टीएमसी के बड़े नेता थे। पश्चिम बंगाल भाजपा टीएमसी से आय़ातीत नेताओं के भरोसे ही चुनाव लड़ रही है। मुकुल राय, दिनेश त्रिवेदी और शुभेंदु अधिकारी ममता बनर्जी के खास सहयोगी रहे है।

आखिर भाजपा के लिए पश्चिम बंगाल क्यों भारी चुनौती बनी हुई है ? यह एक अहम सवाल है। वैसे तो विधानसभा चुनाव पांच राज्यों में हो रहे है, लेकिन भविष्य का राजनीतिक मिजाज पश्चिम बंगाल तय करेगा। भाजपा को केरल और तामिलनाडु में क्या चुनाव परिणाम आएंगे इसकी जानकारी है। इसलिए भाजपा किसी भी कीमत पर असम में सता को बचाने में लग है। जबकि पश्चिम बंगाल में सम्मानजनक स्थिति हासिल करना चाहती है।

भाजपा को पता है कि ममता बनर्जी अगर विधानसभा चुनाव अगर जीत गई तो केंद्र सरकार के नाक में दम कर देगी। केंद्र की भाजपा सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी। ममता देश के उन कुछ नेताओं में शामिल है, जिनपर सीबीआई, ईडी, इन्कम टैक्स का कोई दबाव काम नहीं कर रहा है। ममता इन जांच एजेंसियों से बिल्कुल नहीं डर रही हैं। ममता लगातार मोदी को चुनौती दे रही हैं। वैसे में भाजपा किसी भी कीमत पर ममता की हार तय करना चाहती है।

भाजपा ममता की करिश्मा को जानती है। ममता के पास जमीन पर लड़ने वाला मजबूत कैडर है। यह कैडर भाजपा पर भारी है। ब्रिगेड ग्राउंड में नरेंद्र मोदी की रैली में उम्मीद से कम भीड आयी। इससे भाजपा सतर्क हो गई है। भाजपा को यह महसूस हो चुका है कि ममता जमीन पर काफी मजबूत है, उसे हराना आसान नहीं है। भाजपा को यह आशंका है कि 2019 में भाजपा की तरफ आए लेफ्ट के वोटर वापस लेफ्ट की तरफ मुड़ सकते है। अगर ये हुआ तो भाजपा को भारी नुकसान हो जाएगा। भाजपा सीधे तीसरे नंबर पर चली जाएगी।

ममता ने चुनाव प्रचार शुरु होते ही भाजपा को रणनीतिक झटका दिया। वे नंदीग्राम से चुनाव लड़ने पहुंच गई। नंदीग्राम से चुनाव लड़ने की घोषणा कर ममता ने पश्चिम बंगाल की जनता को सीधा संदेश दिया कि ममता बनर्जी डरती नहीं है, वे सत्ता में वापस आ रही है। भाजपा को उम्मीद थी कि ममता नंदीग्राम में हार के डर से एक और विधानसभा क्षेत्र से जरूर चुनाव ल़डेगी। लेकिन ममता ने सिर्फ नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का फैसला लिया है। भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र उन्होंने छोड़ दिया है, जहां से वे अभी विधायक है।

ममता दो जगह से चुनाव लड़ती तो भाजपा इसका निश्चित लाभ उठाती। भाजपा बंगाल की जनता में यह संदेश देती कि ममता नंदीग्राम में हार के डर से दूसरे विधानसभा क्षेत्र से भी चुनाव लड़ रही है। लेकिन सिर्फ नंदीग्राम से ही चुनाव लडने की घोषणा कर ममता ने यह संदेश दिया कि वे जबरजस्त आत्मविश्वास में है, वे चुनाव नंदीग्राम से ही लड़ेंगी और चुनाव जीतेंगी। ममता का यह साइकलोजिकल वार भाजपा पर भारी पड़ा है।

ममता के नंदीग्राम से चुनाव लड़ने के कारण शुभेंदु अधिकारी फंस गए है। शुभेंदु अधिकारी के सामने एक बड़ी समस्या आ गई है, कि वे अपनी जीत पक्की करें या आसपास के अपने प्रभाव वाले विधानसभा क्षेत्रों में प्रचार कर भाजपा की मदद करे? शुभेंदु को डर है कि कहीं वे दूसरों को जीताने के चक्कर में खुद ही न चुनाव हार जाए?

निश्चित तौर पर शुभेंदु अधिकारी बहुत परेशान है। भाजपा शुभेंदु अधिकारी का इस्तेमाल अन्य विधानसभा क्षेत्रों में भी करना चाहती है। लेकिन शुभेंदु अधिकारी नंदीग्राम में फंस गए है। नंदीग्राम में ममता बनर्जी पर हुए हमले के बाद भाजपा रक्षात्मक मुद्रा में है। भाजपा लगातार सफाई दे रही है।

ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में एजेंडा तय कर दिया है। महंगाई को उन्होंने मुद्दा बना दिया। भाजपा पश्चिम बंगाल में चुनाव जीतने के बाद भारी रोजगार उपलब्ध करवाने का दावा कर ही है। ममता इसका जवाब देते हुए कह रही है कि भाजपा ने जब पूरे देश में रोजगार को खत्म कर दिया है तो पश्चिम बंगाल में रोजगार कहां से उपलब्ध करवाएगी ?

ममता बनर्जी ने सिलीगुड़ी में महंगाई के मुद्दे पर बड़ी चुनावी रैली कर डाली। गैस और पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ती कीमतों को ममता ने चुनावी मुद्दा बना दिया है। हालांकि ममता की सिलीगुड़ी की रैली में आयी भारी भीड़ को राष्ट्रीय मीडिया ने नजरअंदाज किया। राष्ट्रीय मीडिया हिंदू-मुस्लिम विभाजन को ज्यादा हवा दे रही है, ताकि भाजपा को चुनावी मदद मिल सके।

भाजपा महंगाई के मुद्दा का जवाब हिंदू-मुस्लिम कार्ड से दे रही है। नेशनल न्यूज चैनल इस काम में भाजपा की मदद कर रहे है। पश्चिम बंगाल में चुनाव मैदान में उतरे भाजपा प्रत्याशी मंदिरों में खूब जा रहे है। इसका पूरा मीडिया कवरेज हो रहा है, ताकि चुनावों में हिंदुत्व कार्ड मजबूत हो।