इतिहास दर इतिहास रचती कमला हैरिस


व्हाइट हाउस के दरवाजे तक पहुंच चुकी कमला ने निर्वाचन के बाद विक्ट्री स्पीच देते हुए कहा- ‘मैं अमेरिका की पहली महिला वाइस प्रेसिडेंट बनूंगी, लेकिन हमें यह भी तय करना है कि ये आखिरी बार न हो। हर छोटी बच्ची आज जो देख रही है, उसके मन में यह भावना जरूरी आनी चाहिए कि अमेरिका संभावनाओं और उम्मीदों का देश है।’


डॉ. एनके सोमानी
मत-विमत Updated On :

संयुक्त राज्य अमेरिका में हुए 46वें राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों में भारतीय मूल की सीनेटर कमला हैरिस ने उपराष्ट्रपति पद पर जीत दर्ज कर इतिहास रच दिया है। 55 वर्षीय कमला हैरिस को अमेरिका में भारतीय और अफ्रीकी अमेरिकी के तौर पर जाना जाता है। चुनाव अभियान के दौरान पार्टी ने उन्हें नस्लीय समानता का प्रतीक बताकर प्रचार किया। यह सच भी है, वो जितनी भारतीय मूल की है, उतनी ही अफ्रीकी मूल की भी है। उनकी मां श्यामला गोपालन भारत के तमिलनाडु राज्य की थी।

कमला के अश्वेत पिता डोनाल्ड हैरिस जमैका के हैं। हालांकि उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार घोषित किये जाने से पहले हैंरिस ने डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद के लिए दावेदारी प्रस्तुत की थी। लेकिन प्राइमरी चुनावों में बाइडेन और बर्नी सैंडर्स से पिछड़ने के बाद वो बाइडेन के समर्थन में चुनाव मैदान से हट गयी थी। साल 2016 में जब वो पहली बार अमेरिकी सीनेट के लिए निर्वाचित हुई उस वक्त वो यह सम्मान पाने वाली दूसरी अश्वेत महिला थी।

1964 में हैरिस का जन्म ऑकलैंड कैलिफोर्निया में हुआ था। उन्होंने 1998 में ब्राउन यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया। इसके बाद कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से लॉ की पढ़ाई पूरी की। 2003 में उन्होंने सैन फ्रांसिस्कों के काउंटी की डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी जनरल बनकर इतिहास रचा था।

हालांकि, नस्लीय भेदभाव को लेकर हैरिस और बाइडेन के बीच वैचारिक मतभेद हैं। पार्टी के अंदर और बाहर अनेक अवसरों पर दोनों नेता इस मुद्दे को लेकर एक-दूसरे की आलोचना कर चुके हैं। डेमाक्रेटिक कैंडिडेट की एक डिबेट में भी उन्होंने बाइडेन पर नस्लवाद को बढ़ावा देने के आरोप लगाए थे। वो बाइडेन की कुछ नीतियों की शुरू से ही विरोधी रही हैं। अमेरिका की राजनीति में कमला का कद कितना ऊंचा है, इस का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि कट्टर विरोधी होते हुए भी बाइडेन को उन्हें उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में नामित करना पड़ा। यह अलग बात है कि उनकी दावेदारी के पीछे बाइडेन की अपनी रणनीति थी।

बाइडेन पुराने और मंझे हुए राजनीतिज्ञ है। उनके पास बराक ओबामा जैसे कुशल व सफल राष्ट्रपति के साथ बतौर उपराष्ट्रपति पद पर काम करने का व्यवहारिक अनुभव हैं। इस अनुभव का लाभ बाइडेन राष्ट्रपति चुनाव में लेना चाहते थे इस लिए उन्होंने उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में भारतीय-अफ्रीकी मूल की सीनेटर कमला हैरिस को मैदान में उतारकर रिपब्लिकन उम्मीदवार व मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सामने चुनौती पेश की थी जिसमें वो सफल भी रहे।

द्वितीय, बाइडेन इन चुनावों में ’ब्लेक एंड व्हाइट’ कॉम्बिनेशन के साहरे आगे बढ़ना चाहते थे। दरअसल, अमेरिका में पिछले दिनों अश्वेत अमेरिकी नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस हिरासत में हुई मौत के बाद ट्रंप प्रशासन का जो रूख रहा उससे अश्वेतों में सरकार के खिलाफ गुस्सा था। बाइडेन अश्वेतों के इसी गुस्से को ट्रंप के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना चाहते थे।

