किसान आंदोलन : क्यों गलती पर गलती करती गई मोदी सरकार


अभी तक सरकार किसानों को कृषि कानून समझा रही थी। अब सरकार को अपनी गलती का अहसास हो गया है। दो बड़े कारपोरेट घरानों को भी अपना नुकसान नजर आ रहा है। ये दोनों कारपोरेट घराने कांग्रेस के जमाने में भी अपने हितों को साधने के लिए नीतियां बनवाते थे। लेकिन पहली बार दोनों कारपोरेट घराने मोदी सरकार के कार्यकाल में जनता के निशाने पर है।


संजीव पांडेय संजीव पांडेय
मत-विमत Updated On :

केंद्र सरकार घबरायी हुई है। किसान आंदोलन अब पंजाब से बाहर फैल रहा है। दूसरे राज्यों के लोग न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बातचीत कर रहे है। जिन राज्यों के किसानों को एमएसपी की जानकारी तक नहीं थी वो एमएसपी पर बहस कर रहे हैं। इसके लाभ से परिचित हो रहे है। यहीं केंद्र सरकार फंस गई है। एमएसपी तो देश में मात्र 6 प्रतिशत किसानों को मिल रहा था। तो क्या कारपोरेट घरानों को लाभ देने के चक्कर में तीन कृषि कानूनों को लाकर केंद्र सरकार फंस गई है? क्योंकि अब तो किसान एमएसपी की लीगल गारंटी से नीचे कोई समझौता नहीं करेंगे।

किसान आंदोलनकारी एमएसपी को कानून बनाने की मांग कर रहे है। अगर यह कानून बन गया तो इसका लाभ लाभ हर राज्य के किसान को मिलेगा। आंदोलन का असर अब दिख रहा है। हरियाणा पूरी तरह से किसान आंदोलन के प्रभाव में आ गया है। हरियाणा के कुछ स्थानीय निकायों के हुए चुनाव मे भाजपा की हार हुई है। तीन बड़े शहरों के मेयर पद पर हुए चुनाव में भाजपा सिर्फ एक शहर में मेयर पद जीती है।

उधर बिहार और यूपी में किसान आंदोलन की चर्चा जोरों पर है। पटना में किसान सड़कों पर आए। किसानों ने राजभवन का घेराव करने की कोशिश की। किसान आंदोलन के कारण भाजपा का पश्चिम बंगाल प्लान फेल हो सकता है। क्योंकि सरकार के ज्यादातर लोग पश्चिम बंगाल के बजाए दिल्ली में फंसे पड़े है।

भाजपा अब डैमेज कंट्रोल कर रही है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को भी केंद्र सरकार की गलतियों का अहसास हो रहा है। राजनाथ सिंह को डैमेज कंट्रोल के लिए फ्रंट पर भेजा गया है। बताया जाता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इशारे पर राजनाथ ने डैमेज कंट्रोल की कोशिश की है। राजनाथ सिंह ने एएनआई को दिए इंटरव्यू में किसानों के गुस्से को शांत करने की कोशिश की है।

भाजपा के अंदर सबसे सुलझे हुए नेता माने जाने वाले राजनाथ सिंह ने साफ शब्दों में आंदोलनकारी किसानों को खालिस्तानी या नक्सल कहने पर आपत्ति जतायी है। राजनाथ सिंह ने अपने इंटरव्यू में किसानों के साथ हमदर्दी दिखायी। कहीं न कहीं राजनाथ सिंह का इंटरव्यू साफ संकेत देता है कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को किसान आंदोलन की गर्मी महसूस हो रही है।

केंद्र सरकार को उम्मीद ही नहीं थी कि आंदोलन को हरियाणा में इतना जनसमर्थन मिलेगा। हरियाणा के किसान धरना स्थल पर पंजाब से गए आंदोलनकारी किसानों को जरूरी सामान उपलब्ध करवा रहे है। वे लगातार धरना स्थल पर समर्थन जताने आ रहे है। अंबाला- दिल्ली हाइवे औऱ संगरूर-रोहतक हाइवे पर जगह-जगह स्थानीय किसानों ने आंदोलनकारी किसानों के लिए लंगर लगा रखा है। लंगर आंदोलन में पंजाब से जाने वाले किसानों की परेशानी दूर करने के लिए लगाया गया है।

