
नेपाल और भारत दो देश जरूर हैं लेकिन दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को लेकर कभी भी किसी तरह का कोई तनाव नहीं रहा है। मामला चाहे लिपुलेख का हो, काला पानी का हो या कोई और सभी मुद्दों पर दोनों पक्षों की सहमति से कोई एक आम राय बनी और यह सिलसिला कई सौ साल से चला आ रहा है इसमें किसी भी तरफ से कोई विवाद नहीं बनाया गया। चाहे जो भी और जैसी भी परिस्थितियां रही हों और जिस वजह से भी आज इसे मुद्दा बनाने की कोशिश की जा रही हो, यह सब दुखद है। हमको इस तथ्य का पता लगा कर गलतियों को ठीक कर भारत- नेपाल रिश्तों को तनाव मुक्त करना ही होगा। ऐसा करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि भारत और नेपाल केवल दो देश ही नहीं हैं बल्कि ये एक बड़े परिवार का हिस्सा हैं।परिवार के दो सदस्यों के बीच मन मुटाव हो सकता है लेकिन इसे आपस में मिल बैठ कर सुलझाने की जरूरत होनी चाहिए।
ऐसे मामले जब किसी बाहरी और तीसरे पक्ष के प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष हस्तक्षेप से सामने आते हैं तो इनके समाधान में दिक्कत आने के साथ ही जग हंसाई का कारण भी बनते हैं। इन हालात में भारत को यह पड़ताल करनी ही होगी कि ऐसा क्या हुआ कि लिपुलेख और काला पानी का जो सिलसिला दोनों देशों की आपसी सहमति के चलते पिछले दो सौ से भी अधिक साल में चर्चा का विषय नहीं बना उसे आज नेपाल इस रूप में प्रस्तुत कर रहा है मानो भारत ने ये नेपाल के दोनों क्षेत्र जबरन हड़प लिए हों। इस पड़ताल की पहल भारत को ही करनी होगी क्योंकि भारत ने कभी भी पड़ोसी देशों पर अधिकार जमाने की भावना से कोई काम नहीं किया है और अगर आज नेपाल किसी भी वजह से इस तरह की बात करता है तो भारत को शांतिपूर्ण तरीकों से सच को सबके सामने लाना ही होगा।
भारत और नेपाल के सांस्कृतिक संबंधों के इतिहास पर चर्चा करते हुए सबसे पहले यह बात अच्छी तरह से समझनी होगी कि अगर रामायण कालीन कथा को ही आधार माने तो अयोध्या के राम की ससुराल भी तो नेपाल ही थी। इसीलिए तो आज नेपाल की सीतापुरी और भारत के अयोध्या के बीच एक और मजबूत सम्बन्ध बनाने की बात भी दोनों देशों की सरकारों के बीच कई साल से चल रही है। नेपाल को राम की ससुराल समझना अगर कुछ लोगों की राय में सिर्फ एक प्रतीक भर ही हो तो भी इतना तो ध्यान जरूर रखना होगा कि रामायण काल के बाद भी भारत और नेपाल के बीच बहू – बेटियों का रिश्ता सैकड़ों साल से चला आ रहा है।
हमारे देश की पुरानी रियासतों के वंशजों की ससुराल भी नेपाल में ही है। मसलन ग्वालियर रियासत के ज्यादातर नए -पुराने लोगों की ससुराल नेपाल में ही है। ऐसे और भी कई भारतीय राजा- महाराजा हैं या तो उनकी ससुराल नेपाल में है या फिर उनके परिवार की कोई बेटी नेपाल के किसी शाही परिवार की बहू बनी है। भारत और नेपाल के बीच जब बहू-बेटी के रिश्तों की बात होती है तब यह सिलसिला सिर्फ राजघरानों तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि दोनों देशों की सीमा के आर- पार रहने वाले आम परिवारों के बीच भी बहू- बेटी के रिश्ते आम हैं।
इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि दोनों देशों के बीच धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक सम्बन्ध हमेशा ही बहुत मैत्रीपूर्ण रहे हैं। इसलिए सीमाएं होते हुए भी भारत और नेपाल एक दूसरे के साथ एक व्यापक सीमा रहित भोगोलिक क्षेत्र का आनंद लेते हैं। दोनों देशों के बीच अब तक किसी तरह का पासपोर्ट लागू न होना, वीसा की अनिवार्यता न होना जैसे प्रावधानों का लागू होना भी इसी सांस्कृतिक समझ का ही एक हिस्सा है।
भारत- नेपाल के आपसी रिश्तों को समझने के लिए यह जानना सबसे जरूरी हो जाता है कि दोनों देशों के बीच ये रिश्ते किस तरह के भौगोलिक परिवेश में समाहित हैं। इसके लिए अगर हम भारत और उससे लगे नक़्शे पर नजर दौडाएं तो साफ़ देख सकते हैं कि नेपाल की सीमाएं भारत के उत्तराखंड राज्य के सीमावर्ती जिले पिथोरागढ़ से शुरू होकर बरास्ता उत्तर प्रदेश और बिहार पूर्वोत्तर क्षेत्र के सिक्किम राज्य तक होते हुए पड़ोसी देश भूटान से मिलती हैं।
इस तरह इन इलाकों में जो भाषा बोली जाती है स्थानीय जरूरत के हिसाब से थोडा बदलाव होता है और इस तरह नेपाल की भाषा भरता के संपर्क में आने वाले क्षेत्र की भाषा के हिस्साब से थोडा बहुत बदलती भी रहती है। भारत के उत्तराखंड राज्य का जो हिस्सा नेपाल के संपर्क में है वहां बोली जाने वाली कुमाऊंनी भाषा में नेपाली का पुट देखा जा सकता है। नेपाली और कुमाउनी भाषा में काफी समानता भी है। यह समानता उत्तराखंड के दूसरे क्षेत्र गढ़वाल में बोली जाने वाली गढ़वाली का नेपाली के साथ नहीं है। इसका कारण यह है कि गढ़वाल का नेपाल से सीधा कोई संपर्क नहीं है। कुमाऊं क्षेत्र में में खासकर इसके दो जिलों पिथौरागढ़ और चम्पावत में नेपाल के संपर्क बहुत घने हैं।
यही सिलसिला उतार प्रदेश की तराई क्षेत्र के पीलीभीत,लखीमपुर,गोरखपुर जिलों से होता हुआ बिहार के मैथिल क्षेत्र के साथ ही पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों तक बना रहता है। नेपाल में जिन्हें मधेशी कहा जाता है वो वही लोग हैं जिनके पूर्वज किसी समय उत्तर प्रदेश और बिहार से वहां जाकर बस गए थे। आज ये मधेशी नेपाल की बड़ी राजनीतिक ताकत माने जाते हैं। कुल मिला कर यह समझना जरूरी हो जाता है कि भारत नेपाल के रिश्ते सिर्फ दो पड़ोसी देशों के रिश्ते नहीं हैं बल्कि ये रिश्ते दो परिवारों के रिश्ते जैसे हैं। परिवारों के बीच के रिश्ते बहुत नाजुक होते हैं लिहाजा इनकी देखभाल भी बहुत नजाकत के साथ करनी होगी।