भारत-चीन सैन्य युद्ध बनाम व्यापार युद्ध


चीन के साथ व्यापार सम्बन्ध ख़त्म कर भारत चीन को करीब 75 अरब डॉलर (5य7 लाख करोड़ रुपए) का नुकसान पहुंचा सकता है। इसके लिए भारत को सिर्फ करीब 18 अरब डॉलर (करीब 1.37 लाख करोड़ रुपए,76.14 रुपए प्रति डॉलर की विनिमय दर से) का नुकसान सहन करना पड़ेगा।



चीन  के साथ चल रही ताजा तनातानी के दौर में बहुत शिद्दत के साथ कुछ लोग इस बात पर भी जोर दे रहे हैं कि चीन ने पूर्वी लद्दाख की गवलान घाटी में पिछले दिनों भारत के सैनिकों के साथ जिस तरह का अमानवीय और शत्रुतापूर्ण व्यवहार किया है उसके बाद तो भारत को चीन के साथ हर तरह के सम्बन्ध तोड़ लेने चाहिए। विगत शुक्रवार 19 जून 2020 को इस संबन्ध में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग बैठक में हिस्सा लेते हुए बिहार के मुख्यमंत्री और केंद्र में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के प्रमुख घटक जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के अध्यक्ष नीतीश कुमार ने यह कहा भी था कि देश की जनता चीन से बेहद नाराज है और चीन ने भारत के सैनिकों के साथ जिस तरह का व्यवहार सीमा पर किया है उसका चीन से बदला लेना चाहती है। 

नीतीश कुमार के हिसाब से बदला लेने का एक मतलब तो साफ़ है कि भारत को चीन के साथ सैन्य मुकाबला करने की सोचनी चाहिए सैन्य मुकाबले की तैयारी करने का मतलन यही हुआ कि भारत को चीन पर आक्रमण कर देना चाहिए। इसके साथ ही भारत को चीन से व्यापारिक सम्बन्ध ख़त्म कर लेने की वकालत भी बड़े जोर शोर से कही जा रही है। इसी सन्दर्भ में यह कहा भी जा रहा है कि चीन के साथ व्यापार सम्बन्ध ख़त्म कर भारत चीन को करीब 75 अरब डॉलर (5य7 लाख करोड़ रुपए) का नुकसान पहुंचा सकता है। इसके लिए भारत को सिर्फ करीब 18 अरब डॉलर (करीब 1.37 लाख करोड़ रुपए,76.14 रुपए प्रति डॉलर की विनिमय दर से) का नुकसान सहन करना पड़ेगा।

सीमा पर चल रहे मौजूदा तनाव के सन्दर्भ में चीन से व्यापार सम्बन्ध तोड़ने की बात कहने और करने में बहुत बड़ा फर्क है। यह सब इतना आसान भी नहीं है जितना समझा जा रहा है, वजह साफ़ है कि भारत चीन से आयात अधिक करता है और निर्यात कम करता है। आयात करने पर विदेशी मुद्रा में भुगतान करना होता है जो एक बड़ा खार्त है, इसके विपरीत निर्यात कम होने से विदेशी मुद्रा की आवक भी कम होती है। जिसका अर्थ व्यवस्था पर असर यह पड़ता है कि भारत का विदेशी मुद्रा भण्डार कम हो जाता है और भुगतान असंतुलन की स्थिति पैदा हो जाती है। इस पृष्ठभूमि में सोचे तो चीन के साथ व्यापार सम्बन्ध ख़त्म कर लेने पर भारत को भुगतान असंतुलन की स्थिति का सामना नहीं करना पड़ेगा। 

इस आधार पर अगर हम अगर चीन से आयात होने वाले उत्पादों पर निर्भरता कम करें तो इससे भारत का चीन के साथ व्यापार में घाटा भी कम हो जाएगा और चीन को भारत के खिलाफ की गई सैन्य कारवाई का मुंहतोड़ जवाब भी मिल जाएगा। वास्तव में अगर ऐसा होता है तो चीन से आयात के जरिये आने वाले तैयार माल  से करीबन एक लाख करोड़ रुपए का आयात घाटा दिसंबर 2021 तक बच सकता है।वर्ष 2019 में भारत ने चीन से करीब 75 अरब डॉलर के सामान का आयात किया और उसे सिर्फ करीब 18 अरब डॉलर का निर्यात किया।

