आज पूरी दुनिया में भारत की आवाज गौर से सुनी जा रही है। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश भारत आज न सिर्फ विकासशील देशों की आवाज बनकर रह चुका है बल्कि विकसित राष्ट्रों की कतार में खड़ा देश भी भारत की हर एक बात को पूरी गंभीरता के साथ सुनते हुए अपना निर्णय ले रहा है।
वैश्विक विकास एजेंडे को लेकर भारत की निर्णायक भूमिका आज अन्य देशों के लिए एक मिसाल बन चुकी है। ऐसे में एक बार फिर से भारत की धमक पूरी दुनिया में बढ़ने जा रही है। भारत अगले महीने यानी 1 दिसंबर 2022 से 30 नवंबर 2023 तक G20 प्रेसीडेंसी का आयोजन करने जा रहा है। यह भारत के लिए न सिर्फ गौरव की बात होगी बल्कि सबसे बड़े लोकतंत्र की पूरी दुनिया में एक अलग साख भी बढ़ेगी। 18वें G20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने जा रहे भारत के लिए अपनी नेतृत्व क्षमता दिखाने का यह पहला अवसर होगा क्योंकि यह अब तक का सबसे हाई प्रोफाइल अंतरराष्ट्रीय आयोजन होने जा रहा है।
इससे पहले भी भारत कई अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों की मेजबानी कर चुका है। भारत वर्ष 1983 में गुटनिरपेक्ष आंदोलन और CHOGM शिखर सम्मेलन, वर्ष 2015 में IAFS और वर्ष 2018 में अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन शिखर सम्मेलन की मेजबानी कर चुका है। इस साल भारत सितंबर 2022 से सितंबर 2023 तक एससीओ की अध्यक्षता करेगा और संगठन के अध्यक्ष के रूप में एससीओ के अगले शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा जबकि दिसंबर 2022 के महीने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष का पद भी संभालेगा।
G20 की प्रेसिडेंसी की अगुवाई करना भारत के लिए आज निश्चित रूप से गर्व की बात होने जा रही है। G20 भारत के लिए इस मायने में भी सबसे अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय समूह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सभी पांच स्थायी सदस्यों, सभी G7 सदस्यों और सभी ब्रिक्स देशों को सामूहिक रूप से एक ही मंच पर लाएगा। ऐसे में G20 को लेकर भारत के भीतर और वैश्विक स्तर पर उम्मीदें अधिक हैं। इसके अलावा G20 के माध्यम से भारत के पास दक्षिण-दक्षिण सहयोग को समेकित और समन्वयित करने, मुद्दों को सुव्यवस्थित करने और दीर्घकालिक रणनीतिक जरूरतों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने का एक अनूठा अवसर होगा।
G20 की बात करें तो हमें द्वितीय विश्वयुद्ध यानी 1945 के बाद वैश्विक परिदृश्य पर भी नजर डालना होगा। उस दौरान समस्त विश्व दो भागों उत्तर (विकसित) तथा दक्षिण (विकासशील) में बंट चुका था. उत्तर में सभी साम्राज्यवादी ताकतें या विकसित धनी देश थे जबकि दक्षिण में साम्राज्यवादी शोषण के शिकार रहे गरीब देश थे। इसके बाद से ही विकसित और विकासशील राष्ट्रों के बीच अलग-अलग संगठन और समूह बनते चले गए। करीब 22 सालों बाद यानी 1977 में पूरी दुनिया को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा तो कई देशों की आर्थिक स्थिति चरमरा गई। हालांकि इस संकट का सामना विकसित राष्ट्रों को कम जबकि विकासशील देशों को अधिक करना पड़ा। विशेष रूप से पूर्वी एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया को ज्यादा प्रभावित किया।
इस दौरान भी विकसित राष्ट्र का ही पूरी दुनिया में दबदबा कायम था। जब 1977 जैसा ही वित्तीय संकट का सामना वर्ष 1990 में पूरे विश्व को करना पड़ा तो विकसित राष्ट्र ने अंतरराष्ट्रीय वित्तीय स्थिरता प्राप्त करने के लिए G20 का गठन का प्रस्ताव पेश किया और विचार प्रकट किया कि एक समूह बनना चाहिए। जिसके बाद वर्ष 1999 में G-20 समूह की स्थापना की गई। ये स्थापना 7 देशों ने मिलकर की थी जिसमें अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, फ्रांस और इटली के विदेश मंत्रियों द्वारा की गई थी।
इस समूह का मुख्य उद्देश्य था वित्तीय व्यवस्था और आर्थिक स्थिति में सुधार लाना। साथ ही मध्यम आय वाले देशों को शामिल करके वैश्विक वित्तीय स्थिरता को सुरक्षित करना था। आज G20 के अंदर यूरोपीय संघ के अलावा ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, जापान, कोरिया गणराज्य, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, यूके, अमेरिका और जैसे देश शामिल है। जहां दुनिया की 60 प्रतिशत आबादी, वैश्विक जीडीपी का 80 प्रतिशत और वैश्विक व्यापार का 75 प्रतिशत शामिल है।
भारत G-20 के संस्थापक सदस्य के रूप में दुनिया भर में सबसे कमजोर लोगों को प्रभावित करने वाले महत्त्वपूर्ण मुद्दों को उठाने के लिये इस मंच का उपयोग करता रहा है। आज भी भारत विकासशील देशों के सामने हर मुसीबत में खड़ा रहा है। कोविड महामारी से लेकर श्रीलंका जैसे देशों को आर्थिक मदद के जरिये पटरी पर लाने तक भारत ने सराहनीय कदम उठाकर दुनिया के सामने अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है।
कोविड के दौरान भारत की चुस्त प्रतिक्रिया को पूरी दुनिया ने सराहा। भारत ने दुनिया भर में 150 से अधिक देशों को चिकित्सा आपूर्ति और उपकरण प्रदान करके और विश्व बाजार में COVID-19 वैक्सीन की महत्वपूर्ण आपूर्ति करके दुनिया के सर्वोत्तम हित में काम करते हुए खुद को स्थापित किया।
कोविड के बाद रूस-यूक्रेन युद्ध और दुनिया भर में बढ़ती आर्थिक चुनौतियों के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत तेजी से सतत और समावेशी विकास का समर्थन करने के लिए G20 में एक सार्थक योगदान देने के लिए तत्पर है। G20 की अध्यक्षता करने जा रहे भारत के लिए नेतृत्व करने का यह एक नया अवसर होगा। निःसंदेह भारत के लिए G20 की अध्यक्षता करना भारतीय लोकतंत्र के लिए मील का पत्थर साबित होने जा रहा है।
(विजय शंकर झा वरिष्ठ पत्रकार एवं विदेश मामलों के जानकार हैं।)