हरियाणा भी आंदोलन के चपेट में आएगा इसका अंदाजा हरियाणा की भाजपा सरकार लगा ही नहीं पायी। राज्य सरकार के अधिकारियों के अनुसार सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग सही बात सुनने को राजी नहीं है, इसलिए उन्हें सही समय पर सही सूचना देने से अधिकारियों ने परहेज किया।

अंबाला में किसानों ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का जोरदार विरोध किया। वे मेयर चुनाव का प्रचार करने गए थे। अंबाला का चुनाव परिणाम भी आ गया है। यहां भाजपा की प्रत्याशी निर्दलीय प्रत्याशी से चुनाव हार गई। सोनीपत मे मेयर की सीट कांग्रेस के कब्जे में चली गई। सोनीपत इस समय किसान आंदोलन का केंद्र बना हुआ है।

हरियाणा में भाजपा की परेशानी बढ़ गई है। भाजपा और इसके सहयोगी जजपा के विधायकों का राज्य में घेराव हो रहा है। मंत्रियों और विधायकों को सुरक्षा में चलने का आदेश दिया गया है, क्योंकि खुफिया एजेंसियों ने मंत्रियों औऱ सताधारी दल के विधायकों के खिलाफ विरोध और तेज होने की आशंका व्यक्त की है।

जजपा के दुष्यंत चौटाला फंसे हुए है। वे डिप्टी सीएम का पद छोड़ना नहीं चाहते है। पर उनकी पार्टी के विधायकों को जनता के बीच जाने में परेशानी हो रही है। हर जगह घेराव हो रहा है। नारेबाजी हो रही है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता चौधरी बिरेंद्र सिंह किसानों के समर्थन में आ गए है। उन्हें अपने सांसद पुत्र विजेंद्र सिंह की भविष्य की चिंता है, जो वर्तमान में हिसार से सांसद है।

बिरेंद्र सिंह किसानों के समर्थन में धरने पर बैठ रहे है। इससे दुष्यंत चौटाला की चिंता बढ़ गई है। क्योंकि दुष्यंत चौटाला भी हरियाणा के उसी इलाके की राजनीति करते है, जिस इलाके में बिरेंद्र सिंह और उनका परिवार राजनीति करता है। निश्चित तौर पर हरियाणा की भाजपा-जजपा सरकार अभी डेंजर जोन में है। अगर किसानों और सरकार के बीच कोई समझौता नहीं हुआ तो हरियाणा की खट्टर सरकार की विदाई हो सकती है।

किसान आंदोलन की शुरूआत में अनदेखी केंद्र सरकार को भारी पड़ी है। सरकार को उम्मीद ही नहीं थी कि आंदोलन इतना मजबूत होगा। सरकार ने आंदोलन को थकाकर खत्म करने की कोशिश की। किसान संगठनों के नेताओं ने दिल्ली जाकर जब सरकार से बातचीत की कोशिश की तो कृषि मंत्रालय के अधिकारियों ने उन्हें कानून का फायदा बता वापस लौटा दिया।

इधर पंजाब में स्थानीय किसान संगठित हो रहे थे। लेकिन केंद्र सरकार के सलाहकारों ने मोदी सरकार को सही समय पर सूचना नहीं दी। कुछ लोगों का कहना है कि सलाहकारों ने जानबूझ कर सरकार को सही सूचना न देकर सरकार को फंसा दिया।

सलाहकारों ने सरकार को बताया कि पंजाब के किसान संगठन आपस में एकजुट नहीं है। फिर कहा कि आंदोलन पंजाब से बाहर नहीं फैलेगा, यहीं पर धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा। अब जब आंदोलन दिल्ली की सीमा पर पहुंच गया तो सरकार को आंदोलन की गंभीरता समझ में आ रही है।

