अयोध्या में बरसों तक टाट और टेंट के साए में धूप, हवा और बरसात की मार झेलते-झेलते आखिरकार अब रामलला के लिए दिव्य मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ़ हो ही गया। भवन निर्माण का काम शुरू हो ही गया है सब कुछ ठीक ठाक तरीके से चलता रहा तो साढ़े तीन साल (5 फरवरी 2024 तक) की अवधि में भव्य मंदिर बन कर तैयार हो जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अयोध्या में जिस स्थान पर भूमिपूजन के साथ भवन निर्माण की आधारशिला रखी है उस निर्माण से जुड़े एक आर्किटेक्ट ने ही कुछ दिन पहले यह बयान दिया था कि अयोध्या में राम मन्दिर निर्माण के लिए 6 महीने की अवधि में 25 फुट गहरी नींव का निर्माण होगा और आधारशिला रखे जाने के दिन से ही शुरू हुआ मंदिर निर्माण का काम भी साढ़े तीन साल में पूरा हो जाएगा।
बुधवार,5 अगस्त 2020 को यह काम शुरू हो चुका है और इस हिसाब से 5 फरवरी 2021 तक नींव के निर्माण का काम पूरा हो जाएगा और इसके तीन साल बाद यानी 5 फरवरी 2024 तक मंदिर निर्माण का काम भी पूरा हो जाएगा। फिर ऐसे ही एक भव्य आयोजन के बाद रामलला को भव्य भवन में विराजमान और स्थापित (प्रतिष्ठापित) कर दिया जाएगा। साल 2024 का इस देश के लिए राजनीतिक दृष्टि से कितना महत्त्व है यह तथ्य किसी से भी छिपा नहीं है।
बहरहाल हम इस राजनीतिक महत्त्व की चर्चा यहां नहीं कर रहे हैं, हमारी चर्चा के केंद्र में है मर्यादा पुरुषोत्तम राम का आदर्श व्यक्तित्व और उनके द्वारा स्थापित आदर्श राज व्यवस्था जिसे रामराज भी कहा जाता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अयोध्या में रामलला की स्थापना का काम शुरू होने के बाद अब देश में राम राज की स्थापना का मार्ग भी प्रशस्त होगा। रामराज की व्यवस्था कोरी कल्पना नहीं है बल्कि त्रेता युग की इस प्रशासकीय व्यवस्था को आधुनिक भारत में साकार करने की बात इससे पहले तब भी चर्चा में आ चुकी थी जब महात्मा गांधी ने देश के स्वाधीनता संग्राम का नेतृत्व करते हुए आजाद भारत में रामराज स्थापित करने की बात कही थी। आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का वह सपना साकार करने का समय भी आ गया है। इस चर्चा के सन्दर्भ में यह प्रसंग भी कम रोचक नहीं है कि राम, अयोध्या, गुजरात और गांधी के बीच जबरदस्त सम्बन्ध रहा है। यह महज संयोग नहीं कहा जा सकता कि आजाद भारत में रामराज की स्थापना का सपना साकार करने वाले गांधी ने अपने अंतिम समय में, ” हे ! राम…” कहते हुए ही अपने प्राण छोड़े छोड़े थे।
गांधी अपने जीते जी रामराज की स्थापना तो नहीं कर सके लेकिन उनके नाम का सहारा लेकर ही राम के नाम पर एक अदृश्य राम राजनीति इस देश में जरूर शुरू हो गई। यह भी महज संयोग नहीं माना जा सकता कि 1948 में गांघी जी एक कथित राम भक्त के हाथों मारे जाते हैं और इसके एक साल बाद 1949 में ही अयोध्या विवाद के नाम से एक राजनीतिक विवाद की शुरुआत इस देश में शुरू हो जाती है। इस विवाद में एक बड़ा नाटकीय मोड़ तब आता है जब गुजरात के ही एक संसदीय क्षेत्र से जीत कर आने वाले एक सांसद और उस समय की मुख्य विपक्षी पार्टी के एक बहुत बड़े नेता (लालकृष्ण आडवाणी) इसी अयोध्या विवाद को हवा देने की गरज से पूरे देश में राम रथयात्रा का आयोजन करते हैं।