इस तरह देखें तो चीन से व्यापार में भारत को 56।77 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। अगर भारत, चीन के साथ कारोबार खत्म करता है तो न सिर्फ इस घाटे से बच सकता है बल्कि चीन की अर्थव्यवस्था को घुटने के बल झुका भी सकता है। हालांकि इसके लिए सरकार को जरूरी होम वर्क पहले कर लेना होगा। लेकिन यह सब कर पाना कितना आसान होगा यह कह पाना मुश्किल काम है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि भारतीय माल की तुलना में चीन का माल सस्ता होने की वजह से हमारी निर्भरता भी चीन के माल पर कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। ऐसे में केवल चीनी माल के बायकाट जैसे नारों से ही काम नहीं चलेगा बल्कि इसे वास्तव में करके भी दिखाना होगा जो संभव नहीं दिखाई देता। 

इस सन्दर्भ में ग्लोबल टाइम्स में छपी एक खबर को आधार बनाते हुए कहा जा सकता है कि चीन के मुताबिक़ भारत कुछ उत्पादों के लिए पूरी तहर से चीन पर निर्भर है। चीनी सामान का बायकाट करने या चीन के साथ व्यापार सम्बन्ध ख़त्म करने जैसा कोई भी फैसला लेकर भारत किसी और का नहीं बल्कि अपना ही नुकसान करेगा। चीन का यह कहना इस मायने में सही नजर आता है क्योंकि ची की जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद वैसे भी भारत से पांच गुना ज्यादा है। प्रसंगवश एक गौरतलब तथ्य यह भी है कि हाल ही में चीन के सीमा शुल्क सामान्य विभाग ने भारत-चीन व्यापार संबंधों के विषय में दी गई एक जानकारी में यह भी कहा था कि वर्ष 2001 में दोनों देश के बीच कारोबार महज तीन अरब डॉलर का था, फिर वह वर्ष-प्रतिवर्ष बढ़ता गया। 

भारत और चीन के बीच वर्ष 2018 में द्विपक्षीय व्यापार 95.7 अरब डॉलर मूल्य का था, वह 2019 में घटकर 92.68 अरब डॉलर मूल्य का हो गया था। इस बाबत एक गौरतलब तथ्य यह भी है कि भारत के लिए चीन के साथ व्यापार संबंधों को एक झटके में ख़त्म कर देना इसलिए भी संभव नहीं है क्योंकि हमारे देश के कुल विदेशी व्यापार में चीन का हिस्सा 10 फीसदी से ज्यादा है, वहीं चीन के विदेश व्यापार में भारत का हिस्सा महज 2.1 फीसदी है। वित्त वर्ष 2018-19 के आंकड़ों के मुताबिक, भारत के कुल निर्यात में चीन का हिस्सा महज 5.3 फीसदी है, जबकि कुल आयात में चीन का हिस्सा 14 फीसदी है। यही नहीं, चीन के कुल आयात में तो भारत का हिस्सा महज 0.9 फीसदी है। चीन के साथ व्यापार में भारत की सबसे बड़ी चिंता व्यापार घाटे की है। मतलब यह कि आयात के मुकाबले निर्यात का कम होना लेकिन हाल के वर्षों में व्यापार घाटा भी कम हुआ है। चीन के साथ किये गए व्यापार की वजह से भारत को साल 2016-17 तक  47.1 फीसदी तक का घाटा हो गया था जो 2019-20 में घटकर 30.3 फीसदी तक आ गया है। ऐसे में व्यापार घाटे को भी चीन के साथ व्यापार सम्बन्ध ख़त्म करने का आधार नहीं बनाया जा सकता।