अपने गेम प्लान के मुताबिक उन्हें एक ऐसे चेहरे की तलाश थी, जो अश्वेत अमेरिकी नागरिकों की सरकार विरोधी भावनाओं का लाभ दिलाने के साथ-साथ ’हाउडी मोदी’ और ’नमस्ते ट्रंप’ के चलते भारतीय समूह के मतदाताओं में बने ट्रंप के प्रभाव को कम कर सके। वे जानते हैं कि इस काम के लिए हैरिस से बढ़कर दूसरा दमदार चेहरा कोई और नहीं हो सकता है। हैरिस को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर बाइडेन अश्वेत अमेरिकी मतदाता और भारतीय मतदाताओं को तो आकर्षित करने में कामयाब हुए ही, महिला वोटरों को लुभाने में भी सफल रहे।

सामान्यत: अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों को डेमोक्रेटिक पार्टी का समर्थक माना जाता है। यही कारण है कि चाहे पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा रहे हो या पूर्व विदेशमंत्री हिलेरी क्लिंटन सभी ने भारतीयों को साधने वाली नीतियों का समर्थन किया है। पिछले दिनों जब ट्रंप ने एच-1बी वीजा पर सख्त प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया तो डेमोक्रेटिक पार्टी ने ट्रंप के निर्णय की आलोचना करते हुए इसे बदलने की मांग थी। अब कमला को उपराष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाकर डेमोक्रेटस भारतीयों के साथ ही अफ्रीकी मूल के नागरिकों को यह संदेश देना चाहते हैं कि उनकी पार्टी हमेशा अल्पसंख्यक अमेरिकी नागरिकों के साथ खड़ी है।

हालांकि, अमेरिका के भीतर भारतीय मूल के मतदाताओं का एक वर्ग ऐसा भी है, जो यह मानता है कि हैरिस स्वयं को भारतीय मूल की कहलाने के बजाए अमेरिकी या अफ्रीकी मूल की कहलाना ज्यादा पंसद करती है। विदेश नीति की मुद्दों की समझ कमला में नहीं है। जम्मू-कश्मीर से धारा-370 हटाए जाने और उसके बाद लगे प्रतिबंधों को लेकर कमला हैंरिस का भारत विरोधी रूख सामने आ चुका है। ऐसे में उनके निर्वाचन के बाद सवाल यह उठ रहा है कि भारत के प्रति उनका नजरिया कैसा रहेगा।

पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने जिस वक्त कमला के नाम को प्रस्तावित किया था उस वक्त उन्होंने उसे निडर फाइटर और देश की बेहतरीन जनसेवक बताया था। स्पीकर नैंसी पेलोसी और पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने भी कमला को बाइडेन का मजबूत पार्टनर बताया है। निसंदेह हैरिस काबिल है। वो अमेरिकी संस्कृति की गहरी जानकारी रखती है। सबसे बड़ी बात उन्हें मतदाताओं की नब्ज की पहचान थी। पूरे चुनाव अभियान के दौरान लोगों को पार्टी से जोड़ने के लिए उन्होंने भावुक भाषण दिए। खासकर अश्वेतों के बीच।

कमला पर ट्रंप ने कई बार जुबानी हमले किए लेकिन उन्होंने शालीनता नहीं छोड़ी। अमेरिकी राजनीति में उनको भले ही कुछ भी कहा जाता रहा हो लेकिन उनके जानने वाले इस बात को जानते है, कि वो कितनी काबिल हैं। व्हाइट हाउस के दरवाजे तक पहुंच चुकी कमला ने निर्वाचन के बाद विक्ट्री स्पीच देते हुए कहा- ‘मैं अमेरिका की पहली महिला वाइस प्रेसिडेंट बनूंगी, लेकिन हमें यह भी तय करना है कि ये आखिरी बार न हो। हर छोटी बच्ची आज जो देख रही है, उसके मन में यह भावना जरूरी आनी चाहिए कि अमेरिका संभावनाओं और उम्मीदों का देश है।’

निसंदेह कमला का उदबोधन एक संभावना जगाता हैं। हो सकता है, वो इस संभावाना में वो व्हाइट हाउस तक पहुंचने की राह तलाश रही हो। अगर ऐसा है तो इतिहास दर इतिहास रचने वाली कमला साल 2024 के चुनावों में एक और इतिहास रच सकती है।

(एनके सोमानी एम.जे.जे. गल्र्स कॉलेज, सूरतगढ़, श्रीगंगानगर में राजनीति विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।)