अंतरराष्ट्रीय पटल पर विलेन क्यों बन गया है चीन


चीन भारत को लगातार झटके भी दे रहा है। पिछले कुछ दिनों में भारत के सिक्किम, हिमाचल प्रदेश और लद्दाख के इलाके में चीन की स्पष्ट घुसपैठ दिखी। उधर पाकिस्तान गिलगित बलतिस्तान में डायमर भाषा डैम बनाए जाने को लेकर चीन और पाकिस्तान के बीच सहमति बन गई है। इस पर 5.8 अरब डालर खर्च होगा। यह बांध पाकिस्तानी सेना की सहायक कंपनी फ्रंटियर वर्क ऑरगेनाइजेशन और चीन की पावर चाइना बनाएगी।


संजीव पांडेय संजीव पांडेय
मत-विमत Updated On :

कोरोना वायरस को लेकर चीन और अमेरिका के बीच जंग तेज हो गई है। अमेरिका फिलहाल चीन के खिलाफ वैश्विक स्तर पर मोर्चेबंदी करने में कामयाब होता नजर आ रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चुनावी वर्ष में चीन पर लगातार हमले कर रहे हैं। शायद इसी वायरस के बल पर राष्ट्रपति ट्रंप फिर से राष्ट्रपति बनने की तैयारी कर रहे हैं। लेकिन ताजा मामला ताईवान का है। ताइवान जहां लगातार कोरोना को लेकर चीन पर हमलावर है, वहीं चीन ने मुश्किल से ताइवान की वर्ल्ड हेल्थ असेंबली में एंट्री रोकने में सफल हुआ है। लेकिन अब फिर एक बार ताईवान के राष्ट्रपति साई इंग-वेन को लेकर चीन गर्म हो गया है। दरअसल अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉपिंयो ने साई इंग-वेंग को बधाई भेज दी है। 

इसके बाद परेशान चीन ने अमेरिका को देख लेने की धमकी दी है। इधर वर्ल्ड हेल्थ असेंबली में भी यूरोपीय यूनियन और आस्ट्रेलिया ने कोरोना को लेकर तमाम सवाल उठाए। कोरोना को लेकर चीन के समर्थन करने के आऱोपों से घिरे विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुखिया भी बैठक में घेरे गए। क्योंकि यूरोपीय यूनियन ने कोरोना वायरस के फैलाव को लेकर एक निष्पक्ष जांच का प्रस्ताव लाया था। निष्पक्ष जांच के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन तैयार हो गया है। दरअसल चीन की परेशानी इस समय भारत भी बना हुआ है। भारत कोरोना के मामले में पश्चिमी देशों के साथ खड़ा नजर आ रहा है।

भारतीय कूटनीति को यह पता है कि भारत और चीन के बीच लंबे समय से चल रहे हितों का टकराव बहुत जल्द हल नहीं होने वाला है। हितों के टकराव खत्म करने के लिए या तो चीन को बडी कुर्बानी देनी होगी या भारत को बड़ी कुर्बानी देनी होगी। इसके लिए दोनो तैयार नही है। हितों का टकराव अभी भी लंबे समय तक चलने की उम्मीद है।

चीन भारत को लगातार झटके भी दे रहा है। पिछले कुछ दिनों में भारत के सिक्किम, हिमाचल प्रदेश और लद्दाख के इलाके में चीन की स्पष्ट घुसपैठ दिखी। उधर पाकिस्तान गिलगित बलतिस्तान में डायमर भाषा डैम बनाए जाने को लेकर चीन और पाकिस्तान के बीच सहमति बन गई है। इस पर 5.8 अरब डालर खर्च होगा। यह बांध पाकिस्तानी सेना की सहायक कंपनी फ्रंटियर वर्क ऑरगेनाइजेशन और चीन की पावर चाइना बनाएगी। 

चीन की यह कार्रवाई साफ बताती है कि चीन को भारत की परवाह नहीं है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कूटनीति के जरिए बताते रहे हैं कि वे चीन से संबंध सुधारने के इच्छुक है। उन्होंने चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग के साथ दो अनौपचारिक बैठकें भी की थी। प्रधानमंत्री बनने के बाद चीनी राष्ट्रपति का अहमदाबाद में शानदार स्वागत नरेंद्र मोद ने किया था। चीन के विकास से प्रभावित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बतौर मुख्यमंत्री चीन की यात्रा कर चुके है। उनके मुख्यमंत्री रहते गुजरात में चीनी निवेश भी आया।

