
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के 151 जन्म जयंती वर्ष में सत्याग्रह का एक अद्भुत प्रयोग किसान आंदोलन के रूप में हो रहा है। सन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय बापू का आह्वान था कि करेंगे या मरेंगे। हम इस आंदोलन के तो प्रत्यक्षदर्शी नहीं बन सके परन्तु आज महसूस कर रहे है कि उसकी गरिमा क्या रही होगी।
इतिहास स्वयं को दोहराता है। विद्यार्थी जीवन के दौरान अपने पाठ्यक्रम में हमें पढ़ाया गया कि महात्मा जी के असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलन में एक अपील पर लोगों ने अपने पुरस्कार सरकार को लौटा दिए, सरकारी कर्मचारियों ने अपनी नौकरियों से त्यागपत्र दे दिए और वकीलों ने वकालत छोड़ कर राष्ट्रीय आज़ादी के आंदोलन में अपनी शिरकत दर्ज करवाई। ये सब ऐसे किस्से-कहानियां लगते थे मानो किसी कल्पना से भरे हो पर आज यह इतिहास किसान आंदोलन में दोहराया जा रहा है।
किसान धरना स्थलों पर डटे हैं। इस कड़कड़ाती सर्दी में भी और बारिश के दौरान भी जब हम लोग अपने-अपने घरों में गर्म रजाईओं में दुबके हुए है। प्राप्त सूचनाओं के अनुसार लगभग 61 किसानों ने आंदोलन के दौरान शहादत पाई है। इसमें हर उम्र के किसान हैं। मुझे अपने साथियों के साथ कई बार सिंघु बॉर्डर पर जाने का मौका मिला।
मैं तो एक दर्शक के तौर पर गया परन्तु वहाँ पाया कि यह स्थल अब सत्याग्रह का प्रयोग स्थल है। शांतिपूर्ण अहिंसक आंदोलनकारी अपने-अपने स्थान पर डटे है। उन्हें न तो कोई गुस्सा है और न ही कोई मलाल। विरोधी के प्रति भी सद्भावना है। क्या इसके इलावा भी गांधी का कोई आंदोलन हो सकता है।
सविनय अवज्ञा के इन क्रांतिकारियों ने दिल्ली को चारों और से घेर रखा है। यहां दुनियां के तमाम आस्थाओं एवम विचारधाराओं के लोग जमा है और सभी धर्मों के लोग भी। इनका भी अज़ब नारा है-भारत माँ के चार सिपाही-हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई। यहां राम-कृष्ण, बुद्ध-महावीर, नानक-कबीर, मार्क्स-लेनिन-माओ, भगतसिंह-सुभाष सभी की विचारधारा के लोग एकजुट है।
यह विचार चिंतन का आंदोलन है। कहीं भी नेतृत्व विवाद नही है। क्या यह उग्रवाद अथवा अति वामपंथ को मानने वाले लोग भी है? इसका जवाब होगा जी बिल्कुल है पर उनके हाथ में भी कोई हथियार न होकर हाथ जोड़ कर विनम्रता प्रदर्शन है। विश्व इतिहास का यह सबसे बड़ा शांतिपूर्ण तरीके से लड़ा जाने वाला आंदोलन है।
देशभर के सभी वे लोग जिनकी जनतांत्रिक मूल्यों में आस्था है, इस आंदोलन में आना चाहते हैं। गांधी विचार के संगठन गांधी स्मारक निधि, सर्व सेवा संघ/ सर्वोदय मंडल तथा गांधी ग्लोबल फैमिली के अनेक साथी इसमें लगातार भाग ले रहे हैं।
गांधीवादी पीवी राजगोपाल, संजय सिंह, रमेश चंद्र शर्मा और महंत तिवारी यदा-कदा इस आंदोलन में पहुंच ही जाते हैं। भाई जी एसएन सुब्बाराव तथा पद्मश्री धर्मपाल सैनी ने अपने संदेशों के माध्यम से आंदोलन के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त की है तथा सबको सन्मति मिलने की प्रार्थना की है।
अच्छा रहता कि गांधी विचार पर आधारित इस प्रवाह को गांधी- विनोबा के नाम पर काम करने वाली संस्थाओं तथा कार्यकर्ताओं का नेतृत्व मिलता। परंतु अफसोस है कि ये संगठन, संस्थान, आश्रम एवं भवनों में ही सिमट कर रह गए हैं और यह निश्चित रूप से विचार के प्रति निराशा प्रकट करते हैं।
हमें यह जरूर सोचना होगा कि यदि गांधी, जयप्रकाश नारायण अथवा निर्मला देशपांडे आज होते तो वे कहां होते? उनके प्रति आस्था रखने वाले लोगों एवं उनकी विरासत को संभालने वाली संस्थाओं के लिए अवश्य यह यक्ष प्रश्न है।