जनवरी का महीना गणतंत्र के संस्कार को जगाने के लिए सबसे उपयुक्त


महात्मा गांधी का शहादत दिवस 30 जनवरी इस महीने के सभी सूत्रों को हमारे गणतंत्र से जोड़ता है। राम के भक्त की हिंदू उग्रवादी द्वारा हत्या राम के नाम पर चल रही समकालीन राजनीति से हमें आगाह करती है। गांधी जी का जीवन हमारी सभ्यता और संस्कृति के सर्वोच्च मूल्यों को सर्वधर्म समभाव से जोड़ता है।


योगेन्द्र यादव
मत-विमत Updated On :

जन के मन को गण के भाव से जोडऩा आज भारत की सबसे बड़ी चुनौती है। जाहिर है देश है तो जन है, चारों तरफ जनता है। जनता का राज भी है। जाहिर है जन का मन भी होगा ही। जन के पास अपने मन की बात कहने का मंच भले ही न हो, जनमत के भोंपुओं की कमी नहीं है। टी.वी., अखबार, सोशल मीडिया सब जनमत के दावेदार हैं। लेकिन जन के मन और जन के मत में सामंजस्य नहीं है। जनमानस और जनमत को जोडऩे वाला कोई पुख्ता सेतु नहीं है। जन के मन और मत में गण के संस्कार स्थापित करने का कोई तरीका नहीं है। गण के नाम पर भीड़ और तंत्र द्वारा गणतंत्र का अपहरण रोकने की कोई व्यवस्था नहीं है।

यही आज हमारी चुनौती है। इस बार दिल्ली में देश का 75वां गणतंत्र दिवस उसके 4 दिन पहले अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन की परछाईं में होगा। 22 जनवरी को संवैधानिक लोकतंत्र के प्रधानमंत्री अयोध्या में राम मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के यजमान होंगे। उनके साथ वहां के मुख्यमंत्री और राज्यपाल भी रहेंगे। नाम मर्यादा पुरुषोत्तम राम का होगा, लेकिन काम वोट बैंक का होगा जिसका मर्यादा, आस्था या धर्म से कोई लेना देना नहीं है। जनमानस की आस्था का दोहन करते हुए मीडिया के जरिए जनमत पर कब्जा होगा, गणतंत्र का अपहरण होगा। विरासत के नाम पर जनमानस को दिग्भ्रमित करने के इस राजनीतिक खेल का प्रभावी जवाब यही हो सकता है कि हम भारत की गहरी विरासत को याद करें, जनमानस में दबे छुपे इस संस्कार को जगाएं और गण के दायित्व को जीवित रखें।

इस लिहाज से जनवरी का महीना गणतंत्र के संस्कार को जगाने के लिए सबसे उपयुक्त है। सिर्फ इसलिए नहीं कि इस महीने में हमारा औपचारिक गणतंत्र दिवस मनाया जाता है, बल्कि इसलिए भी कि इस महीने में हमारे गानों के मूल भाव का प्रतिनिधित्व करने वाले अनेक पर्व और दिवस पड़ते हैं। 26 जनवरी का दिन हमारे गणतंत्र के मूल भाव की दोहरी अभिव्यक्ति करता है। यह हमारे संविधान के लागू होने के दिवस होने के नाते संविधान की प्रस्तावना और उसके पाठ में अंतॢनहित मूल्यों को याद करने का दिन है। साथ ही हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर को पारित भारतीय संविधान को 26 जनवरी को लागू करने का निर्णय राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान पूर्ण स्वराज के राष्ट्रीय संकल्प के दिवस को याद रखने के लिए किया गया था।

जनवरी का महीना हमें स्वतंत्रता संग्राम के योद्धाओं की याद दिलाता है। 23 जनवरी नेताजी सुभाष बोस की जयंती हमें आजाद हिंद फौज में सभी धर्म संप्रदायों के भारतीय योद्धाओं की भागीदारी की याद दिलाती है। 20 जनवरी सरहदी गांधी यानि खान अब्दुल गफ्फार खान की जयंती है जो अहिंसक संघर्ष की ताकत की याद दिलाती है। 9 जनवरी को आदिवासी विद्रोह उलगुलान का दिवस है। लाल बहादुर शास्त्री की पुण्यतिथि 11 जनवरी हमें मर्यादा का पाठ पढ़ाती है। जनवरी का महीना सामाजिक न्याय के संवैधानिक मूल्य को याद करने का समय है। 3 जनवरी को सावित्रीबाई फुले और 9 जनवरी को फातिमा शेख की जयंती महिला शिक्षा और स्वतंत्रता के आंदोलन से जोड़ती है। 17 जनवरी को रोहित वेमुला का शहादत दिवस हमें याद दिलाता है कि सामाजिक न्याय का संघर्ष आज भी अधूरा है। इंकलाब जिंदाबाद का नारा देने वाले हसरत मोहानी की जयंती भी इसी माह में 1 जनवरी को पड़ती है।

यह महीना हमारे देश में धर्म और संस्कृति के उदार स्वरूप को पहचानने का समय है। देश में 13, 14, 15 जनवरी को संक्रांति के अवसर पर अलग-अलग नाम से त्यौहार मनाए जाते हैं जो किसी धर्म और जाति से बंधे हुए नहीं है। हिंदू धर्म की उदात्त व्याख्या करने वाले स्वामी विवेकानंद की जयंती 12 जनवरी को है। गुरु गोबिंद सिंह की जयंती को 17 जनवरी को गुरुपर्व के रूप में मनाया जाता है।

महात्मा गांधी का शहादत दिवस 30 जनवरी इस महीने के सभी सूत्रों को हमारे गणतंत्र से जोड़ता है। राम के भक्त की हिंदू उग्रवादी द्वारा हत्या राम के नाम पर चल रही समकालीन राजनीति से हमें आगाह करती है। गांधी जी का जीवन हमारी सभ्यता और संस्कृति के सर्वोच्च मूल्यों को सर्वधर्म समभाव से जोड़ता है। वर्ष 2024 भारतीय गणतंत्र के इतिहास में एक निर्णायक वर्ष होगा जो हमारे देश की दशा ही नहीं उसकी दीर्घकालिक दिशा भी तय कर देगा। इस वर्ष की शुरुआत जन गण मन के अभियान से करना हमारे गणतंत्र के भविष्य के लिए सच्चा योगदान होगा।