1990 में गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक के लिए शुरू की गई इस अयोध्या यात्रा का पारायण बुधवार 5 अगस्त 2020 को अयोध्या में राम के भव्य मंदिर के निर्माण के लिए किये गए भूमिपूजन के साथ होता है। अब इसे भी महज संयोग नहीं कहा जा सकता कि यह भूमिपूजन भी देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी की उपस्थिति में और उन्हीं के करकमलों से संपन्न हुआ। माना कि मोदी लोकसभा में देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के वाराणसी संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं लेकिन उनका मूल स्थान तो महात्मा गांधी की तरह गुजरात ही तो है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गांधी को अपना आदर्श भी मानते हैं, उन्हीं के आदर्शों का पालन करर्ते हुए प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत कार्यक्रम को देश भर में सफलतापूर्वक लागू भी किया है। गांधीजी द्वारा सुझाए गए ऐसे ही अन्य कार्यक्रमों को भी मोदी लागू करने की लालसा रखते हैं, ऐसे में उनसे सहज ही यह उम्मीद भी यह देश करता है कि वो गांधी के आदर्श रामराज की स्थापना करने में भी पीछे नहीं रहेंगे। सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर ये रामराज है क्या? एक बार के लिए अगर इस प्रसंग से तमाम धार्मिक पहलुओं को नजरअंदाज कर दिया जाए तो मर्यादा पुरुषोत्तम राम के राज की कल्पना एक ऐसे साम्यवादी व्यवस्था के रूप में सामने आती है जिसमें कोई छोटा नहीं है और कोई बड़ा भी नहीं है। राम के राज में सब बराबर हैं क्योंकि राम एक राजा के रूप में, एक शासक के रूप में सबके गले लगते हैं।
राम की कथा में सामाजिक और सांस्कृतिक क्रान्ति का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि इसकी कथा लिखने का श्रेय ही बाल्मीकि जैसे एक ऐसे ऋषि को जाता है जो मूल रूप से राहगीरों को लूटने का काम करता है, यही उसका पेशा है लेकिन वही व्यक्ति एक दिन क्रौंच पक्षी के घायल होने पर यह धंधा छोड़ कर जप-तप और ध्यान में लीन हो जाता है यही व्यक्ति अपने आश्रम में बैठ कर शांत मन से राम की कथा लिखता है। जिसे रामायण नाम दिया गया है।
रामायण की कथा में जगह जगह पर ऐसे प्रसंग आसानी से देखने को मिल जाते हैं जिनमें छोटे बड़े का भेद एकदम मिट जाता है। इस समाज में जाति,धर्म,वर्ण और क्षेत्र के हिसाब से समाज में किसी तरह का भेद नहीं किया जाता। सबको अपनी बात कहने के साथ ही अभिव्यक्ति की भी पूरी आजादी है। राम की सभा में हर व्यक्ति को अपनी बात कहने का मौका दिया जाता है। राम खुद को समाज के किसी एक ख़ास तबके का नायक न मान कर समाज के सभी तबकों के साथ मिल कर शासन व्यवस्था चलाने में यकीन रखते हैं। इंसान तो इंसान, राम के समाज में तो पशुओं के सम्प्रदाय को भी महत्त्व दिया गया है। शायद यही वजह है उनकी सेना में इनको भी प्रतिनिधित्व दिया गया है।
इसी तरह राम शबरी के जूठे बेर भी खा लेते हैं और निषादराज केवट के गले भी मिलते हैं। ये दोनों ही समाज के वंचित और पिछड़े तबकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनकी सेना में हनुमान जैसे ब्राह्मण भी हैं तो समाज के दलित, वंचित और पिछड़े तबकों के लोगों की भी भरमार है। आज जिनको विधर्मी कह कर नकारा जाता है मॉब लिंचिंग के नाम से परेशान किया जाता है वो राम के राज में कोल-किरात तबकों के प्रतिनिधि की शक्ल में राम की सेना में भी शामिल हैं और प्रशासकीय प्रबंधन में भी। इस लिहाज से रामराज एक आदर्श व्यवस्था कही जाती है।