राजनीति में समय के साथ जिस तरह स्थितियां बदलती हैं उससे कई बार हैरानी भी होती है। यह हैरानी तब और बढ़ जाती है जब किसी जमाने में एक ही पार्टी में रह कर सुबह से लेकर शाम तक का वक़्त एक साथ निभाने वाले दो दोस्त चुनाव में एक दूसरे के खिलाफ ताल ठोंकते हुए दिखाई देते हैं। इसी तरह की हैरानी तब भी होती है जब एक पार्टी में मिल जुल कर किसी आन्दोलन को आगे बढ़ाने वाले दो साथी आन्दोलन की सफलता के बाद आयोजित कार्यक्रम में किसी वजह से एक साथ शिरकत नहीं कर पाते। कई बार तो ऐसा भी होता है कि ऐसे आन्दोलनों की सफलता का ताज ऐसे लोगों के सर पर पहना दिया जाता है जो आन्दोलन के दौरान दूर-दूर तक कहीं भी नहीं दिखाई दिए और दूसरी तरफ आन्दोलन को हवा देने वाले लोग एक सिरे से नकार दिए जाते हैं।
अयोध्या में बाबरी मस्जिद बनाम राम जन्म भूमि विवाद में राम मंदिर की स्थापना को लेकर पूरे देश में हिंदुत्व की अलख जगाने के लिए मशहूर संघ और भाजपा के कई नेताओं की स्थिति कुछ-कुछ ऐसी ही है। मंदिर समर्थक इन नेताओं में छोटे-मोटे पार्टी नेता नहीं बल्कि कई पूर्व केन्द्रीय मंत्री भी शामिल हैं। ये पूर्व मंत्री भी छोटे-मोटे नहीं बल्कि पूर्व केन्द्रीय गृह मंत्री लालकृष्ण आडवानी सरीखे वरिष्ठ पार्टी नेता भी इसमें शामिल हैं जिन्हें 5 अगस्त को अयोध्या में होने वाले शिलान्यास समारोह में शामिल होने का न्योता तक नहीं दिया गया है।
पूर्व केन्द्रीय मंत्री उमा भारती को इस कार्यक्रम का न्यौता तो जरूर दिया गया है लेकिन उन्होंने कार्यक्रम में शामिल न होना ही ठीक समझा है। उमा भारती का इस बारे में कहना है कि कोरोना के चलते सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करते हुए वो अयोध्या में रहते हुए भी कार्यक्रम से दूरी बनाए रखेंगी। उमा भारती, दिल्ली और देश के दूसरे इलाकों से आने वाले मेहमानों के वापस जाने के बाद रामलला के दर्शन कर लेंगी।
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए आन्दोलन करने वाले जो असंख्य नेता शिलान्यास के मौके पर मौजूद नहीं रहेंगे उनमें में कुछ तो ऐसे हैं जो फिलहाल इस दुनिया में ही मौजूद नहीं हैं। इन नेताओं में ग्वालियर की राजमाता विजय राजे सिंधिया, विश्व हिन्दू परिषद् के नेता अशोक सिंघल जैसे नेताओं के नाम लिए जा सकते हैं। पर दूसरी तरफ आन्दोलन में शरीक अनेक जीवित नेताओं को शिलान्यास कार्यक्रम में बुलाया ही नहीं गया। इन नेताओं में पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी और विश्व हिन्दू परिषद् के एक और बड़े नेता प्रवीण तोगडिया के नाम भी शामिल हैं।
शिलान्यास कार्यक्रम में केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी अब शामिल नहीं हो पायेंगे क्योंकि अंतिम समय में शाह कोरोना की चपेट में आ गए। इस मामले में कुछ लोगों का यह भी कहना है कि अमित शाह ने खुद ही शिलान्यास के मौके पर अयोध्या जाना ठीक नहीं समझा, कोरोना तो केवल बहाना है। इस मत के समर्थकों का कहना है कि अमित शाह जैन हैं। उन्हें शायद यह भी लगा हो कि मंदिर निर्माण समिति से सम्बद्ध पंडित बिरादरी के लोग ही इस मौके पर उनके वहां उपस्थित होने का विरोध न कर दें। संभवतः इसी डर से गृह मंत्री ने अयोध्या जाने की अपनी योजना स्थगित कर दी।
5 अगस्त को होने वाले इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए कुल दो सौ लोगों को निमंत्रण पत्र दिए गए हैं लेकिन आश्चर्य तब होता है जब इस तरह के समाचार सुनने को मिलते हैं कि इस मौके पर वहां 600 लोगों के बैठने के लिए दो बड़े पंडाल अलग से लगाए जायेंगे। सवाल यह भी है कि जब कोरोना वायरस से बचने के लिए बुलाया ही 200 लोगों को गया है तब फिर 600 और लोगों के बैठने की व्यवस्था अलग से क्यों करनी पड़ रही है।
इसकी एक बड़ी वजह यह बताई जा रही है कि अयोध्या के संत आयोजकों से बुरी तरह नाराज हैं। अयोध्या स्थित इन स्थानीय संतों की नाराजगी इस बात को लेकर है कि पहले तो उन लोगों को राम मंदिर आन्दोलन से ही बाहर करने की कोशिश की गई थी और अब मंदिर निर्माण की प्रक्रिया से उनको अलग थलग किया जा रहा है। अयोध्या के इन संतों की नाराजगी को शांत करने की गरज से ही पंडालों की अतिरिक्त व्यवस्था स्थानीय प्रशासन ने की है।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 5 अगस्त को अयोध्या में होने वाले कार्यक्रम के न केवल मुख्य अतिथि होंगे बल्कि मोदी के हाथों ही भूमिपूजन का कार्य भी संपन्न होगा। प्रसंगवश बहस का मुद्दा यह भी है कि जिस मंदिर निर्माण के लिए एक बार पहले भूमिपूजन और शिलान्यास कार्यक्रम हो चुका हो वहां दुबारा पूजन करना शास्त्र सम्मत नहीं है। बहरहाल इस मुद्दे पर बहस करने के बजाय बाबरी मस्जिद विध्वंश का विषय यह होना चाहिए कि लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी सरीखे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को इस कार्यक्रम में उपस्थित होने का मौका क्यों नहीं दिया गया?
अपुष्ट ख़बरें यह भी बताती हैं कि आडवानी समेत अनेक नेताओं को शिलान्यास कार्यक्रम में इसलिए नहीं बुलाया गया क्योंकि बाबरी मस्जिद विध्वंश मामले में चल रही एक अदालती कारवाई की सुनवाई के दौरान इन नेताओं ने उस घटना के लिए खुद को जिम्मेदार न ठहराए जाने की अपील की है। कहा यह भी जा रहा है कि आडवाणी जी ने 1990 के दौरान अपनी सोमनाथ मंदिर से लेकर अयोध्या तक की गई अपनी राम रथयात्रा से पूरे देश में राम मंदिर के पक्ष में जो हवा बनाई थी उसी की वजह से राम मन्दिर निर्माण का यह सपना पूरा हो सका। पर इसके साथ ही यह भी कितना अजीब लगता है कि आज वही आदमी ने जिसने अयोध्या में राम मन्दिर निर्माण के पक्ष में हवा बना कर पार्टी को मजबूती प्रदान की आज वही व्यक्ति इस कार्यक्रम का भागीदार नहीं बन सका ।