लेकिन दो बातें स्पष्ट है। भारत में सरकार चाहे किसी भी दल को चीन की अपनी कूटनीति और रणनीति स्पष्ट है। वो अपने हितों की बलि किसी भी कीमत पर नहीं करेगा। चीन की भारतीय सीमा में घुसपैठ पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भी होती रही। नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में भी घुसपैठ जारी है। सबसे बड़ा तनाव डोकलाम में हुआ। इसके बाद अब लगातार चीनी घुसपैठ की खबरें भारतीय सीमा में आ रही है। दोनों मुल्कों के बीच चल रहे गंभीर विवादों का कोई हल नहीं निकला। सीमा विवाद को हल करने को लेकर कोई प्रगति नहीं हुई। 

कश्मीर को लेकर चीन की कूटनीति स्पष्ट है। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को चीन एक तरह से अब अपना हिस्सा मानता है। संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर को लेकर चीन हमेशा पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा हुआ है। बीते कुछ समय पहले ही चीन ने दुबारा कश्मीर को लेकर भारत को यूएन में घेरने की कोशिश की। लेकिन भारतीय हित पर सबसे बड़ा कुठाराघात चीन ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और गिलगित बलतिस्तान में किया है। इस इलाके में चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर का जबरजस्त काम जारी है। चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी भारत की स्थायी सीट के दावे को रोका है।

चीन के राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था को लेकर कुछ गलतफहमी अब दूर हो रही है। चीन को पूरी दुनिया कम्युनिस्ट देश मानती है। जबकि व्यवहार में चीन कम्युनिज्म से दूर हो चुका है। अगर वाकई में कम्युनिस्ट है तो वियतनाम जैसे कम्युनिस्ट मुल्क को क्यों परेशान कर रहा है? दक्षिण चीन सागर में वियतनाम के एक्सक्लूसिव इकॉनमिक जोन मे चीन लगातार क्यों घुसपैठ करता रहा है? कोरोना संकट के दौरान ही चीन ने एक वियतनामी बोट को दक्षिण चीन सागर में तोड़ दिया। जबकि वियतनाम ने अमेरिकी साम्राज्यवाद के खिलाफ लडाई लड़ी। 

1990 के बाद चीन वैश्विक आर्थिक महाशक्ति के तौर पर उभरा। लेकिन इस महाशक्ति बनने के दौरान चीन में कुछ परिवारों के हाथों में भी पूंजी का केंद्रीकरण हुआ। कई निजी कारपोरेशनों ने चीन में अपनी ताकत बढ़ायी। ये निजी कारपोरेशन आज पूरे विश्व में अपनी ताकत दिखा रहे है। इनकी आर्थिक लेनदेन और कारोबार का तरीका ठीक अमेरिकी कारपोरेशनों की तरह है। 

1950 के बाद अमेरिकी कारपोरेशनों ने एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के गरीब देशों में विश्व बैंक और आईएमएफ के सहारे, वहां के राष्ट्राध्यक्षों को घूस देकर आर्थिक संसाधनों को लूटा। आज ठीक उसी तरह से चीन के पब्लिक सेक्टर और निजी क्षेत्र के कारपोरेशन एशिया,अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के गरीब देशों देशों में संसाधनों की लूट कर रहे है। वहां महंगे ब्याज दर पर कर्ज दे रहे है। वहां के राष्ट्राध्यक्षों को घूस भी देते है। 

हालांकि चीन में पब्लिक सेक्टर काफी मजबूत है। लेकिन चीन में निजी पारिवारिक कारपोरेशनों की ताकत भी खूब बढ़ी है। सैकड़ों पूंजीपति परिवारों के बड़े कारपोरेशन चीन में है जो पूरे विश्व में अपना निवेश कर रहे है। चीन की अर्थव्यवस्था में इनकी अहम भूमिका है। ये पूंजीपति परिवार चीन की राजनीति में खासे घुसपैठ रखते है। कई इसमें से चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से सीधे जुड़े है। इसका एक उदाहरण चीनी टेलीकॉम कंपनी हवावे है, जिसके मालिक चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से सीधे तौर पर जुड़े रहे है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि इन चीनी कारपोरेशनों के आर्थिक हित अमेरिकी कारपोरेशनों के साथ भी जुड़े है। कई अमेरिकी राजनेताओं के कारपोरेशनों के सीधे आर्थिक संबंध चीन के कारपोरेशनों से है।

(संजीव पांडेय वरिष्ठ पत्रकार हैं और चंडीगढ़ में रहते हैं।)