भाजपा के अंदर समझ रखने वाले लोग इस बात से वाकिफ है कि जब अन्ना के हजारों की भीड़ मनमोहन सरकार की विदाई करवा सकती है, तो इस समय तो लाखों किसान दिल्ली सीमा पर है। सरकार के हर दुष्प्रचार का बढ़िया जवाब किसान संगठनों ने दिया।

सबसे पहले पंजाब में आंदोलन कमजोर करने के लिए दलित और हिंदू कार्ड खेला गया। भाजपा ने पंजाब में धर्म और जाति का मसला उठा दिया। भाजपा की यह योजना बुरी तरह से फेल हो गई। भाजपा के इस खेल का नतीजा यह हुआ कि पंजाब में भाजपा के नेताओं को सार्वजनिक स्थलो पर विरोध शुरू हो गया। फिर आंदोलनकारियों को खालिस्तानी बताने की भी कोशिश की गई।

आंदोलनकारियों को खालिस्तानी साबित करने के लिए कुछ पत्रकारों और मीडिया चैनलों की सहायता ली गई। जब यह योजना भी विफल हो गई तो आंदोलनकारियों को अरबन नक्सल कहा गया। इसमें भी कुछ मीडिया घरानों और पत्रकारों का सहयोग लिया गया। लेकिन ये योजना भी फेल हो गई।

अभी तक सरकार किसानों को कृषि कानून समझा रही थी। अब सरकार को अपनी गलती का अहसास हो गया है। दो बड़े कारपोरेट घरानों को भी अपना नुकसान नजर आ रहा है। ये दोनों कारपोरेट घराने कांग्रेस के जमाने में भी अपने हितों को साधने के लिए नीतियां बनवाते थे। लेकिन पहली बार दोनों कारपोरेट घराने मोदी सरकार के कार्यकाल में जनता के निशाने पर है।

रिलांयस को चिंता है कि अगर पंजाब के तर्ज पर देश के दूसरे राज्यों में जियो के टावर को निशाना बनाया गया तो भविष्य में रिलांयस में निवेश प्रभावित होगा। अदानी ग्रुप के सारे कारोबार पर इस समय देश भर में जमकर बहस हो रही है। इस समय फेसबुक औऱ व्हाट्सएप अदानी ग्रुप के कारोबार की जानकारियों से भरे पड़े हैं। इस कारण दोनों कारपोरेट घरानों में घबराहट है। उन्हें लग रहा है कि इसका लाभ सीधे तौर पर दूसरे कारपोरेट घराने उठाएंगे और उनका नुकसान करेंगे।

नरेंद्र मोदी सरकार के करीबी ये दोनों कारपोरेट घराने जल्द से जल्द किसानों के आंदोलन को खत्म करने के लिए सरकार पर दबाव बना रहे है। रिलांयस की घबराहट साफ दिख रही है। पंजाब सरकार को पत्र लिखकर रिलांयस इंडस्ट्री ने कहा है कि रिलांयस के टावरों को पंजाब में नुकसान पहुंचाए जाने पर नाराजगी व्यक्त की है। रिलांयस इंडस्ट्री ने आरोप लगाया है कि उसके स्टाफ को पंजाब में काम नहीं करने दिया जा रहा है।

दरअसल मोदी सरकार पिछले कुछ महीनों में बदलते जियोपॉलिटिक्स को समझने में विफल रही है। अमेरिका में के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन नरेंद्र मोदी सरकार के साथ कैसा व्यवहार करेंगे, यह अभी तय नहीं है। अमेरिकी कांग्रेस के कुछ सदस्यों ने किसान आंदोलन के प्रति सहानभूति व्यक्त कर नरेंद्र मोदी सरकार की परेशानी बढ़ा दी है।

कनाडा के प्रधानमंत्री किसान आंदोलन का समर्थन कर भारत सरकार की परेशानी पहले ही बढ़ा चुके है। चर्चा यह है कि क्या जो बाइडेन भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वो नारा भूल गए है, “अबकी बार ट्रंप सरकार”।