संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का स्थाई सदस्य बनना तो भारत के लिए अभी शायद संभव नहीं दिखाई देता हालांकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का स्थाई सदस्य बनने की तमाम योग्यता भारत रखता जरूर है। विगत गुरूवार 18 जून 2020 का दिन वैश्विक सन्दर्भ में भारत के लिए इसलिए महत्वपूर्ण कहा जाएगा कि न सही स्थाई सदस्यता भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् अस्थाई सदस्य तो बना गया। ऐसा भी नहीं है कि भारत पहली बार विश्व मंच की इस शीर्ष परिषद् का अस्थाई सदस्य बना हो। भारत के लिए इस तरह की सदस्यता पाने का यह आठवां मौका है और वो भी चुनाव के जरिये।
इस बार के चुनाव की खासियत यह रही कि भारत को यह चुनाव जीतने के लिए महज 128 वोट चाहिए थे लेकिन संयुक्त राष्ट्र महासभा के वोट देने वाले कुल 192 वोट में से भारत को 184 वोट मिले। इस बार भारत के पक्ष में एक संयोग यह भी था कि जिस पड़ोसी देश चीन के साथ सीमा विवाद को लेकर भारत का जबरदस्त तनाव चल रहा है उसने भी भारत को ही वोट दिया। चीन के अलावा पड़ोसी देश पकिस्तान और एशिया प्रशांत के सभी देशों ने भी भारत के पक्ष में ही वोट दिया क्योंकि भारत ने इसी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए इस सदस्यता के लिए चुनाव में उतरने का फैसला लिया था और अगर एशिया प्रशन देशों का ही वोट नहीं मिलता तो यह क्षेत्र सुरक्षा परिषद् में स्थान हासिल करने से वंचित रह जाता।
भारत के आठवीं बार अस्थाई सदस्य बनने के तुरंत बाद ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह कहते हुए विश्व समुदाय के प्रति आभार व्यक्त किया कि वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में भारत की सदस्यता के लिए वैश्विक समुदाय से मिले जबरदस्त समर्थन के लिए ‘‘तहे दिल से आभारी’ हैं। उन्होंने कहा कि भारत वैश्विक शांति, सुरक्षा, लचीलेपन और निष्पक्षता को बढ़ावा देने के लिए सभी देशों के साथ मिलकर काम करेगा। इस चुनाव के साथ ही भारत अगले दो वर्षों के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का अस्थाई सदस्य चुन लिया गया है , भारत का यह कार्यकाल 2020 –21, 2021-22 में पूरा होगा।
गौरतलब है कि सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र के 6 प्रमुख अंगों में एक महत्वपूर्ण अंग है। वैश्विक स्तर पर शांति, सुरक्षा और विश्वास बहाली की गरज से स्थापित किये गए इस संगठन का एक मुख्य और अतिरिक्त कार्य संयुक्त राष्ट्र संघ में नए सदस्यों को जोड़ना समय की जरूरत के हिसाब से संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा चार्टर में बदलाव करना भी इसी संस्था की जिम्मेदारी है और इसके समय की जरूरत को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा चार्टर में बदलाव से जुड़ा काम भी सुरक्षा परिषद के काम का हिस्सा है। विश्व में शांति की स्थापना करने के उद्देश्य से अगर दुनिया के किसी हिस्से में सैन्य गतिविधि की जरूरत प्दद्ती है तो वह काम भी सुरक्षा परिषद् ही करती है।
कहना गलत नहीं होगा कि एक तरह से सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र संघ के गृह और प्रतिरक्षा मंत्रालयों की तरह गंभीर और महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों का निर्वहन करती है लिहाजा यह एक महत्वपूर्ण संस्था भी मानी जाती है। गौरतलब यह भी है कि सुरक्षा परिषद् के लिए भारत पहली बार 1950 में चुना गया था। इसके बाद 6 बार इस संस्था का अस्थाई सदस्य चुने जाने के बाद अब भारत को इस संस्था का गैर स्थाई (अस्थाई) सदस्य चुना गया है। भारत को इस बार पहले से ही इतने अधिक वोट से जीतने की उम्मीद इसलिए भी थी क्योंकि भारत इस बार एशिया – प्रशांत श्रेणी से गैर स्थाई सीट के लिए एकमात्र उम्मीदवार था। इससे पहले 2011 में यह चुनाव जीत कर सुरक्षा परिषद् का गैर स्थाई सदस्य बना था , इसके नौ साल बाद अब यह मौका भारत को मिला है।
प्रसंगवश यह जानकारी भी महत्वपूर्ण है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की 10 गैर स्थाई सीट क्षेत्रीय आधार पर आबंटित की जाती हैं जिसमें अफ्रीकी और एशियाई देशों के लिए 5 , पूर्वी यूरोपीय देशों के लिए 1, लैटिन अमेरिकी और कैरेबियन देशों के लिए 2 और पश्चिमी यूरोपीय और अन्य देशों के लिए 2 सीट निर्धारित की गई है। परिषद के लिए चुने जाने के लिए उम्मीदवार देशों को महासभा में मौजूद और मतदान करने वाले सदस्य देशों के मतपत्रों का दो-तिहाई बहुमत जरूरी है।
ऐसा माना जा रहा है कि सुरक्षा परिषद् में भारत की मौजूदगी दुनिया में वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा को मजबूत बनायेगी। इस बार सुरक्षा परिषद् का गैर स्थाई सदस्य चुने जाने से पहले भारत जर सुरक्षा परिषद में भारत 1950-1951, 1967-1968, 1972-1973, 1977-1978, 1984-1985, 1991-1992 और हाल ही में 2011-2012 में सुरक्षा परिषद के गैर-स्थायी सदस्य के रूप में चुना जा चुका है। सुरक्षा परिषद, संयुक्त राष्ट्र की सबसे महत्त्वपूर्ण इकाई है, जिसका गठन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1945 में हुआ था। सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्य हैं अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन।
सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के पास वीटो का अधिकार होता है। इन देशों की सदस्यता दूसरे विश्व युद्ध के बाद के शक्ति संतुलन को प्रदर्शित करती है। इन स्थायी सदस्य देशों के अलावा 10 अन्य देशों को दो साल के लिये अस्थायी सदस्य के रूप में सुरक्षा परिषद में शामिल किया जाता है। स्थाई सदस्य और अस्थाई सदस्य दोनों बारी- बारी से एक – एक महीने के लिए परिषद् के अध्यक्ष बनाए जाते हैं। भारत भी सुरक्षा परिषद् का स्थाई सदस्य बनने की योग्यता रखता है क्योंकि भारत आबादी और अर्थवस्था के मानकों को पूरा करने के साथ ही एक परमाणु संपन्न देश भी है।