यहां यह जान लेना भी जरूरी हो जाता है कि भारत चीन से इलेक्ट्रिक मशीनरी एवं उपकरण, रिएक्टर्स, बॉयलर्स मशीनरी, मेकैनिकल यन्त्र, जैविक रसायन एवं दवाइयां, प्लास्टिक, इलेक्ट्रॉनिक्स और उर्वरक समेत अनेक ऐसी वस्तुओं का आयात करता है जिनका आम आदमी की रोजमर्रा की जिन्दगी में इस्तेमाल होता है। दूसरी तरफ, चीन भारत से जिन वस्तुओं का आयात करता है उसके दूसरे विकल्प भी उसके पास मौजूद हैं। इन हालात में चीन से व्यापार के आयात- निर्यात सम्बन्ध तोड़ने पर चीन के मुकाबले भारत का नुक्सान ज्यादा है। चीन और हांगकांग मिला कर भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार हैं। अमेरिका इसके बाद दूसरे स्थान पर आता है।

वर्ष 2019-20 में चीन और हांगकांग को मिला कर भारत ने कुल 103.53 अरब डॉलर (करीब 7,88,759 करोड़ रुपये) का व्यापार किया था। इस दौरान भारत ने अमेरिका के साथ 82.97 अरब डॉलर (करीब 6,32,120 करोड़ रुपये) का व्यापार किया था। भारत के मोबाइल से लेकर स्टार्ट अप, रेलवे, वस्त्र, खिलौने, बिजली का सामान, होली की पिचकारियां और रंग, दिवाली की तस्वीरें, पटाखे, लक्ष्मी-गणेश और पार्वती की तस्वीरों और ऐसी ही तमाम चीजों के लिए चीन पर निर्भरता काफी बढ़ गई है। चीन पर निर्भर होने का ही नतीजा है कि गुजरात में भारत के लौह पुरुष सरदार पटेल की आदमकद मूर्ति भी चीन से ही बन कर आई थी। 

इसका मतलब क्या यह मान लिया जाए कि चीनी सामान का बायकाट करने के नाम पर पटेल की यह मूर्ति और बहुत सारी सामग्री का अब उपयोग नहीं किया जाएगा। भारत के मोबाइल फोन बाजार पर चीन की तीन  -चार कंपिनयों का कब्जा है, भारत के स्मार्टफोन बाजार के 65 फीसदी से ज्यादा हिस्से पर चीनी पनियों का कब्जा है। साल 2019 में चीनी कंपनी शाओमी की बाजार हिस्सेदारी 28.6 फीसदी, वीवो की 15.6 फीसदी, ओप्पो की 10.7 फीसदी और रियल मी की 10.6 फीसदी रही है। इसी तरह स्मार्ट टीवी बाजार के करीब 35 फीसदी हिस्से पर चीनी कंपनियों का कब्जा है। 

इसके अलावा भारत के कई प्रमुख स्टार्टअप में चीनी कंपनियों ने मोटा निवेश कर रखा है। पेटीएम में चीनी कंपनियों का निवेश 3.53 अरब डॉलर (करीब 26,894 करोड़ रुपये), ओला में 3.28 अरब डॉलर (करीब 25,000 करोड़ रुपये), ओयो रूम्स में 3.2 अरब डॉलर (करीब 24,380 करोड़ रुपये), स्नैपडील में 1.8 अरब डॉलर (करीब 13,714 करोड़ रुपये) और बाइजू में 1.47 अरब डॉलर (करीब11,199 करोड़ रुपये) का निवेश चीनी कंपनियों ने कर रखा है। हालांकि चीन से आने वाला प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बहुत कम है। पिछले दो दशकों में चीन से महज 2.4 अरब डॉलर (करीब 18,285 करोड़ रुपये) का विदेशी निवेश आया, जो कि देश में आने वाले कुल एफडीआई का महज आधा फीसदी है। जानकार इसकी वजह यह बताते हैं कि चीन से आने वाला ज्यादातर एफडीआई अब सिंगापुर और हॉन्ग कॉग से होकर आता है।